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सपने तो बड़े थे, लेकिन जिंदगी ही कम पड़ गई

मकबूल मलिक
२१ अक्टूबर २०१६

युवा पाकिस्तानी प्रवासी खजीमा नसीर के लिए वो लंबी जिंदगी अब कम पड़ गई है जिसे बेहतर बनाने का सपना लेकर वो पिछले साल जर्मनी आए थे. जल्द कैंसर के मरीज खजीमा को वापस पाकिस्तान भेज दिया जाएगा.

Flüchtling Khuzaima Naseer
तस्वीर: DW/M.Malik

25 साल के खजीमा नसीर का संबंध पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में सियालकोट के करीब डिस्का शहर से है. वहां उनकी एक रेडीमेड कपड़े की दुकान थी. वो पिछले तीन महीनों से भी ज्यादा समय से जर्मन शहर कोलोन के एक अस्पताल में भर्ती हैं. यहां उनका इलाज बंद किया जा चुका है और सिर्फ देखभाल हो रही है. खजीमा कहते हैं कि उनकी कहानी उन हजारों पाकिस्तानी युवाओं को बताई जानी चाहिए जो बेहतर भविष्य का ख्वाब लिए हर कीमत पर विदेशों का रुख करते हैं.

वो बताते हैं कि पिछले साल गर्मियों की बात है. उनके एक दोस्त ने पूछा, "क्या यूरोप चलोगे?” खजीमा ने कहा, "हां चल सकता हूं.” फिर खजीमा ने अपने घर से 35 हजार रुपए लिए और कुछ ही दिनों में वह कराची के रास्ते ईरान की तरफ समंदरी सफर पर थे. खजीमा बताते हैं कि वो ईरान के एक बंदरगाह शहर पहुंचे तो उन्हें एक पड़ाही इलाके में कुछ डाकुओं ने लूटने की कोशिश की. इस दौरान खजीमा की टांग में एक गोली भी लग गई. लेकिन डाकुओं से बचने की कोशिश में भागते गए. उनके दोनों दोस्तों को ईरानी अधिकारियों ने पकड लिया. वो बताते हैं, "मुझे जख्मी होने की वजह से एक अस्पताल में पहुंचा दिया गया, जबकि मेरे दोनों दोस्तों को वापस पाकिस्तान भेज दिया गया.”

जब खमीजा सही सलामत थेतस्वीर: K. Naseer

वो बताते हैं कि जब कुछ तबीयत बेहतर हुई तो ईरानी डॉक्टरों ने छुट्टी देते हुए कहा कि अब तुम आजाद हो, जहां जाना है जा सकते हो. खजीमा ने पाकिस्तान जाने की बजाय यूरोप की तरफ अपना सफर जारी रखने का फैसला किया और एक एजेंट के जरिए गैर कानूनी तरीके से पहले तुर्की और फिर वहां से एक छोटी सी नाव पर सवार हो कर ग्रीस पहुंच गए.

जुलाई 2015 में खजीमा ग्रीस पहुंचे. अपने कई दोस्तों के साथ उन्होंने पैदल सफर जारी रखा और फिर मेसेडोनिया, सर्बिया और हंगरी होते हुए आठ अगस्त 2015 को ये पाकिस्तानी युवा प्रवासियों से भरी एक ट्रेन में सवार हुआ और जर्मनी पहुंच गया. उस वक्त यूरोप में प्रवासी संकट अपने चरम पर था और जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने पूर्वी यूरोप में फंसे शरणार्थियों के लिए अपने देश की सीमाएं खोल दीं.

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जर्मनी आने के बाद खजीमा नसीर ने राजनीतिक शरण का आवेदन किया जिस पर अभी तक फैसला नहीं हुआ है. हालांकि पिछले साल उसे डुसेलडॉर्फ शहर में बाकायदा एक घर दिया गया और फिर उसने शरणार्थी शिविर छोड़ दिया. बीमारी की वजह से बहुत धीमी आवाज में बात करने वाले खजीमा के लिए यूरोप और खास तौर से जर्मनी में रहते बेहतर जिंदगी का सपना उस वक्त खतरे में पड़ गया जब इस साल जुलाई में उनकी एक टांग बहुत ज्यादा सूज गई. ये वही टांग थी जिसमें ईरान में गोली लगी थी. उन्हें जोलिंगन शहर के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया तो पता चला कि उन्हें कैंसर हैं.

जोंगिंलन के अस्पताल में एक महीने रहने के बाद उन्हें कोलोन के अस्पताल में भेजा गया. यहां डॉक्टरों को पता चला कि खजीमा को ना सिर्फ हड्डियों का कैंसर है, बल्कि उनकी बीमारी खतरनाक स्तर तक जा पहुंची है. कैंसर के इलाज के लिए उनकी कई तरह की कीमोथैरेपी की गई लेकिन कैंसर बढ़ता गया और आखिर डॉक्टरों को बताना पड़ा कि वो अब और इलाज नहीं कर सकते.

अब खजीमा शारीरिक तौर पर बहुत कमजोर है और उनका वजन भी कम हो गया है. लेकिन वो बहुत बहादुरी के साथ अब भी अपनी बीमारी से लड़ रहे हैं. उन्हें कोलोन के इस अस्पताल में रहते हुए अब साढ़े तीन महीने हो गए हैं. खजीमा के मुताबिक डॉक्टरों ने कहा है कि अब उनके पास जिंदगी के चंद हफ्ते या फिर चंद महीने ही बचे हैं.

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खमीजा कहते हैं. "मैंने ख्वाहिश जाहिर की थी कि अगर हो सके तो मुझे वापस पाकिस्तान भिजवा दिया जाए. अस्पताल के लोग कोशिश कर रहे हैं. पहले मेरी मां को यहां बुलवाने का काम शुरू किया गया था. लेकिन पाकिस्तान से जर्मनी का वीजा हासिल करने में उनके कई महीने लग सकते हैं और मेरे पास इतना वक्त है नहीं.”

अब कोलोन का ये अस्पताल अंतरराष्ट्रीय शरणार्थी संस्था के साथ मिलकर इस कोशिश में है कि खजीमा को एक डॉक्टर के साथ पाकिस्तान भिजवा दिया जाए और परिजनों को सौप दिया जाए. इस बीच कोलोन अस्पताल के सूत्रों का कहना है कि मरीज की बीमारी आखिरी चरण में है और गैर कानूनी प्रवासी होने के कारण खजीमा को उनके देश भेजने में कई तरह की कानूनी अड़चनें हैं. एक अधिकारी ने कहा, "फिर भी हमें यकीन है कि चंद दिनों में खजीमा को पाकिस्तान भिजवा देंगे, बशर्ते वो सफर करने की हालत में हो.”

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डीडबल्यू के साथ खजीमा ने अपनी आपबीती इस तरह खत्म की, "जवानी में इंसान अपने लिए बड़ी लंबी उम्र की इच्छा करता है और कई सपने देखता है. अपने मुल्क में या मुल्क से बाहर बेहतर और खुशहाल जिंदगी के ख्वाब. लेकिन कभी जिंदगी इतनी कम पड़ जाती है, सपने रास्ते में ही गुम हो जाते हैं या फिर उन सपनों को हकीकत में बदलने की जद्दोजगह बहुत खौफनाक और दर्दनाक हो जाती है.”

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