समलैंगिक पुरुषों में एचआईवी के संक्रमण का खतरा सामान्य पुरुषों की तुलना में 28 गुना ज्यादा होता है. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक यह हालत तब है जबकि पश्चिमी देशों में एड्स के नए मामलों में काफी गिरावट आई है.
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संयुक्त राष्ट्र की एचआईवी के खिलाफ काम करने वाली एजेंसी यूएनएड्स ने बुधवार को यह रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट के मुताबिक एचआईवी के नए मामलों में काफी गिरावट आई है. 1996 में एचआईवी पीड़ितों की तादाद 34 लाख थी जो बीते साल घट कर 18 लाख रह गई. हालांकि इसके बाद भी समलैंगिक पुरुषों में इसके संक्रमण का सबसे ज्यादा खतरा है. इनके साथ ही महिला यौनकर्मी, ड्रग्स लेने वाले और ट्रांसजेंडर महिलाएं भी इसके खतरे की जद में हैं.
उत्तर अमेरिका, पश्चिमी यूरोप और ऑस्ट्रेलिया के समलैंगिक पुरुषों में आश्चर्यजनक रूप से एचआईवी संक्रमण के मामलों में बहुत गिरावट आई है. सैन फ्रांसिस्को में पिछले 3 सालों में नए संक्रमण से प्रभावित लोगों की तादाद में करीब 43 फीसदी की कमी आई है. ऑस्ट्रेलियाई प्रांत न्यू साउथ वेल्स में भी दो साल के भीतर नए मामलों 35 फीसदी गिरावट देखी गई.
पिछले साल ब्रिटेन के एक प्रमुख समाजसेवी संगठन के साथ कोर्ट में चली लड़ाई के बाद नेशनल हेल्थ सर्विस ने तीन साल के लिए ट्रुवाडा का परीक्षण शुरू किया. यह परीक्षण 10 हजार समलैंगिक, बाइसेक्सुअल और ऐसे पुरुषों के पर किया गया जो पुरुषों से ही यौन संबंध रखते हैं.
समाजसेवी संगठनों और एड्स के खिलाफ अभियान चलाने वाले कार्यकर्ता इन परीक्षणों की संख्या दोगुनी करने की मांग कर रहे हैं. ब्रिटेन में एचआईवी एड्स के खिलाफ काम करने वाले संगठन एनएएम के निदेशक मैथ्यू हडसन का कहना है, "हम ऐसे एक शख्स को जानते हैं जिसका परीक्षण नहीं हुआ और वह एचआईवी पॉजिटव हो गया.
2014 में संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों ने 2030 तक एड्स को खत्म करने का वचन दिया था. इसे टिकाऊ वकास के लिए 2030 के एजेंडे में शामिल किया गया. यूएनएड्स के मुताबिक बीते साल कम लोगों की मौत हुई. यह कमी 3 साल पहले की तुलना में करीब 10 लाख है. एड्स की चपेट में आने वाले नए लोगों की तादाद में भी काफी कमी आई है. एचआईवी से संक्रमित होने वाले लोगों की तादाद में भी 2016 से 2017 के बीच करीब एक लाख की कमी आई है और यह संख्या बीते 12 महीनों में लगभग स्थिर रही है.
दुनिया एड्स के शिकंजे में
संयुक्त राष्ट्र की बाल संस्था यूनिसेफ का कहना है कि एड्स से लड़ाई के खिलाफ दुनिया में बहुत काम हुआ है. लेकिन इस बीमारी को जड़ से उखाड़ फेंकने की मंजिल अभी बहुत दूर है.
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जागरूकता की जरूरत
दुनिया भर में एक दिसंबर को वर्ल्ड एड्स दिवस के तौर पर मनाया जाता है. यह तस्वीर जर्मन शहर कोलोन की है जहां सुरक्षित यौन संबंधों को लेकर जागरूकता पैदा करने के लिए 12 मीटर ऊंचा कंडोम बनाया गया है.
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करोड़ों प्रभावित
लंबे समय तक माना जाता रहा कि एयर कनाडा के एक फ्लाइट अटेंडेंट गायटान डुगास 1970 के दशक में एचआईवी वायरस को पश्चिमी दुनिया में लेकर गए. लेकिन बाद में जांच से पता चला कि इस वायरस को फैलाने के लिए वह जिम्मेदार नहीं थे. आज तक इस वायरस से 7.8 करोड़ लोग संक्रमित हैं. संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि इस समय दुनिया में 3.7 करोड़ इससे पीड़ित हैं
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बच्चों पर सबसे ज्यादा मार
एड्स को लेकर काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूएनएड्स का कहना है कि 2015 में 11 लाख लोग एड्स से मारे गए. इनमें से 1.1 लाख की उम्र 15 साल से कम थी. शुरू से लेकर अभी तक इस बीमारी से 3.5 करोड़ लोग मारे जा चुके हैं.
