भारत की राजधानी दिल्ली में हर साल बरसात के खत्म होने के साथ ही प्रदूषण का स्तर बढ़ना शुरू हो जाता है. इस बार भी प्रदूषण के संकट के गहराने की शुरुआत हो चुकी है.
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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को सितम्बर के महीने में अपने शहर में आसमान की ओर देखकर इतनी खुशी महसूस की उन्होंने कई बार सोशल मीडिया पर ऐसी तस्वीरें साझा कीं जिनमें आसमान साफ दिखाई पड़ रहा था. उन्होंने लिखा भी कि कई सालों बाद दिल्ली में इस तरह का साफ और नीला आसमान दिखाई दे रहा है. उनका आकलन सही था. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, वायु की गुणवत्ता के लिहाज से, बीता सितम्बर पिछले 9 सालों में दिल्ली का सबसे साफ सितम्बर था. यह दिल्लीवालों के लिए बड़ी बात थी क्योंकि तीन करोड़ की आबादी वाला ये महानगर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में शुमार हो चुका है. 2018 में दिल्ली की हवा की औसत गुणवत्ता का स्तर, जिसे आदर्श रूप से 50 के नीचे होना चाहिए, 112 था. दिसंबर में ये स्तर 450 तक पहुंच गया था.
इस साल सितम्बर में ये स्तर 98 दर्ज किया गया था, जो अच्छे स्तर की श्रेणी में नहीं, बल्कि संतोषजनक श्रेणी में है. लेकिन अक्तूबर का महीना बुरी खबर ले कर आया है. रविवार को शहर में वायु गुणवत्ता का स्तर 270 था, जो खराब श्रेणी में आता है. सोमवार की सुबह शहर के कई इलाकों में प्रदूषण का कोहरा भी देखा गया और वायु गुणवत्ता के स्तर को कई इलाकों में 235 से ऊपर ही पाया गया. मुख्यमंत्री केजरीवाल भी ऐलान कर चुके हैं की प्रदूषण का स्तर गिरना शुरू हो चुका है और दिल्लीवालों को हर साल की तरह इस साल भी एक कठिन समय से गुजरने के लिए तैयार हो जाना चाहिए.
वायु गुणवत्ता पर काम करने वाली केंद्र सरकार की संस्था सफर के अनुसार यातायात के धुंए के अलावा बारिश का न होना, पड़ोसी राज्यों से जलती हुई पराली के धुंए का आना, प्रदूषकों को उड़ा ले जाने वाली हवा की गति का कम होना और हवा बहने की दिशा का बदल जाना प्रदूषण के सबसे बड़े कारण हैं. सफर का पूर्वानुमान है कि प्राकृतिक कारणों से अक्तूबर के चौथै सप्ताह से वायु गुणवत्ता का स्तर और भी गिरना शुरू हो जाएगा और अगर पराली के धुंए और दिवाली में होने वाली आतिशबाजी को नियंत्रित नहीं किया गया तो यह स्तर और भी गिरेगा.
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की अनुमिता रॉयचौधुरी प्रदूषण के इस बढे हुए स्तर के लिए वाहनों के धुंए, भवन निर्माण से उड़ने वाली धूल और औद्योगिक प्रदूषण को सबसे ज्यादा जिम्मेदार मानती हैं. उनका जोर इस बात पर है कि मौसम में हुए बदलाव का हम कुछ नहीं कर सकते और पराली का धुंआ सिर्फ एक या दो महीने की घटना है जबकि बाकी स्रोतों से फैलने वाला प्रदूषण सालों भर रहता है. अनुमिता रॉयचौधुरी कहती हैं कि देखना ये है कि आने वाले दिनों में हम अपनी तरफ से प्रदूषण को गहराने से कितना रोक पाते हैं.
दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में मंगलवार से सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान लागू हो जाएगा जिसके तहत स्थिति के अनुसार अलग अलग उठाए जाने वाले जाने वाले कदम हैं. इनमें शामिल हैं पटाखे जलाने पर रोक, कूड़ा जलाने पर दंड, पार्किंग शुल्क में तीन से चार गुना वृद्धि, डीजल जनरेटर के उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध, निर्माण कार्य पर भी प्रतिबंध, दिल्ली में ट्रकों के प्रवेश पर रोक और निजी यातायात के लिए सम-विषम योजना का लागू होना. दिल्ली सरकार पहले ही घोषणा कर चुकी है कि 4 नवम्बर से सम-विषम योजना भी लागू हो जाएगी और इस बार पिछले साल से सबक लेते हुए योजना के पालन में न्यूनतम छूट दी जाएगी.
दुनिया भर में शहरीकरण को बहुत सारी समस्याओं का समाधान माना जा रहा है. भारत भी स्मार्ट सिटी की परियोजना पर जोर दे रहा है. हम आपको बता रहे हैं कि शहर का मतलब क्या है और उन्हें किस तरह आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है.
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बढ़ती शहरी आबादी
शहरों में रहने वाले लोगों की आबादी लगातार बढ़ रही है. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 2050 तक विश्व की दो तिहाई आबादी शहरों में रहेगी. शहरों को किफायती मकान, पानी, नौकरी, स्कूल, ट्रांसपोर्ट और स्वास्थ्य सेवाओं की मांग पूरी करनी होगी.
