महासागरों में 2050 तक मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक का कचरा होगा. पैकेजिंग के लिए इस्तेमाल होने वाला 95 फीसदी प्लास्टिक सिर्फ एक बार इस्तेमाल होने के बाद सीधे समंदर में पहुंच रहा है.
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एलन मैकआर्थर फाउंडेशन की रिपोर्ट में कहा गया है कि प्लास्टिक के निपटारे के लिए क्रांतिकारी कदम तुरंत उठाए जाने चाहिए. अगर ऐसा नहीं किया गया तो 35 साल बाद महासागरों में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक होगा. रिपोर्ट के मुताबिक हर साल कम से कम 80 करोड़ टन प्लास्टिक समंदर में जा रहा है, यानि हर मिनट करीब एक ट्रक प्लास्टिक महासागरों में समा रहा है.
रिपोर्ट कहती है, "अगर कोई कदम नहीं उठाया गया तो 2030 तक हर मिनट दो ट्रक प्लास्टिक और 2050 तक हर मिनट चार ट्रक प्लास्टिक समंदर में जाएगा." पैकेजिंग के लिए इस्तेमाल होने वाला प्लास्टिक सबसे ज्यादा परेशानी खड़ी कर रहा है.
कई संस्थाओं के साथ किए गए शोध में यह भी पता चला है कि प्लास्टिक की बेहतर रिसाइक्लिंग नहीं की जा रही है. प्लास्टिक पैकेजिंग का उद्योग 80 से 120 अरब डॉलर का है. इस उद्योग का 95 फीसदी प्लास्टिक पहली बार इस्तेमाल करने के बाद फेंका जा रहा है. फिलहाल महासागरों में करीब 15 करोड़ टन प्लास्टिक है.
भयावह होता संकट
रिपोर्ट कहती है कि अगर यही स्थिति जारी रही तो, "2025 तक तीन टन मछलियों के बीच एक टन प्लास्टिक होगा और 2050 तक मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक होगा." समुद्र के नमकीन पानी में तैरता प्लास्टिक सूर्य की तेज रोशनी में टूटने लगता है. विघटन के बाद यह सूक्ष्म प्लास्टिक बड़े समुद्री इलाके में फैल जाता है.
समुद्रों को फिर से स्वस्थ बनाने के लिए पैकेजिंग उद्योग, माल उत्पादकों, प्लास्टिक उत्पादकों और ग्राहकों के व्यवहार में बड़े बदलाव करने होंगे. रिपोर्ट में समुद्रों की निगरानी के लिए एक स्वतंत्र सहयोग संस्था बनाने की भी मांग की गई है.
वैज्ञानिक इस बात की चेतावनी दे चुके हैं कि समुद्र में प्लास्टिक के विघटन का असर इंसान समेत कई जीवों के आहार चक्र पर पड़ सकता है. जर्मनी के अल्फ्रेड वेगेनर इंस्टीट्यूट के जीव विज्ञानियों के मुताबिक उन्हें प्लास्टिक के सूक्ष्म टुकड़े कुछ मछलियों और समुद्री जीवों के पेट में मिले.
उत्तरी सागर और बाल्टिक सागर के जर्मन तट पर वैज्ञानिकों ने इंसानी आहार बनने वाली अलग अलग किस्म की 290 मछलियां पकड़ीं. मैकरेल मछली के पेट में उन्हें 13 से 30 फीसदी प्लास्टिक मिला. वैज्ञानिकों के मुताबिक अलग अलग इलाके की मछलियों के पेट में प्लास्टिक की अलग अलग मात्रा हो सकती है.
प्लास्टिक बोतल की जिंदगी
हर साल दुनिया भर में प्लास्टिक की लाखों बोतलें बेची जाती हैं. यह लोगों में लोकप्रिय भी है, लेकिन इसे बनाने में बहुत तेल खर्च होता है. और क्या होता है जब बोतल खाली होती है?
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शुरू से अंत तक
पानी की बोतल खरीदने वाले प्लास्टिक की भी कीमत चुकाते हैं. लेकिन पर्यावरण को क्या कीमत चुकानी पड़ती है? बोतल बनाने, भरने, लेबल लगाने, ट्रांसपोर्ट, गोदाम में रखने और उसे निबटाने का खर्च काफी है. देखिए शुरू से अंत तक की दास्तान.
