युवा पाकिस्तानी प्रवासी खजीमा नसीर के लिए वो लंबी जिंदगी अब कम पड़ गई है जिसे बेहतर बनाने का सपना लेकर वो पिछले साल जर्मनी आए थे. जल्द कैंसर के मरीज खजीमा को वापस पाकिस्तान भेज दिया जाएगा.
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25 साल के खजीमा नसीर का संबंध पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में सियालकोट के करीब डिस्का शहर से है. वहां उनकी एक रेडीमेड कपड़े की दुकान थी. वो पिछले तीन महीनों से भी ज्यादा समय से जर्मन शहर कोलोन के एक अस्पताल में भर्ती हैं. यहां उनका इलाज बंद किया जा चुका है और सिर्फ देखभाल हो रही है. खजीमा कहते हैं कि उनकी कहानी उन हजारों पाकिस्तानी युवाओं को बताई जानी चाहिए जो बेहतर भविष्य का ख्वाब लिए हर कीमत पर विदेशों का रुख करते हैं.
वो बताते हैं कि पिछले साल गर्मियों की बात है. उनके एक दोस्त ने पूछा, "क्या यूरोप चलोगे?” खजीमा ने कहा, "हां चल सकता हूं.” फिर खजीमा ने अपने घर से 35 हजार रुपए लिए और कुछ ही दिनों में वह कराची के रास्ते ईरान की तरफ समंदरी सफर पर थे. खजीमा बताते हैं कि वो ईरान के एक बंदरगाह शहर पहुंचे तो उन्हें एक पड़ाही इलाके में कुछ डाकुओं ने लूटने की कोशिश की. इस दौरान खजीमा की टांग में एक गोली भी लग गई. लेकिन डाकुओं से बचने की कोशिश में भागते गए. उनके दोनों दोस्तों को ईरानी अधिकारियों ने पकड लिया. वो बताते हैं, "मुझे जख्मी होने की वजह से एक अस्पताल में पहुंचा दिया गया, जबकि मेरे दोनों दोस्तों को वापस पाकिस्तान भेज दिया गया.”
वो बताते हैं कि जब कुछ तबीयत बेहतर हुई तो ईरानी डॉक्टरों ने छुट्टी देते हुए कहा कि अब तुम आजाद हो, जहां जाना है जा सकते हो. खजीमा ने पाकिस्तान जाने की बजाय यूरोप की तरफ अपना सफर जारी रखने का फैसला किया और एक एजेंट के जरिए गैर कानूनी तरीके से पहले तुर्की और फिर वहां से एक छोटी सी नाव पर सवार हो कर ग्रीस पहुंच गए.
जुलाई 2015 में खजीमा ग्रीस पहुंचे. अपने कई दोस्तों के साथ उन्होंने पैदल सफर जारी रखा और फिर मेसेडोनिया, सर्बिया और हंगरी होते हुए आठ अगस्त 2015 को ये पाकिस्तानी युवा प्रवासियों से भरी एक ट्रेन में सवार हुआ और जर्मनी पहुंच गया. उस वक्त यूरोप में प्रवासी संकट अपने चरम पर था और जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने पूर्वी यूरोप में फंसे शरणार्थियों के लिए अपने देश की सीमाएं खोल दीं.
प्रवासी कहां जाना पसंद करते हैं, देखिए
प्रवासियों के फेवरेट देश
काम करने के लिए अपने देश से बाहर जाने वाले लोग सबसे ज्यादा कहां जाना पसंद करते हैं? इंटरनेशंस के सर्वे में टॉप 10 रहे ये देश...
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नंबर 10
यूरोपीय देश चेक रिपब्लिक नंबर 10 पर रहा है.
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नंबर 9
लग्जमबर्ग भले ही एक सिटी-स्टेट हो लेकिन विदेशियों को खूब पसंद है.
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नंबर 8
आमतौर पर नाम सुनाई नहीं देता लेकिन ऑस्ट्रिया नंबर 8 पर है.
क्या आपने सोचा था कि कोस्टा रिका इस लिस्ट में होगा?
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नंबर 5
न्यूजीलैंड की रैंकिंग ऑस्ट्रेलिया से बेहतर है, नंबर 5.
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नंबर 4
मेक्सिको को अगर आप सिर्फ ड्रग्स और क्राइम्स के लिए जानते हैं तो आप गलत हैं.
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नंबर 3
पिछले दो साल से नंबर वन रहा इक्वेडोर नंबर 3 पर खिसक गया है.
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नंबर 2
छोटा सा देश माल्टा विदेशियों को बहुत लुभाता है.
