हिंदी सिनेमा की पहली महिला नृत्य-निर्देशिका सरोज खान का शुक्रवार सुबह मुंबई में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. वे 71 वर्ष की थीं. खान पिछले कुछ दिनों से बीमार थीं और मुंबई के गुरु नानक अस्पताल में भर्ती थीं.
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हिंदी फिल्म जगत में उनके योगदान के लिए उनका नाम पहले से ही बॉलीवुड के दिग्गजों में शुमार है. 1948 में जन्मी खान ने हिंदी फिल्मों में बतौर बाल कलाकार 1950 के दशक में कदम रखा और अगले सात दशकों तक वे न सिर्फ फिल्मों से जुड़ी रहीं, बल्कि अपने नृत्य-कौशल के जरिए एक ऐसा मकाम बनाया जहां तक कोई भी दूसरा नृत्य-निर्देशक कभी नहीं पहुंच सका.
वैजयंती माला से लेकर श्रीदेवी और माधुरी दीक्षित तक, और फिर करीना कपूर से लेकर अदिति राव हैदरी तक, खान ने बॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्रियों की लगभग चार पीढ़ियों के साथ काम किया. सबसे बेहतरीन नृत्य-निर्देशन के लिए कई बार फिल्मफेयर पुरस्कार जीतने के अलावा, वे तीन बार राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाली एकमात्र नृत्य-निर्देशक भी बनीं. उन्हें पूरे फिल्म जगत में लोग प्यार और आदर से 'मास्टरजी' कह कर बुलाते थे और फिल्मी दुनिया में इतनी लंबी पारी खेलने की वजह से उन्हें फिल्म जगत की जीती-जागती लाइब्रेरी भी माना जाता था.
जन्म के बाद उनके माता-पिता ने उन्हें निर्मला नाम दिया था, लेकिन फिल्म उद्योग में कदम रखने के लिए उनका नाम बदल कर सरोज कर दिया गया. फिल्म इतिहासकारों के अनुसार, उन्होंने अपने तीसरे जन्मदिन के आस पास बॉलीवुड में कदम रखा, 1950 के दशक की मशहूर अदाकारा श्यामा के परदे पर बाल रूप में. बाल कलाकार से वे पार्श्व डांसर बनीं और कई मशहूर फिल्मों का हिस्सा बनीं. उन पर बनी डॉक्यूमेंटरी "द सरोज खान स्टोरी" में उन्होंने खुद बताया कि 1958 में बिमल रॉय द्वारा निर्देशित फिल्म "मधुमती" के एक गीत में वे अभिनेत्री वैजयंती माला के पीछे पार्श्व डांसरों की टोली में थीं.
1958 की ही फिल्म हावड़ा ब्रिज के यादगार गीत "आइए मेहरबां" में उन्हें पार्श्व डांसर के रूप में देखा जा सकता है. इसके बाद वे उस समय के जाने माने नृत्य-निर्देशक सोहनलाल की सहायक बन गईं और फिर धीरे धीरे खुद नृत्य-निर्देशिका भी बन गईं. बताया जाता है कि उन्होंने अपने करियर में 2000 से भी ज्यादा गीतों का नृत्य-निर्देशन दिया. उनकी आखिर फिल्म 2019 में परदे पर आई "कलंक" थी. 71 वर्ष की उम्र में भी वे सक्रिय थीं.
उनके देहांत पर फिल्म जगत की कई हस्तियों ने सोशल मीडिया पर उन्हें श्रद्धांजलि दी. माधुरी दीक्षित ने ट्विट्टर पर लिखा, "मैं अपनी दोस्त और गुरु सरोज खान के निधन से बेहद दुखी महसूस कर रहीं हूं. उन्होंने जिस तरह से मुझे नृत्य में मेरे पूरे सामर्थ्य को हासिल करने में मदद की, उसके लिए मैं हमेशा उनकी आभारी रहूंगी".
माधुरी ने 1988 की सुपरहिट फिल्म "तेजाब" के लोकप्रिय गीत "एक, दो, तीन" में जिस डांस से फिल्म जगत में पहली बार अपना सिक्का जमाया था, उसका नृत्य-निर्देशन सरोज खान ने ही किया था. 1992 की सुपरहिट फिल्म "बेटा" के जिस गीत "धक-धक करने लगा" में उनके डांस के लिए माधुरी को आज भी "धक-धक गर्ल" कहा जाता है, उसका नृत्य-निर्देशन भी सरोज खान ने ही किया था. "कलंक" के लिए नृत्य-निर्देशित किया हुआ उनका आखिरी गीत "तबाह हो गए" भी माधुरी पर ही फिल्माया गया था.
हिंदी सिनेमा में गीतों की समृद्ध परंपरा को देखते हुए किसी एक गाने को सबसे महान कहना जरा मुश्किल है. लेकिन जब हमने अपने पाठकों से इस बारे में पूछा तो देखिए हमें क्या क्या जवाब मिले.
