इंटरनेट पर गलत सूचनाओं और हेरफेर से जुड़े मामलों में चीन और रूस का नाम तो अक्सर लिया जाता है. लेकिन हाल में जारी एक रिपोर्ट में कहा गया कि दुनिया के 30 देशों की सरकारों ने ऐसे हेरफेर किये हैं.
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65 देशों से जुड़ी इंटरनेट फ्रीडम रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया की 30 देशों की सरकारों ने ऑनलाइन सूचनाओं में हेरफेर किये हैं. पिछले साल यह आंकड़ा 23 था जो इस साल बढ़कर 30 तक पहुंच गया है. सूचनाओं के इस हेरफेर में ट्रोल और बॉट्स के साथ-साथ प्रायोजित कमेंट का भी इस्तेमाल किया जा रहा है. ह्यूमन राइट्स ग्रुप फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट, "फ्रीडम ऑन द नेट 2017" में यह बात सामने आयी है. रिपोर्ट में कहा गया है कि सूचनाओं के इस हेरफेर ने पिछले साल 18 देशों के चुनावों को प्रभावित किया, जिसमें अमेरिका भी शामिल है. फ्रीडम हाउस के अध्यक्ष माइकल आब्ररामोव्टिज के मुताबिक, पेड कमेंटटेटर और बॉट्स का सरकारों के खिलाफ इस्तेमाल चीन और रूस जैसे देशों ने ही शुरू किया लेकिन अब यह प्रक्रिया वैश्विक हो गयी है. इन तकनीकों का तेजी से फैलना लोकतंत्र और जन आंदोलनों के लिए अच्छा नहीं है.
फ्रीडम ऑन नेट प्रोजेक्ट की निदेशक संजा कैली कहती हैं, "इस तरह के हेरफेर का पता लगाना मुश्किल हो जाता है. अगर पता लगा भी लिया जाये तो इसे रोकने के लिए क्या किया जाये यह भी बड़ी समस्या है." संस्था के मुताबिक इंटरनेट फ्रीडम में गिरावट पिछले सात सालों से लगातार नजर आ रही है.
चीन का फिर खराब रिकॉर्ड
फ्रीडम हाउस के मुताबिक चीन लगातार तीसरे साल इंटरनेट आजादी पर पाबंदी लगाने वाले देशों में सबसे आगे है. चीन में ऑनलाइन सेंसरशिप के नियम कायदों को कड़ा कर दिया गया है. यहां पर कई मामलों में यूजर्स को जेल भी भेजा गया है. अन्य देशों में भी ऑनलाइन जानकारी की सेंसरशिप और उन्हें तोड़मरोड़ कर पेश करने के मामले बढ़े हैं. मसलन फिलिपींस में सरकार के द्वारा किसी खास मामले में समर्थन हासिल करने के लिए लोगों को 10 डॉलर रोजाना की नौकरी पर रखा गया. इसी तरह तुर्की ने सोशल मीडिया पर सरकार के विरोधियों से निपटने के लिए 6 हजार लोगों का इस्तेमाल किया.
इंटरनेट की इन एरर्स से रहें सावधान
अकसर इंटरनेट सर्फिंग के दौरान ब्राउजर कुछ ऐसे मैसेज दिखाता जिसके बाद उस साइट पर आगे बढ़ पाना मुश्किल हो जाता है. लेकिन क्या आप इन एरर्स मैसेज का मतलब जानते हैं. एक नजर ब्राउजर पर आने वाली इन एरर्स पर.
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पेज नॉट फांउड (404)
यह इंटरनेट ब्राउजिंग की सबसे आम एरर है. इसका सीधा मतलब होता है कि आपका ब्राउजर, उस वेबसाइट या सर्वर से जुड़ पाने में तो सक्षम हैं जिसकी तलाश में आप हैं लेकिन समस्या है कि वह असल में उस पेज को नहीं ढूंढ पा रहा है जिसे आप देखना चाहते हैं. इस एरर को वेब डिजाइनर और सर्वर एडमिन की मदद से आसानी से सुलझाया जा सकता है.
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बैड गेटवे (502)
यह कोई आम एरर नहीं है. इस एरर का मतलब है कि आपके निर्देशों को पूरा करते समय, वह सर्वर जो किसी गेटवे की तरह काम कर रहा है उसे अपस्ट्रीम सर्वर से सकारात्मक संदेश नहीं मिल रहे हैं. अकसर यह समस्या आपके कंप्यूटर के बाहर की होती है और एरर भी सर्वर में पैदा होती है. इसे सुलझाने के लिए किसी आम यूजर के पास अधिक विकल्प नहीं होते.
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सर्विस अनअवैलबल (503)
जब आप किसी वेबसाइट तक जाना चाहे और वह इसलिये न खुले क्योंकि उसके सर्वर पर वह सुस्त है तो ऐसी एरर आती है. यह समझा जा सकता है कि भेजने वाले और प्राप्त करने वाले के बीच टाइम पीरियड में सामंजस्य न होना. यह एरर भी कंप्यूर के बाहर की है तो उपयोगकर्ता के पास इसे सुलझाने के लिए काई खास विकल्प नहीं है. अगर आपको सर्विस अनअवैलवल-डीएनएस फेल का संदेश मिलता है तो मतलब है कि समस्या यूजर के रुटर में हो सकती है.
