असंभव संभव हो गया है. ब्रिटेन के बहुमत ने यूरोपीय संघ छोड़ने का फैसला किया है. डॉयचे वेले के क्रिस्टॉफ हाजेलबाख का कहना है कि इस फैसले के बाद ईयू को बदले की भावना नहीं दिखानी चाहिए.
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जनमत संग्रह का नतीजा बहुत ही बुरा है, सबके लिए. इस फैसले ने सिर्फ पराजित छोड़े हैं. ब्रेक्जिट के समर्थक इस समय आजादी का अहसास कर रहे होंगे, लेकिन वे जल्द ही देखेंगे कि यह छद्म आजादी है. देश और निर्धन हो जाएगा. और इतना ही नहीं, यूनाइटेड किंगडम टूट सकता है, क्योंकि स्कॉटलैंड का बहुमत यूरोपीय संघ में रहना चाहता है और वह अलग हो सकता है. संयुक्त आयरलैंड की मांग भी जोर पकड़ सकती है, क्योंकि ब्रिटेन के बाहर निकलने के बाद यूरोपीय संघ की बाहरी सीमा आयरलैंड के बीचोबीच से गुजरेगी.
बाकी बचे यूरोपीय संघ के लिए भी नतीजे कम से कम इतने ही गंभीर होंगे. ईयू अच्छी खासी सदस्यता फीस चुकाने वाला एक सदस्य ही नहीं खोएगा, सदस्यों की सूची से विदेश नैतिक, कूटनैतिक और सैनिक तौर पर कद्दावर देश नहीं रहेगा जिसने ईयू को वैश्विक और प्रतिस्पर्धी बनाया है. जर्मनी को तो ब्रिटेन की खास तौर पर कमी खलेगी. बहुत से सदस्य देश हैं जो यूरोप की किलेबंदी करना चाहते हैं और बजट अनुशासन जिनके लिए पराया शब्द है. लंदन और बर्लिन इस मामले में एकमत थे. जर्मनी के लिए एक पार्टनर नहीं रहेगा.
यूरोपियन यूनियन की टाइम लाइन
28 देशों के संघ यूरोपियन यूनियन के इतिहास में अब तक कौन सी अहम घटनाएं घटीं, इन तस्वीरों में देखें.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
1957
व्यापार की उलझनों को मिटाने के लिए, बेल्जियम, फ्रांस, इटली, लक्जमबर्ग, नीदरलैंड्स और पश्चिमी जर्मनी ने मिलकर रोम की संधि के तहत यूरोपियन इकॉनोमिक कम्युनिटी यानि ईईसी का गठन किया.
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1973, 1981, 1985
1973 में डेनमार्क, आयरलैंड और यूनाइटेड किंगडम भी इसके सदस्य बन गए. इसके बाद 1981 में ग्रीस और 1985 में स्पेन और पुर्तगाल भी ईईसी के सदस्य बने.
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1985
14 जून 1985 को 10 सदस्य देशों में से 5 ने शेंगेन समझौते पर हस्ताक्षर किए. इस समझौते से सहमत सदस्य देशों की सीमाएं आपस में खुल गई. 2016 तक 26 देश शेंगेन इलाके से जुड़ गए हैं.
1992-1993
7 फरवरी 1992 में सदस्य देशों ने नीदरलैंड्स के मास्त्रिष्ट में यूरोपियन यूनियन की संधि पर हस्ताक्षर किए और 1993 में यह संधि लागू हो गई.
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2004
30 अप्रैल 2004 को ईयू के 15 सदस्यों की संख्या के 25 पहुंच जाने के मौके पर डब्लिन में एक समारोह का आयोजन हुआ. इसी साल जून में सदस्य देशों ने ईयू के संविधान को पारित किया. जिस पर अक्टूबर में सभी देशों ने हस्ताक्षर कर लिए.
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2005
फ्रांस में यूरोपीय संघ के संविधान के खिलाफ जनमत संग्रह हुआ जिसमें उसे खारिज कर दिया गया. इसके बाद ऐसा ही नीदरलैंड्स में भी हुआ. जबकि संविधान के प्रभावी होने के लिए सभी 27 देशों की सहमति की जरूरत थी.
