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समानता की लड़ाई लड़ रहे हैं ट्रांसजेंडर: अप्सरा रेड्डी

१८ जनवरी २०१९

भारत के सबसे पुराने राजनीतिक दल ने एक ट्रांसजेंडर महिला को अखिल भारतीय महिला कांग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त कर इतिहास रचा. इतनी बड़ी राजनीतिक जिम्मेदारी संभालने वाली पहली ट्रांसजेंडर महिला अप्सरा रेड्डी से बातचीत.

Indien Apsara Reddy, General Secretary - Indian National Mahila Congress
तस्वीर: Apsara Reddy

2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में करीब पांच लाख लोग तीसरे सेक्स यानि ट्रांसजेंडर के रूप में पंजीकृत हैं. समाज में अकसर इस समुदाय के लोगों को भेदभाव, झिड़कियां, अपमान और दुर्व्यवहार झेलना पड़ता है. ज्यादातर लोग भिखारी या सेक्सकर्मी के रूप में अपनी जीविका चलाने को मजबूर हो जाते हैं.

बचपन में आर्थिक समस्याओं का सामना करने वाली अप्सरा ने शिक्षा को अपनी ढाल बनाया. पढ़ाई पर खूब ध्यान दिया और मेधावी होने के कारण स्कूल के आगे की पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति पाई. पहले ऑस्ट्रेलिया और फिर लंदन में पढ़ीं अप्सरा रेड्डी ने कुछ समय तक विभिन्न मीडिया संस्थानों में बतौर पत्रकार काम भी किया. फिर राजनीति से जुड़ना कोई संयोग था या सोचा समझा कदम. कैसे आज अप्सरा ना केवल ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए बल्कि सभी के लिए एक मिसाल बन गई हैं, इस पर डॉयचे वेले हिन्दी से अप्सरा रेड्डी ने की खास बातचीत.

डॉयचे वेले: आप पेशे से एक पत्रकार के रूप में विदेश में कार्यरत थीं. फिर राजनीति में आना कैसे हुआ?

अप्सरा रेड्डी: समाज के लिए कुछ बड़ा और बेहतर करने के लिए और सामाजिक नीतियों को प्रभावित करने वाले थिंक टैंक में शामिल होने के लिए राजनीतिक मंच पर उतरना बहुत होता है. नए जमाने की सोच को राजनीति में लाकर उससे समाज में असली बदलाव लाने का मौका भी यहीं है. कई बार ऐसा होता है, जैसा कि आप अभी बीजेपी के शासनकाल में देखते हैं कि महिलाओं, ट्रांसजेंडर और एक खास धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ दकियानूसी नीतियां व्याप्त हैं. हमें राजनीति में इसके खिलाफ मुखर लोगों की जरूरत है, तो मैंने सोचा कि क्यों ना राजनीति में जाया जाए.

2016 में आप मौजूदा सत्ताधारी दल बीजेपी में शामिल हुईं थीं. लेकिन वहां आपका कार्यकाल काफी छोटा रहा, इसकी क्या वजह रही?  

मुझे बीजेपी से एक पुरस्कार मिला था. इसी सिलसिले में मेरी मुलाकात बीजेपी नेता अमित शाह और कुछ अन्य लोगों से हुई. लेकिन फिर बीजेपी में जाने के दो हफ्तों के भीतर मैंने विचारों में मतभेद के कारण पार्टी को छोड़ने का फैसला किया. फिर मुझे जयललिता जी की पार्टी (एआईएडीएमके) से बुलावा आया और उन्होंने मुझे पार्टी का आधिकारिक प्रवक्ता बना दिया. ऐसे उन्होंने मुझे रास्ता दिखाया और अपनी पार्टी, फिर अपनी सरकार की ओर से नेशनल टेलीविजन पर जाकर अपना पक्ष रखने का मौका दिया.  

एक बड़े क्षेत्रीय दल और भारत की दो प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियों बीजेपी और कांग्रेस से जुड़ने के बाद, क्या आप कह सकती हैं कि राजनीति में ट्रांसजेंडर लोगों को पूरी तरह स्वीकार कर लिया गया है?

