40 बड़े निवेशकों ने दुनिया भर की फूड कंपनियों से अपील की है कि वे शाकाहार को बढ़ावा दें. 1,250 अरब डॉलर की संपत्ति के मालिकों का कहना है कि मीट खाने और बेचने के चक्कर में धरती बर्बाद हो जाएगी.
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इंसान की खुराक में प्रोटीन की अहम भूमिका है. प्रोटीन शरीर में मांसपेशियों का निर्माण करता है. फिलहाल दुनिया भर में प्रोटीन का सबसे मुख्य जरिया मांस है. इसी वजह से फूड कंपनियों ने विशाल मीट उद्योग खड़ा कर दिया. लेकिन अब इसके नुकसान सामने आ रहे हैं. मुर्गियों और मछलियों को तेजी से बड़ा करने के लिए बहुत ज्यादा रसायनों का इस्तेमाल किया गया. सस्ता मीट बेचने की होड़ के चलते ऐसे ऐसे प्रयोग किये गए कि पर्यावरण और सेहत संबंधी परेशानियां खड़ी हो गई हैं.
अब बड़े निवेशक इस स्थिति को बदलना चाहते हैं. बीमा कंपनी अविवा समेत स्वीडन के कई सरकारी पेंशन फंड्स ने प्रमुख फूड कंपनियों को एक खत लिखा है. 23 सितंबर लिखी गई चिट्ठी में फूड कंपनियों से अपील की गई है कि वे पौधे से मिलने वाले प्रोटीन को बढ़ावा दें. खत क्राफ्ट हाइंज, नेस्ले, यूनिलीवर, टेस्को और वॉलमार्ट जैसी दिग्गज कंपनियों को भी भेजा गया है.
अगर ऐसा सलूक इंसानों के साथ हो तो?
जरा सोचिये कि जैसा व्यवहार इंसान जानवरों के साथ कर रहा है, अगर वैसा ही उसके साथ भी किया जाए तो. इसी अंदाज में दुनिया भर में पशु अधिकार कार्यकर्ता विरोध करते रहे हैं.
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इंसानी सभ्यता में अक्सर मनावाधिकारों, इंसानियत और एक व्यक्ति की गरिमा की बात होती है. लेकिन क्या पशुओं के भी अधिकार होते हैं? या फिर वे सिर्फ मांस हैं?
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पुराने जमाने में शरीर को गर्म रखने के लिए इंसान पशुओं की खाल का प्रयोग करता था. लेकिन अब फैशन के नाम पर जानवरों को पाला और मारा जाता है ताकि उनके उनके फर को इस्तेमाल किया जा सके.
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जर्मनी की राजधानी बर्लिन के ब्रांडेनबुर्ग गेट पर पशु अधिकार कार्यकर्ता. 6,20,000 लोगों को हस्ताक्षरों के जरिये उन्होंने जर्मन के पर्यावरण मंत्रालय से सर्कस में जंगली जानवरों के इस्तेमाल को रोकने की मांग की.
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लिपिस्टिक, लिपबाम या क्रीम को टेस्ट करने के लिए चूहों का इस्तेमाल होता है. काजल की टेस्टिंग में खरगोशों को अंधा होना पड़ता है. जर्मन दर्शनशास्त्री और भौतिकविज्ञानी अल्बर्ट श्वाइत्जर के मुताबिक, "जब तक इंसान सभी जीवित प्राणियों के लिए स्नेह का घेरा नहीं बनाएगा, तब तक शांति हासिल नहीं होगी."
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स्पेन में होने वाली बुलफाइटिंग का विरोध करते कार्यकर्ता. 20वीं सदी की महान शख्सियतों में गिने जाने वाले भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था, "किसी राष्ट्र का नैतिक विकास इस बात से चेक किया जा सकता है कि वह पशुओं से कैसा बर्ताव करता है."
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चमड़े के लिए पशुओं को बड़े पैमाने पर कत्ल करने वाले उद्योगों के खिलाफ बार्सिलोना में इस अंदाज में प्रदर्शन हुआ.
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16वीं सदी में इटली में पैदा हुई महान शख्सियत लियोनार्दो दा विंची के मुताबिक, "एक दिन आएगा जब जानवर की हत्या को इंसान की हत्या की तरह देखा जाएगा."
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मीट उद्योग के लिए तैयार होने वाले जीवों को बहुत ज्यादा एंटीबायोटिक खिलाये जाते हैं. शारीरिक विकास तेज करने के लिए उन्हें कई तरह के रसायन दिये जाते हैं. जरा सोचिये पशुओं पर क्या गुजरती होगी.
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खुराक के अलावा इन जीवों को बेहद तंग माहौल में रखा और मारा जाता है.
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फैशन उद्योग ने लोमड़ियों की बड़ी पैमाने पर बलि ली है. इसी का विरोध इस अंदाज में करते पशु अधिकार कार्यकर्ता.
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बहुत सारे लोगों को अच्छे बैग, पर्स या बेल्ट बार बार खरीदने का शौक होता है, उनकी इस इच्छा की कीमत मगरमच्छों, सांपों, गायों या भैंसों को चुकानी पड़ती है.
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धीमी गति से चलने वाले कछुए लालची इंसान के तेज दिमाग का शिकार हो रहे हैं. बाली में समुद्री कछुओं के संरक्षण की अपली करते कार्यकर्ता.
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मछली और सील का शिकार करने वाले ध्रुवों के बर्फीले इलाके में जाते हैं, और वहां ध्रुवीय भालू भी उनका निशाना बनते हैं. गर्म होती जलवायु और शिकार ने ध्रुवीय भालुओं की हालत खस्ता कर रखी है.