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जब प्यार किया तो डरना क्या.. (मुगले आजम, 1960)
मुगले आजम भारतीय सिनेमा में मील के पत्थर की हैसियत रखती है. आज भी न सिर्फ यह गीत बड़े चाव से सुना जाता है, बल्कि इश्क-मोहब्बत के जिक्र पर जुमले के तौर पर इसका इस्तेमाल होता है.
तीसरी कसम फिल्म का यह गीत जीवन के दर्शन को बेहद सादे और प्रभावी तरीके से सामने रखता है. पर्दे पर राज कपूर और वहीदा रहमान के अभिनय और मुकेश की आवाज ने गजब का जादू बिखेरा.
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जहां डाल डाल पर सोने की चिड़िया.. (सिकंदर ए आजम, 1965)
1965 में बनी फिल्म सिकंदर ए आजम का यह गीत सबसे लोकप्रिय देशभक्ति गीतों में शुमार किया जाता है. स्कूल-कॉलेज के कार्यक्रमों से लेकर शादियों में आज तक यह गीत सुनाई देता है.
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ये देश है वीर जवानों का.. नया दौर (1957)
पर्दे पर दिलीप कुमार और अजीत ने देशभक्ति के इस गीत को अमर बना दिया. मोहम्मद रफी के अलावा इस गीत में दूसरी आवाज बलबीर की है. साहिर लुधयानवी के इस गीत को ओपी नैय्यर ने अपने खनकते संगीत से सजाया.
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ऐसे मेरे वतन के लोगों...
देशभक्ति का यह गीत किसी फिल्म का हिस्सा नहीं है. बताते हैं कि 1962 की भारत-चीन लड़ाई में मारे गये भारतीय सैनिकों को समर्पित इस गीत को सुनने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की आंखें नम हो गयी थीं.
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कर चले हम फिदा जानो तन साथियो.. (हकीकत, 1964)
भारत-चीन की जंग पर बनी फिल्म हकीकत का यह गीत युद्धभूमि के विकट हालात और सैनिकों के जीवट को पेश करता है. कैफी आजमी का लिखा और मदन मोहन के संगीत से सजा यह गीत आज भी बहुत लोकप्रिय है.
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मेरे देश धरती, सोना उगले उगले.. (उपकार, 1967)
देशभक्ति गीतों का जिक्र इस गीत के बिना पूरा नहीं हो सकता. उपकार न सिर्फ बॉक्स ऑफिस पर सुपर हिट रही, बल्कि इसने मनोज कुमार को नया नाम दिया- मिस्टर भारत. इसके बाद उन्होंने कई देशभक्ति फिल्में बनायीं.
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मेरे ख्वाबों में जो आए.. (दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे, 1995)
आदित्य चोपड़ा की इस फिल्म ने हिंदी सिनेमा में सफलता के नये कीर्तिमान बनाये. फिल्म में शाहरुख काजोल की जोड़ी दर्शकों को बेहद पसंद आयी. इसके गानों ने भी खूब धूम मचायी.
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संदेसे आते हैं.. (बॉर्डर, 1997)
जेपी दत्ता के निर्देशन में बनी इस फिल्म में भारत और पाकिस्तान के बीच 1971 में लोंगेवाला में हुई लड़ाई को पर्दे पर उतारा गया. फिल्म के साथ साथ इसका गीत 'संदेसे आते हैं ' बहुत लोकप्रिय हुआ, जिसमें मोर्चे पर तैनात सैनिक घर से आयी चिट्ठियों को बयान करते हैं.
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बाबुल की दुआएं लेती जा.. (नीलकमल, 1968)
शादी के बाद अपनी बेटी को विदा करते पिता के भावों से लबरेज इस गीत को हिंदी सिनेमा के सबसे भावुक गीतों में एक माना जा सकता है. मोहम्मद रफी की आवाज के भावों को पर पर्दे पर बलराज साहनी ने क्या खूबी से पेश किया है.
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कहीं दूर जब दिन ढल जाए.. (आनंद 1971)
आनंद फिल्म का यह गीत आज भी जब बजता है, तो ठहर कर सुनने को मन करता है. कैंसर से पीड़ित जो नायक सबके साथ हंसता गाता है, उसकी तन्हाई और जज्बात को बड़ी खूबसूरती से यह गीत बयान करता है. यह तस्वीर 2012 में राजेश खन्ना की अंतिम यात्रा की है.
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आने वाला पल जाने वाला है.. (गोलमाल, 1979)
गोलमाल फिल्म अपनी कॉमेडी के लिए जितनी जानी जाती है, उतना ही मशहूर इसका यह गीत भी है. किशोर कुमार की हर दिल अजीज अवाज ने इस रोमांटिक गाने को अमर कर दिया. फिल्म में अमोल पालेकर ने बहुत सहज अभिनय किया.
