1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

सस्ते दामों की महंगी कीमत

२९ अक्टूबर २०१२

जर्मनी के दुकानों में ज्यादातर सामान विदेशों से आता हैं जहां कम पैसे में उत्पदान किया जा सकता है. इन देशों में उत्पादन अकसर अंतरराष्ट्रीय मानकों के मुताबिक नहीं होते.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

यूरोपीय संघ की कंपनियां अब आलोचना के घेरे में आ रही हैं. सितंबर में पाकिस्तान की एक फैक्ट्री में लगी आग से 250 लोग मारे गए. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि निर्माण के दौरान सुरक्षा को सही तरह से आंका नहीं गया. इमारत से बाहर निकलने के रास्ते बंद थे, कुछ में ताला भी लगा हुआ था.

इस घातक हादसे के बाद पता चला कि फैक्र्टी में जर्मन कंपनी किक के लिए कपड़ों का उत्पादन हो रहा था. जर्मनी में यह बात उठी और कुछ आलोचकों ने कहा कि जर्मन कंपनियां उन्हें कपड़े सप्लाई करने वाली कंपनियों की जांच नहीं करतीं. किक ने इस बीच फैक्ट्री की आग में मारे गए लोगों को मुआवजा देने का फैसला किया है और 50 लाख डॉलर देने का वादा किया.

अंतरराष्ट्रीय आर्थिक और सामाजिक न्याय संगठन सुएडविंड की साबीने फेरेनशिल्ड कहती हैं कि यह मदद जरूरी है लेकिन यह काफी नहीं. "परेशानी यह है कि अब भी दूर तक देखने की क्षमता नहीं आई है. अब तक हुए हादसों से यही पता चला है. फैक्ट्रियों में आग लगी है और सैंकड़ों मजदूर मारे गए हैं."

सूडविंड संस्था कंपनियों को उनकी जिम्ममेदारी लेना सिखाती है

कंपनियों ने हमेशा मुआवजा दिया है लेकिन कुछ सालों में यह बंद हो जाता है, "जो इससे प्रभावित हुए हैं, वह जिंदगी भी इसके असर में जीते हैं, मिसाल के तौर पर अगर वह काम न कर पाएं तो," या फिर वह लोग जिन्होंने अपने परिवार का कमाने वाला सदस्य खोया है. अगर कंपनियों को बाजार में जिंदा रहना है तो उन्हें अपने खर्चे कम करने होंगे और जिन उत्पादनों में वह निवेश करते हैं, उसको बनाने में हर पैसा बचाना होगा और यह आम तौर पर उन देशों में होता है जहां मजदूरों को कम वेतन मिलता है."चाहे वह काम के लिए कॉन्ट्रैक्ट हो या मजदूरों को ज्यादा देर तक काम करना पडे़, यह कपड़ा सेक्टर में प्रतिस्पर्धा से जुड़ा है लेकिन यह बाकी क्षेत्रों में भी ऐसा ही है," फेरेनशिल्ड ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा.

जर्मनी में कंपनियों को अपने विदेशी साझेदारों पर निगरानी रखने की जरूरत नहीं है और उनके सप्लायर कैसे काम करते हैं, उसके बारे में भी जानकारी रखने के लिए कोई नियम नहीं है. फेरेनशिल्ड कहती हैं कि बर्लिन इस सिलसिले में सारे कानून को पारित होने से रोक रहा है जिससे कंपनियों को कहा जा सके कि वह अपने सपलायरों और वहां काम करने की स्थिति पर निगरानी रखें. यूरोपीय आयोग इस सिलसिले में पारदर्शिता स्थापित करना चाहता है. कंपनियों को सार्वजनिक करना होगा कि उनका सामान कैसी स्थिति में बनता है. ग्राहक फिर तय कर सकते हैं कि वह यह चीजें खरीदना चाहते हैं या नहीं.

यही है वह 'सवाल का निशान' जिसे आप तलाश रहे हैं. इसकी तारीख 29/10 और कोड 5577 हमें भेज दीजिए ईमेल के ज़रिए hindi@dw.de पर या फिर एसएमएस करें +91 9967354007 पर.तस्वीर: Fotolia/Stauke

लेकिन जर्मनी का खुदरा बाजार कुछ और सोचता है. जर्मन खुदरा बाजार के विदेशी व्यापारी संघ बीएससीआई के श्टेफान वेंगलर कहते हैं कि नौ साल से उनकी संस्था सुरक्षा और वेतन के लिए अंतरराष्ट्रीय मानकों पर ध्यान दे रही है और 1,000 कंपनियां इस कार्यक्रम का हिस्सा बन चुकी हैं. उन्होंने कहा कि इस समझौते के पहले साल में 100 में से केवल सात कंपनियां इन मानकों के मुताबिक काम कर रही थीं लेकिन अब लगभग एक तिहाई कंपनियां इन मानकों को ध्यान में रख रही हैं. वेंगलर कहते हैं कि जिन देशों से सामान आता है वहां मैनेजरों और मजदूरों की ट्रेनिंग करनी होगी ताकि सुरक्षा बनी रहे.

लेकिन फेरेनशिल्ड कहती हैं कि इस मामले को लेकर कुछ प्रगति के बावजूद परेशानियां खूब हैं. उनका कहना है कि जर्मन कंपनियां इसके लिए खुद जिम्मेदार हैं. "जर्मनी में ज्यादातर सामान जर्मनी में नहीं बल्कि उन देशों में बनता है जहां मजदूरों के अधिकार केवल कागज में हैं. जर्मन कंपनियों को इससे फायदा होता है."

रिपोर्टः गुंथर बिर्केनश्टॉक/एमजी

संपादनः आभा मोंढे

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें
डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें