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समझौते के लिए तालिबान की शर्तें

२७ दिसम्बर २०१२

पाकिस्तानी तालिबान ने संघर्ष विराम की पेशकश की है लेकिन उसके लिए कड़ी शर्तें रखी हैं, जिनमें शरीया लागू करना और अमेरिका के साथ रिश्ते खत्म करना भी शामिल है.

तस्वीर: AP

सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि ये बेतुकी शर्तें हैं. तालिबान ने पाकिस्तान के अखबार द न्यूज को भेजे एक पत्र में यह भी कहा है कि पाकिस्तान को अफगानिस्तान में अपनी कार्रवाई रोक देनी चाहिए और भारत से बदला लेने पर फिर से विचार करना चाहिए.

तालिबान के प्रवक्ता आमिर मुआविया का यह पत्र ऐसे समय में आया है, जब तालिबान के शीर्ष नेताओं में दरार की बातें सामने आ रही हैं. उधर 2014 में वापसी से पहले अमेरिकी नेतृत्व वाली नाटो सेना अफगानिस्तान में शांति स्थापित करने की कोशिश में लगी है.

पाकिस्तान की सेना के अधिकारियों ने पिछले महीने दावा किया था कि पाकिस्तान तालिबान के मुखिया हकीमुल्लाह महसूद संगठन पर से नियंत्रण खोते जा रहे हैं और उनकी जगह कमान वली उर रहमान के हाथों में जा सकती है, जो अपेक्षाकृत उदार माने जाते हैं. रहमान ने पहले भी सरकार के साथ समझौते के संकेत दिए हैं.

पाकिस्तान तालिबान अफगान तालिबान से अलग संगठन है और इसे तहरीके तालिबान पाकिस्तान के नाम से जाना जाता है. उन्होंने हाल के दिनों में पाकिस्तानी सेना और असैनिक ठिकानों पर जम कर हमले किए हैं.

तालिबान की ताजा शर्तों को निरर्थक बताते हुए सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, "ये लोग अपराधियों की जमात हैं. ये अफगान तालिबान नहीं हैं. वे लोग बातचीत के लिए राजी नहीं होने वाले हैं. कोई भी इन शर्तों पर बातचीत नहीं कर सकता है. तहरीके तालिबान निश्चित तौर पर ऐसा संगठन नहीं है, जिसके साथ सरकार को बातचीत करनी चाहिए."

तस्वीर: AP

तालिबान के दूसरे प्रवक्ता एहसानुल्लाह एहसान ने इस बात की पुष्टि की है कि उन्होंने सरकार के पास संघर्ष विराम की शर्तें भेजी हैं. उनका कहना है कि पाकिस्तान को अपना संविधान दोबारा से लिखना चाहिए और यह इस्लामी कानून पर आधारित होना चाहिए, "हमारी मांगें पूरी हो गईं तो हम लोग पाकिस्तान के साथ संघर्ष विराम के लिए तैयार हैं. उन्हें इस्लामी कानून लागू करने के अलावा विदेश नीति पर भी ध्यान देना होगा और अमेरिकी मांगें पूरी करना बंद करना होगा."

तालिबान आतंकवादियों का आरोप है कि पाकिस्तान अमेरिका के इशारों पर नाच रहा है. उनका कहना है कि जब तक वे इस बातचीत को नहीं बंद करते, तब तक दो प्रमुख पार्टियों पर हमले जारी रहेंगे. एहसान का कहना है, "सरकार जो बड़ी गलती कर रही है वह यह कि उसने अफगानिस्तान में अमेरिका की लड़ाई लड़ी और अब इस जंग को पाकिस्तान ले आई है."

अफगानिस्तान में तैनात नाटो सेनाएं अगले साल तक ज्यादातर हिस्सों की कमान अफगान सेना के सुपुर्द कर देंगी और 2014 के अंत तक वे अफगानिस्तान खाली कर देंगी.

एजेए/एमजे (रॉयटर्स)

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