अब यूरोपीय देश आइसलैंड में पुरूष और महिलाओं के समान मेहनताने को सुनिश्चित करने के लिए एक कानून आया है. इसके तहत नियोक्ता को अब यह साबित करना होगा कि वह मेहनताना तय करने में कोई लैंगिक भेदभाव नहीं कर रहा है.
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कानून के तहत अब नियोक्ता या कंपनी मालिक को यह साबित करना होगा कि वे महिला और पुरूषों को समान काम के लिए समान भुगतान कर रहे हैं. कानून के मुताबिक अगर नियोक्ता ऐसा नहीं करता तो उस पर जुर्माना लगाया जाएगा. ऐसा कानून लाने वाला आइसलैंड दुनिया का पहला देश बन गया है.
कानून को अमल में लाने के लिए अब देश के सबसे बड़े बैंक लैंड्सबैंकिन ने काम भी शुरू कर दिया है. इस बैंक का साल 2008 में राष्ट्रीयकरण किया गया था. इस बैंक में काम करने वाली एक 34 वर्षीय महिला कर्माचारी एलिसाबेथ के मुताबिक, "लैंगिक समानता के मामले में दुनिया के सबसे अच्छे देशों में शामिल आइसलैंड में मैंने कभी महसूस नहीं किया कि मेरे साथ पुरूष साथियों के मुकाबले कोई भेदभाव हो रहा है." उन्होंने कहा कि फिर भी लैंगिक समानता के लिए इस कानून की जरूरत है. उन्होंने कहा, "यह एक ऐसी चीज है जिसे आप आसानी से देख सकते हैं और महसूस कर सकते हैं. लेकिन इसे साबित करना मुश्किल होता था."
महिलाओं की सैलरी पुरुषों से कितनी कम?
आइसलैंड में कानून बनाया गया है जिसके तहत महिलाओं को पुरुषों के बराबर वेतन देना होगा. दुनिया भर में वेतन के मामले में लैंगिक असमानता को देखते हुए यह कदम एक उम्मीद की किरण है. जानते हैं कहां कितना कमाती हैं महिलाएं.
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सबसे अच्छा, सबसे खराब
वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम (डब्ल्यूईएफ) का कहना है कि आइसलैंड दुनिया में सबसे ज्यादा लैंगिक समानता वाला देश है. शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिक अवसरों और राजनीतिक सशक्तिकरण के क्षेत्रों में मौजूद अंतर के विश्लेषण के आधार पर यह बात कही गई. दूसरी तरफ, यमन की स्थिति इस मामले में सबसे खराब है.
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औसत कमाई
दुनिया भर में महिलाओं का सालाना औसत वेतन 12 हजार डॉलर है जबकि पुरुषों का औसत वेतन 21 हजार डॉलर है. डब्ल्यूईएफ का कहना है कि वेतन के मामले में समानता कायम करने के लिए दुनिया को 217 वर्ष लगेंगे.
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समानता की कीमत
वेतन में अंतर को पाटने के लिए ब्रिटेन की जीडीपी में अतिरिक्त 250 अरब डॉलर, अमेरिका की डीजीपी में 1,750 अरब डॉलर और चीन की डीजीपी में 2.5 ट्रिलियन डॉलर डालने होंगे.
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ब्रिटेन में सुधरी स्थिति
2017 के दौरान महिला और पुरुषों के बीच प्रति घंटा मेहनताने का अंतर 20 वर्ष के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया. सरकारी आकंड़ों के मुताबिक एक फुलटाइम पुरुष कर्मचारी ने महिला कर्मचारियों की तुलना में 9.1 प्रतिशत ज्यादा वेतन पाया.
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टॉप देश
आर्थिक भागीदारी और अवसरों के मामले में जो देश टॉप पर है उनमें बुरुंडी, बारबाडोस, बहमास, बेनिन और बेलारूस शामिल हैं. डब्ल्यूईएफ के मुताबिक इन सभी देशों में महिला और पुरुषों के बीच आर्थिक अंतर 20 प्रतिशत से कम है.
यहां बदतर है हालात
इस मामले में जिन पांच देशों की स्थिति सबसे खराब है उनमें सीरिया, पाकिस्तान, सऊदी अरब, यमन और ईरान शामिल हैं. वहां आर्थिक लैंगिक अंतर कम से कम 65 प्रतिशत है.
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महिलाओं की भागीदारी
विश्व स्तर पर वरिष्ठ प्रबंधकीय पदों पर सिर्फ 22 प्रतिशत महिलाएं हैं. डब्ल्यूईएफ का कहना है कि आम तौर पर महिलाओं को कम वेतन वाले पदों पर रखे जाने की संभावना ही ज्यादा होती है.
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योग्यता की अनदेखी
डाटा से पता चलता है कि महिलाओं से उनकी योग्यता से कम दक्षता वाला काम लिया जाता है. इसकी वजह कई बार उनकी घरेलू जिम्मेदारियां होती हैं या फिर कई बार भेदभाव. इंजीनियरिंग और टेक्नोलॉजी से जुड़े क्षेत्र में महिलाएं कम होती हैं.
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ईयू की स्थिति
यूरोपीय आयोग ने अंतर को कम करने के लिए नवंबर 2017 में एक दो वर्षीय योजना का प्रस्ताव रखा था. पिछले पांच साल के दौरान इस मामले में यूरोपीय संघ में कोई खास प्रगति नही हुई. यहां महिलाएं पुरुषों के मुकाबले प्रति घंटा 16.3 प्रतिशत कम कमाती हैं.
