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'समलैंगिकों पर फैसला निराशाजनक'

१२ दिसम्बर २०१३

समलैंगिक यौन संबंधों को गैर कानूनी ठहराए जाने वाले भारतीय सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की संयुक्त राष्ट्र की मानव अधिकार प्रमुख नवी पिल्लै ने आलोचना की है. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी फैसले को निराशाजनक बताया.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

कई प्रमुख नेताओं के अलावा कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भी अदालत के फैसले पर असहमति जताई. उन्होंने कहा यह निजी स्वतंत्रता का मामला है और भारत अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए जाना जाता है.

जिनेवा में दिए गए बयान में पिल्लै ने कहा, "निजी सहमति से होने वाले यौन संबंधों को गैर कानूनी ठहराना, निजता और समानता के उन अधिकारों का हनन है जिनका अंतरराष्ट्रीय अनुबंध में भारत साथ देता है." उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला भारत का पीछे की तरफ कदम बढ़ाने जैसा और मानव अधिकारों की दिशा में झटका है.

11 दिसंबर को सुप्रीम ने दिल्ली हाईकोर्ट के 2009 में दिए गए उस फैसले को पलट दिया जिसमें वयस्कों के बीच आपसी सहमति से बनने वाले समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया था.

सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत समलैंगिक यौन संबंध 'अप्राकृतिक' हैं और यह गैरकानूनी है. फैसले में न्यायाधीशों की बेंच ने यह भी कहा कि धारा 377 को हटाने या उसमें बदलाव करने का अधिकार संसद के पास है, लेकिन जब तक यह प्रावधान मौजूद है, तब तक कोर्ट इस तरह के यौन संबंधों को वैध नहीं ठहरा सकता.

सरकार भी निराश

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी फैसले को निराशाजनक बताया है. कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा, "सरकार हाईकोर्ट के फैसले को बचाने की हर संभव कोशिश करेगी. आपसी सहमति से समलैंगिकों के बीच यौन संबंध अपराध नहीं होने चाहिए."

संयुक्त राष्ट्र की मानव अधिकार प्रमुख नवी पिल्लै ने कहा भारत का यह फैसला पीछे की तरफ कदम बढ़ाने जैसा है.तस्वीर: Reuters

इस बीच वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने भी कहा यह फैसला गलत है और सरकार इस बारे में हर संभव विकल्प पर गौर करेगी. उन्होंने इस पर निराशा जताते हुए कहा अदालत को मौजूदा सामाजिक और नैतिक मूल्यों को ध्यान में रखना चाहिए था.

उन्होंने यह भी कहा कि इस मामले को एक बड़ी खंडपीठ के सामने ले जाने के लिए सरकार क्यूरेटिव पेटिशन यानि उपचारात्मक याचिका के विकल्प पर भी विचार करेगी. सरकार को चाहिए कि इस उपचारात्मक याचिका में पांच न्यायाधीशों की खंडपीठ से इस मामले में फिर से विचार करने की गुजारिश की जाए.

लोगों में नाराजगी

जुलाई 2009 में समलैंगिकों के बीच संबंधों पर आए हाई कोर्ट के फैसले को ऐतिहासिक माना गया था. फैसले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि समलैंगिकों के बीच सम्मति से बनने वाले यौन संबंध को भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत अपराध करार दिया जाना मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन है. कोर्ट के इस फैसले को कई धार्मिक और सामाजिक संगठनों ने यह कह कर चुनौती दी थी कि समलैंगिक संबंध देश के सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्यों के खिलाफ हैं.

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी सहित कई प्रमुख नेताओं ने फैसले पर निराशा जताई है.तस्वीर: AP

बुधवार को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद से ही तमाम न्यूज चैनलों पर दिन भर यही चर्चा छिड़ी रही कि यह फैसला कितना सही है. सोशल मीडिया पर भी लोगों की प्रतिक्रिया नाराजगी भरी रही. फेसबुक और ट्विटर पर लोगों ने फैसले के खिलाफ मुहिम छेड़ दी.

भारतीय दंड संहिता की धारा 377, 1860 में बनाए गए ब्रिटिश कानूनों का हिस्सा है. इसके तहत अप्राकृतिक यौन संबंधों को प्रकृति के विरुद्ध अपराध मानकर गैर कानूनी करार दिया गया है. इसे समलैंगिकता के खिलाफ भी माना जाता है. पिल्लै ने कहा, "भारत के सर्वोच्च न्यायालय का मानवाधिकारों की रक्षा की दिशा में बहुत पुराना और गौरवशाली इतिहास रहा है. यह फैसला उस परंपरा से निराशाजनक विदाई जैसा है." उन्होंने उम्मीद जताई कि अदालत न्यायाधीशों के एक बड़े दल के साथ इस फैसले पर पुनर्विचार करे.

अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आलोचना की है. संस्था ने कहा कि भारत सरकार को चाहिए कि समलैंगिक संबंधों को कानूनी दर्जा दिलाने के लिए कोई ठोस कदम उठाए.

एसएफ/ओएसजे (रॉयटर्स, पीटीआई)

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