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सत्ता के बाद आप की चुनौतियां

३१ दिसम्बर २०१३

भारत में इन दिनों सियासत की नई इबारत लिख रही आम आदमी पार्टी. वह दिल्ली की सत्ता संभालते ही उस मोड़ पर पहुंच चुकी है जहां उसकी चुनौतियां उपलब्धियों से कहीं बड़ी दिखती है.

Arvind Kejriwal Manish Sisodia
तस्वीर: UNI

आप के सामने उसी जनता की नजरों में खुद को खरा साबित करने की अनचाही चुनौती है जिसकी नजरों में वह औरों का दामन दागदार बताने में कामयाब रही.

सस्ती बिजली, मुफ्त पानी और सख्त लोकपाल के वादे को चुनावी हथियार बना कर कांग्रेस और बीजेपी से सत्ता हथियाने वाली पार्टी पर सबकी नजरें हैं कि वह कैसे वादों को पूरा कर पाएगी. विरोधी दलों को अभी भी लगता है कि आप के वादे महज सपने साबित होंगे जबकि महंगाई की मार से पीड़ित जनता को भी इन सपनों के हकीकत में तब्दील होने का भरोसा है. हालांकि 28 दिसंबर को सरकार बनाने के तुरंत बाद मुख्यमंत्री बने अरविंद केजरीवाल ने महज 72 घंटे के भीतर पानी के वादे को बड़ी ही कुशलता से तार्किक परिणति के साथ पूरा कर विरोधियों के मुंह फौरी तौर पर बंद कर दिए.

पानी मांगते विरोधी

आप ने चुनावी घोषणापत्र में दिल्ली वालों को प्रति कनेक्शन 700 लीटर प्रति दिन पानी फ्री देने का वादा किया था. विरोधियों का दावा था कि दिल्ली में पानी की पहले से किल्लत को देखते हुए यह किसी कीमत पर पूरा नहीं हो सकता. आरोप था कि आप को सरकार में आने की उम्मीद तो थी नहीं इसलिए लोगों को रिझाने के लिए ऐसे वादे किए गए. मगर केजरीवाल ने बतौर जल बोर्ड अध्यक्ष उन्हीं अधिकारियों से यह काम करके दिखा दिया, जो अब तक इसे नामुमकिन बता रहे थे.

दरअसल आप का फार्मूला पहले से ही काफी स्पष्ट था, जिसमें सिर्फ दो तथ्यों को सामने रखा गया. पहला कि जल बोर्ड सालाना 687 करोड़ रुपये मुनाफे में है. जबकि 700 लीटर पानी फ्री देने से जल बोर्ड पर 480 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा. केजरीवाल सरकार चाहती तो शपथ ग्रहण करते ही यह घोषणा कर सकती थी. मगर हर पहलू पर गौर के बाद सोमवार देर शाम हुए फैसले ने बिजली के लिए भी उम्मीद की किरण जगा दी.

सरकार ने पानी के अपने पुराने फार्मूले को नया आयाम देते हुए 20,000 लीटर पानी प्रति कनेक्शन देने के साथ पानी की कीमत में 10 फीसदी का इजाफा भी कर दिया. इससे दो फायदे हुए. पहला राष्ट्रीय मानक के मुताबिक महानगरों में सरकार को कम से कम 135 लीटर पानी प्रति दिन प्रति व्यक्ति देना चाहिए मगर अब दिल्ली में यह उपलब्धता 140 लीटर हो जाएगी. दूसरा दिल्ली में पानी के कुल 19 लाख कनेक्शन में से तीन लाख बिना मीटर वाले हैं. इन उपभोक्ताओं को अभी 22,000 लीटर पानी प्रति माह की दर से औसत बिल का भुगतान करना होता है. जबकि 20,000 लीटर पानी मुफ्त करने के बाद पानी का इस मात्रा से अधिक इस्तेमाल होने पर पूरी मात्रा का बिल देने की बाध्यता के कारण अब बिना मीटर वाले उपभोक्ता खुद ब खुद मीटर लगवाने के लिए मजबूर होंगे. साथ ही इससे पानी की बर्बादी रोकने की भी प्रवृत्ति लोगों में पनपेगी.

वादे पूरा करने का वक्ततस्वीर: RAVEENDRAN/AFP/Getty Images

साथ ही सरकार ने यह व्यवस्था तीन महीने के लिए की है. इसके बाद 31 मार्च से नए बजट प्रावधानों के साथ इसे आगे के लिए लागू कर दिया जाएगा. इससे सरकार को अपने फैसले के नफा नुकसान का आकलन करने का भी मौका मिलेगा जिससे कमियों को दूर किया जा सके.