राजनीति में प्रवेश के साथ ही जैसा प्यार मुझे लोगों ने दिखाया, उससे थोड़ी आसानी हुई. जयललिता जी की मौत के बाद एआईएडीएमके में काफी आंतरिक खींचतान होने लगी थी, तभी एक कार्यक्रम के दौरान मेरी मुलाकात अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की अध्यक्ष सुष्मिता देव जी से हुई. हमारे बीच बहुत बढ़िया बातचीत हुई और फिर उसी से बढ़ता हुआ सिलसिला एक दिन राहुल गांधी जी से मुलाकात और फिर यह पद संभालने तक पहुंचा.

मुझे पूरा भरोसा है कि देश के अगले प्रधानमंत्री राहुल गांधी जी ही होंगे. और तब आगे चल कर हम ट्रांसजेंडर महिलाओं या महिलाओं जैसे हर तरह के अल्पसंख्यकों के लिए कई प्रगतिशील नीतियां बनती देखेंगे.

मेरे लिए सबसे अहम बात यह थी कि मैं ऐसी पार्टी का हिस्सा हूं जो एक कुशल व्यक्ति के तौर पर मेरी कद्र करती है, ना कि केवल मेरे लिंग या लैंगिकता के आधार पर.

अपने अब तक के अनुभव में क्या आपने आम लोगों में ट्रांसजेंडर लोगों के प्रति नजरिए में कोई बदलाव आता देखा है?

हमेशा से लोग ट्रांसजेंडर, एलजीबीटी समुदाय के लोगों, और खासकर ट्रांसजेंडर महिलाओं को लेकर टिप्पणियां करते, उल्टे पुल्टे नाम देते और बुरी बुरी बातें बोलते आए हैं. मुझसे भी कई बार पूछा जाता था, क्या आप मेकअप आर्टिस्ट हैं या फिर फैशन डिजाइनर. किसी ने तो यह भी पूछा था कि क्या आप शादियों में डांस करती हैं. मुझे भी हर तरह के अजीब और घिसेपिटे सवालों का सामना करना पड़ा. अब वक्त आ गया है कि यह धारणा टूटे और मेरे जैसे लोग कह सकें कि मैं अंतरिक्षयात्री भी बन सकती हूं, सांसद भी और सबसे बड़े राजनीतिक दल की राष्ट्रीय महासचिव भी. राहुल गांधी ने पूरे विश्व को दिखा दिया है कि आगे कैसे बढ़ा जा सकता है. एक ट्रांजेंडर महिला को मुख्यधारा की महिला पार्टी में इस तरह लेना असल पहचान दिया जाना है. हम सब (ट्रांसजेंडर महिलाएं) आखिर हर रोज एक महिला बनने और एक महिला के तौर पर ही पहचाने जाने की लड़ाई ही तो लड़ रही हैं.

कुछ दक्षिण भारतीय राज्यों को छोड़ कर अब तक ट्रांसजेंडर समुदाय की समस्याएं सुलझाने के लिए विशेष कदम नहीं उठाए गए हैं. क्या इसके लिए राजनेताओं को और भी ज्यादा संवेदनशील बनाने की जरूरत है?

असल में आम जनता से उतनी समस्या नहीं है जितनी गलत धारणा और भटके हुए मुद्दों वाले नेताओं से है. अब भी बहुत सी जगहें हैं जो एलजीबीटी या ट्रांस व्यक्तियों के लिए ठीक नहीं हैं. जब कभी इन समुदायों के लोगों को काम करने या रोजगार का मौका दिया भी जाता है तो वह दया और तरस की भावना से ओतप्रोत होता है. इस स्थिति में होना कोई अच्छी बात नहीं. मैं तो ऐसे किसी ऑफिस में काम नहीं करना चाहूंगी जहां मुझपर लोग तरस खाते हों. हम चाहते हैं कि सबको बराबरी का दर्जा मिले. यह देखा जाए कि किसी इंसान में क्या गुण हैं, वह क्या कुछ कर सकता है. वो चाहे आदमी हो, औरत हो या कुछ और, जब उसकी लैंगिक पहचान से ऊपर उठ कर उसे देखा जा सकेगा, तभी काम पूरा होगा. इस तरह की बराबरी हासिल करने के लिए अभी बहुत लंबा सफर करना बाकी है. 

अप्सरा रेड्डी पूर्व पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता और सक्रिय राजनेता हैं. इस समय वे अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव हैं.

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