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जापान में व्हेलों के अंधाधुंध शिकार के खिलाफ होता प्रदर्शन.
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फॉर्म एनिमल इनवेस्टमेंट एंड रिटर्न इनिशिएटिव के संस्थापक जेरेमी कोलर के मुताबिक, "दुनिया की बढ़ती प्रोटीन की मांग को पूरा करने के लिए अगर फैक्ट्रियों में पाले जाने वाले मवेशियों का ही सहारा लिया गया तो वित्तीय, सामाजिक और पर्यावरणीय संकट उभरेगा." कोलर निवेश कंपनी कोलर कैपिटल के मुख्य निवेश अधिकारी हैं.
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोध के मुताबिक अगर लोग मांस खाना कम कर दें तो 2050 तक सेहत और जलवायु संबंधी खर्च में 1500 अरब डॉलर की कमी लाई जा सकती है. शोध के मुताबिक मीट उद्योग पर नकेल कसने की तैयारी भी शुरू हो चुकी है. डेनमार्क में रेड मीट पर टैक्स लगाने की योजना बन रही है. चीन सरकार अपने नागरिकों में मीट की खपत 50 फीसदी कम करना चाहती है.
ज्यादातर फू़ड कंपनियां प्रोसेस्ड मीट बेचती हैं. एंटीबायोटिक और प्रिजर्वेटिव से भरपूर यह मीट कैंसर और कई दूसरी बीमारियों को जन्म देता है. बूचड़खानों से निकलने वाला गंदा पानी भी एक बड़ी समस्या है. अमेरिका और कनाडा की कुछ नदियां तो मीट उद्योग के चलते बुरी तरह दूषित हो चुकी हैं. मीट उद्योग का कचरा भी बड़ा सिरदर्द है. यह दूसरे जीवों को भी बीमार करता है. बीते 10 सालों में दुनिया ने बर्ड फ्लू, स्वाइन फ्लू और इबोला जैसी महामारियों का सामना किया है. ये सभी बीमारियां संक्रमित मीट से इंसान तक पहुंचीं.
किचन में कैंसर पैदा करने वाली चीजें
हमारे किचन में कई सारी ऐसी चीजें हर समय मौजूद रहती हैं जो हमें कैंसर भी दे सकती हैं. इनके बारे में जानकारी जरूरी है. यहां जानिए कौन सी हैं ये चीजें...
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मैदा
मैदे में सफेदी ब्लीच की प्रक्रिया के कारण आती है. यह ब्लीच क्लोरीन गैस से की जाती है. इसी ब्लीच का इस्तेमाल तरल रूप में कपड़ों के लिए भी किया जाता है. इससे ना सिर्फ इस सफेद आटे में से सारा पोषण धुल जाता है बल्कि कैंसर का खतरा भी बढ़ता है.
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नमकीन स्नैक
बहुत ज्यादा नमक वाले स्नैक से बचना चाहिए क्योंकि इनमें कैंसर पैदा करने वाले तत्व मौजूद होते हैं. चिप्स को कुरकुरा बनाए रखने के लिए निर्माता इसमें एक्रिलामाइड मिलाते हैं जो कि सिगरेट में भी पाया जाता है. इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर के मुताबिक एक्रिलामाइड कैंसर पैदा करने वाली चीज मानी जाती है.
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वेजिटेबल ऑयल
सूर्यमुखी से प्राप्त वेजिटेबल ऑयल को देखने में अच्छा बनाने के लिए कई बार रंगाई की प्रक्रिया से गुजारा जाता है. इस तेल में ओमेगा 6 फैटी एसिड होता है जो स्वास्थ्य के लिए अच्छा है. लेकिन अगर अत्यधिक मात्रा में इस्तेमाल किया जाए तो ब्रेस्ट और प्रोस्टेट कैंसर का खतरा रहता है. ये नतीजे द जर्नल ऑफ क्लीनिकल इंवेस्टिगेशन में प्रकाशित किए गए.
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कार्बोनेटेड ड्रिंक्स
कोका कोला, पेप्सी और अन्य कार्बोनेटेड ड्रिंक्स में ना सिर्फ अत्यधिक चीनी होती है बल्कि बहुत सारा सोडियम भी होता है. इसके अलावा डायट सॉफ्टड्रिंक्स और भी हानिकारक होती हैं क्योंकि उनमें कृत्रिम स्वीटनर के इस्तेमाल के कारण सोडियम की मात्रा और भी ज्यादा होती है. अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन के मुताबिक मानव मस्तिष्क इन पेय पदार्थों के ऊपर अपनी निर्भरता विकसित कर लेता है.
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नॉन ऑर्गेनिक फल
इस तरह के फलों को पैदा करने के लिए इस्तेमाल में होने वाले पेस्टिसाइड और नाइट्रोजन फर्टिलाइजर शरीर के लिए हानिकारक हैं. न्यूकासल यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों के मुताबिक इस तरह के फलों के नियमित इस्तेमाल से कैंसर का खतरा रहता है.
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रेड मीट
हल्की फुल्की मात्रा में रेड मीट का सेवन नुकसानदेह नहीं है, लेकिन उसकी अति नुकसान पहुंचाती है. यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया की एक स्टडी के मुताबिक रेड मीट में एक प्रकार का सिलिसिक एसिड होता है जिससे कैंसर हो सकता है.
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प्रोसेस्ड मीट
सॉसेज और कॉर्न्ड बीफ जैसी चीजें खाने में बेशक लजीज होती हैं लेकिन इनमें नमक और प्रिजर्वेटिव की बड़ी मात्रा होती है. प्रोसेस्ड या संसाधित मीट को तैयार करने में इस्तेमाल किया जाने वाला सोडियम नाइट्राइट कैंसर पैदा कर सकता है.