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शहर में स्लम
बढ़ते शहरीकरण का असर यह भी हुआ है कि शहरों में स्लम बढ़े हैं. केप टाउन का कायलित्सा इसकी मिसाल है. एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में लाखों लोग शहर के ऐसे हिस्सों में रहते हैं जहां न तो साफ पानी है और न ही शौचालय और नौकरी.
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ग्रीन इमारतें
शहरीकरण से भीड़ बढ़ सकती है लेकिन वह नए मौके भी उपलब्ध करा सकता है. अमेरिका में लॉस एंजेलिस के पास सैंटा मोनिका में कमजोर वर्ग के लोगों के लिए मकानों की कमी दूर करने के प्रयासों के तहत सोलर पैनल वाले पर्यावरण सम्मत घर बनाए गए.
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साफ पानी
परंपरागत रूप से शहर नदियों के किनारे बनाए जाते हैं ताकि लोगों को साफ पानी मिल सके. लेकिन बढ़ती आबादी को सस्ते में पानी मुहैया कराना मुश्किल होता जा रहा है. भारत के कई शहर नियमित तौर पर पानी की भयानक किल्लत का सामना कर रहे हैं. हाल में चेन्नई का सूखा बड़ा उदाहरण है.
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शहरी खेती
विकासशील देशों में शहरीकरण का दबाव संसाधनों पर पड़ रहा है. देहातों से शहर रहने जाने वाले गरीब लोगों को खाना और दूसरी जरूरी चीजों के लिए मशक्कत करनी पड़ती है. कंपाला में छोटी शहरी जमीन पर खेती से ऐसे लोगों की मदद हो रही है.
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साइकिल की सवारी
शहरों में काम पर या स्कूल जाने के लिए अच्छा ट्रांसपोर्ट सिस्टम जरूरी है. लेकिन आबादी बढ़ने से सड़कों पर भीड़ भी बढ़ेगी और ट्रैफिक जाम की समस्या भी पैदा होगी. कार्बन फ्री होने की कोशिश कर रहे कोपेनहेगन ने साइकिल के रास्ते बनाए हैं.
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बोगोटा की बसें
कोलंबिया की राजधानी बोगोटा ने ट्रैफिक जाम की समस्या सुलझाने के लिए रैपिड ट्रांजिट सिस्टम का सहारा लिया है. 2000 में शुरू हुए सिस्टम के तहत हर रोज 20 लाख लोग बसों का इस्तेमाल करते हैं. शह अपनी डीजल बसों की जगह इलेक्ट्रिक बस चलाएगा.
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कचरे की समस्या
हर शहर की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है कि कचरे का निपटारा. स्वीडन के शहर कचरे को जलाकर बिजली पैदा करते हैं. सिर्फ एक प्रतिशत कचरा जमीन के नीचे जाता है. सैन फ्रांसिस्को ने प्लास्टिक बैग पर रोक लगा दी है. वह 2020 तक कचरामुक्त हो जाएगा.
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सांस लेने में दिक्कत
शहरों में सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण होता है, लेकिन साफ और सुरक्षित वातावरण शहरों को रहने लायक बनाने के लिए जरूरी है. स्मॉग के लिए कुख्यात मेक्सिको सिटी को इस साल उसे गाड़ियों पर रोक लगानी पड़ी और लोगों को घर में रहने को कहना पड़ा.
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गाड़ी पर रोक
प्रदूषण का सामना करने वाले दिल्ली शहर ने भी 2016 में इवन ऑड का परीक्षण किया. एक दिन इवन तो एक दिन ऑड गाड़ियां सड़कों नहीं उतरीं. मेक्सिको सिटी ने शहर के आस पास फिर से जंगल लगाने और ग्रीस ट्रांसपोर्ट का भी सहारा लिया है. 2019 में फिर दिल्ली में ऑड ईवन लागू होगा.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/H.Tyagi
स्मॉग सोखने वाली दीवार
इस साल मेक्सिको सिटी ने अपनी हॉय नो सिर्कुला पहल फिर से दुहराई जिसका मतलब है आज ड्राइव न करें. इसमें कार के मालिकों पर हफ्ते में एक दिन कार चलाने की रोक होती है. इसके अलावा अस्पताल की ये दीवार ऐसे मैटेरीयल से बनी है जो स्मॉग सोखती है.
तस्वीर: Alejandro Cartagena
हाथ में ताकत
शहर ग्रीन हाउस गैसों का 70 प्रतिशत उत्सर्जन करते हैं. कोपेनहेगन, वेंकूवर और माल्मो जैसे शहरों ने इसे कम करने का जिम्मा लिया है. दक्षिण जर्मन शहर फ्राइबुर्ग ने इसके लिए सौर ऊर्जा, ग्रीन ट्रांसपोर्ट और रिसाइक्लिंग में निवेश बढ़ाया है.
तस्वीर: Stadt Freiburg im Breisgau
कंक्रीट का जंगल
हरे भरे इलाके शहरों का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं. यहां लोग आराम का समय बिताते हैं और यह कंक्रीट के शहर की गर्मी भी घटाता है. एशिया के ग्रीन शहरों में नंबर एक सिंगापुर अत्यंत घना बसा द्वीप है लेकिन यहां 50 प्रतिशत इलाका हरा भरा है.