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समाज

समलैंगिकों को गले लगाती बर्लिन की मस्जिद

१४ सितम्बर २०१८

तुगे साराच की उम्र 15 साल थी जब उन्होंने जर्मनी से सीरिया जाकर इस्लामिक स्टेट के लिए लड़ने की बात कही. सीरिया तो वह नहीं गए, लेकिन उन्होंने कट्टरपंथी इस्लाम को अपनी समलैंगिकता के खिलाफ ढाल बनाने की कोशिश जरूर की.

Berlin Ibn Rushd Goethe Moschee
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/E. Contini

बर्लिन की इब्न रुश्द गोएथे मस्जिद के एक शांत कोने में बैठे साराच कहते हैं, "मेरे कई दोस्त थे जो मेरी ही तरह चरमपंथी थे और सीरिया या फिर फलस्तीन जाकर लड़ने के बारे में सोच रहे थे."

बर्लिन में एक तुर्क परिवार में जन्मे साराच की उम्र अब 20 साल हो चुकी है. उन्हें बचपन से बताया गया कि समलैंगिकता गलत और गैर इस्लामी है. वह कहते हैं, "मैंने सोचा कि समलैंगिक होना बुरी बात है और इस्लाम के जरिए, खुदा की इबादत के जरिए मैं अपने आप को ठीक कर सकता हूं और सामान्य बन सकता हूं. मैंने दिन में पांच बार नमाज पढ़नी शुरू कर दी. मुझे बुरा लगता था, जैसे कि मैं गंदा हूं या फिर किसी तरह से कमतर हूं.. मेरे दिमाग में आने वाले पुरूष समलैंगिक विचारों पर मैं शर्मिंदा था."

यूरोपीय पुलिस संस्था यूरोपोल का कहना है कि ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और बेल्जियम से पांच हजार से ज्यादा यूरोपीय लोग सीरिया और इराक जाकर इस्लामिक स्टेट में भर्ती हुए. अध्ययन बताते हैं कि कई वजह से लोग आईएस जैसे संगठनों में शामिल होते हैं. इनमें अपने 'मुस्लिम भाइयों की मदद' करने से लेकर घर पर अलग थलग रहना भी शामिल है.

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दूसरी तरफ साराच के दिमाग में मुस्लिम एकजुटता का कोई ख्याल नहीं था, बल्कि वह तो अपने इस सच से भाग रहे थे कि वह पुरुष समलैंगिक यानी गे हैं. वह कहते हैं, "प्राइमरी स्कूल से ही मुझे पता था कि मुझे लड़के अच्छे लगते हैं. (लेकिन) मुझे यह साफ तौर पर पता था कि इस्लाम में समलैंगिकता को बुरा समझा जाता है."

फिर उन्हें इब्न रुश्द गोएथे मस्जिद के बारे में पता चला. यह दुनिया की उन चंद मस्जिदों में से एक है जिन्होंने समलैंगिक पुरुषों के लिए अपने दरवाजे खोले हैं. यहां उन्होंने अपने लिए एक बीच का रास्ता चुना, जिससे उन्हें अपनी लैंगिकता और धार्मिक विश्वास, दोनों को एक साथ स्वीकार करने में मदद मिली.

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वह कहते हैं, "इस मस्जिद ने मुझे कट्टरपंथ के रास्ते से पूरी तरह हटाने में मदद की. यहां आकर मुझे अपने आपको समझने और स्वीकार करने का मौका मिला और फिर मैंने अपनी मां और अपनी आंटी को बताया (कि मैं गे हूं)."

एलजीबीटी समुदाय से संबंध रखने वाले मुसलमानों को अपनी लैंगिकता और अपने धर्म के बीच किसी एक को चुनना होता है. यह जर्मनी जैसे उदार देशों में भी बहुत ही मुश्किल काम है, जहां समलैंगिक शादियां वैध हैं.

आठ करोड़ की आबादी वाले जर्मनी में लगभग 40 लाख यानी पांच प्रतिशत मुसलमान रहते हैं. 2015 में जब जर्मनी ने सीरिया, इराक और अफगानिस्तान से आने वाले दस लाख से ज्यादा शरणार्थियों को अपने यहां जगह दी, जब से देश में विदेशियों से नफरत और तनाव बढ़ा है.

तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/E. Contini

कई मस्जिदों पर हमलों के बाद जर्मन गृह मंत्री हॉर्स्ट जेहोफर ने मार्च में कहा कि इस्लाम जर्मनी का हिस्सा नहीं है. इस मुद्दे पर उन्हें चांसलर अंगेला मैर्केल से भी टकराना पड़ा जो जर्मनी को एक बहु सांस्कृतिक देश के तौर पर देखती हैं.

जब साराच ने इब्न रुश्द गोएथे मस्जिद में जाना शुरू किया तो उनके कट्टरपंथी दोस्तों ने उनका साथ छोड़ दिया. लेकिन मस्जिद में आकर उन्हें इस्लाम के उदारवादी स्वरूप को जानने समझने का मौका मिला. इस मस्जिद की स्थापना 2017 में की गई और यहां पुरुष और महिला दोनों नमाज पढ़ सकते हैं.

मस्जिद की इमाम सुसी दावी कहती हैं, "हम खुद को एक समावेशी मस्जिद मानते हैं. हमें समलैंगिकों से कोई दिक्तत नहीं है." वह कहती हैं कि उदार मुसलमानों के बीच भी बहुत काम किए जाने की जरूरत है.

एके/एमजे (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)

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