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नंबर 1
ताईवान सबको पीछे छोड़कर विदेशियों की पहली पसंद बन गया है.
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जर्मनी आने के बाद खजीमा नसीर ने राजनीतिक शरण का आवेदन किया जिस पर अभी तक फैसला नहीं हुआ है. हालांकि पिछले साल उसे डुसेलडॉर्फ शहर में बाकायदा एक घर दिया गया और फिर उसने शरणार्थी शिविर छोड़ दिया. बीमारी की वजह से बहुत धीमी आवाज में बात करने वाले खजीमा के लिए यूरोप और खास तौर से जर्मनी में रहते बेहतर जिंदगी का सपना उस वक्त खतरे में पड़ गया जब इस साल जुलाई में उनकी एक टांग बहुत ज्यादा सूज गई. ये वही टांग थी जिसमें ईरान में गोली लगी थी. उन्हें जोलिंगन शहर के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया तो पता चला कि उन्हें कैंसर हैं.
जोंगिंलन के अस्पताल में एक महीने रहने के बाद उन्हें कोलोन के अस्पताल में भेजा गया. यहां डॉक्टरों को पता चला कि खजीमा को ना सिर्फ हड्डियों का कैंसर है, बल्कि उनकी बीमारी खतरनाक स्तर तक जा पहुंची है. कैंसर के इलाज के लिए उनकी कई तरह की कीमोथैरेपी की गई लेकिन कैंसर बढ़ता गया और आखिर डॉक्टरों को बताना पड़ा कि वो अब और इलाज नहीं कर सकते.
अब खजीमा शारीरिक तौर पर बहुत कमजोर है और उनका वजन भी कम हो गया है. लेकिन वो बहुत बहादुरी के साथ अब भी अपनी बीमारी से लड़ रहे हैं. उन्हें कोलोन के इस अस्पताल में रहते हुए अब साढ़े तीन महीने हो गए हैं. खजीमा के मुताबिक डॉक्टरों ने कहा है कि अब उनके पास जिंदगी के चंद हफ्ते या फिर चंद महीने ही बचे हैं.
इन पाकिस्तानियों के सपने कैसे चूर चूर हो रहे हैं, देखिए
चूर-चूर होते पाकिस्तानियों के ख्वाब
शरणार्थी संकट के बीच हजारों पाकिस्तानी भी यूरोप में पहुंचे हैं. ग्रीस से पाकिस्तानी इफ्तिखार अलीकी भेजी कुछ तस्वीरें भेजीं यूरोप में बेहतर जिंदगी के इन लोगों के सपने की हकीकत को बयान करती हैं.
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सफाई का काम
हजारों पाकिस्तानी अपने घरों से निकले और उनकी मंजिल जर्मनी या उसके पड़ोसी देश थे. किसी ने सोचा भी न होगा कि खतरनाक पहाड़ी और समंदरी रास्ते पर जिंदगी दांव पर लगाने के बाद उन्हें एथेंस के शरणार्थी शिविर में शौचालय साफ करना होगा.
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झूठे सब्जबाग
इनमें से ज्यादा लोग पाकिस्तान के पंजाब प्रांत हैं. एजेंटों ने उन्हें जर्मनी तक पहुंचाने का खर्चा प्रति व्यक्ति पांच लाख रुपए बताया था और सबसे ये पैसा एडवांस में ही ले लिया गया. लेकिन अब एजेंटों के दिखाए सब्जबाग झूठे साबित हो रहे हैं.
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शरण संभव नहीं
सीरिया और अन्य संकटग्रस्त देशों से आए शरणार्थियों को बालकन देशों के रास्ते जर्मनी जाने की इजाजत दी गई थी. लेकिन यूरोपीय सरकारों का मानना है कि ज्यादातर पाकिस्तानी आर्थिक कारणों से यूरोप आ रहे हैं. इसलिए उन्हें यहां शरण दिए जाने की संभावना बहुत कम है.
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रहने की शर्त
इन लोगों का कहना है कि ग्रीस में अधिकारियों ने सफाई का काम सिर्फ उन्हें ही सौंपा है. इनसे कहा गया है कि पाकिस्तानी नागरिकों को शरणार्थी शिविर में रखने की इजाजत ही नहीं है, फिर भी उन्हें वहां रहने की इजाजत सिर्फ इस शर्त पर दी गई है कि वो सफाई करेंगे.