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पानी के लिए तेल
ज्यादातर बोतलें पोलिएथेलीन टेरेफ्थलेट (पीईटी) प्लास्टिक से बनती हैं, जिसके लिए खनिज तेल की जरूरत होती है. तेल की निकासी में तो ग्रीन हाउस गैसें बनती ही हैं, प्लास्टिक के उत्पादन में भी जहरीली गैसें निकलती हैं. तेल को इस रिफायनरी जैसे कारखानों तक पहुंचाना भी पड़ता है.
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कच्चा माल
साफ तेल को उत्पादक तक पहुंचाया जाता है, जो उससे प्लास्टिक के छोटे टुकड़े बनाता है. बोतल बनाने वाले इस कच्चे माल को गला कर प्रोटोटाइप बनाते हैं. बोतलों में पेय भरने वाली कंपनी उसे गर्म कर असली रूप में लाती हैं. रिसाइक्लिंग में बोतलों से प्लास्टिक के छोटे टुकड़े बना दिए जाते हैं.
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औद्योगिक उत्पादन
बॉटलिंग प्लांट में प्रोटोटाइपों को असल रूप देकर साफ किया जाता है और फिर उसमें पानी या दूसरा पेय भरा जाता है. बोतल को सील कर उस पर लेबल लगाया जाता है और ट्रांसपोर्ट के लिए पैकेजिंग की जाती है. सैक्सनी के इस प्लांट में हर रोज 15 लाख लीटर पानी और सॉफ्ट ड्रिंक भरा जाता है.
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तेलरहित विकल्प
मक्का या गन्ने जैसे पदार्थों से बने बायोप्लास्टिक से भी बोतलें बनाई जा सकती हैं. इस तरह का प्लास्टिक नष्ट किया जा सकता है और उसे इस्तेमाल के बाद कम्पोस्ट में गलने के लिए डाला जा सकता है. लेकिन वह भी पर्यावरण के लिए ठीक नहीं. इसे बनाने में खेत के अलावा बहुत अधिक पानी लगता है.
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पर्यावरण को नुकसान
पानी की बोतलों के ट्रांसपोर्ट में भी संसाधनों की बर्बादी होती है. कुछ मामलों में तो हर बोतल के ट्रांसपोर्ट पर एक लीटर तेल खर्च होता है. कम से कम 25 फीसदी बोतलों का ट्रांसपोर्ट एक से दूसरे देश में होता है. ट्रांसपोर्ट के दौरान पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाला कार्बन डाई ऑक्साइड निकलता है.
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संसाधनों की कमी
पैसिफिक इंस्टीट्यूट के अनुसार पानी की एक लीटर की बोतल बनाने पर कम से कम तीन गुना पानी खर्च होता है. इसकी वजह से जिन इलाकों में बॉटलिंग प्लांट हैं, उनमें जलस्तर सामान्य से नीचे जा सकता है. इसका खामियाजा इलाके के लोगों को पानी की कमी के रूप में भुगतना पड़ता है.
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सागरों को खतरा
यूरोप में हर साल इस्तेमाल हो रही बोतलों का आधा यानि छह करोड़ प्लास्टिक बोतलों की रिसाइक्लिंग होती है. बाकी कचरा बन जाता है जिसे कूड़े की जगहों पर या पानी में फेंक दिया जाता है. उसे नष्ट होने में सैकड़ों साल लगेंगे. सागर पहुंचने वाला प्लास्टिक जीव जंतुओं के लिए भी खतरा बन जाता है.
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प्लास्टिक से पैसा
जर्मनी में डिपोजिट सिस्टम है. लोगों से बोतल खरीदते समय डिपोजिट लिया जाता है जिसे वापस लेने के लिए वे बोतलों को वापस सुपर बाजार में लाते हैं और इन मशीनों में बोतलों को डालकर आम तौर पर 25 सेंट डिपोजिट वापस पाते हैं. प्लास्टिक की बोतलें बेचने वाला हर दुकानदार उसे वापस लेने को बाध्य है.
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बोतलों का ढेर
अमेरिका पानी की बोतलों का सबसे बड़ा खरीदार है. लेकिन चीन तेजी से उसके करीब पहुंच रहा है. वहां हर साल अरबों बोतलें बनाई और खरीदी जाती हैं. इसमें 1.8 करोड़ टन खनिज तेल का इस्तेमाल होता है. बढ़ती मांग के साथ चीन में इस्तेमाल हो चुके बोतलों का पहाड़ भी बढ़ रहा है.
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नई जिंदगी
रिसाइकिल हुए प्लास्टिक के छोटे टुकड़े बना दिए जाते हैं, जिनसे दूसरे उत्पाद बनते हैं. उनमें से एक फ्लीस है, लोकप्रिय होता सिंथेटिक कंबल.