एक ट्रांसजेंडर भारोत्तोलक ओलंपिक खेलों में पहली बार भाग ले रही हैं. उनकी इस उपलब्धि को ट्रांस अधिकारों के लिए एक जीत के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन सवाल भी उठ रहे हैं कि क्या यह बाकी महिला खिलाड़ियों के लिए उचित है?
विज्ञापन
न्यूजीलैंड की रहने वाली लॉरेल हब्बर्ड का जन्म एक पुरुष के रूप में हुआ था. 30 साल की उम्र के बाद उन्होंने अपना लिंग परिवर्तन कराया और महिला बन गईं. उसके बाद उन्होंने ट्रांसजेंडर खिलाड़ियों के लिए अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) के मानकों को पूरा करने के बाद भारोत्तोलन में फिर से भाग लेना शुरू किया. आईओसी का कहना है कि वो खेलों में भाग लेने वाली खुले तौर पर ट्रांसजेंडर महिला के रूप में जानी जाने वाली पहली खिलाड़ी हैं.
समिति ने इसे ओलंपिक आंदोलन के लिए एक ऐतिहासिक घटना बताया. समिति के मेडिकल प्रमुख रिचर्ड बजट ने टोक्यो में पत्रकारों को बताया, "लॉरेल हब्बर्ड एक महिला हैं, वो अपने देश के भारोत्तोलन संघ के नियमों के तहत हिस्सा ले रही हैं और हम खेलों के लिए चुने जाने और उनमें हिस्सा लेने के लिए उनके हौसले और संकल्प को सलाम करते हैं."
एक तीखी बहस
हालांकि, खेलों में 87 किलो से ऊपर वजन वाली महिलाओं की श्रेणी में उनके भाग लेने की वजह से खेलों में बायोएथिक्स, मानवाधिकार, विज्ञान, निष्पक्षता और पहचान जैसे पेचीदा मुद्दों पर बहस शुरू हो गई है. उनके समर्थक कह रहे हैं कि उनका भाग लेना समावेश और ट्रांस अधिकारों के लिए एक जीत है.
आलोचकों का कहना है कि दशकों तक एक पुरुष के तौर पर रहने की वजह से उनके शरीर में जो विशेषताएं समाई हुई हैं उनकी वजह से दूसरी महिला खिलाड़ियों पर उन्हें एक अनुचित बढ़त है. इस मामले पर बहस काफी तीव्र हो चुकी है और यह कभी कभी सख्त भी हो जाती है.
इंटरनेट पर दोनों पक्ष एक दूसरे पर तंज कसने लगते हैं. इस वजह से न्यूजीलैंड की ओलंपिक समिति को हब्बर्ड को सोशल मीडिया ट्रोलों से बचाने के लिए कई कदम उठाने पड़े हैं. लेकिन आईओसी ने यह माना है कि हब्बर्ड के पास एक "असंगत प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त" है या नहीं इसे लेकर उठने वाले सवाल जायज हैं.
विरोध के स्वर
महिलाओं के खेलों में भाग लेने के कई समर्थकों ने चिंता जताई है कि ट्रांसजेंडर प्रतियोगियों को खेलों में शामिल करना अनुचित है और इससे महिलाओं के खेलों के दर्जे को ऊंचा उठाने में काफी संघर्ष के बाद को सफलता हासिल हुई है उसे नुकसान पहुंच सकता है.
इनमें पथप्रदर्शक समलैंगिक टेनिस स्टार मार्टिना नवरातिलोवा भी शामिल हैं. उनका कहना है, "एक ट्रांसजेंडर महिला जिस तरह से चाहें मैं उन्हें उस तरह से संबोधित कर सकती हूं, लेकिन उनके खिलाफ प्रतिस्पर्धा करने में मुझे खुशी नहीं होगी. यह न्यायपूर्ण नहीं होगा."
कैटलीन जेनर ने 1976 के ओलंपिक खेलों में पुरुषों के डिकैथलन में स्वर्ण पदक जीता था, लेकिन 2015 में उन्होंने खुद के महिला होने की घोषणा की. उन्होंने भी इस साल की शुरुआत में कहा था, "यह बिलकुल न्यायपूर्ण नहीं है." इस बात का भी डर है कि हाई-इम्पैक्ट खेलों में ट्रांस महिलाओं को शामिल करने से दूसरे प्रतियोगियों की सुरक्षा को भी खतरा हो सकता है. इसी वजह से वर्ल्ड रग्बी ने पिछले साल ही उन्हें अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं से बैन कर दिया था.