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नाउम्मीद
ऐसे सैकड़ों पाकिस्तानी आप्रवासियों को अब उम्मीद ही नहीं है कि वो ग्रीस से आगे पश्चिमी यूरोप की तरफ जा पाएंगे और इसलिए वो वापस पाकिस्तान जाना चाहते हैं. इनमें से बहुत से मानसिक और शारीरिक बीमारियों का शिकार हैं. कई लोगों ने आत्महत्या की कोशिश भी है.
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खाना भी पूरा नहीं
ग्रीस में शरण की आस में रह रहे ज्यादातर पाकिस्तानियों का कहना है कि शिविर में उन्हें पर्याप्त खाना भी नहीं मिलता है और वो अच्छा भी नहीं होता है. कई लोगों का कहना है कि उन्हें सिर्फ जिंदा रहने के लिए रोज एक वक्त का खाना दिया जाता है. ऐसे में कई लोग बीमारियों का शिकार हैं.
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वतन वापसी भी मुश्किल
विडंबना तो ये है कि ज्यादातर लोगों के पास पासपोर्ट या अन्य दस्तावेज भी नहीं है और पाकिस्तान वापस जाना भी उनके लिए कठिन है. एथेंस में पाकिस्तानी दूतावास की तरफ से उनकी पहचान और पासपोर्ट जारी करने की प्रक्रिया बहुत धीमी है.
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याद आते हैं बच्चे
पाकिस्तान के जिला गुजरात से संबंध रखने वाले 41 साल के सज्जाद शाह भी अब वापस वतन लौटना चाहते हैं. उनके तीन बच्चे हैं. वो कहते हैं कि कैंप में बच्चे को खेलते देख उन्हें अपने बच्चे याद आते हैं और जल्द से जल्द उनके पास जाना चाहते हैं.
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खराब हालात
अन्य देशों से संबंध रखने वाले आप्रवासियों और शरणार्थियों को यूनानी अधिकारियों ने रिहायशी इमारतों में रहने को जगह दी है जबकि पाकिस्तानियों को ज्यादातर अस्थायी शिविरों में रखा गया है. हालत इसलिए भी खराब है कि उन्हें यूरोप की कड़ी सर्दी की आदत नहीं है.
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नहीं मिलता जवाब
इन लोगों का कहना है यात्रा दस्तावेजों के लिए उन्होंने एथेंस के पाकिस्तानी दूतावास में अर्जी दी है लेकिन महीनों बाद भी कोई जबाव नहीं मिला है. कुछ लोगों ने शरणार्थी एजेंसी से भी खुद को स्वदेश भिजवाने की अपील की, लेकिन उन्होंने कहा कि इसके लिए पासपोर्ट या अन्य दस्तावेज चाहिए.
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गुहार
बहुत से लोगों ने पाकिस्तान सरकार से भी जल्द से जल्द वतन वापसी की गुहार लगाई है. एहसान नाम के एक पाकिस्तानी आप्रवासी ने डीडब्ल्यू को बताया, “न हम वापस जा सकते हैं और न आगे. बस पछतावा है और यहां टॉयलेट की सफाई का काम है.”
तस्वीर: Iftikhar Ali
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खमीजा कहते हैं. "मैंने ख्वाहिश जाहिर की थी कि अगर हो सके तो मुझे वापस पाकिस्तान भिजवा दिया जाए. अस्पताल के लोग कोशिश कर रहे हैं. पहले मेरी मां को यहां बुलवाने का काम शुरू किया गया था. लेकिन पाकिस्तान से जर्मनी का वीजा हासिल करने में उनके कई महीने लग सकते हैं और मेरे पास इतना वक्त है नहीं.”
अब कोलोन का ये अस्पताल अंतरराष्ट्रीय शरणार्थी संस्था के साथ मिलकर इस कोशिश में है कि खजीमा को एक डॉक्टर के साथ पाकिस्तान भिजवा दिया जाए और परिजनों को सौप दिया जाए. इस बीच कोलोन अस्पताल के सूत्रों का कहना है कि मरीज की बीमारी आखिरी चरण में है और गैर कानूनी प्रवासी होने के कारण खजीमा को उनके देश भेजने में कई तरह की कानूनी अड़चनें हैं. एक अधिकारी ने कहा, "फिर भी हमें यकीन है कि चंद दिनों में खजीमा को पाकिस्तान भिजवा देंगे, बशर्ते वो सफर करने की हालत में हो.”
देखिए कोई सरहद न इन्हें रोके
कोई सरहद ना इन्हें रोके...