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एशिया और प्रशांत क्षेत्र में लड़ाई
एशिया में एचआईवी वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या लगभग 50 लाख है. अब संक्रमण का फैलाव कम हुआ और 41 प्रतिशत लोगों का इलाज हो रहा है. भारत में एचआईवी पीड़ित 21 लाख लोग हैं जबकि चीन में ऐसे लोगों की संख्या 7.8 लाख बताई जाती है.
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अफ्रीका में एड्स
पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका में लगभग 1.9 करोड़ लोग एचआईवी के साथ जी रहे हैं. पश्चिमी और मध्य अफ्रीका में 65 लाख लोगों को यह बीमारी है. मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में ऐसे लोगों का आंकड़ा 2.3 लाख है.
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औद्योगिक दुनिया में एड्स
एचआईवी से कोई महाद्वीप अछूता नहीं है. 2015 में पश्चिमी और मध्य यूरोप और उत्तरी अमेरिका में एचआईवी से संक्रमित लोगों की संख्या 24 लाख थी. संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि पिछले साल एड्स के कारण इन क्षेत्रों में 22 हजार लोग मारे गए हैं.
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दक्षिणी अमेरिका में एड्स
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि दक्षिणी अमेरिका में लगभग 20 लाख लोग एड्स के साथ जी रहे हैं. इस बीमारी से वहां पिछले साल 50 हजार लोग मारे गए. 2010 से वहां एड्स से जुड़े मामलों में 18 प्रतिशत की कमी आई है और आधे से ज्यादा लोगों को इलाज की सुविधा प्राप्त है.
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भारत में एड्स
संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक भारत में फिलहाल 21 लाख लाख लोग एड्स से पीड़ित हैं. बीते एक दशक में एड्स की चपेट में आने वाले नए मरीजों की तादाद में काफी कमी आई है. 2005 में जहां यह आंकड़ा 150000 था वहीं 2016 में इसकी तादाद घट कर 80 हजार रह गयी है.
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कम हुई मौतें
एक अच्छी खबर है. 2005 के बाद से अब तक एड्स के कारण होने वाली सालाना मौतों में 45 फीसदी कमी आई है. 2005 में इस वायरस से 20 लाख लोग मारे गए थे.
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घर पर टेस्टिंग
यूरोपीय संघ और विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि संक्रमित हर सात लोगों में से एक को नहीं पता होता कि वह संक्रमित है. ऐसे में, ऐसी किट की वकालत की जा रही है जिससे कोई भी घर पर पता लगा सके कि वो संक्रमण का शिकार है या नहीं.
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आखिरकार, टीका?
वैज्ञानिक एक ऐसे टीके के बारे में हो रहे प्रयोगों को लेकर उत्साहित हैं जो नए संक्रमण को रोक सकेगा. दक्षिण अफ्रीका में 5,400 लोगों पर इस टीके के ट्रायल हुए हैं. वैज्ञानिकों को 2020 तक इस रिसर्च के नतीजे मिलने की उम्मीद है.
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एड्स पीड़ितों के खिलाफ भेदभाव और उन्हें कलंक मानने की वजह से इसके इलाज और यौन शिक्षा में काफी बाधाएं पेश आ रही हैं. ट्रांसजेंडर महिलाओं में एड्स का जोखिम 15 से 49 वर्ष के पुरुषों की तुलना में करीब 13 फीसदी ज्यादा रहता है.
यूएनएड्स की कार्यकारी निदेशक मिषेल सिदिबे का कहना है, "मानवाधिकार सबके लिए एक जैसा है, कोई भी इससे बाहर नहीं चाहे वो यौनकर्मी हो, समलैंगिक या फिर दूसरे पुरुष जो पुरुषों के साथ ही सेक्स करते हों, ड्रग्स लेते हों, ट्रांसजेंडर, कैदी या फिर शरणार्थी."
उनका कहना है कि ऐसे कानून जो एचआईवी संक्रमण को आपराधिक बनाते हैं, जैसे कि देह व्यापार, ड्रग्स का निजी इस्तेमाल, यौन रुझान या सेवाओँ तक पहुंचने में बाधा बनते हैं उन्हें खत्म होना चाहिए.