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कंपनियों की निगरानी
इस प्रस्ताव में उन कंपनियों पर कुछ प्रतिबंध लगाने का प्रावधान है जो महिलाओं को पुरुषों के बराबर वेतन नहीं देती हैं. साथ ही इसमें यूरोपीय सबसे बड़ी कंपनियों की निगरानी करने के लिए भी कहा गया है.
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वैसे आइसलैंड में 1961 से पुरूष और महिलाओं के समान वेतन से जुड़ा कानून है लेकिन नया कानून नियोक्ता की जिम्मेदारी तय करता है. इस कानून के बाद अब किसी कर्मचारी को यह साबित नहीं करना होगा कि उसके साथ लैंगिक भेदभाव किया गया है, बल्कि नए कानून में नियोक्ता को साबित करना होगा कि उसने लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया है. मोटामोटी अब नियोक्ताओं को समय-समय पर आकलन करना होगा. साथ ही इसके रिकॉर्ड भी रखने होंगे.
कुछ कंपनियों ने इस कानून को लागू करने के लिए अलग से बजट तैयार कर लिया है.
पिछले नौ सालों से आइसलैंड सबसे अधिक समानता वाले देशों की वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की सूची में टॉप पर बना हुआ है. इसके बावजूद सरकारी आंकड़ें देश में पुरूष और महिलाओं के मेहनताने में किए जाने वाले अंतर को 16 फीसदी तक बताते हैं. इस नए कानून से देश की 1180 कंपनियों में काम करने वाले 1.47 लाख लोग प्रभावित होंगे. सभी सरकारी मंत्रालयों, प्रशासन और 250 से अधिक कर्मचारी रखने वाली कंपनियों को इस कानून का 31 दिसंबर 2018 तक पालन करना होगा. लेकिन छोटी कंपनियों को इसे लागू करने के लिए दिसंबर 2021 तक का समय दिया गया है.
अन्य यूरोपीय देश
आइसलैंड के अलावा यूरोप के अन्य देशों में कुछ इस तरह के नए कानून आए हैं. मसलन पिछले साल ब्रिटेन ने अपने एक आदेश में कहा था कि 250 कर्मचारियों से अधिक लोगों की कंपनी को जेंडर गैप की विस्तृत जानकारी देनी होगी. वहीं जर्मनी का कानून कर्मचारियों को मौका देता है कि वह जान सके कि उनके अन्य साथियों को समान काम के कितने पैसे दिए जाते हैं.
लैंगिक असमानता पाटने में लग जायेंगे 100 साल
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2017 के मुताबिक दुनिया में महिलाओं और पुरूषों के बीच लैंगिक असमानता बढ़ी है. 144 देशों को शामिल करने वाले इस सूचकांक में भारत 21 पायदान फिसलकर 108वें स्थान पर आ गया है.
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प्रयास ठहरे
रिपोर्ट में कहा गया है कि दशकों की धीमी प्रगति के बाद वर्ष 2017 में महिला-पुरुष असमानता को दूर करने के प्रयास ठहर से गये हैं. साल 2006 के बाद यह पहला मौका है जब यह अंतर बढ़ा है
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आकलन के मानक
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (विश्व आर्थिक मंच) दुनिया भर में चार मानकों, शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिक अवसर और राजनीतिक प्रतिनिधित्व का आकलन कर यह रिपोर्ट तैयार करता है.
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सौ साल का समय
रिपोर्ट के मुताबिक अगर मौजूदा हालात कायम रहते हैं तो महिलाओं को पुरुषों की बराबरी करने में सौ साल से भी अधिक का समय लगेगा. पिछली रिपोर्ट में यह समय 83 साल बताया गया था.
तस्वीर: Colourbox
पड़ोसियों से पीछे
कम वेतन और अर्थव्यवस्था में महिलाओं की सीमित भागीदारी के चलते भारत का स्थान अपने पड़ोसी देश, चीन और बांग्लादेश से भी पीछे है.
तस्वीर: DW/P. Samanta
कितना कम
रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने 67 फीसदी तक इस लैंगिक असमानता को कम किया है. जो उसके समकक्ष देशों के मुकाबले काफी कम है.
तस्वीर: Imago/alimdi
बेहतरीन देश
इस सूची में भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश 47वें और चीन 100वें स्थान पर हैं. वहीं सूची में पहला स्थान आइसलैंड को मिला है. इसके बाद दूसरे स्थान पर नॉर्वे और तीसरे स्थान पर फिनलैंड हैं.
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महिलाओं की भागीदारी
रिपोर्ट के मुताबिक कार्यस्थल और राजनीति में महिलाओं की भागीदारी तेजी से घटी है. ताजा आकलन के मुताबिक दुनिया के कुल फैसलों में महिलाओं की भागीदारी महज 23 फीसदी है.
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कितना समय
रिपोर्ट की मानें तो पश्चिमी यूरोपीय देशों में लैंगिक असमानता पाटने में 61 वर्षों का समय लगेगा, वहीं मध्य पूर्व में और उत्तरी अफ्रीका में 157 सालों से भी अधिक का समय लग सकता है.
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बेहतर और खराब
सूची में निकारगुआ, स्लोवेनिया, आयरलैंड, न्यूजीलैंड और फिलिपींस को टॉप 10 देशों में जगह मिली है, वहीं सीरिया, पाकिस्तान और यमन में हालात सबसे खराब बताये गये हैं.