विज्ञापन
पुरुषों को शारीरिक फायदे
अपने फैसले के पीछे वर्ल्ड रग्बी ने वैज्ञानिक अध्ययनों का हवाला दिया था जिनमें यह दिखाया गया था कि पुरुष महिलाओं से 30 प्रतिशत ज्यादा मजबूत होते हैं. ओटागो विश्वविद्यालय के फिजियोलॉजिस्ट एलिसन हीथर ने बताया कि पुरुषों को और भी शारीरिक फायदे होते हैं, जैसे लंबे अंग, ज्यादा बड़ी मांसपेशियां, ज्यादा बड़ा दिल और फेंफड़ों में अधिक क्षमता.
हालांकि आईओसी के बजट ने कहा कि यह पुरुषों और महिलाओं की तुलना करने जितना सरल नहीं है. उनका कहना है कि संभव है कि महिलाएं जब लिंग बदलने की प्रक्रिया के बीच हों तब उनके प्रदर्शन का स्तर गिर जाए. उन्होंने यह भी कहा कि और ज्यादा शोध की जरूरत है.
उन्होंने कहा, "इस तथ्य के बारे में भी सोचना चाहिए कि अभी तक चोटी पर कोई ऐसा खिलाड़ी नहीं हुआ है जो खुले तौर पर एक ट्रांसजेंडर महिला हो और मुझे लगता है कि महिलाओं के खेलों को खतरे के बारे में मुमकिन है कि बढ़ा चढ़ा कर बताया गया है."
आईओसी ने माना कि नया तंत्र इस मुद्दे पर आखिरी मत नहीं होगा. यह अंतरराष्ट्रीय खेल संघों के लिए कड़े नियमों की जगह सिर्फ दिशा निर्देश देगा. समिति के प्रवक्ता क्रिस्चियन क्लोए ने कहा, "हमें जिस की जरूरत है उसे हासिल करने के लिए एक अनुकूल स्तर पर पहुंचना होगा और वो स्तर जहां भी हो, संभव है कुछ लोग उसकी आलोचन करेंगे ही. यह अंतिम समाधान नहीं होगा."
सीके/एए (एएफपी)
मिलिए खेलों की कुछ सुपर महिलाओं से
महिलाएं खेलों में पुरुषों के साथ बराबरी के लिए दशकों से लड़ रही हैं. कई सफल महिला खिलाड़ियों के इस संघर्ष ने खेलों की दुनिया को हिला के रख दिया, लेकिन कई क्षेत्रों में वो सफलता ज्यादा वक्त तक चली नहीं.
तस्वीर: picture alliance/dpa/N.Mughal
एक बड़ी लैंगिक बाधा ध्वस्त
10 अप्रैल, 2021 को रेचल ब्लैकमोर ने खेलों की दुनिया की सबसे बड़े लैंगिक बाधाओं में से एक को तोड़ दिया. वो इंग्लैंड की कठिन ग्रैंड नेशनल प्रतियोगिता को जीतने वाली पहली महिला जॉकी बन गई हैं. आयरलैंड की रहने वाली 31 वर्षीय ब्लैकमोर ने जीत हासिल करने के बाद उन्होंने कहा, "मैं अभी पुरुष या महिला जैसा महसूस ही नहीं कर रही हूं. बल्कि मैं अभी इंसान जैसा भी महसूस नहीं कर रही हूं. यह अविश्वसनीय है."
तस्वीर: Tim Goode/empics/picture alliance
टेनिस की दुनिया का चमकता सितारा
1970 के दशक में बिली जीन किंग ने टेनिस में पुरुष और महिला खिलाड़ियों को एक जैसी पुरस्कार राशि देने के लिए संघर्ष किया था. 12 ग्रैंड स्लैम जीत चुकीं किंग ने कुछ और महिला खिलाड़ियों के साथ विरोध में अपनी अलग प्रतियोगिताएं ही शुरू कर दीं, जो आगे जाकर महिला टेनिस संगठन (डब्ल्यूटीए) बनीं. उनके संघर्ष का फल 1973 में मिला, जब पहली बार यूएस ओपन में एक जैसी पुरस्कार राशि दी गई.
तस्वीर: Imago Images/Sven Simon
हर चुनौती को हराया
कैथरीन स्विटजर बॉस्टन मैराथन में भाग लेने वाली और उसे पूरा करने वाली पहली महिला थीं. उस समय महिलाओं को इस मैराथन में सिर्फ 800 मीटर तक भाग लेने की इजाजत थी, जिसकी वजह से स्विटजर ने अपना पंजीकरण गुप्त रूप से करवाया था. इस तस्वीर में जैकेट और टोपी पहने गुस्साए हुए रेस के निर्देशक ने स्विटजर का रेस नंबर फाड़ देने की कोशिश की थी. उनके विरोध के कुछ साल बाद महिलाओं को लंबी दूरी तक दौड़ने की अनुमति मिली.
