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समाज में अव्वल पर राजनीति में बेचारी है मिजोरम की आधी आबादी

प्रभाकर मणि तिवारी
२१ नवम्बर २०१८

पूर्वोत्तर राज्य मिजोरम में समाज के हर क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका बेहद अहम है, लेकिन आबादी का आधा हिस्सा होने के बावजूद राज्य की राजनीति में वे कहीं नहीं दिखती.

Pu Lalthanhawla
तस्वीर: IANS/PIB

मिजोरम की अर्थव्यवस्था के अलावा घरेलू और सामाजिक मामलों में महिलाओं का योगदान बहुत ज्यादा है.  लेकिन जब बात राजनीति की हो तो विधानसभा में इनकी मौजूदगी कहीं नजर नहीं आती है. राज्य की मतदाता सूची में शामिल 7.68 लाख वोटरों में से 3.74 लाख पुरुष हैं और 3.93 लाख महिलाएं. राज्य में सरकारी नौकरियों में भी लगभग 47 हजार महिलाएं हैं. यानी कुल कर्मचारियों का 35-40 फीस बावजूद इसके राजनीति के मामले में तस्वीर एकदम उलट है. अबकी 28 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनावों में 40 सीटों के लिए मैदान में उतरे 201 उम्मीदवारों में महज 15 महिलाएं हैं.

अहम भूमिका

मिजो समाज में महिलाओं की भूमिका बेहद अहम है. ईसाई बहुल मिजोरम की अर्थव्यवस्था, घरेलू और सामाजिक मामलों में महिलाओं का योगदान बहुत ज्यादा है. राजधानी आइजल में दुकानों और बाजारों, होटलों, निजी व सरकारी दफ्तरों में महिलाओं की तादाद ही ज्यादा है. लेकिन नीति निर्धारण के स्तर पर उनकी मौजूदगी लगभग शून्य है. हर विधानसभा चुनाव के पहले तमाम राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दल महिलाओं को टिकट देने के दावे तो करते हैं, लेकिन जब सूची का एलान करते हैं तो उनमें महिला उम्मीदवारों को तरजीह नहीं दी जाती. इन दलों की दलील यह होती है कि उनको कोई योग्य महिला उम्मीदवार ही नहीं मिली. 

इस बार भी तस्वीर अलग नहीं है. विधानसभा की 40 सीटों के लिए मैदान में उतरे 201 उम्मीदवारों में महज 15 महिलाएं हैं. उनमें से भी ज्यादातर महज खानापूरी के लिए मैदान में हैं. मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) के संस्थापक लालदेंगा ऐसे पहले नेता थे जिन्होंने राजनीति में महिलाओँ की भागीदारी बढ़ाने पर जोर दिया था. उनकी कोशिशों के चलते ही राज्य में पहली बार एक महिला मंत्री बनी थी. लेकिन विडंबना यह है कि उनकी पार्टी ने इस बार किसी भी महिला को टिकट नहीं दिया है. एमएनएफ अध्यक्ष जोरमथांगा कहते हैं, "पार्टी ने वर्ष 1987 में महिलाओं को टिकट दिया था. एक महिला सरकार में मंत्री भी थी. लेकिन उसके बाद हमें कोई योग्य उम्मीदवार ही नहीं मिला."

तस्वीर: Bijoyeta Das

फिलहाल राज्य के 40 विधायकों में से एक ही महिला है. वानलालम्पुई चांग्थू नामक वह महिला विधायक ललथनहवला सरकार में मंत्री हैं. लेकिन वह भी उपचुनावों में जीती थी. राजनीतिक दलों की दलील रही है कि महिलाओं की राजनीति में दिलचस्पी नहीं है. यही वजह है कि वह उनको टिकट नहीं देते. दिलचस्प बात यह है कि खुद महिलाएं भी इसी बात पर भरोसा करती हैं. ऐसा नहीं होता तो पुरुषों के मुकाबले महिला वोटरों की ज्यादा तादाद वाले इस राज्य में चुनावी रिकार्ड इतना खराब नहीं होता.