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2007
यूरोपीय संघ के नेता एक ऐसे समझौते के मसौदे पर सहमत हुए जिसे यूरोपीय संघ के दो देशों की ओर से खारिज हुए संविधान का विकल्प बनना था. इसे लिस्बन समझौता कहा गया.
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2009
लिस्बन समझौते के तहत 19 नवंबर 2009 को बेल्जियम के प्रधानमंत्री हरमन फान रूम्पे यूरोपीय आयोग के पहले अध्यक्ष बने.
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2012
यूरोपीय संघ को वर्ष 2012 में यूरोप में शांति और सुलह, लोकतंत्र और मानव अधिकारों की उन्नति में योगदान के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
तस्वीर: Reuters
2013
क्रोएशिया ने 28वें सदस्य के बतौर 1 जुलाई 2013 में यूरोपीय संघ में पदार्पण किया.
तस्वीर: Reuters
2016
23 जून को यूरोपीय संघ में बने रहने या ना बने रहने पर लंबी बहस के बाद ब्रिटेन में हुए जनमत संग्रह में ब्रिटिश मतदाताओं ने यूरोपीय संघ से बाहर निकल जाने का फैसला लिया.
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2020
31 जनवरी 2020 को आखिरकार ब्रिटेन यूरोपीय संघ से बाहर हो गया. हालांकि यूरोपीय संघ के नियमों के तहत 11 महीने के लिए संक्रमण काल में कई चीजों को लागू रखने का फैसला किया गया जो 31 दिसंबर को खत्म हो रहा है.
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लेकिन इस फैसले का सबसे गंभीर परिणाम राजनीतिक है. ब्रिटेन का उदाहरण दूसरे देशों के लिए भी आकर्षक साबित हो सकता है. भले ही सदस्यता छोड़ने जैसी बात न हो लेकिन कुछ देश इसी तरह के जनमत संग्रह की धमकी दे सकते हैं और ब्रिटेन की ही तरह अपवादों और विशेष अधिकारों की मांग कर सकते हैं. अंत में ऐसा यूरोपीय संघ बच जाएगा जिसके सदस्य अपनी अपनी पसंद का लाभ उठाएं और कोई अपने को जिम्मेदार महसूस न करे. ऐसी संस्था विश्व में गंभीर भूमिका निभाने में सक्षम नहीं होगी.
यूरोपकाफायदा
यूरोप में बहुत से लोग ऐसे हैं जो ब्रेक्जिट फैसले के नतीजों का ब्रिटेन को अहसास कराना चाहते हैं. बाहर का मतलब बाहर होता है. रियायतें नहीं दी जाएंगी. वे दूसरे देशों के लिए मिसाल कायम करना चाहते हैं कि भगोड़ों को माफ नहीं किया जाता. मानवीय रूप से यह समझ में आने वाली बात है लेकिन यह अपने ही हितों के खिलाफ होगा. बदला चाहने वाले इस बात को नजरअंदाज कर रहे हैं कि बहुत से देशों में माहौल कितना ईयू विरोधी हो गया है. धमकी देने से माहौल और गरमाएगा. इसके बदले अब शांत रहने और ब्रिटेन के साथ नए संपर्क बनाने का समय है. स्वाभाविक रूप से यह सदस्यता का विकल्प नहीं हो सकता, लेकिन 'सब कुछ या कुछ भी नहीं' की नीति यहां मददगार नहीं होगी.
अब ये करेगा ब्रेक्जिट का बवंडर
कभी कभी चुनावी वादा या जुमला बहुत महंगा पड़ जाता है. ब्रेक्जिट का मामला भी कुछ ऐसा ही है. नतीजों के बाद अब बड़े पैमाने पर उठा पटक होगी.
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कैमरन की विदाई
ब्रेक्जिट के पक्ष में आए नतीजों के बाद ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन की विदाई होगी. वह अक्टूबर में इर्स्तीफा देंगे.इसे कैमरन के राजनैतिक भविष्य का अंत भी माना जा रहा है. कैमरन ने ही बीते चुनावों में जनमत संग्रह कराने का वादा किया था.