तस्वीर: picture alliance/dpa/UPI
दर्शकों की पसंद
इटली की साइक्लिस्ट अल्फोंसिना स्ट्राडा ने 1924 की जीरो दी इतालिया के लिए अल्फोंसिन स्ट्राडा के नाम से पंजीकरण करवा कर आयोजनकर्ताओं को चकमा दे दिया. उन्हें पता ही नहीं चला कि वो एक महिला हैं. बाद में जब उन्हें पता चला तो उसके बावजूद स्ट्राडा को रेस में भाग लेने की अनुमति दे दी गई और इस तरह वो पुरुषों की रेस को शुरू करने वाली अकेली महिला बन गईं.
तस्वीर: Imago Images/Leemage
छू लो आकाश
1990 के दशक तक महिलाएं स्की जंपिंग में हिस्सा नहीं ले सकती थीं, लेकिन 1994 में एवा गैंस्टर पहली महिला "प्री-जंपर" बनीं. 1997 में वो ऊंचे पहाड़ से छलांग लगाने वाली पहली महिला जंपर बनीं. पहला विश्व कप 2011 में आयोजित किया गया और ओलंपिक में यह खेल पहली बार 2014 में खेला गया.
तस्वीर: Imago Images/WEREK
आइस हॉकी में महिलाएं
मेनन ह्यूम ने 1992 में उत्तरी अमेरिका के लोकप्रिय नेशनल हॉकी लीग में हिस्सा लेने वाली पहली महिला बनकर इतिहास रच दिया. उन्होंने एक प्री सीजन मैच में एक पीरियड के लिए खेला लेकिन बाद में उसी साल वो बाकायदा सीजन में प्रोफेशनल मैच में खेलने वाली पहली महिला भी बनीं.
तस्वीर: Getty Images/S. Halleran
फुटबॉल में रेफरी
1993 में स्विट्जरलैंड की निकोल पेटिनात पुरुषों के चैंपियंस लीग फुटबॉल मैच में रेफरी बनने वाली पहली महिला बनीं. वो स्विस लीग, महिलाओं के विश्व कप और यूरोपीय चैंपियनशिप के फाइनल में भी रेफरी बनीं. हालांकि उनकी उपलब्धियों के बावजूद आज भी महिला रेफरियों की संख्या ज्यादा नहीं है. जर्मनी की बिबियाना स्टाइनहाउस इस मामले में अपवाद हैं.
तस्वीर: picture-alliance/Pressefoto ULMER
महिला ड्राइवर
इटली की मारिया टेरेसा दे फिलिप्पिस उन दो महिलाओं में से एक हैं जिन्हें फार्मूला वन रेस में गाड़ी चलाने वाली महिला होने का गौरव हासिल है. 1958 से 1959 के बीच, मारिया ने तीन ग्रां प्री में भाग लिया. इटली की ही लैला लोम्बार्दी उन्हीं के पदचिन्हों पर चलीं और 1974 से 1976 के बीच में 12 रेसों में हिस्सा लिया. उसके बाद से आज तक एफवन रेसों में महिलाएं हिस्सा नहीं ले पाई हैं.
तस्वीर: picture-alliance/empics
पुरुषों की कोच
कोरीन डाइकर चार अगस्त 2014 को पुरुषों की यूरोपीय फुटबॉल लीग में चोटी की दो श्रेणियों के एक मैच में कोच बनने वाली पहली महिला कोच बनीं. वो 2017 में फ्रांस की राष्ट्रीय महिला टीम की कोच भी बनीं. पुरुषों के फुटबॉल में आज भी उनकी अलग ही जगह है. आज भी कई महिला टीमों के कोच पुरुष हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
महिलाओं के लिए जीवन समर्पित
जर्मन फुटबॉल कोच मोनिका स्टाब एक सच्ची पथ प्रदर्शक हैं. वो पूरी दुनिया में घूम घूम कर महिलाओं और लड़कियों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित कर रही हैं. उनका मानना है कि "खेलों में सकारात्मक फीडबैक आत्मविश्वास को बढ़ा देता है. जिंदगी से गुजरने के लिए यह आवश्यक है." - आंद्रेआस स्तेन-जीमंस