पिछले 35 वर्षों से तापमान में लगातार बढ़ोतरी हो रही है जिसके लिए सीधे तौर पर इंसानों को जिम्मेदार माना जा रहा है. विशेषज्ञ बताते हैं कि बढ़ती गर्मी ने ही जंगलों में आगजनी की घटनाओं को बढ़ाया है.
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बढ़ते तापमान से जूझ रहे अमेरिका के जंगलों में लगी आग ने एक बार फिर जलवायु परिवर्तन पर बहस छेड़ दी है. इस साल रिकॉर्ड तोड़ गर्मी की वजह से सैकड़ों एकड़ जंगल जल कर राख हो गए. विशेषज्ञों का मानना है कि ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से जंगलों में आग लगने के मामले बढ़े हैं.
आग लगने के लिए हवा और ईंधन की जरूरत पड़ती है. गर्मी के मौसम में जंगलों में फैले सूखे पत्ते ईंधन का काम करते हैं. एल्बर्टा यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक माइक फ्लेनिंगन के मुताबिक, "जितनी गर्मी बढ़ेगी, आग लगने के मामले भी उतने ही ज्यादा बढ़ेंगे." गर्मी बढ़ने के कारण पेड़, पत्ते और फसल सूख जाते हैं और इससे लपटें तेजी से फैलती हैं.
नेशनल इंटरजेंसी फायर सेंटर और नेशनल ओशनिक एंड एटमॉसफेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के आंकड़े बताते हैं कि 1983 के बाद से अब तक के सबसे गर्म पांच वर्षों में अप्रैल से सितंबर के बीच करीब 35,000 वर्ग किलोमीटर का इलाका जल कर खाक हो गया. अप्रैल से सितंबर के सबसे ठंडे पांच वर्षों की तुलना में यह औसतन तीन गुना था.
20वीं सदी से तुलना करें तो इस बार अमेरिका में औसतन गर्मी में 1.7 डिग्री सेल्सियस की बढ़त देखी गई. कैलिफोर्निया में गर्मी का 124 साल का रिकॉर्ड टूट गया.
तापमान में थोड़ी बढ़ोतरी मामूली बात लगती है लेकिन जंगलों के सूखे पत्तों के लिए यह महत्वपूर्ण है. जितनी ज्यादा गर्मी बढ़ेगी, पेड़ों और पत्तियों में से पानी की मात्रा कम होती जाएगी और ये ईंधन का काम करेंगे. सूखी पत्तियों की रगड़ से आग का लगना और फैलना तेजी से होता है. फ्लेनिंगन के मुताबिक, "हवाअगर 0.05 डिग्री सेल्सियस ज्यादा गर्म हो तो सूखे पत्तों को शांत करने के लिए 15 फीसदी अधिक बारिश की जरूरत पड़ती है."
कोलोराडो यूनिवर्सिटी में वैज्ञानिक जेनिफर बाल्श का मानना है कि आने वाले वक्त में पश्चिमी अमेरिका में 10 लाख एकड़ के इलाके के जंगल में आग लगेगी. कोलोराडो में बतौर सीनियर फायर फाइटर काम करने वाले माइक सुगास्की के लिए कभी 10 हजार एकड़ की आग बड़ी बात हुआ करती थी, लेकिन अब वह 10 गुना आग को बुझाने का काम कर रहे हैं. वह कहते हैं, ''लोग पूछते हैं कि स्थिति इतनी बदतर कैसे हो गई, लेकिन ऐसा हो रहा है. अमेरिका के जंगलों में लगी आग की संख्या भले ही न बढ़ी हो, लेकिन कुल क्षेत्रफल बढ़ चुका है."
जब यूरोप में गर्मी आती है
जलवायु परिवर्तन हो या मौसम का आम चलन, दक्षिण यूरोप में भी अब गर्मी की लहर आने लगी है. 2017 में तो तापमान 40 डिग्री से ऊपर तक पहुंच गया. नतीजा जंगल में आग, मौसम की चेतावनी और फसल का नुकसान.
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धमाचौकड़ी
गर्मी हो तो बच्चों की मौज आ जाती है. जिस बात के लिए मां बाप आम तौर पर तैयार नहीं होते, बच्चे वही करते हैं और झरनों में नहाने चले जाते हैं.
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इमारतों का साया
तापमान बढ़ जाए तो सैलानियों की शामत आ जाती है. घूम सकते नहीं, तो वे कहां बितायें समय. यहां पाल्मा में कैथीड्रल के साये में आराम करते सैलानी.
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रात में भी चैन नहीं
जब रात में भी तापमान 33 डिग्री हो तो लोग कहां निकलें सड़कों पर. स्पेन के मायोर्का शहर का केंद्र तब दस बजे रात ही सुनसान नजर आने लगता है.
