कितने लोग होंगे जो नए कपड़े खरीदते समय एक बार यह भी सोचते होंगे कि उन्हें बनाने वालों को उनका सही मेहनताना मिला होगा या नहीं. या फिर उन कारीगरों के कामकाज की स्थिति अच्छी रही होगी या नहीं.
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यूरोप में कराए गए एक सर्वे के अनुसार करीब 40 फीसदी खरीदार कुछ भी नया खरीदने से पहले उसके उत्पादन प्रक्रिया में बरती गई नैतिकता के बारे सोचते हैं. ऐसे लोगों की संवेदनशीलता अब बड़ी बड़ी कपड़ा कंपनियों पर अपने तरीके सुधारने का दबाव बना रही है.
नैतिकता के मानकों का ध्यान रख कर कपड़े बनाने में कंपनियों का खर्च बढ़ जाता है. हर दिन बदलते ट्रेंड और फास्ट फैशन के चलते कंपनियां जल्दी से जल्दी नए कपड़ों को बाजार में उतारने की होड़ कर रही होती हैं.
ब्रिटिश चैरिटी ऑक्सफैम की एथिकल ट्रेड मैनेजर रेचेल विलशॉ कहती हैं, "कपड़ा ब्रांड हमें बताते हैं कि आप उपभोक्ताओं का विश्वास नहीं कर सकते क्योंकि वे कहते कुछ हैं और व्यवहार में कुछ और ही हैं."
विलशॉ का मानना है कि खरीदार हमेशा कपड़ों के लिए कम से कम दाम ही देना चाहते हैं. वे कहती हैं, "अगर कंपनियां कोई ऐसा रास्ता निकाल सकें कि वे अच्छे सामान को अच्छी कीमते पर भी उपलब्ध करा सकें, तो कुछ हो सकता है." विलशॉ को लगता है कि आने वाले समय में इसका महत्व और बढ़ेगा.
इस सर्वे में भाग लेने वाले करीब 40 फीसदी खरीदारों ने कहा कि कुछ भी नया खरीदने से पहले वे समाज और पर्यावरण पर उससे पड़ने वाले असर के बारे में सोचते हैं. वहीं 70 फीसदी से भी अधिक लोगों ने बताया कि वे उत्पादकों से इस बारे में और जानकारी चाहते हैं कि वे अपने कर्मचारियों और धरती को बचाने के लिए क्या कदम उठा रहे हैं.
इस सर्वे को कमीशन करने वाले एडवोकेसी समूह फैशन रिवॉल्यूशन और इसे ऑनलाइन आयोजित करने वाले इपसॉस मोरी ने इसमें ब्रिटेन, जर्मनी, इटली, फ्रांस और स्पेन के करीब 5,000 लोगों से फैशन जगत में पारदर्शिता और नैतिकता के बारे में उनकी राय पूछी.
80 फीसद का मानना था कि ब्रांड्स को उन सब फैक्ट्रियों के नाम प्रकाशित करने चाहिए, जहां उनके कपड़े बनते हैं. वहीं 77 फीसदी का मानना था कि उन्हें माल सप्लाई करने वाले सप्लायर्स का नाम भी साझा किया जाए. कंपनियों पर पारदर्शिता के बढ़ते दबाव के बीच अब भी दुनिया भर में करीब 2.5 करोड़ लोग बंधुआ मजदूरी करने को मजबूर हैं.
आरपी/आईबी (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
कितनी बार पहनें कौन सा कपड़ा
कितनी बार पहने कौन सा कपड़ा
क्या आप जानते हैं कि जींस, टीशर्ट या अन्य कपड़ों को कितनी बार पहनने के बाद धोना चाहिए. देखिये क्या कहते हैं साफ सफाई के एक्सपर्ट.
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नये कपड़े
बाजार से जब भी नए कपड़े लाएं तो उन्हें हमेशा धोकर पहनें. कपड़ों का रंग असल में कई केमिकलों का मिश्रण होता है. लिहाजा पहली धुलाई के बाद नए कपड़े पहनना ज्यादा सुरक्षित है.
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जींस
रफ एंड टफ कही जाने वाली जींस को लगातार पांच दिन पहना जा सकता है. लेकिन पांच बार पहनने के बाद इसे धोना चाहिए. वरना टांगों से छूटकर जींस में समाने वाला पसीना खुजली कर सकता है.
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पजामा
सोते समय पहने जाने वाले पजामे को तीन या चार रात इस्तेमाल के बाद के बाद धोना चाहिए.
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टीशर्ट
अगर गर्मी है और पसीना निकल रहा है तो टीशर्ट को हर बार पहनने के बाद धोना चाहिए. अगर ठंड है और आपने भागदौड़ भी नहीं की तो टी शर्ट दो बार पहनी जा सकती है.
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ब्रा और अंडरशर्ट
इनकी धुलाई भी मौसम पर निर्भर करती है. पसीने वाली गर्मी है तो इन्हें रोज धोना चाहिए. अगर सर्दियों क मौसम है तो इन्हें तीन से चार बार पहना जा सकता है.
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अंडरवेयर
अंतवस्त्र हर रोज धोने चाहिए. आम तौर पर लोग इन्हें लेकर ज्यादा संवेदनशीलता नहीं दिखाते, लेकिन अंतवस्त्रों को रोज धोने से आप जननांगों के आस पास की कई परेशानियों से बचते हैं.
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ट्राउजर और स्कर्ट
गर्मियों में ट्राउजर को एक से दो बार पहना जा सकता है. स्कर्ट चार या पांच बार इस्तेमाल की जा सकती है.
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लेगिंग
गर्मियों में लेगिंग्ज को हर बार पहनने के बाद धोना चाहिए. मौसम बहुत गर्म न हो तो एक लेगिंग को तीन बार पहना जा सकता है.
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स्वेटर
गर्म स्वेटर को चार या पांच बार पहना जा सकता है. स्वेटर को धोते वक्त हमेशा ठंडे या बहुत हल्के गुनगुने पानी का इस्तेमाल करें. गर्म पानी में स्वेटर सिकुड़ जाएगा.
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टोपी
तीन बार इस्तेमाल करने के बाद टोपी को जरूर धोना चाहिए. असल में सिर की त्वचा और बालों में लगी धूल धक्कड़ टोपी को भीतर से गंदा करते हैं.
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चादर और खोल
जवान जोड़ों को चादर और रजाई के खोल हर दूसरे दिन बदलने चाहिए. अन्य लोगों को चार या पांच दिन बाद खोल और चादर बदलनी चाहिए. फ्लू जैसी बीमारी होने पर भी इन्हें रोज बदलना चाहिए.
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तौलिया
एक तौलिये को दो से चार दिन तक इस्तेमाल किया जा सकता है. लेकिन बीमारी या फिर यात्रा के दौरान इस्तेमाल किये जाने वाले तौलिये को जल्द से जल्द धोना चाहिए. पसीना पोंछने के लिए इस्तेमाल हुए तौलिये को भी रुमाल की तरह रोज धोना चाहिए.