किसान आंदोलन को एक महीना पूरा होने वाला है, लेकिन किसान और सरकार दोनों अपनी अपनी बात पर अड़े हुए हैं. आंदोलन के दौरान ठंड से 30 किसानों की मौत के बाद भी नए कृषि कानूनों पर बने हुए गतिरोध का अंत नजर नहीं आ रहा है.
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दिल्ली की सीमाओं पर लगभग एक महीन से धरने पर बैठे किसानों ने आपस में मंत्रणा कर सरकार से एक बार फिर बातचीत करने का फैसला किया है. मीडिया में आई खबरों के अनुसार किसान संघों ने फैसला किया है कि वो 23 दिसंबर को राष्ट्रीय किसान दिवस के मौके पर सरकार को आधिकारिक रूप से पत्र लिखकर कहेंगे कि वो बातचीत फिर से शुरू करने के लिए तैयार हैं.
इसके पहले सरकार के मंत्रियों और किसान संघों के बीच वार्ता के कई दौर हो चुके हैं, लेकिन इनमें दोनों पक्ष किसी सहमति पर नहीं पहुंच पाए थे. सरकार ने नए कृषि कानूनों में कुछ संशोधन करने का प्रस्ताव भी दिया था लेकिन किसानों की मांग है कि तीनों कानून वापस लिए जाएं. अभी भी किसानों का कहना है कि वो कृषि में धीरे-धीरे सुधार लाने के लिए तैयार हैं बशर्ते सरकार इन कानूनों को वापस ले ले.
हालांकि इसके बावजूद गतिरोध के अंत की कोई संभावना नजर नहीं आ रही है, क्योंकि दोनों पक्ष अपनी अपनी बात पर अड़े हुए हैं. कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने मंगलवार 22 दिसंबर को पत्रकारों के एक समूह से कहा कि जब भी किसी बड़े सुधार की शुरुआत की जाती है तो शुरू में उसका मजाक उड़ाया जाता है, फिर उसका विरोध किया जाता है और अंत में उसे मान लिया जाता है. उन्होंने कहा कि देश भी इस समय ऐसी ही स्थिति से गुजर रहा है.
उनके इस बयान को इस बात का संकेत माना जा रहा है कि सरकार कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं है और किसानों को अपनी यह मांग छोड़नी ही पड़ेगी. कृषि मंत्री ने ट्वीट भी किया कि वो मंगलवार को कुछ ऐसे किसान संघों के प्रतिनिधियों से मिले जिन्होंने नए कृषि कानूनों के प्रति अपना समर्थन व्यक्त किया और सरकार से कहा कि उन्हें वापस नहीं लिया जाना चाहिए.
देखना होगा कि दोनों पक्षों के बीच बातचीत दोबारा शुरू हो पाती है या नहीं. इस बीच किसानों ने आम लोगों से अपील की है कि अगर वो उनके आंदोलन का समर्थन करते हैं तो किसान दिवस के दिन वे एक समय का भोजन त्याग कर उपवास करें.
सबसे पहले अध्यादेश के रूप में जून में लाए गए कानूनों का किसान अपने प्रांतों में विरोध कर रहे थे. लेकिन जब दिल्ली ने उनकी आवाज नहीं सुनी तो वो अपनी मांगों को लेकर दिल्ली ही आ गए. देखिए किसान आंदोलन को कैमरे की नजर से.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
आतंकवादी नहीं किसान
पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से हजारों किसान नए कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली में प्रदर्शन करने के लिए निकले लेकिन पुलिस ने उन्हें दिल्ली की सीमाओं पर ही रोक दिया. राशन-पानी ले कर आए किसानों ने वही डेरा जमाया और आंदोलन छेड़ दिया. पुलिस के डंडे, ठंडे पानी की बौछार और आंसू गैस के गोलों के अलावा किसान प्रदर्शनकारियों ने जाहिल, आढ़तियों के एजेंट और आतंकवादी होने तक के आरोपों का सामना किया.
तस्वीर: Mohsin Javed
बात चंद किसानों की नहीं
हजारों की संख्या में किसान जीन तीन नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं, वो हैं आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून, कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) कानून और कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून. इनका उद्देश्य ठेके पर खेती को बढ़ाना, भंडारण की सीमा तय करने की सरकार की शक्ति को खत्म करना और अनाज, दालों, सब्जियों के दामों को तय करने को बाजार के हवाले करना है.
तस्वीर: Mohsin Javed
आर-पार की लड़ाई
किसान सिर्फ भारी संख्या में ही नहीं आए, बल्कि महीनों का राशन साथ लेकर आए हैं. सरकार ने नए कानूनों को किसानों के लिए कल्याणकारी बताया है, लेकिन किसानों का मानना है कि इनसे सिर्फ बड़े उद्योगपतियों का फायदा होगा और छोटे और मझौले किसानों को अपने उत्पाद के सही दाम नहीं मिल पाएंगे. उनका कहना है कि इन कानूनों की वजह से कृषि उत्पादों की खरीद की व्यवस्था में छोटे और मझौले किसानों का शोषण बढ़ेगा.
तस्वीर: Mohsin Javed
पुलिस की बर्बरता का सामना
जय जवान और जय किसान का नारा लगाने वाले देश में किसान और जवान आमने सामने हैं. आंदोलन के दौरान किसानों को पुलिस की लाठियों का भी सामना करना पड़ा. कई बुजुर्ग किसान घायल हो गए और हालात कठिन होने की वजह से कुछ किसानों की मौत भी हो गई.
तस्वीर: Mohsin Javed
सर्दी में संघर्ष
सभी स्थानों पर किसान या तो खुले में या पतले शामियानों के नीचे दिन और रात बिता रहे हैं. सड़क-मार्ग से ही राजधानी आए किसान अपने ट्रैक्टरों को भी साथ लाए हैं, जो अब यहां पर उनका वाहन भी बना हुआ है, बेंच भी, बिस्तर भी और छत भी.
तस्वीर: Mohsin Javed
लंबी जद्दोजहद की तैयारी
किसान मान कर आए हैं कि केंद्र सरकार आसानी से उनकी मांगें नहीं मानेगी. इसलिए वो लंबे समय तक डेरा डालने की तैयारी करके आए हैं. धरना स्थलों पर खुद ही रोज अपना खाना पकाते हैं और खा-पी कर फिर धरने पर बैठ जाते हैं. सरकार के साथ बातचीत में भी वे अपना ही खाना लेकर जाते हैं और सरकारी खाना ठुकरा देते हैं.
तस्वीर: Seerat Chabba/DW
महिला शक्ति भी मौजूद
आंदोलन सिर्फ पुरुषों के कंधों पर ही नहीं चल रहा है. कुछ महिलाएं गांवों में खेती संभाल रही हैं तो कुछ मोर्चे पर डटी हुई हैं और पुरुषों का कंधे से कंधा मिला कर साथ दे रही हैं.
तस्वीर: Mohsin Javed
किताबों का साथ भी
धरना स्थलों पर प्रदर्शनकारियों का साथ देने, उनका हौसला बढ़ाने और उनकी सेवा करने कई लोग पहुंचे हुए हैं. कोई खाना खिला रहा है, कोई पानी पिला रहा है, कोई डॉक्टरी मदद दे रहा है तो कोई किताबें भी बांट रहा है.
तस्वीर: Mohsin Javed
मीडिया से नाराजगी
प्रदर्शनकारियों में मीडिया के एक धड़े के खिलाफ भी सख्त नाराजगी है. उनका आरोप है कि कुछ बड़े मीडिया संस्थान सिर्फ सरकार का पक्ष जनता के सामने परोस रहे हैं और सिर्फ किसानों की आलोचना कर रहे हैं.
तस्वीर: Mohsin Javed
हुक्के के बिना कैसे हो किसान आंदोलन
विशेष रूप से दिल्ली और नॉएडा की सीमा पर धरने पर बैठे पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आए किसान जरूरत जी दूसरी चीजों के साथ हुक्का भी साथ लाए हैं. सरकार के सामने पहले पलक किसानों की ना झपक जाए, इसीलिए इस लंबी लड़ाई में धैर्य और हुक्के का सहारा भी लिया जा रहा है.