नेपाली पर्वतारोहियों ने किया के2 फतह
२६ जनवरी २०२१नेपाली पर्वतारोहियों की टीम ने जनवरी के मध्य में दुनिया की दूसरी सबसे ऊंची पर्वत चोटी के लिए चढ़ाई की शुरूआत की थी. यह 8,611 मीटर ऊंची है और दुनिया की सबसे खतरनाक चढ़ाई मानी जाती है. टीम के काठमांडू पहुंचने पर बैंड ने देशभक्ति गीत गाए और शुभचिंतकों ने फूल बरसाए. इस मौके पर लोग खुशी में राष्ट्रीय झंडा लहरा रहे थे. चढ़ाई में शामिल मिंगमा ग्यालजे ने एएफपी से कहा, "यह सिर्फ हमारी सफलता नहीं है, यह सभी नेपालियों की उपलब्धि है, ताकि आनेवाली पीढ़ी, नेपाल के पर्वतारोहियों की उपलब्धियों पर गर्व कर सके.” ग्यालजे सहित कुल 10 पर्वतारोही इस अभियान में शामिल हुए.
कामि रिता शेरपा के नाम 24 बार एवरेस्ट पर पहुंचने का रिकॉर्ड दर्ज है. उन्होंने कहा कि इस उपलब्धि का इंतजार उन्हें वर्षों से रहा है. उन्होंने एएफपी से कहा, "पश्चिम से आनेवाले पर्वतारोहियों ने शेरपा की मदद के बगैर रिकॉर्ड नहीं बनाया है. हमने रूट बनाया, हमने खाना पकाया, और उनके लिए हमारे भाइयों ने भार ढोए. उन्होंने अकेले इस काम को पूरा नहीं किया है.” के2 के करीब पहुंचने पर टीम के सदस्यों ने राष्ट्रगीत गाए. उस समय सभी अपने-अपने हाथों में नेपाल का झंडा थामे हुए थे.
एवरेस्ट पर चढ़ने की आदत
पहली बार साल 1920 में ब्रिटिश पर्वतारोहियों ने एवरेस्ट को देखा था. उसके बाद से हर बार नेपाल के पर्वतारोही जिनमें मुख्य तौर पर शेरपा होते हैं, उनके साथ रहे हैं. हालांकि, उन्होंने खुद इस मुकाम पर पहुंचने की नहीं सोची. इस समुदाय के लोग काफी गरीब होते हैं. समुदाय के लोग अपने परिवार का पेट भरने के लिए, अपनी जान जोखिम में डालकर विदेशी पर्वतारोहियों के सपनों को पूरा करने में उनकी मदद करते रहे हैं. फ्रांसीसी पर्वतारोहियों ने साल 1950 में अन्नपूर्णा पर चढ़ाई पूरी की थी. यह पहला मौका था जब किसी टीम ने 8,000 मीटर की चढ़ाई को पूरा किया था. नेपाली शेरपा आंग थारके भी शुरुआत में उस टीम के साथ थे. लेकिन थारके ने चोटी पर पहुंचने वाली टीम का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया था. उनके लिए, रिकॉर्ड बुक में नाम दर्ज करवाने से ज्यादा जरूरी था अपनी अंगुलियों को बर्फ से सुरक्षित रखना और अपनी रोजी-रोटी को बनाए रखना.
समय के साथ, अब यह पर्वतारोहण फायदेमंद सेक्टर हो गया है. हर साल काफी संख्या में विदेशी पर्वतारोही यहां आते हैं. इससे सरकार को करोड़ों की कमाई होती है. एक अनुभवी गाइड कुछ महीनों तक जोखिम भरे काम करके 10,000 डॉलर तक कमा लेता है. यह देश की औसत सालाना कमाई से कई गुना ज्यादा है. आधिकारिक हिमालयन डाटाबेस से पता चलता है कि इस सेक्टर के व्यावसायीकरण होने के बावजूद जोखिम अब भी बहुत ज्यादा है. हिमालय की चोटियों पर चढ़ाई के दौरान होने वाली मौतों में एक चौथाई उन नेपालियों की होती है जिन्हें विदेशी पर्वतारोही काम पर रखते हैं. साल 2014 में, बर्फ में दबने से 16 नेपाली शेरपाओं की मौत हो गई थी. इसके बाद, बेहतर मुआवजा और दूसरी मांगों को लेकर पूरे सीजन काम ठप रहा.
नेपाल के लिए ऐतिहासिक मौका
के2 फतह करने वाली टीम का हिस्सा रहे निर्मल पुजारा कहते हैं, "के2 टीम की यह उपलब्धि, नेपाल के पर्वतारोहियों के बदले हुए नजरिए को दिखाती है. उन्होंने पिछले साल रिकॉर्ड समय में दुनिया की 14 सबसे ऊंची चोटियों की चढ़ाई पूरी की थी. साल 1953 में तेनजिंग नोरगे शेरपा को उस समय अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली जब वे न्यूजीलैंड के पर्वतारोही एडमंड हिलेरी के साथ एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचने में कामयाब हुए थे. इसके बाद के दशकों में, सिर्फ चार नेपाली 8,000 मीटर से ऊंची 14 चोटियों पर पहुंचने का दावा करते हैं. इसके विपरीत, कुल करीब 70 पर्वतारोही ऐसा दावा करते हैं जिनमें ज्यादातर यूरोप के हैं. पिछले कुछ सालों में, पुजारा ने कई रिकॉर्ड अपने नाम किए हैं. वह नेपाल के पर्वतारोहियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गए हैं.
इटली के मशहूर पर्वतारोही राइनहोल्ड मेसनर इसे बदलाव की शुरुआत के तौर पर देखते हैं. उन्होंने कहा कि जब मैंने पहली बार के2 की खबर पढ़ी, तब मैंने सोचा "आखिर ये हो ही गया.” मेसनर ने एएफपी से कहा कि साल 1978 में एवरेस्ट की पहली चढाई के दौरान, शेरपा बिना ऑक्सीजन के उनके पीछे-पीछे चल रहे थे. आज की तारीख में, शेरपा पर्वतारोहियों के आगे-आगे चलते हैं, उनके लिए रास्ते बनाते हैं और उन्हें गाइड करते हैं. यह बड़ा बदलाव है और यह देश की अर्थव्यवस्था के लिए बेहद जरूरी भी है. अल्पाइन के पत्रकार एड डगलस ने कहा कि पर्वतारोही को इस बात का क्रेडिट मिलना चाहिए कि वह अपना कारोबार खुद चला रहे हैं. एशियन ट्रैकिंग नाम की पर्वतारोहण कंपनी चलाने वाले डावा स्टीवन शेरपा कहते हैं, "जाड़े के मौसम में के2 की चढ़ाई पूरी करने से यह साबित होता है कि नेपाली सही मायने में पर्वतारोही हैं. इसमें कोई शक नहीं है कि वे मंच पर प्रसिद्धि पा चुके पर्वतारोहियों के साथ खड़े होने लायक हैं.”
आरआर/एमजे (एएफपी)
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