दिल्ली में किसान परेड के दौरान हुई हिंसा के बाद किसान आंदोलन के भविष्य को लेकर कई सवाल उठाए जा रहे हैं. किसान अब एक फरवरी को संसद तक पदयात्रा निकालने की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन प्रशासन का रुख अब कड़ा होने की आशंका है.
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मंगलवार को दिल्ली के कुछ इलाकों में हुई हिंसा के बाद किसान वापस शहर की सीमाओं पर लौट तो गए, लेकिन किसान परेड के दौरान जो घटनाएं हुईं उनका असर अभी भी बरकरार है. दिल्ली में जगह जगह पर पुलिस की नाकेबंदी है जिसकी वजह से कई स्थानों पर लंबे ट्रैफिक जैम लगे हुए हैं. सीमाओं पर तो इंटरनेट पूरी तरह से बंद कर ही दिया गया है, शहर के कई इलाकों में भी इंटरनेट कई जगह बंद है तो कई जगह सीमित रूप से चालू है.
मंगलवार की घटनाओं को लेकर दिल्ली पुलिस ने कम से काम 20 एफआईआर दर्ज की हैं. मीडिया रिपोर्टों में दावा किया जा रहा है कि अलग अलग घटनाओं में एक किसान की मौत हो गई, कई किसान और पुलिसकर्मी घायल हुए और कई वाहनों को नुक्सान पहुंचा. 23 वर्षीय नवरीत सिंह की दिल्ली के दीन दयाल उपाध्याय मार्ग पर ट्रैक्टर पलटने के बाद मौत हो गई.
किसान संयुक्त मोर्चा ने मंगलवार शाम को ही अपने आप को किसान परेड के दौरान हुई सभी अप्रिय घटनाओं से अलग कर लिया था. मोर्चा ने एक बयान जारी कर किसान परेड के अनुशासन को तोड़ने वाली हर घटना की निंदा की और किसानों की रैली को खत्म कर दिया. मोर्चा का कहना था कि कुछ असामाजिक तत्त्व रैली में घुस आए थे और उन्होंने ही घटनाओं को अंजाम दिया.
मोर्चा ने सभी किसानों को वापस दिल्ली की सीमाओं पर बुला लिया और कहा कि किसानों का आंदोलन शांतिपूर्ण तरीके से जारी रहेगा. उम्मीद की जा रही है कि बुधवार को मोर्चा के नेता आने वाले कार्यक्रमों की जानकारी देंगे. दिल्ली पुलिस भी एक समाचार वार्ता में कुछ घोषणांए कर सकती है. मंगलवार की घटनाओं की लगभग सभी विपक्षी पार्टियों ने भी निंदा की है.
इनमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी, पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार और बीएसपी अध्यक्ष मायावती शामिल हैं. इस बीच किसान आंदोलन के आगे के कार्यक्रम को लेकर चिंताएं व्यक्त की जा रही हैं. एक फरवरी को किसानों की संसद भवन तक पदयात्रा निकालने की योजना है, लेकिन देखना होगा कि 26 जनवरी की घटनाओं को देखते हुए दिल्ली पुलिस इस पदयात्रा की इजाजत देगी या नहीं.
सबसे पहले अध्यादेश के रूप में जून में लाए गए कानूनों का किसान अपने प्रांतों में विरोध कर रहे थे. लेकिन जब दिल्ली ने उनकी आवाज नहीं सुनी तो वो अपनी मांगों को लेकर दिल्ली ही आ गए. देखिए किसान आंदोलन को कैमरे की नजर से.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
आतंकवादी नहीं किसान
पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से हजारों किसान नए कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली में प्रदर्शन करने के लिए निकले लेकिन पुलिस ने उन्हें दिल्ली की सीमाओं पर ही रोक दिया. राशन-पानी ले कर आए किसानों ने वही डेरा जमाया और आंदोलन छेड़ दिया. पुलिस के डंडे, ठंडे पानी की बौछार और आंसू गैस के गोलों के अलावा किसान प्रदर्शनकारियों ने जाहिल, आढ़तियों के एजेंट और आतंकवादी होने तक के आरोपों का सामना किया.
तस्वीर: Mohsin Javed
बात चंद किसानों की नहीं
हजारों की संख्या में किसान जीन तीन नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं, वो हैं आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून, कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) कानून और कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून. इनका उद्देश्य ठेके पर खेती को बढ़ाना, भंडारण की सीमा तय करने की सरकार की शक्ति को खत्म करना और अनाज, दालों, सब्जियों के दामों को तय करने को बाजार के हवाले करना है.
तस्वीर: Mohsin Javed
आर-पार की लड़ाई
किसान सिर्फ भारी संख्या में ही नहीं आए, बल्कि महीनों का राशन साथ लेकर आए हैं. सरकार ने नए कानूनों को किसानों के लिए कल्याणकारी बताया है, लेकिन किसानों का मानना है कि इनसे सिर्फ बड़े उद्योगपतियों का फायदा होगा और छोटे और मझौले किसानों को अपने उत्पाद के सही दाम नहीं मिल पाएंगे. उनका कहना है कि इन कानूनों की वजह से कृषि उत्पादों की खरीद की व्यवस्था में छोटे और मझौले किसानों का शोषण बढ़ेगा.
तस्वीर: Mohsin Javed
पुलिस की बर्बरता का सामना
जय जवान और जय किसान का नारा लगाने वाले देश में किसान और जवान आमने सामने हैं. आंदोलन के दौरान किसानों को पुलिस की लाठियों का भी सामना करना पड़ा. कई बुजुर्ग किसान घायल हो गए और हालात कठिन होने की वजह से कुछ किसानों की मौत भी हो गई.
तस्वीर: Mohsin Javed
सर्दी में संघर्ष
सभी स्थानों पर किसान या तो खुले में या पतले शामियानों के नीचे दिन और रात बिता रहे हैं. सड़क-मार्ग से ही राजधानी आए किसान अपने ट्रैक्टरों को भी साथ लाए हैं, जो अब यहां पर उनका वाहन भी बना हुआ है, बेंच भी, बिस्तर भी और छत भी.
तस्वीर: Mohsin Javed
लंबी जद्दोजहद की तैयारी
किसान मान कर आए हैं कि केंद्र सरकार आसानी से उनकी मांगें नहीं मानेगी. इसलिए वो लंबे समय तक डेरा डालने की तैयारी करके आए हैं. धरना स्थलों पर खुद ही रोज अपना खाना पकाते हैं और खा-पी कर फिर धरने पर बैठ जाते हैं. सरकार के साथ बातचीत में भी वे अपना ही खाना लेकर जाते हैं और सरकारी खाना ठुकरा देते हैं.
तस्वीर: Seerat Chabba/DW
महिला शक्ति भी मौजूद
आंदोलन सिर्फ पुरुषों के कंधों पर ही नहीं चल रहा है. कुछ महिलाएं गांवों में खेती संभाल रही हैं तो कुछ मोर्चे पर डटी हुई हैं और पुरुषों का कंधे से कंधा मिला कर साथ दे रही हैं.
तस्वीर: Mohsin Javed
किताबों का साथ भी
धरना स्थलों पर प्रदर्शनकारियों का साथ देने, उनका हौसला बढ़ाने और उनकी सेवा करने कई लोग पहुंचे हुए हैं. कोई खाना खिला रहा है, कोई पानी पिला रहा है, कोई डॉक्टरी मदद दे रहा है तो कोई किताबें भी बांट रहा है.
तस्वीर: Mohsin Javed
मीडिया से नाराजगी
प्रदर्शनकारियों में मीडिया के एक धड़े के खिलाफ भी सख्त नाराजगी है. उनका आरोप है कि कुछ बड़े मीडिया संस्थान सिर्फ सरकार का पक्ष जनता के सामने परोस रहे हैं और सिर्फ किसानों की आलोचना कर रहे हैं.
तस्वीर: Mohsin Javed
हुक्के के बिना कैसे हो किसान आंदोलन
विशेष रूप से दिल्ली और नॉएडा की सीमा पर धरने पर बैठे पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आए किसान जरूरत जी दूसरी चीजों के साथ हुक्का भी साथ लाए हैं. सरकार के सामने पहले पलक किसानों की ना झपक जाए, इसीलिए इस लंबी लड़ाई में धैर्य और हुक्के का सहारा भी लिया जा रहा है.