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इसलिए फव्वारे
यूरोपीय शहरों में जगह जगह फव्वारों, पार्क और तालाबों को देखकर इंसान यही सोचता आखिर इन्हें बनाया क्यों गया. गर्मियों में उन्हें जवाब मिलता है.
तस्वीर: Reuters/E. Gaillard
ठंड का मजा
जरूरी नहीं कि कहीं स्विमिंग पूल में जायें. बच्चे फव्वारों के पानी में ही आराम से लेटकर शरीर को ठंडा करने का तरीका खोज लेते हैं.
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चेहरे से झलकती पीड़ा
इस चेहरे से झलक रही है गर्मी की पीड़ा. जब तापमान बढ़ता है तो वह रास्ते पर ही नहीं घर के अंदर भी परेशान करता है.
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गर्मियों में भी काम
और यदि गर्मियों में काम करना हो तो जान की आफत, निर्माण मजदूर पानी पी पीकर शरीर को गर्मी से बचाने की कोशिश करते हैं.
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धूप का मजा
और गर्मी थोड़ी कम हो तो धूप का मजा भी लिया जा सकता है. यहां रोमानिया में एक पार्क में गुनगुनी धूप में शरीर को सेंकता ये व्यक्ति.
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हाथ कंगन को आरसी क्या
अहसास को हकीकत की पुष्टि. लुसिफर के कारण दक्षिण यूरोप में आयी गर्मी की लहर ने पारे को 47 डिग्री तक पहुंचाया.
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गर्मी का वह अहसास
बच्चे ही नहीं, बड़ों को भी फव्वारों की जरूरत होती है. जब गर्मी शरीर को तड़पाने लगती है तो सिर को पानी में डुबाने से बेहतर क्या हो सकता है.
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धूप से रक्षा
वैसे कुछ काम ऐसे होते हैं जहां गर्मी मायने नहीं रखती. वैटिकन देखने आए सैलानी और धर्मालु लाइन में खड़े छाते की मदद से गर्मी को मात दे रहे हैं.
तस्वीर: Reuters/M. Rossi
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1983 से 1999 के बीच जंगलों में आग का सालाना आंकड़ा 25,899 वर्ग किलोमीटर तक नहीं पहुंचा था. साल 2000 के बाद अगले 10 वर्षों तक यह आंकड़ा पार कर गया और 2006, 2015 और 2017 में 38,849 वर्ग किलोमीटर जंगल जल कर राख हो गए.
इडाहो यूनिवर्सिटी में जॉन एबट्जगोलोउ ने 1979 से 2015 के बीच पश्चिमी अमेरिका के जंगलों में लगी आग पर अध्ययन किया है. उनके मुताबिक 1984 के बाद ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से 41,957 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में अतिरिक्त आग लगी है.
2015 में अलास्का में लगी आग का जब अध्ययन किया गया, तो उसमें भी ऐसे ही कारण मालूम चले. कोयले, तेल और गैस के जलने से हो रहे जलवायु परिवर्तन की वजह से जंगलों में आग का जोखिम 34 से 60 फीसदी तक बढ़ जाता है.
2016 में कैलिफोर्निया में पड़े सूखे की वजह से 12.9 करोड़ पेड़ों को नुकसान पहुंचा जिससे वे जर्जर हो गए. हालांकि इस पर आंतरिक सचिव रेयाव जिंक की अलग राय है. वह कहते हैं कि पर्यावरणविदों ने सरकार के हाथ-पांव बांध दिए हैं, "सरकार सूखे और जर्जर पेड़ों को काट कर हटाना चाहती है लेकिन पर्यावरण का हवाला देकर ऐसा करने नहीं दिया जा रहा है. नतीजा है कि हर साल सूखे जंगलों में आग लग जाती है."
वीसी/आईबी (एपी)
जलवायु बदलती रही तो यूं ही जलेंगे जंगल
जलवायु बदलती रही तो यूं ही जलेंगे जंगल
इंसानों का जंगल में बढ़ता दखल और जंगलों की खराब व्यवस्था तो जंगलों की आग के पीछे है ही लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण यह समस्या विकराल होती जा रही है.
तस्वीर: Reuters/F. Greaves
गर्म, सूखा और तेज हवाओं वाला मौसम
आग से लड़ने वाला कोई भी कर्मचारी आपको बता देगा कि सूखा, गर्म और तेज हवाओँ वाला मौसम आग को कैसे भड़काता है. ऐसे में कोई हैरानी नहीं है कि आग से तबाह हुए कई इलाके ऐसे हैं जहां की जलवायु में तापमान और सूखा बढ़ने के कयास लगाए गए थे. गर्मी से वाष्पीकरण की प्रक्रिया भी तेज होती है और सूखा कायम रहता है.
