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कानून और न्याय

सभी अंतरधार्मिक विवाह ‘लव जिहाद’ नहीं

शोभा शमी
२० अक्टूबर २०१७

केरल हाई कोर्ट ने कहा है कि सभी अंतरधार्मिक विवाहों को 'लव जिहाद' की तरह नहीं देखा जाना चाहिए. ऐसा करने से राज्य की धार्मिक सद्भावना खतरे में पड़ जायेगी.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa/U. Deck

केरल हाई कोर्ट ने एक अंतरधार्मिक विवाह के मामले में फैसला सुनाते हुए पुलिस को यह आदेश दिया है कि प्रेम संबंधों के चलते धर्म बदलने के काम कर रही संस्थाओं को बंद किया जाए. कोर्ट ने कहा कि जबरन धर्मांतरण या पुन: धर्मांतरण के लिए कोई भी केंद्र पुलिस द्वारा बंद किया जाना चाहिए. चाहे वह संस्था हिन्दू, मुस्लिम या ईसाई हो. ऐसा न हो कि वह संवैधानिक अधिकार को नकार दे. भारत के संविधान का अनुच्छेद 25 (1) प्रत्येक नागरिक को किसी भी धर्म को स्वतंत्र रूप से अपनाने, अभ्यास और प्रचार करने का अधिकार देता है, जिसे व्यक्ति या धार्मिक संगठनों द्वारा छेड़ा नहीं जा सकता.

कुन्नूर के अनीस हमीद की प्रेमिका श्रुति के लापता होने के बाद उन्होंने केरल हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी. बाद में श्रुति ने कोर्ट को बताया कि उसके परिवार वाले उसे उद्यमपेरूर के शिव शक्ति योग विद्या केंद्र ले गये थे, जहां उसे बंधक बनाकर रखा गया था. उसके साथ मानसिक और शारिरिक तौर पर शोषण किया गया और उसकी मर्जी के खिलाफ उसके प्रेमी से अलग होने के लिए मजबूर किया गया.

तस्वीर: picture alliance/AP Photo/R. Kakade

कोर्ट ने श्रुति और अनीस को माता पिता और अन्य किसी भी हस्तक्षेप के बिना अपना धर्म चुनने के लिए आजाद किया. इस फैसले में आगाह करते हुए केरल हाई कोर्ट ने कहा है कि सभी अंतरधार्मिक विवाहों को 'लव जिहाद' की तरह नहीं देखा जाना चाहिए. ऐसा करने से राज्य की धार्मित सद्भावना खतरे में पड़ जायेगी.

श्रुति ने बताया कि विवाह के बाद वह हिन्दू धर्म का पालन करेगी और अनीस इस्लाम को मानना जारी रखेगा. कोर्ट ने कहा कि यह बहुत डरावना है कि केरल में हर अंतर धार्मिक विवाह को 'लव जिहाद' या 'घर वापसी' से जोड़कर देखा जा रहा है.

 

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