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रमैया वस्ता वइया.. (श्री 420, 1955)
राज कपूर की इस फिल्म का गाना मेरा जूता है जापानी.. बहुत मशहूर है, लेकिन रमैया वस्ता वइया फिर भी बहुत सारे लोगों को पंसद है.
हम इंतजार करेंगे तेरा कयामत तक.. (बहु बेगम, 1966)
मुस्लिम सामाजिक पृष्ठभूमि पर बनी इस फिल्म में प्रदीप कुमार, मीना कुमारी और अशोक कुमार ने काम किया. इस फिल्म के 'हम इंतजार करेंगे तेरा कयामत तक' गीत को हिंदी सिनेमा के क्लासिक गीतों में से एक माना जाता है.
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कस्मे वादा प्यार वफा सब.. (उपकार, 1967)
मन्ना डे के गाये इस गीत को सहाबहार अभिनेता प्राण पर फिल्माया गया. रिश्तों और नातों की कई तल्ख हकीकतों को बयान करने वाले इस गीत को इंदीवर ने लिखा था. 2010 की इस तस्वीर में प्राण देवानंद और मनोज कुमार के साथ दिख रहे हैं.
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औलाद वालों फूलो फलो.. (एक फूल दो माली, 1969)
बॉक्स ऑफिस पर बेहद हिट रही एक फूल दो माली हॉलीवुड की क्लासिक फिल्म 'फैनी' (1961) का रिमेक थी. रवि के संगीत से सजे फिल्म सभी गीत भी बहुत लोकप्रिय हुए.
हां जी, सब गोलमाल है. गोलमाल न सिर्फ अपने जमाने में बेहद कामयाब रही, बल्कि अब तो बॉलीवुड में इस नाम से कई और फिल्में बन गयी हैं और अजय देवगन ने इनमें मुख्य भूमिका निभाई है.
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चिठ्ठी न कोई सन्देश.. (दुश्मन 1998)
जगजीत सिंह की आवाज में यह गीत अपनों से बिछुड़ने के दर्द को बयान करता है. 1998 में आयी फिल्म दुश्मन में न सिर्फ नायिका काजोल ने बल्कि खलनायक के रूप में आशुतोष राणा ने भी कमाल का अभिनय किया.
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गली में आज चांद निकला.. (जख्म, 1998)
अल्का याज्ञनिक की आवाज में यह गीत आज भी बेहद पसंद किया जाता है. मुंबई दंगों की पृष्ठभूमि में इस फिल्म की कहानी में बच्चे को लेकर पति और पत्नी के द्वंद्व दिखाया गया है.
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आ ले के चलूं तुझे.. (दूर गगन की छांव में, 1964)
किशोर कुमार के गाये इस गीत को उन्हीं पर फिल्माया भी गया है. इस फिल्म के निर्माता और निर्देशक भी किशोर कुमार ही थे. यही नहीं, इस फिल्म में बाल कलाकार के रूप किशोर कुमार के बेटे अमित कुमार ने भी काम किया.
तस्वीर: Pierre Adenis, Deutschland, Edition Lammerhuber (Ausschnitt)
तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा नहीं.. (आंधी, 1975)
संजीव कुमार और सुचित्रा सेन स्टारर आंधी फिल्म को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की जिंदगी से प्रेरित बताया गया. हालांकि इसके पटकथा लेखक गुलजार इससे इनकार करते हैं. बहरहाल, इसका यह गीत आज भी बहुत सुना जाता है.
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तुम आ गये हो तो तू नूर आ गया है (आंधी, 1975)
आंधी का यह गीत भी बहुत लोकप्रिय है. संजीव कुमार और सुचित्रा सेन पर फिल्माए गये इस गीत को हिंदी सिनेमा के सबसे रोमांटिक नगमों में से एक माना जाता है.
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जिंदा रहने के लिए तेरी कसम.. (सिर्फ तुम, 1999)
अमीन साबरी, फरीद साबरी और जसपिंदर नरुला की आवाज में यह गीत बहुत लोकप्रिय हुआ था. 1999 में आयी संजय कपूर स्टारर सिर्फ तुम बॉक्स ऑफिस पर खासी सफल रही.
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भीगे होंठ तेरे प्यार दिल मेरा.. (मर्डर, 2004)
कुणाल गांजावाला की आवाज में इस मादक गीत को खूब पसंद किया. इस गीत को 'सीरियल किसर' कहे जाने वाले इमरान हाश्मी और मल्लिका सहरावत पर फिल्माया गया.
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पब्लिक है सब जानती है.. (रोटी, 1974)
राजेश खन्ना ने एक के बाद एक कई हिट फिल्में दीं जिससे उन्हें हिंदी फिल्मों के पहले सुपरस्टार का दर्जा मिला. उनकी फिल्म रोटी भी बहुत कामयाब रही. इसका यह गाना पब्लिक है सब जानती है.. एक जुमला बन गया है.