सरकार की नीतियों के खिलाफ जर्मन किसानों ने किया चक्का जाम
२६ नवम्बर २०१९
दूरदराज के इलाकों से हजारों की तादाद में जर्मन किसानों ने राजधानी बर्लिन में इकट्ठे होकर विरोध प्रदर्शन किया. उनका मकसद जर्मन सरकार की कृषि नीति के खिलाफ विरोध जताना था.
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मंगलवार को अपने ट्रैक्टरों पर सवार होकर किसानों ने संसद के पास ब्रैंडेनबुर्ग गेट इलाके में यातायात रोक दिया. करीब 10,000 किसानों ने 5,000 ट्रैक्टरों पर सवार होकर शहर में प्रवेश किया. इनमें से 1,800 गाड़ियां भोर से पहले ही पड़ोसी ब्रैंडेनबुर्ग राज्य से बर्लिन पहुंच चुकी थीं. किसानों ने दावा किया कि सरकार ने पर्यावरण संबंधी जो नई सीमाएं तय की हैं वे बेहद संकीर्ण हैं और उनके कारण घरेलू किसानों की उपज का विदेशी आयात के सामने खड़ा होना असंभव हो जाएगा.
किसानों के लाए गए एक बैनर पर लिखा था, "7.5 अरब लोग; 20 करोड़ तो शिकार कर अपना पेट भर सकते हैं लेकिन बाकी सब किसानों पर निर्भर हैं.'" वहीं एक दूसरे बैनर पर सीधे सादे तरीके से बताया गया था कि "किसान नहीं होगा तो खाना भी नहीं होगा.'' और ये भी कि "आपका पेट हम भरते हैं.''
इतनी सारी गाड़ियों और लोगों के कारण बर्लिन की सड़कों पर यातायात रेंग रेंग कर चला. ब्रैंडेनबुर्ग की पुलिस ने इस दौरान हुई दो कार दुर्घटनाओं के बारे में बताया है. शहर की सड़कों पर ये दोनों कारें ट्रैक्टरों के काफिले से आगे निकल कर जाने की कोशिश करते हुए दुर्घटना की शिकार हुईं.
जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल की कैबिनेट ने सितंबर में कृषि से जुड़े कई निर्णय लिए थे जिनमें कीड़ों को बचाने के लिए खेतों में कीटनाशकों और हर्बीसाइड्स के इस्तेमाल की सीमा कड़ी करना और भूजल को बचाने के लिए खेतों में उर्वरक के इस्तेमाल की भी सीमा कम कर दी थी.
जर्मन पर्यावरण मंत्री स्वेन्या शुल्जे ने कहा है कि वे किसानों से इस बारे में बात करने को तैयार हैं. उन्होंने कहा कि उनकी सरकार किसानों की बात सुनेगी लेकिन किसानों को भी पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अपनी ओर से सहयोग देना होगा. शुल्जे ने कहा, "किसानों का समाधान का हिस्सा बनने की जरूरत है.'' उन्होंने ध्यान दिलाया कि उर्वरकों के ज्यादा इस्तेमाल के कारण वे पीने के पानी में पहुंच रहे हैं और कीटों की संख्या में भारी कमी देखने को मिल रही है.
वहीं किसान नेताओं का कहना है कि सरकार को उनके साथ और पर्यावरण संरक्षण समूहों के साथ मिल कर काम करना चाहिए, जिससे किसानों की उपज भी बरकरार रहे और पर्यावरण को नुकसान भी ना हो. अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण समूह ग्रीनपीस ने दोनों ही पक्षों की आलोचना करते हुए कहा है कि कृषि मंत्री यूलिया क्लोकनर सारा बोझ उपभोक्ता पर डालने की कोशिश कर रही थीं जब उन्होंने कहा कि लोगों को खाने के ऊंचे दाम देने की आदत डालनी चाहिए. ग्रीनपीस की कृषि विशेषज्ञ स्टेफनी टूव ने कहा, "किसानों को साफ और भरोसेमंद दिशा निर्देशों की जरूरत है, तभी वे भी इस तरह काम कर पाएंगे जिससे पानी, जानवर और जलवायु सब सुरक्षित रहें.''
