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समलैंगिकों में एड्स का खतरा 28 गुना ज्यादा

१८ जुलाई २०१८

समलैंगिक पुरुषों में एचआईवी के संक्रमण का खतरा सामान्य पुरुषों की तुलना में 28 गुना ज्यादा होता है. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक यह हालत तब है जबकि पश्चिमी देशों में एड्स के नए मामलों में काफी गिरावट आई है.

Taiwan 14. jährliche LGBT Pride Parade
तस्वीर: picture-alliance/dpa/R. B. Tongo

संयुक्त राष्ट्र की एचआईवी के खिलाफ काम करने वाली एजेंसी यूएनएड्स ने बुधवार को यह रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट के मुताबिक एचआईवी के नए मामलों में काफी गिरावट आई है. 1996 में एचआईवी पीड़ितों की तादाद 34 लाख थी जो बीते साल घट कर 18 लाख रह गई. हालांकि इसके बाद भी समलैंगिक पुरुषों में इसके संक्रमण का सबसे ज्यादा खतरा है. इनके साथ ही महिला यौनकर्मी, ड्रग्स लेने वाले और ट्रांसजेंडर महिलाएं भी इसके खतरे की जद में हैं.

तस्वीर: Reuters

उत्तर अमेरिका, पश्चिमी यूरोप और ऑस्ट्रेलिया के समलैंगिक पुरुषों में आश्चर्यजनक रूप से एचआईवी संक्रमण के मामलों में बहुत गिरावट आई है. सैन फ्रांसिस्को में पिछले 3 सालों में नए संक्रमण से प्रभावित लोगों की तादाद में करीब 43 फीसदी की कमी आई है. ऑस्ट्रेलियाई प्रांत न्यू साउथ वेल्स में भी दो साल के भीतर नए मामलों 35 फीसदी गिरावट देखी गई.

पिछले साल ब्रिटेन के एक प्रमुख समाजसेवी संगठन के साथ कोर्ट में चली लड़ाई के बाद नेशनल हेल्थ सर्विस ने तीन साल के लिए ट्रुवाडा का परीक्षण शुरू किया. यह परीक्षण 10 हजार समलैंगिक, बाइसेक्सुअल और ऐसे पुरुषों के पर किया गया जो पुरुषों से ही यौन संबंध रखते हैं.

तस्वीर: Getty Images/AFP/H. Ammar

समाजसेवी संगठनों और एड्स के खिलाफ अभियान चलाने वाले कार्यकर्ता इन परीक्षणों की संख्या दोगुनी करने की मांग कर रहे हैं. ब्रिटेन में एचआईवी एड्स के खिलाफ काम करने वाले संगठन एनएएम के निदेशक मैथ्यू हडसन का कहना है, "हम ऐसे एक शख्स को जानते हैं जिसका परीक्षण नहीं हुआ और वह एचआईवी पॉजिटव हो गया.

2014 में संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों ने 2030 तक एड्स को खत्म करने का वचन दिया था. इसे टिकाऊ वकास के लिए 2030 के एजेंडे में शामिल किया गया. यूएनएड्स के मुताबिक बीते साल कम लोगों की मौत हुई. यह कमी 3 साल पहले की तुलना में करीब 10 लाख है. एड्स की चपेट में आने वाले नए लोगों की तादाद में भी काफी कमी आई है. एचआईवी से संक्रमित होने वाले लोगों की तादाद में भी 2016 से 2017 के बीच करीब एक लाख की कमी आई है और यह संख्या बीते 12 महीनों में लगभग स्थिर रही है.

एड्स पीड़ितों के खिलाफ भेदभाव और उन्हें कलंक मानने की वजह से इसके इलाज और यौन शिक्षा में काफी बाधाएं पेश आ रही हैं. ट्रांसजेंडर महिलाओं में एड्स का जोखिम 15 से 49 वर्ष के पुरुषों की तुलना में करीब 13 फीसदी ज्यादा रहता है.

यूएनएड्स की कार्यकारी निदेशक मिषेल सिदिबे का कहना है, "मानवाधिकार सबके लिए एक जैसा है, कोई भी इससे बाहर नहीं चाहे वो यौनकर्मी हो, समलैंगिक या फिर दूसरे पुरुष जो पुरुषों के साथ ही सेक्स करते हों, ड्रग्स लेते हों, ट्रांसजेंडर, कैदी या फिर शरणार्थी."

उनका कहना है कि ऐसे कानून जो एचआईवी संक्रमण को आपराधिक बनाते हैं, जैसे कि देह व्यापार, ड्रग्स का निजी इस्तेमाल, यौन रुझान या सेवाओँ तक पहुंचने में बाधा बनते हैं उन्हें खत्म होना चाहिए.

 एनआर/ओएसजे(रॉयटर्स)

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