इस बार भी तस्वीर में खास बदलाव की उम्मीद नहीं है. सत्तारुढ़ कांग्रेस ने सिर्फ एक ही महिला वानलालम्पुई चांग्थू को टिकट दिया है. राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी और अबकी सत्ता में वापसी के सपने देख रहे मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) ने तो किसी महिला को टिकट नहीं दिया है. क्षेत्रीय दलों के गठजोड़ जोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) ने दो महिलाओं को टिकट जरूर दिया है. लेकिन उनके जीतने की कोई संभावना नहीं है. पहली बार राज्य की सभी 40 सीटों पर चुनाव लड़ रही बीजेपी ने अपवाद के तौर पर छह महिलाओं को टिकट दिया है. लेकिन उनमें से कितनों को जीत नसीब होगी, यह कहना कठिन है.

भाजपा उम्मीदवार जूडी जोमिंग्लियानी कहती हैं, "मिजो समाज पुरुष प्रधान है. यहां फैसला करने की प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी नहीं के बराबर है. इस मानसिकता को तोड़ने के लिए मैंने राजनीति में उतरने का फैसला किया है. जूडी की राजनीति में यह दूसरी पारी है. तीन दशक पहले वह कांग्रेस की सक्रिय सदस्य थी. लेकिन बाद में राजनीति छोड़ कर अपना कारोबार करने लगीं.

मिजोरम के राजनीतिक दलों की दलील रही है कि महिलाओं में राजनीति के प्रति कोई दिलचस्पी नहीं है. लेकिन आखिर हर क्षेत्र में जागरुक महिलाओं में इस अनिच्छा की वजह क्या है? इस सवाल का किसी के पास कोई ठोस जवाब नहीं है. मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ललथनहवला कहते हैं, "पार्टी 1973 से ही राज्य में योग्य उम्मीदवार तलाश रही है. हम ऐसा उम्मीदवार चाहते थे जो जीत सके.” वह कहते हैं कि राज्य की महिलाएं कर्मठ तो हैं, लेकिन राजनीति में उनकी खास दिलचस्पी नहीं है. सत्ता की हैट्रिक लगाने का सपना देख रही कांग्रेस ने भी महज एक महिला उम्मीदवार को टिकट दिया है.

अबकी वूमन वेलफेयर फ्रंट के साथ मिल कर महिलाओं को अधिक से अधिक टिकट दिलाने की महिला संगठन मिजो मीछे इंसुई खाम पाल (एमएचआईपी) की मुहिम भी बेअसर ही रही है. एमएचआईपी की अध्यक्ष रोजामी कहती है, "हमारी मुहिम का राजनीतिक दलों पर खास असर नहीं पड़ा है. इस समय पूरी दुनिया में जहां महिला सशक्तिकरण की बात हो रही है, मिजोरम में महिलाओँ की यह हालत दयनीय है.” चुनाव में भी प्रचार के दौरान महिलाएं काफी सक्रिय रहती हैं. राज्य में महिलाओं के सबसे बड़े संगठन मिजो वूमन वेलफेयर फेडरेशन की महासचिव टी. लालथांगपुई कहती हैं, "हम चाहते हैं कि राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़े. इसलिए इस बार हमने अपने सदस्यों से महिला उम्मीदवारों को वोट देने की अपील की है. वे चाहे किसी भी पार्टी की क्यों न हों.”

राज्य के ताकतवर यंग मिजो एसोसिएशन और चर्च ने भी राजनीति में महिलाओं की भागीदारी के सवाल पर चुप्पी ही साध रखी है. चर्च के एक नेता कहते हैं, "शायद महिलाएं समूहों में काम करना ही पसंद करती हैं. वह घर या उससे बाहर मर्दों का मुकाबला करना पसंद नहीं करती.” राजनीतिक पर्यवेक्षक जोडिन सांगा कहते हैं, "राज्य के तमाम प्रमुख दलों की कथनी और करनी में भारी फर्क है. जब तक राजनीतिक पार्टियां अधिक से अधिक महिलाओं को टिकट नहीं देतीं, तब तक इस तस्वीर का बदलना मुश्किल है.' वह कहते हैं कि महिलाओं के मन में यह बात भर दी गई है कि राजनीति पुरुषों का क्षेत्र है. राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए इस मानसिकता को बदलना जरूरी है.

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