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'सहमति बनाने पर देंगे जोर'

४ दिसम्बर २०११

बॉन में अफगानिस्तान कान्फ्रेंस से यह संकेत देने की कोशिश की जा रही है कि अंतरराष्ट्रीय सैनिकों के लौटने के बाद भी अफगानिस्तान का सहयोग जारी रहेगा. जर्मन विदेश मंत्री गीडो वेस्टरवेले से डॉयचे वेले की खास बातचीत.

तस्वीर: DW

डॉयचे वेलेः अफगानिस्तान कान्फ्रेंस बॉन में शुरू हो रहा है और इससे अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण पर बात होगी. इस बैठक में किन बातों पर जोर दिया जाएगा? आप किस तरह के समझौतों की उम्मीद कर रहे हैं?

गीडो वेस्टरवेलेः हम तीन मुद्दों पर जोर देंगे. सबसे पहले, स्थानीय सुरक्षा बलों को जिम्मेदारी सौंपना, मतलब कि राष्ट्रपति करजई की जानकारी से हमें लगता है कि अफगानिस्तान का लगभग आधा हिस्सा अब स्थानीय सुरक्षा बलों की जिम्मेदारी हैं और अंतरराष्ट्रीय सैनिकों को इससे मुक्त कर दिया गया है. दूसरा मुद्दा है देश के भीतर सहमति पैदा करना. तीसरा मुद्दा इन दोनों मुद्दों के लिए अहम होगा, क्या 2014 में अंतरराष्ट्रीय सैनिकों के अफगानिस्तान से निकलने के बाद भी अंतरराष्ट्रीय समुदाय अफगानिस्तान को इस बात का भरोसा दिला पाएगा कि वह अब भी अंतरराष्ट्रीय समुदाय के मुख्य मुद्दों में से है और बाकी देश इसके बाद भी अफगानिस्तान की मदद करेंगे और उसका साथ देंगे. इस नए नजरिये के साथ ज्यादा ध्यान असैन्य तरीकों पर दिए जाएगा, जो देश में स्थिरता लाने के लिए जरूरी है.

आपका असैन्य तरीकों से क्या मतलब है?

मिसाल के तौर पर पुलिस और सुरक्षा बलों के लिए ट्रेनिंग. या फिर आर्थिक विकास. मैंने अफगान विदेश मंत्री रसूल और अमेरिकी विदेश मंत्री क्लिंटन से एक नए "सिल्क रूट" के बारे में बात की है. इसका मतलब है, हम इलाकों को एक दूसरे से आर्थक तौर पर जोड़ सकते हैं ताकि अफगानिस्तान में आर्थिक विकास हो सके और पड़ोसी देश भी इसमें दिलचस्पी लें, क्योंकि इससे स्थिरता पर अच्छा असर पड़ेगा.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

क्या आपको लगता है कि अफगानिस्तान में आर्थिक स्थिति बेहतर हो रही है?

यह हर इलाके पर निर्भर करता है. और वहां की सुरक्षा स्थिति पर. मैं मजार ए शरीफ में स्थानीय सुरक्षा बलों को जिम्मेदारी सौंपने के दौरान उपस्थित था. और वहां के स्थानीय प्रतिनिधियों ने सकारात्मक विकास की बात की है. हमें खबरे मिलती रहती हैं कि अफगानिस्तान में बहुत क्षमता है, जहां तक प्राकृतिक संसाधनों की बात है. इन सब को एक साथ लाना, समाज को स्थिरता की ओर ले जा सकता है. क्योंकि एक बात साफ है, जो देश आर्थिक तौर पर आगे नहीं बढ़ता, उसके समाज में विस्फोटक हालात हमेशा रहेंगे और फिर इससे आतंकवाद और डर का माहौल होगा. हमें इससे बचना है.

आपने कहा है कि 2014 अफगानिस्तान के लिए आहम साल है. लेकिन 2014 में राष्ट्रपति करजई का भी शासनकाल खत्म होगा. संविधान के मुताबिक वे दोबारा चुनावों के लिए नहीं खड़े हो सकते हैं. क्या अंतरराष्ट्रीय बलों का अफगानिस्तान से इस वक्त निकलना एक अच्छा समय है?

अगर एक महीने में सारा काम खत्म होता, तो शायद यह बहुत अक्लमंदी की बात नहीं होती. लेकिन जिसकी हम बात कर रहे हैं, वह एक प्रक्रिया है जो 2014 तक खत्म हो जाएगी. और यह काम करजई के दूसरी बार राष्ट्रपति पद बनने के बाद से ही शुरू हो गया है. 2009 में शपथ लेने के दौरान उन्होंने कहा, और मैं वहां मौजूद था, कि यह हमारी योजना है. राष्ट्रपित करजई ने साफ कहा है कि वे तीसरी बार पद के लिए नहीं खड़े होंगे और संविधान में जो लिखा है, उसका पालन करेंगे. हमने जो समय सीमाएं तय की हैं, वे मेरे हिसाब से सही हैं और जरूरी भीः क्योंकि एक बात साफ है, अफगानिस्तान में अंतरराष्ट्रीय बलों को भेजना भले ही कितना जरूरी हो, आतंकवाद से हमें बचाने के लिए, जरूरी यह भी है हम अफगानिस्तान में अपने सैनिकों को अनंत काल के लिए भी नहीं रख सकते हैं.

तस्वीर: dapd

अफगान लोगों के हालात के बारे में आपका क्या खयाल है? वहां ऐसे कई गुट हैं जिनपर हमेशा से शक रहा है कि वे लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हिस्सा नहीं लेना चाहते. क्या आपको लगता है कि इसमें कोई बदलाव आया है?

एक तरह से, हां. संसद में अब ऐसे सदस्य हैं, जो पहले तालिबान में थे और हम अब एक सहमति बनाने की भी कोशिश में है. शांति आप दोस्तों के बीच कायम नहीं करते हैं, बल्कि दुश्मनों के बीच. और सहमति में आपको कुछ सिद्धांतों पर ध्यान देना होगा, जिन पर आप अमल करेंगे, जैसे आतंकवाद से बचना, अहिंसा, संविधान का आदर करना और नागरिकों के मूलभूत अधिकारों और मानवाधिकार हनन से बचना. लेकिन एक राजनीतिक हल के अलावा कुछ और मुमकिन नहीं है. और यह तरीका है सहमति पैदा करना और उन लोगों को साथ लाना जिन्होंने पहले लड़ाई में हिस्सा लिया हो.

इंटरव्यूः रॉल्फ क्लेमेंट्स/एमजी

संपादनः एन रंजन

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