जर्मनी के हजारों किसान बॉन शहर में अपने ट्रैक्टर के साथ विरोध प्रदर्शन करने पहुंचे हैं. ये किसान सरकार की नीतियों के खिलाफ विरोध जताने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं.
तस्वीर: DW/N. Ranjan
सबसे बड़ा प्रदर्शन बॉन में
यह प्रदर्शन जर्मनी के दूसरे शहरों में भी हो रहा है लेकिन सबसे बड़ी संख्या में किसान बॉन शहर में आए हैं. अनुमान है कि सुबह 10 बजे तक कम से कम 10 हजार किसान और 800 से ज्यादा ट्रैक्टर विरोध करने शहर में दाखिल हुए हैं.
तस्वीर: DW/N. Ranjan
नाइट्रेट सीमित करने का विरोध
जर्मन सरकार ने प्रकृति के संरक्षण के लिए खेतों में नाइट्रेट का प्रयोग सीमित करने का फैसला किया है. किसान इसकी वजह से नाराज हैं और विरोध प्रदर्शन के जरिए अपनी नाराजगी जता रहे हैं.
तस्वीर: DW/N. Ranjan
किसानों की जनसभा
किसानों ने बॉन शहर में मौजूद कृषि मंत्रालय के सामने ट्रैक्टर चला कर विरोध जताया और फिर शहर के मुख्य केंद्र में एक जनसभा में पहुंचे.
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सड़कों पर ट्रैफिक जाम
प्रदर्शन के कारण शहर में ट्रैफिक जाम हो गया है, हर तरफ सड़कों से लेकर मैदानों तक में बड़े बड़े ट्रैक्टर ही खड़े दिखाई दे रहे है.
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पुलिस की भारी तैनाती
बॉन शहर में भारी संख्या में पुलिस बल को भी तैनात किया गया है, ताकि शहर की व्यवस्था में कोई बड़ी बाधा ना आए और अप्रिय घटना को रोका जा सके.
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कृषि नीति को बदलना जरूरी
जर्मनी की कृषि मंत्री यूलिया क्लोएकनर ने किसानों से सहानुभूति जताई लेकिन उनका कहना है कि कृषि नीति को बदलना अब जरूरी हो गया है और इसे रोका नहीं जा सकता.
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टिकाऊ खेती को उपाय
सरकार की नीति के केंद्र में यह तय करना है कि खेतों में कितना उर्वरक और खाद डाला जाए जिससे कि भूजल और नदियों के पानी पर इसका असर ना हो.
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पर्यावरण की रक्षा भी जरूरी
पर्यावरण मंत्री स्वेन्या शुल्त्स ने कीटों की रक्षा करने की जरूरत की ओर ध्यान दिलाया है. उनका यह भी कहना है कि खेतों में कीटों के अलावा चिड़ियों की संख्या भी घट रही है.
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"जरूरत से ज्यादा नियम से परेशानी"
किसानों के संगठन राइनलैंड एग्रीकल्चरल एसोसिएशन के प्रमुख बर्नहार्ड कोनत्सेन का कहना है, "आधिकारिक नियमों की जो बाढ़ आ गई है उसका अंत होना चाहिए."
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मर्कोसुर का विरोध
किसान यूरोपीय संघ और दक्षिण अफ्रीकी कारोबार संगठन के बीच हुए मर्कोसुर मुक्त व्यापार समझौते को बदलने की मांग कर रहे हैं. इसमें खाद और उर्वरकों के इस्तेमाल से जुड़े नियम बनाये गए हैं.
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खेती नहीं तो खाना नहीं
किसानों का मानना है कि नए नियमों की वजह से उन किसानों की मुश्किलें बढ़ रही है जिनके लिए खेती पारिवारिक व्यवसाय है. उनका कहना है कि अगर खेती को बचाया नहीं गया तो खाने का संकट होगा.
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क्या जरूरी है और क्या हासिल हो सकता है
किसानों का कहना है कि टिकाऊ खेती तक पहुंचने के लिए बदलाव की एक संरचना होनी चाहिए और आपसी सहमति से तय होना चाहिए कि क्या जरूरी है और क्या हासिल किया जा सकता है.