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महंगा पड़ा दांव
कैमरन को उम्मीद थी कि ब्रेक्जिट की बहस छेड़कर वह यूरोपीय संघ पर दबाव बना सकेंगे. ऐसा करने में वह काफी हद तक सफल भी हुए. लेकिन कैमरन को लगता था कि देश के हालात बेहतर कर वह ब्रेक्जिट के खिलाफ भी माहौल बना सकेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
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यूके का विखंडन
उत्तरी आयरलैंड और स्कॉटलैंड के लोग जनमत संग्रह के नतीजों से बेहद दुखी हैं. दोनों प्रांत यूरोपीय संघ में बने रहना चाहते थे. ब्रेक्जिट वोट के बाद नादर्न आयरलैंड और स्कॉटलैंड यूके से अलग होने की मांग कर सकते हैं.
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भारी वित्तीय नुकसान
लंदन को अब तक अंतरराष्ट्रीय वित्तीय राजधानी माना जाता था. यूरोपीय संघ की सदस्यता की वजह से दूसरे देश लंदन को वित्तीय खिड़की के तौर पर इस्तेमाल करते थे. ब्रेक्जिट खिड़की को बंद करेगा. लंदन के ज्यादातर बड़े वित्तीय संस्थान जर्मन शहर फ्रैंकफर्ट आने की तैयारी कर रहे हैं.
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नौकरियां जाएंगी
लंदन से बैंकिंग सेक्टर की विदाई का मतलब होगा हजारों नौकरियों की कटौती. कई छोटी छोटी नौकरियां जाएंगी और उन जॉब्स से जुड़े बाकी इलाकों पर भी इसका असर पड़ेगा.
तस्वीर: dapd
आर्थिक संघर्ष
ब्रेक्जिट हो जाने के बाद यूके को यूरोपीय संघ के भीतर सरल व्यापार की सुविधा भी नहीं मिलेगी. पहले से ही जूझ रही ब्रिटिश अर्थव्यवस्था को अब नए बाजार खोजने होंगे और वहां यूरोपीय संघ से संघर्ष करना होगा.
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लोगों का पलायन
यूरोपीय संघ के देशों रह रहे यूके के सैकड़ों लोग ब्रेक्जिट से निराश हैं. ब्रेक्जिट होने पर ज्यादातर लोग यूके नहीं लौटना चाहते हैं.
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ईयू में इमरजेंसी
यूरोपीय संघ के बाकी 27 देशों में अब अगले कई महीनों तक आपातकालीन बैठकें होंगी. यूरोपीय संघ भी खुद को ज्यादा मजबूत करना चाहेगा. ब्रेक्जिट का फैसला यूरोपीय संघ के भीतर एक दूसरे के प्रति ज्यादा उदारता को बढ़ाएगा. यूरोपीय संघ को भी अपनी कई कमियां दूर करनी ही होंगी, वरना अलगाव की मांग और जगह भी भड़क सकती है.
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यूरोपीय संघ को खुद भी अपने अंदर झांकना होगा. नागरिकों के लिए ब्रसेल्स का यह मंत्र काफी नहीं है कि यूरोपीय स्तर पर ज्यादा अधिकार देकर ही सभी समस्याओं का समाधान किया जा सकता है. एक उदाहरण शरणार्थी संकट है, जो बहुत से लोगों के लिए महाद्वीप की सबसे बड़ी चुनौती है. यहां यूरोपीय नीति का मतलब जर्मनी की यह मांग थी कि असीमित संख्या में शरणार्थियों को यूरोप के देशों में बांटा जाए, जबकि दूसरे उन्हें लेना ही नहीं चाहते थे. राजकोषीय घाटे की अनसुलझी समस्या ने भी मतभेदों को पाटने के बदले ज्यादा खाईयां बनाई हैं. धनी देशों को लगता है कि उनका इस्तेमाल हो रहा है, गरीब देशों को लगता है कि उन पर धौंस दिखाई जा रही है.
यूरोपीय सहयोग के फायदे को भविष्य में बेहतर तरीके से दिखाया जाना चाहिए. ईयू को शांति परियोजना बताकर बाकी मुद्दों को दरकिनार करना काफी नहीं है. हां, ब्रिटिश फैसला दुःस्वप्न जैसा है. लेकिन वह जोरदार चेतावनी भी है. इस घड़ी की मांग है कि आत्ममंथन किया जाए और भविष्य में हम साथ मिलकर क्या हासिल करना चाहते हैं, उस पर विचार किया जाए.