1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

सस्ते टिकट एयरलाइंसों को डुबो रहे हैं

मुरली कृष्णन
३० अगस्त २०१८

लोग घूमने पर पैसा खर्च कर रहे हैं, ट्रेन की तुलना में हवाई यात्राओं को तरजीह दे रहे हैं. आसमान में हवाई ट्रैफिक बढ़ गया है. लेकिन कंपनियों कहती हैं कि उन्हें नुकसान हो रहा है.

Indien Indira Gandhi International Airport in Delhi
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/N. Economou

पहली नजर में लग सकता है कि भारत की एयरलाइन कंपनियां मुनाफा पीट रहीं होगी. लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है. पिछले दिनों आए तिमाही नतीजों ने देश की दूसरी सबसे बड़ी एयरलाइंस कंपनी जेट-एयरवेज का लेखा-जोखा पेश किया. कंपनी के मुताबिक वह नुकसान में हैं. इसके लिए कंपनी ईंधन की बढ़ती कीमतों और कमजोर पड़ते भारतीय रुपये को जिम्मेदार ठहरा रही है.

कंपनी के सीईओ विनय दुबे ने कहा, "ब्रेंट फ्यूल की कीमतों में आ रहा उछाल और रुपये का घटता मूल्य भारतीय विमानन उद्योग को नकारात्मक ढंग से प्रभावित कर रहा है." कंपनी के चैयरमेन नरेश गोयल ने घोषणा की है कि अगले दो सालों में लागत को 24.4 करोड़ यूरो तक कम करने के लिए कदम उठाए जाएंगे. हालांकि जानकार एयरलाइंस के भविष्य पर सवाल उठा रहे हैं.

नुकसान पहुंचाती वृद्धि

भारत के विमानन उद्योग में आए बूम के नकारात्मक परिणाम भी सामने आए हैं. कई जानकार टिकटों की कम कीमतों को लेकर कंपनियों में मची होड़ को इस सेक्टर की सबसे बड़ी समस्या मानते हैं.

दरअसल विमानन कंपनियां कई बार किराया इतना कम कर देती हैं कि एयरलाइंस के लिए परिचालन शुल्क निकालना मुश्किल हो जाता है. इस परेशानी के चलते जेट एयरवेज समेत देश की तमाम विमानन कंपनियां मुनाफा कमाने के लिए जूझ रही हैं. खैर, यह स्थिति तब है जब विमानों की 90 फीसदी सीटें भर जा रहीं हैं और पिछले चार सालों में घरेलू यात्रियों की संख्या में बड़ा उछाल आया है. 

तस्वीर: Imago/Alexander Ludger

रेटिंग एजेंसी आईसीआरए के मुताबिक, भारत 2025 तक चीन और अमेरिका के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा विमानन बाजार बनने को तैयार है. बढ़ते बाजार के बावजूद भी कंपनियां नुकसान में है. आईसीआरए ने अपनी एक चेतावनी में कहा था कि भारतीय विमानन उद्योग का नुकसान साल 2018-19 में करीब 43.7 करोड़ डॉलर का होगा, जो पिछले साल 30.3 करोड़ डॉलर था.

बजट एयरलाइंस का हाल

बाजार पूंजीकरण के मामले में एशिया की सबसे बड़ी बजट एयरलाइन इंडिगो का लाभ जून 2018 में समाप्त हुई तिमाही में करीब 97 फीसदी तक गिर गया. इंडिगो घरेलू बाजार में 40 फीसदी की हिस्सेदारी रखती है. इंडिगो के संस्थापक और प्रमुख कार्यकारी राहुल भाटिया कहते हैं, "जब इनपुट लागत में बढ़ोतरी हो रही है तो यह नहीं माना जा सकता कि किराये की दर स्थायी रहेंगी. लेकिन इन्हें देने के अलावा और कोई विकल्प भी नहीं है."

पायलट जगत पुरी ने डीडब्ल्यू से कहा, "पॉपुलर रूट्स की टिकटों की कीमतें को लेकर हमेशा दबाव रहता है." पुरी मानते हैं कि कुछ कीमतें गलत हैं जिनसे बेवजह एयरलाइंस के बीच होड़ लगी रहती है. उन्होंने कहा कि एयरलाइंस परिचालन पर बढ़ती लागत का बढ़ता बोझ ग्राहकों पर नहीं डाल सकतीं, जो कीमतों को लेकर बहुत संवेदनशील होते हैं. 

विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय विमानन उद्योग मुश्किल कारोबारी माहौल होने के चलते अब अपने मुश्किल दौर में जा रहा है. खासकर तब जब तेल की कीमतें तेजी से बढ़ रही हों.

सेंटर फॉर एशिया पैसिफिक एविएशन में दक्षिण एशिया क्षेत्र के प्रमुख कार्यकारी अधिकारी कपिल कौल कहते हैं, "जब आप अगले 18 महीने के लिए तेल की कीमतें 75 से 80 डॉलर प्रति बैरल पर देखते हैं और रुपया गिर रहा है, कब भारत में किसी भी एयरलाइन को सिर्फ किराए से मिलने वाली रकम के दम पर नहीं चलाया जा सकता."

एयर इंडिया के पूर्व कार्यकारी निदेशक जीतेंद्र भार्गव कहते हैं, "परिचालन लागत बढ़ रही है लेकिन किराये नहीं बढ़ रहे. लागत से नीचे जाकर टिकटों को बेचना सबसे गलत है. यह पागलपन है. हमें संतुलित वृद्धि की जरूरत हैं, वरना परेशानियां बनी रहेंगी. "

कोई खरीददार नहीं

सरकारी एयरलाइन कंपनी एयर इंडिया भी करदाताओं के पैसे से अभी तक हवा में उड़ रही है. पिछले कई सालों से यह एयरलाइंस बेलआउट पैकेज पर चल रही है. हालांकि सरकार इसकी कुछ परिसंपत्तियों को बेचने के लिए खरीददार भी ढूंढ रही हैं. लेकिन अब तक कोई मिला नहीं. कोई भी निजी कंपनी एयर एंडिया को लेकर उत्साह नहीं दिखा रही है.

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें
डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें