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सबसे खस्ता हालत में भारतीय फुटबॉल

१३ सितम्बर २०१२

भारतीय फुटबॉल संघ ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन (एआईएफएफ) का दावा है कि भारतीय टीम 2022 में विश्व कप के लिए क्वॉलिफाई कर सकेगी. लेकिन सच्चाई यह है की भारतीय फुटबॉल के हालात इस वक्त जितने खस्ता हैं वैसे अब तक कभी नहीं रहे.

तस्वीर: picture-alliance/ Pressefoto UL

भारत इस समय फीफा रैंकिंग में 169वें स्थान पर है. यह अब तक की भारत की सबसे बुरी रैंकिंग है. अजीब बात यह है कि पिछले हफ्ते ही आईएएफएफ अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल ने दावा किया कि भारत 2022 में कतर में होने वाले विश्व कप फुटबॉल के फाइनल के लिए क्वॉलीफाई कर सकेगा.

भारतीय फुटबॉल में अपना भरोसा दिखाते हुए पटेल ने कहा, "एक लम्बे अंतराल के बाद भारतीय फुटबॉल अब एक लम्बी छ्लांग के लिए तैयार है." पटेल भारत में फुटबॉल के भविष्य को ले कर सकारात्मक दिखे, "अभी भारत को काफी वक्त लगेगा कि वह देश में फुटबॉल प्रेमियों की उम्मीदों तक पहुंच सकें, लेकिन मैं यह जरूर कहना चाहूंगा कि हम सही रास्ते पर चल रहे हैं."

तस्वीर: dapd

रैंकिंग से कोई फर्क नहीं

फीफा में भारत की रैंकिंग देखने के बाद उनकी ये बातें हास्यास्पद लगती हैं. लेकिन पटेल का कहना है कि रैंकिंग से कोई फर्क नहीं पड़ता. शायद वह ऐसा इसलिए भी कह पा रहे हैं क्योंकि उन्हें फीफा का पूरा समर्थन प्राप्त है. फीफा अध्यक्ष जेरोम वाल्के का कहना है कि वह भारत में फुटबॉल का भविष्य देखते हैं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की इस बात के लिए कड़ी आलोचना होती आई है कि भारत में केवल क्रिकेट पर ही ध्यान दिया जाता है. लेकिन वाल्के इस बात को भी खारिज करते हैं, "यहां 1.2 अरब आबादी है और ऐसा नामुमकिन है की सभी 1.2 अरब लोग बस क्रिकेट ही खेलते हैं. फुटबॉल के लिए यकीनन जगह है."

पटेल का भी मानना है कि फीफा के समर्थन से भारतीय फुटबॉल को काफी फायदा मिलेगा. हालांकि भारत में फुटबॉल के जानकार इस से इत्तिफाक नहीं रखते. किताब 'स्टोरीज फ्रॉम इंडियन फुटबॉल' लिखने वाले जयदीप बासु का वाल्के के बयान के बारे में कहना है, "मुझे लगता है कि यह एक जनवादी प्रतिक्रिया है. भारत एशिया में 32वें स्थान पर है और हमारा लक्ष्य होना चाहिए था टॉप टेन की सूची में पहुंचना ताकि अंतरराष्ट्रीय खेलों में हम बेहतर प्रदर्शन दिखा सकें."

तस्वीर: AP

ना कोच ना खिलाड़ी

वाल्के के बयान के जवाब में वह कहते हैं, "आपके पास एक नेशनल लीग है जो अब भी संघर्ष कर रही है और कुल 90 खिलाड़ी हैं जिनमें से आपको नेशनल टीम का चयन करना है और आप 1.2 अरब लोगों की बात कर रहे हैं." बासु ने इस बात की भी शिकायत की है कि खिलाड़ियों को प्रशिक्षित करने के लिए कोच भी बहुत कम हैं, "इतने बड़े देश में कम से कम पचास हजार कोच होने चाहिए, पर हैं सिर्फ ढाई हजार. 32 में से केवल 12 राज्य ऐसे हैं जहां लोकल लीग हैं. अगर आप इन सब मुश्किलों का सामना कर सकते हैं और इनके बावजूद वर्ल्ड कप के लिए क्वॉलीफाई कर सकते हैं तो ऐसा करने के लिए तो आपको जीनियस होने की जरूरत है."

पैसे में रुचि?

वाल्के ने कहा है कि फीफा इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए भारत की हर मुमकिन तरीके से मदद करेगा, "हमारा मानना है की अगर एशिया में कोई एक देश है जिस पर ध्यान देने की जरूरत है तो वह भारत है." इसके अलावा वाल्के ने कुछ अटकलों को भी साफ किया, "हम इसलिए भारत नहीं आना चाह रहे हैं क्योंकि हमें ऐसा लगता है कि अगले दस साल में सारा पैसा भारत से आया करेगा. हम खिलाड़ियों पर निवेश कर रहे हैं लेकिन उसके बदले लाभ की उम्मीद नहीं कर रहे."

भारत ने 1951 और 1962 में एशियन गेम्स जीते थे. 1964 में भारत दूसरे स्थान पर रहा. इसे भारत का सबसे बेहतरीन समय माना जाता है. इसके बाद से भारतीय टीम अपनी प्रतिभा कामयाब नहीं हो सकी है. आईएएफएफ और फीफा की उम्मीदों के विपरीत जयदीप बासु स्पष्ट शब्दों में कहते हैं, "आईएएफएफ दिन में सपने देख रहा है."

आईबी/एएम (रॉयटर्स)

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