तस्वीर: Reuters/F. Greaves
सूखा मौसम मतलब सूखे पेड़, झाड़ी और घास
मौसम सूखा होगा तो वनस्पति सूखेगी और आग को ईंधन मिलेगा. सूखे पेड़-पौधों, और घास में आग न सिर्फ आसानी से लगती है बल्कि तेजी से फैलती है. सूखे मौसम के कारण जंगलों में ईंधन का एक भरा पूरा भंडार तैयार हो जाता है. गर्म मौसम में हल्की सी चिंगारी या फिर पेड़ पौधों के आपस में घर्षण से पैदा हुई आग जंगल जला देती है.
तस्वीर: Getty Images/J. Sullivan
सूखे में उगने वाले पेड़ पौधे
नई प्रजातियां मौसम के हिसाब से अपने आप को अनुकूलित कर रही हैं और कम पानी में उग सकने वाले पेड़ पौधों की तादाद बढ़ती जा रही है. नमी में उगने वाले पौधे गायब हो रहे हैं और उनकी जगह रोजमैरी, वाइल्ड लैवेंडर और थाइ जैसे पौधे जड़ जमा रहे हैं जो सूखे मौसम को भी झेल सकते हैं और जिनमें आग भी खूब लगती है.
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जमीन की कम होती नमी
तापमान बढ़ने और बारिश कम होने के कारण पानी की तलाश में पेड़ों और झाड़ियों की जड़ें मिट्टी में ज्यादा गहराई तक जा रही हैं और वहां मौजूद पानी के हर कतरे को सोख रही हैं ताकि अपनी पत्तियों और कांटों को पोषण दे सकें. इसका मतलब है कि जमीन की जो नमी से आग को फैलने से रोकता था, वह अब वहां नहीं है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/N. Berger
कभी भी लग सकती है आग
धरती के उत्तरी गोलार्ध में तापमान की वजह से आग लगने का मौसम ऐतिहासिक रूप से छोटा होता था. ज्यादातर इलाकों में जुलाई से लेकर अगस्त तक. आज यह बढ़ कर जून से अक्टूबर तक चला गया है. कुछ वैज्ञानिक तो कहते हैं कि अब आग पूरे साल में कभी भी लग सकती है. अब इसके लिए किसी खास मौसम की जरूरत नहीं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/N. Berger
बिजली गिरने का खतरा
जितनी गर्मी होगी उतनी ज्यादा बिजली गिरेगी. वैज्ञानिक बताते हैं कि उत्तरी इलाकों में अकसर बिजली गिरने से आग लगती है. हालांकि बात अगर पूरी दुनिया की हो तो जंगल में आग लगने की 95 फीसदी घटनाएं इंसानों की वजह से शुरू होती हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/P. Pochard-Casabianca
कमजोर जेट स्ट्रीम
उत्तरी अमेरिका और यूरेशिया में मौसम का पैटर्न शक्तिशाली, ऊंची हवाओँ से तय होता है. ये हवाएं ध्रुवीय और भूमध्यरेखीय तापमान के अंतर से पैदा होती हैं. इन्हें जेट स्ट्रीम कहा जाता है. ग्लोबल वार्मिंग के कारण आर्कटिक इलाके का तापमान वैश्विक औसत की तुलना में दोगुना बढ़ गया है और इसके कारण ये हवाएं कमजोर पड़ गई हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/C. Costa
आग रोकना मुश्किल
तापमान बढ़ने से कारण ना सिर्फ जंगल में आग लगने का खतरा रहता है बल्कि इनकी आंच के भी तेज होने का जोखिम रहता है. फिलहाल कैलिफोर्निया और ग्रीस में कुछ हफ्ते पहले यह साफ तौर पर देखने को मिला. वहां हालात ऐसे बन गए कि कुछ भी कर के आग को रोका नहीं जा सकता. सारे उपाय नाकाम हो गए.
तस्वीर: Getty Images/AFP/J. Edelson
झिंगुरों का आतंक
तापमान बढ़ने के कारण झिंगुर उत्तर में कनाडा के जंगलों की ओर चले गए और भारी तबाही मचाई. रास्ते भर वो अपने साथ साथ पेड़ों को खत्म करते गए. वैज्ञानिकों के मुताबिक झींगुर ना सिर्फ पेड़ों को खत्म कर देते हैं बल्कि कुछ समय के लिए जंगल को आग के लिहाज से ज्यादा जोखिमभरा बना देते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/Mary Evans/Ardea/A. L. Stanzani
जंगल जलने से कार्बन
दुनिया भर के जंगल पृथ्वी के जमीनी क्षेत्र से पैदा होने वाले 45 फीसदी कार्बन और इंसानों की गतिविधियों से पैदा हुईं 25 फीसदी ग्रीनहाउस गैसों को सोख लेते हैं. हालांकि जंगल के पेड़ जब मर जाते हैं या जल जाते हैं तो कार्बन की कुछ मात्रा फिर जंगल के वातावरण में चली जाती है और इस तरह से जलवायु परिवर्तन में उनकी भी भूमिका बन जाती है.