लेक जेनेवा और यूरा पहाड़ियों के बीच वह मशीन है जिसमें दिव्य कण यानी गॉड पार्टिकल की खोज हुई. 27 किलोमीटर लंबी सुरंग चुंबक से बनी है और इसमें चार सेंसर हैं. वैज्ञानिक यहां पार्टिकल एक्सेलेरेट करते हैं. वो आपस में टकराते हैं. टक्कर से डिटेक्टर में मैटर पार्टिकल निकलते हैं, माना जाता है कि इन्हीं से अणु की रचना होती हैं.
पकड़ में आया मायॉन
हो सकता है कि एक दिन वैज्ञानिकों को पता चल जाए कि अणु किस तत्व से बनता है. लेकिन इसके लिए रिसर्चरों को अपना डिटेक्टर और संवेदनशील बनाना होगा. जमीन के कई मीटर नीचे एक मायॉन चेंबर बनाया गया है. मायॉन बहुत ही स्थिर और भारी कण होते हैं जो एटलस नाम के डिटेक्टर को पार कर सकते हैं. भौतिकशास्त्रियों के लिए मायॉन नई तरह के मैटर पार्टिकल का सबूत है.
खास तरह का डिटेक्टर मायॉन का रास्ता और उसकी ऊर्जा माप सकता है. इसमें 400 नलियां हैं जिनमें कम रिएक्ट करने वाली स्थिर गैस और एक तार होता है. मापने वाला उपकरण डिटेक्टर की एक परत में लगाया जाता है जो एक फुटबॉल के मैदान जितना बड़ा है. म्यूनिख के माक्स प्लांक इंस्टिट्यूट फॉर फिजिक्स के हूबर्ट क्रोहा कहते हैं, "हमने पूरे एटलस डिटेक्टर में 1,200 ऐसे मायॉन डिटेक्टर लगाए हैं यानी करीब दस लाख तारें इसमें लगी हैं. मायॉन नलियों की एक तार केवल कुछ माइक्रोमीटर की होती है. इन्हें बनाना अपने आप में चुनौती है."
ब्लैक होल यानि कृष्ण विवर के बारे में पूरी जानकारी नहीं मिल पाई है. घनघोर अंधेरे और उच्च द्रव्यमान वाले इन ब्लैक होल्स की तस्वीरें इस गैलेरी में.
तस्वीर: NASAब्लैक होल वास्तव में कोई छेद नहीं है, यह तो मरे हुए तारों के अवशेष हैं. करोड़ों, अरबों सालों के गुजरने के बाद किसी तारे की जिंदगी खत्म होती है और ब्लैक होल का जन्म होता है.
तस्वीर: cc-by-sa 2.0/Ute Krausयह तेज और चमकते सूरज या किसी दूसरे तारे के जीवन का आखिरी पल होता है और तब इसे सुपरनोवा कहा जाता है. तारे में हुआ विशाल धमाका उसे तबाह कर देता है और उसके पदार्थ अंतरिक्ष में फैल जाते हैं. इन पलों की चमक किसी गैलेक्सी जैसी होती है.
तस्वीर: NASAमरने वाले तारे में इतना आकर्षण होता है कि उसका सारा पदार्थ आपस में बहुत गहनता से सिमट जाता है और एक छोटे काले बॉल की आकृति ले लेता है. इसके बाद इसका कोई आयतन नहीं होता लेकिन घनत्व अनंत रहता है. यह घनत्व इतना ज्यादा है कि इसकी कल्पना नहीं की जा सकती. सिर्फ सापेक्षता के सिद्धांत से ही इसकी व्याख्या हो सकती है.
तस्वीर: NASA and M. Weiss (Chandra X -ray Center)यह ब्लैक होल इसके बाद ग्रह, चांद, सूरज समेत सभी अंतरिक्षीय पिंडों को अपनी ओर खींचता है. जितने ज्यादा पदार्थ इसके अंदर आते हैं इसका आकर्षण बढ़ता जाता है. यहां तक कि यह प्रकाश को भी सोख लेता है.
तस्वीर: X-ray: NASA/CXC/MIT/C.Canizares, M.Nowak; Optical: NASA/STScIसभी तारे मरने के बाद ब्लैक होल नहीं बनते. पृथ्वी जितने छोटे तारे तो बस सफेद छोटे छोटे कण बन कर ही रह जाते हैं. इस मिल्की वे में दिख रहे बड़े तारे न्यूट्रॉन तारे हैं जो बहुत ज्यादा द्रव्यमान वाले पिंड हैं.
तस्वीर: NASA and H. Richer (University of British Columbia)अंतरिक्ष विज्ञानी ब्लैक होल को उनके आकार के आधार पर अलग करते हैं. छोटे ब्लैक होल स्टेलर ब्लैक होल कहे जाते हैं जबकि बड़े वालों को सुपरमैसिव ब्लैक होल कहा जाता है. इनका भार इतना ज्यादा होता है कि एक एक ब्लैक होल लाखों करोड़ों सूरज के बराबर हो जाए.
तस्वीर: NASA/CXC/MIT/F.K. Baganoff et alब्लैक होल देखे नहीं जा सकते, इनका कोई आयतन नही होता और यह कोई पिंड नहीं होते. इनकी सिर्फ कल्पना की जाती है कि अंतरिक्ष में कोई जगह कैसी है. रहस्यमय ब्लैक होल को सिर्फ उसके आस पास चक्कर लगाते भंवर जैसी चीजों से पहचाना जाता है.
तस्वीर: X-ray: NASA/CXC/Wisconsin/D.Pooley & CfA/A.Zezas; Optical: NASA/ESA/CfA/A.Zezas; UV: NASA/JPL-Caltech/CfA/J.Huchra et al.; IR: NASA/JPL-Caltech/CfA1972 में एक्स रे बाइनरी स्टार सिग्नस एक्स-1 के हिस्से के रूप मे सामने आया ब्लैक होल सबसे पहला था जिसकी पुष्टि हुई. शुरुआत में तो रिसर्चर इस पर एकमत ही नहीं थे कि यह कोई ब्लैक होल है या फिर बहुत ज्यादा द्रव्यमान वाला कोई न्यूट्रॉन स्टार.
तस्वीर: NASA/CXCसिग्नस एक्स-1 के बी स्टार की ब्लैक होल के रूप में पहचान हुई. पहले तो इसका द्रव्यमान न्यूट्रॉन स्टार के द्रव्यमान से ज्यादा निकला. दूसरे अंतरिक्ष में अचानक कोई चीज गायब हो जाती. यहां भौतिकी के रोजमर्रा के सिद्धांत लागू नहीं होते.
तस्वीर: NASA/CXC/M.Weissयूरोपीय दक्षिणी वेधशाला के वैज्ञानिको ने हाल ही में अब तक का सबसे विशाल ब्लैक होल ढूंढ निकाला है. यह अपने मेजबान गैलेक्सी एडीसी 1277 का 14 फीसदी द्रव्यमान अपने अंदर लेता है.
तस्वीर: ESO/L. Calçadaब्लैक होल के पार देखना कभी खत्म नहीं होता. ये अंतरिक्ष विज्ञानियों को हमेशा नई पहेलियां देते रहते हैं.
तस्वीर: NASA/CXC/SAO/A.Prestwich et al
भौतिकशास्त्री डिटेक्टर की दूसरी परत बना रहे हैं. यह एटलस के बीच में लगाई जाएगी. यह वह जगह है जहां अणु के अंदर के छोटे कण एक दूसरे से टकराते हैं और इनसे और भी छोटे पार्टिकल निकलते हैं. सेंसर से इनका रास्ता पता चल सकेगा. सेंसर में 1.2 करोड़ पिक्सल फैले हुए हैं. एटलस डिटेक्टर में जो भी डाटा पैदा होगा उसका 10 फीसदी तो इस परत में मिल ही जाएगा.
एक छत के नीचे विज्ञान जगत
सर्न में काम कर रहे वैज्ञानिकों को नए विचारों का भी इंतजार रहता है. डानियल आडाम डोबोस कहते हैं, "हर दिन हमारे पास नई चुनौतियां होती हैं, नए साथी होते हैं. आप दुनिया भर के विश्वविद्यालयों और नए लोगों से मिलते हैं. वे नए डिटेक्टरों और विचारों के साथ आते हैं और हम उन्हें यहां साथ लाने की कोशिश करते हैं.".
35 देशों के 170 संस्थान एटलस डिटेक्टर पर काम कर रहे हैं. स्टैनफर्ड लीनियर ऐक्सेलेरेटर सेंटर के डॉन्ग सू भी यहां आते रहते हैं, "सर्न इस वक्त पार्टिकल फिजिक्स का केंद्र हैं. अमेरिका में हम भी भविष्य में और विकल्पों के बारे में सोचेंगे. शायद हमारे पास भी कभी ऐसे उपकरण हों."
निराकार डार्क मैटर
आने वाले साल में निर्माण पूरा हो जाएगा. फिर शोधकर्ता पदार्थ यानी मैटर का शोध एक ऐसे ऊर्जा क्षेत्र में कर सकते हैं, जो अब तक धरती पर बनाया नहीं जा सका है. इससे पदार्थ को बनाने वाले अतिसूक्ष्म कणों का पता चलेगा. सूची में सबसे ऊपर है डार्क मैटर. क्रोहा कहते हैं, "लार्ज हेड्रॉन कोलाइडर में कुछ मिले या न मिले, वह पार्टिकल फिजिक्स का भविष्य तय करेगा. खास तौर से अगर डार्क मैटर ढूंढा जा सके, तो पार्टिकल भौतिकशास्त्री ही नहीं बल्कि खगोल विद और खगोल भौतिकी के रिसर्चर भी बहुत खुश होंगे."
अंतरिक्ष में डार्क मैटर का ज्यादातर हिस्सा दिखाई नहीं देता. उसका पता सिर्फ गुरुत्वाकर्षण से चलता है. यह सिद्धांत है और इसके रहस्यों को सुलझाना जीवन की गुत्थी सुलझाने जैसा होगा.
रिपोर्ट: कोर्नेलिया बोरमन/मानसी गोपालकृष्णन
संपादन: ओंकार सिंह जनौटी