इस फैसले का विरोधी दल मजबूरी में भले ही विरेाध कर रहे हों लेकिन जल संरक्षण और पर्यावरण के क्षेत्र में लगे सामाजिक संगठन ऐतिहासिक फैसला बता रहे हैं. जल विशेषज्ञ एसए नकवी कहते हैं कि इस फैसले से सबसे बड़ा फायदा दिल्ली को पानी टैंकर माफिया से मुक्ति मिलने से होगा. साथ ही यह भी साबित हो गया किइस आसान काम को पिछली सरकारें स्वार्थों के कारण पूरा नहीं होने दे रही थीं.

अगला निशाना बिजली

केजरीवाल ने 102 डिग्री बुखार के बावजूद घर बैठे ही पानी का वादा पूरा कर बिजली के बिल कम करने के वादे पर संदेह के बादलों को साफ कर दिया. अब लोगों को पक्का भरोसा हो गया है कि बिजली का फार्मूला भी एक दो दिन में कारगर तौर पर लागू कर दिया जाएगा. सरकार जिस फार्मूले पर चल रही है, उसमें सिर्फ सब्सिडी ही एकमात्र विकल्प है. यहां भी पानी की तरह सरकार के पास दो तथ्य और एक भरोसा कायम है. भरोसा यही है कि पिछली सरकारों की भ्रष्ट नीतियों के कारण बिजली के बढ़े दाम का बोझ जनता को भुगतना पड़ रहा है. इसे महज एक ईमानदार कोशिश से पूरा किया जा सकता है. इसके लिए सरकार सिर्फ दो आंकड़ों के सहारे आगे बढ़ रही है.

पहला पिछले 10 साल में बिजली के 60 प्रतिशत दाम बढ़े हैं जबकि दाम बढ़ने का मुख्य कारण माने गए लाइन लॉस में इस दौरान 40 प्रतिशत कमी आई है. ऐसे में सरकार को पता है कि लाइन लॉस के लिए सबसे बड़ा कारण बिजली चोरी मानी जाती है और दिल्ली में बिजली चोरी में 80 प्रतिशत तक कमी आई है. इन तथ्यों के देखते हुए स्पष्ट है कि बिजली के दाम बढ़ाने का एकमात्र मकसद निजी कंपनियों को मुनाफा देना था. सरकार 40 प्रतिशत लाइन लॉस में कमी देखते हुए कम से कम 25 प्रतिशत दाम में कटौती कर सकती है. लेकिन दिल्ली में बिजली की कीमत तय करने के लिए नियामक आयोग मौजूद है. सरकार को दाम करने के लिए आयोग के पास जाना होगा जो एक नियत प्रक्रिया के तहत दाम तय करता है और इसमें समय लगना लाजिमी है. जबकि सरकार के पास इंतजार का समय नहीं है. ऐसे में सरकार सब्सिडी के जरिए 25 प्रतिशत बिल में कटौती तत्काल प्रभाव से कर सकती है जबकि शेष काम बिजली कंपनियों के ऑडिट के बाद उनकी पॉकेट से ही वसूलने का विकल्प भी सरकार अपना सकती है. इससे आम आदमी में सकारात्मक संदेश जाएगा और इसका राजनीतिक लाभ आम आदमी की पार्टी को मिलना तय है.

लोकपाल का वादा

इसी तरह तीसरा वादा दिल्ली के सशक्त लोकपाल का है जिसे सरकार आगामी एक जनवरी से शुरू होने जा रहे विधानसभा सत्र में पेश करने की आप की तैयारी है. मौजूदा योजना के मुताबिक अगर तीन जनवरी को सरकार विश्वास मत हासिल कर लेती है तो सरकार अगले एक दो दिन में सदन की विशेष बैठक रामलीला मैदान में बुला कर दिल्ली लोकायुक्त संशोधन विधेयक पेश कर देगी. इसके पारित होने की हकीकत से जनता खुद रूबरू होगी. मजेदार बात यह होगी कि अगर ऐसा होता है तो दुनिया उस सकारात्मक राजनीतिक बदलाव के लिए भारत में हो रहे इस अभिनव प्रयोग को सफल होते देखेगी. देखना यह भी होगा कि जनता की मौजूदगी में दूसरे सियासी दल लोकपाल की खामियों को दूर करने में केजरीवाल सरकार के साथ कैसा सुलूक करते हैं.

ब्लॉगः निर्मल यादव

संपादनः अनवर जे अशरफ

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