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सरहदी विवादों से जूझता शेंगेन

३१ मई २०१३

शेंगेन समझौते के बाद यूरोप के देशों की सीमाएं खोल दी गई हैं, लेकिन शरणार्थियों की भीड़ को रोकने के लिए कई देश अपनी सीमाओं पर नियंत्रण बढ़ाने की मांग कर रहे हैं. ईयू ने सीमा नियंत्रण को दोबारा शुरू करने का फैसला किया है.

तस्वीर: PETER KOHALMI/AFP/Getty Images

यूरोपीय संघ के देशों की आपसी सीमा को लेकर विवाद कितना गहरा है, यह हाल ही में हुई एक घटना से पता चलता है. कुछ दिन पहले इटली की सरकार ने उत्तर अफ्रीका से आए शरणार्थियों को नकद इनाम देकर उन्हें सलाह दी कि वह उत्तरी यूरोप यानी जर्मनी का रुख करें. जर्मनी इस बात से बहुत नाराज हुआ और मीडिया के मुताबिक जर्मन शहर हैम्बर्ग में ऐसे करीब 300 शरणार्थी पहुंचे थे. इटली ने अपनी यह स्कीम वापस ले ली है और कहा है कि उसने कभी भी शरणार्थियों को जर्मनी जाने का सुझाव नहीं दिया था. इटली कुछ शरणार्थी कैंपों को बंद करने की ताक में है और जर्मन सरकार ने पहले से ही अपनी एजेंसियों को चेतावनी दे दी थी कि जर्मनी में शरणार्थियों की भीड़ बढ़ सकती है.

यूरोपीय सांसद स्का केलरतस्वीर: ska-keller.de

शरणार्थियों की समस्या ऐसी हो गई है कि उसके बहाने शेंगेन देश अपनी सीमाओं पर नियंत्रण कड़ी करना चाहते हैं. इससे पहले पिछले साल पोलैंड में यूरो कप चैंपियनशिप के लिए सीमाओं पर निगरानी बढ़ाई गई थी. लेकिन नए समझौते के मुताबिक सदस्य देश एक बार में छह महीने तक सीमा सुरक्षा कड़ी कर सकेंगे. यह ज्यादा से ज्यादा दो साल के लिए किया जा सकेगा. आयरलैंड के न्याय मंत्री ऐलन शैटर का कहना है कि ऐसा करने से शेंगेन समझौते को कार्यान्वित करने पर निगरानी रखी जा सकेगी और यूरोपीय संघ के देशों में स्थिरता और सुरक्षा को बढ़ावा मिलेगा.

हालांकि यूरोपीय संघ में कुछ आलोचकों की चिंता यह है कि इससे शेंगेन समझौता अर्थहीन हो जाएगा. यूरोपीय संसद में जर्मन सदस्य स्का केलर ने डीडब्ल्यू को बताया कि यह कदम शेंगेन का अंत तो नहीं लेकिन खतरा तो है कि इस फैसले से शेंगेन समझौता सीमित हो जाएगा. यूरोपीय संघ के भीतर यात्रा करने की आजादी भी धीरे धीरे खत्म हो सकती है.

शेंगेन समझौते में शामिल देश

हालांकि शेंगेन देशों को अपनी सीमाओं के नियंत्रण की आजादी देने से यूरोपीय संसद में फंसे अहम फैसले अब लिए जा सकेंगे. अरब बसंत और ग्रीस में आर्थिक संकट के बाद यूरोपीय संघ के देशों पर आप्रवासियों का दबाव बढ़ा है. स्का केलर कहती हैं, "विवाद तब बढ़ा जब अरब बसंत के बात शरणार्थी इटली आए. वहां उन्हें कागजात दिए गए और फिर वे फ्रांस चले गए. उस वक्त इस बारे में बहस हुई कि क्या शेंगेन समझौते में बदलाव की जरूरत है. यूरोपीय आयोग ने इससे पहले तय किया था कि यूरोपीय देशों की सीमाएं सार्वजनिक यानी ईयू की संपत्ति हैं और अगर किसी देश की सीमा पर नियंत्रण की जरूरत है तो यह फैसला यूरोपीय स्तर पर होना चाहिए."

शरणार्थियों के आने से ग्रीस और माल्टा जैसे छोटे देशों को जगह की कमी की वजह से काफी परेशानी होती है और पूरे यूरोपीय संघ में इसे लेकर विवाद फैलता है. लेकिन जैसा कि स्का केलर कहती हैं, "यूरोप में दुनिया भर के केवल नौ प्रतिशत शरणार्थी आते हैं. ज्यादातर शरणार्थी पाकिस्तान में या सीरिया में हैं. यह कहना कि यूरोप में दुनिया के सबसे ज्यादा शरणार्थी आते हैं, गलत होगा." जहां तक इटली और जर्मनी के बीच शरणार्थियों को लेकर ताजा विवाद की बात है, स्का केलर कहती हैं कि यूरोपीय स्तर पर शरणार्थियों को लेकर कोई समान नीति नहीं है.

रिपोर्ट: मानसी गोपालकृष्णन/फ्रीडेरिके विंटगेंस(डीपीए)

संपादन: महेश झा

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