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कनेक्शन टाइमआउट
यह बहुत आम एरर होती है. इसका मतलब होता है कि जो कमांड आप दे रहे हैं उसे आपका सिस्टम दिये गये समय में पूरा करने में सक्षम नहीं है. इसका कारण रूटर में गड़बड़ी या नेटवर्क प्रॉब्लम हो सकती है. यह एरर कोई और जानकारी नहीं देती इसलिए बेहतर होता है कि अगर उस वक्त कोई और वेबसाइट सर्फ की जाये और अगर आप दूसरी वेबसाइट सर्फ कर पाने में सक्षम होते हैं तो अमूमन यह माना जाता है कि समस्या उस खास साइट में होगी.
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अनेबल टू कनेक्ट
यह एरर आने पर समझ लेना चाहिए की आपका ब्राउजर आपके कमांड को पूरा इसलिए नहीं कर पा रहा है क्योंकि टारगेट सर्वर और वेबसाइट या तो मौजूद नहीं है या उस साइट के साथ कोई तकनीकी समस्या है. जब कभी आप अपने फायरवॉल या प्रॉक्सी सर्वर में कुछ बदलाव करते हैं तो कुछ साइट आपको ब्लॉक कर देती है, यह एरर मैसेज उस बदलाव का भी नतीजा हो सकता है. यह एरर, सर्वर नॉट फाउंड एरर की तरह ही होती है.
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मैलिशियस कंटेट वॉर्निंग
ये आज के मॉर्डन ब्राउजर का अच्छा फीचर है, ये वॉर्निंग यूजर्स को इंटरनेट स्कैम और स्कैंडल से बचाती है. अगर किसी साइट पर जाते वक्त ये एरर मैसेज आये तो समझ लेना चाहिए कि जिस साइट पर जाना चाहते हैं वह असल में वो नहीं है जिसकी तलाश में आप हैं. कई बार इन साइट पर जाने से पासवर्ड हैक होने और संवेदनशील जानकारियों के चुराये जाने का खतरा होता है.
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सर्टिफिकेट वॉर्निंग
सर्टिफिकेट एरर वे होती हैं जब ब्राउजर साइट के एसएसएल सर्टिफिकेट वाले असली मालिक की पहचान नहीं कर पाता है. इस स्थिति में ऐसे एरर मैसेज आते हैं. अगर आपका सामना कभी किसी ऐसी एरर से हो तो विशेषज्ञ इसमें छेड़खानी न करने का सुझाव देते हैं. इस स्थिति में हो सकता है कि वेबसाइट के साथ कोई आपत्तिजनक मसला हो तो बात बढ़कर साइबर क्राइम तक पहुंच सकती है.
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हालांकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अमेरिका और यूरोपीय चुनावों में रूस के दखल जैसी बातें सामने आने के बाद रूस ने आंतरिक नियमन और नियंत्रण को और भी कड़ा कर दिया है. अब रूस में ऐसे सभी ब्लॉगर्स जिनके फॉलोअर्स की संख्या 3 हजार से भी ज्यादा है, उन्हें अपना पंजीकरण कराना अनिवर्य हो गया है. इसके साथ ही नये सर्च इंजन और न्यूज एग्रीगेटर्स ने अनरजिस्टर्ड पार्टीज के माध्यम से सामग्री लेने पर पाबंदी लगा दी है.
हेराफेरी को रोकने की कोशिश
इस स्टडी में यह भी देखा गया कि 14 देशों की सरकार ने तो इंटरनेट नियम कायदों को इसलिए कड़ा किया है ताकि जानकारी और सूचनाओं का हेरफेर न हो सके. मसलन यू्क्रेन ने रूस से जुड़ी सेवाओं को रोक दिया है. यहां तक कि देश में सोशल नेटवर्क साइट्स और सर्च इंजन में भी इन्हें बंद कर दिया गया है. फ्रीडम हाउस ने वीपीएन (वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क) पर लगायी जा रही अतिरिक्त पाबंदी पर भी चिंता व्यक्त की है. वीपीएन, सेंसरशिप के बजाय किसी साइट के इस्तेमाल की अनुमति देता है. यह सेवा फिलहाल 14 देशों में सक्रिय है. रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में भी इंटरनेट फ्रीडम का दायरा सिकुड़ा है. इसमें कहा गया है कि जिन भी पत्रकारों ने राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की आलोचना की है, उन्हें उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है.
कितने लोग ऑनलाइन हैं
इंटरनेट दुनिया के 47% लोगों तक पहुंच चुका है. मैजरिंग द इन्फॉर्मेशन सोसाइटी की रिपोर्ट कि यूरोप के 79.1% लोग इंटरनेट इस्तेमाल कर रहे हैं और एशिया के 41.6 फीसदी. देखिए किस देश के लोगों की पहुंच इंटरनेट तक सबसे ज्यादा है.