इंजन वाले विमान के लिए भी 14,000 किलोमीटर की उड़ान भरना कठिन चुनौती है. मगर पानी के ये पक्षी कितने ही महासागरों और महाद्वीपों को पार कर जाते हैं वो भी बिना किसी जेट इंजन की मदद के.
तस्वीर: AP Photo/David Guttenfelder on assignment for National Geographic Magazine
अफसर पक्षी
सारस परिवार के ये पक्षी किसी सैनिक अधिकारी जैसी अपनी चाल ढाल के कारण ही अफसर कहलाते हैं. दुर्भाग्य से इन अफसरों के पास अब कोई जमीन नहीं बची है. दुर्लभ हो चुके इन पक्षियों की केवल दो ब्रीडिंग कॉलोनियां भारत और कंबोडिया में पाई जाती हैं. इसके अलावा साल भर ये दक्षिणपूर्वी एशियाई देशों में घूमते हैं.
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लंबी दूरी के चैंपियन
आर्कटिक तटों के किनारे प्रजनन करने वाले ये बगुले की किस्म वाले पक्षी जाड़ों में ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड चले जाते हैं. 2007 में ऐसे एक पक्षी को टैग कर उस पर नजर रखी गई. वह पक्षी लगातार नौ दिनों तक उड़ते हुए 11,600 किलोमीटर की दूसरी तय कर पश्चिमी अलास्का से न्यूजीलैंड पहुंचा था, जो कि सभी जीव जन्तुओं में एक रिकॉर्ड है.
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'दि बर्ड'
60 के दशक में आई हिचकॉक की मशहूर फिल्म 'दि बर्ड' जिस बर्ड पर आधारित थी वह यही है. पानी के बिल्कुल साथ साथ उड़ने वाले ये पक्षी वसंत ऋतु में प्रशांत और अटलांटिक सागर पार करते हुए ऊपर जाते हैं और पतझड़ में नीचे की ओर आते हुए करीब 14,000 किलोमीटर की दूसरी तय कर लेते हैं. ये 60 मीटर ऊपर से पानी में डाइव भी लगा सकते हैं.
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स्नो बर्ड
आर्कटिक टर्न्स ने ठंड से निपटने की बहुत अच्छी तरकीब निकाली है. ये उत्तरी गोलार्ध के आर्कटिक की गर्मियों में प्रजनन करती हैं और फिर 80,000 किलोमीटर से भी अधिक की यात्रा कर दूसरे छोर अंटार्कटिक की गर्मियों का आनंद लेने पहुंच जाती हैं. इस तरह वे हर बार जाड़ों से बच जाती हैं.
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पवित्र चिड़िया
गंभीर संकट में पड़ चुकी यह नॉर्दर्न बॉल्ड आइबिस अब केवल दक्षिणी मोरक्को में ही पाई जाती है. पहले यह यूरोप, अफ्रीका और मध्यपूर्व तक में आप्रवासन किया करती थी. प्राचीन मिस्र में इसे पूज्य माना जाता था और नोआह की नाव में भी इसे रखे जाने की मान्यता है. कहते हैं कि तुर्की हजयात्री इसे देखते हुए मक्का तक पहुंच जाया करते थे.
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कॉमनर क्रेन
यह क्रेन पक्षी उत्तरी यूरोप और एशिया के कई इलाकों में दिखता है. प्रजनन के लिए यह दलदली इलाकों में चली जाती है और जाड़ों में उत्तरी और दक्षिणी अफ्रीका, इस्राएल और ईरान तक पहुंच जाती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Büttner
दुखद अंत
इन बत्तखों ने उत्तरी अफ्रीका से भूमध्यसागर के ऊपर से होते हुए अल्बेनिया तक की दूरी तय कर ली थी लेकिन पहुंचते ही शिकारियों की गोली की शिकार बन गईं. हर साल शिकारी भोजन, पैसे या केवल मजे के लिए यहां लाखों प्रवासी पक्षियों को मार गिराते हैं.
तस्वीर: AP Photo/David Guttenfelder on assignment for National Geographic Magazine
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डीडबल्यू के साथ खजीमा ने अपनी आपबीती इस तरह खत्म की, "जवानी में इंसान अपने लिए बड़ी लंबी उम्र की इच्छा करता है और कई सपने देखता है. अपने मुल्क में या मुल्क से बाहर बेहतर और खुशहाल जिंदगी के ख्वाब. लेकिन कभी जिंदगी इतनी कम पड़ जाती है, सपने रास्ते में ही गुम हो जाते हैं या फिर उन सपनों को हकीकत में बदलने की जद्दोजगह बहुत खौफनाक और दर्दनाक हो जाती है.”