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सहवाग का मतलब रोमांच और हाहाकार

शिवप्रसाद जोशी, (संपादन- ओ सिंह)५ दिसम्बर २००९

वीरेंद्र सहवाग, यह नाम उस बल्लेबाज़ का है जिससे गेंदबाज़ कांपते हैं, जिसके आगे अक्सर विपक्षी टीम लाचार होकर भाग्य को कोसने लगती है. वो ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्होंने टेस्ट को लेकर ताबड़बोड़ ढंग से भारत की मानसिकता ही बदल दी.

ग्यारह बनाम एकतस्वीर: AP

पारी की पहली गेंद पर वीरेंद्र सहवाग ठिठके थे. और ये ठिठक नहीं, नामालूम अर्थो में उन धुआंधार रनों का एक ऐसा आग़ाज़ था जो पहले कभी नहीं देखा गया क्रिकेट इतिहास में.

सहवाग सौभाग्य से भारत की उस क्रिकेट ज़मीन की पैदायश हैं जो खेल के हुनर को टुकुर टुकुर ताकती हुई पैदा होती है और अपनी विलक्षण होश्यारी से उस मैदान पर आकर एक ऐसा उतना ही विलक्षण उन्माद और एक ऐसा ही क्रिकेटीय ताप जगा देती है कि आप इसे असहनीय होने की हद से भी आगे जाकर देखते हैं, समझने की कोशिश करते हैं. वीरेंद्र सहवाग नाम के व्यक्ति का क्रिकेट में यही एक अभूतपूर्व योगदान है. वो व्यक्ति महाबाज़ार बनते गुड़गांव के पास के नज़फ़गढ़ का है और लगता है जात धर्म जाति नस्ल सब भूलकर एक नवाबी शान के साथ मैदान पर उतरता है.

तस्वीर: AP

इतिहास समाज और समय इस तरह भी दर्ज होते हैं. जैसा वीरेंद्र सहवाग यानी वीरु की पारी में दर्ज हुए थे. एक लगभग क्रूर शैली में वीरू ने टेस्ट मैच जैसी शांत गंभीर और फैली हुई खेल व्यवस्था में ऐसा कोहराम मचाया कि गेंदबाज़ अचानक व्यथित हो गए थे. वे हैरान परेशान और बेकार थे. वीरू ने बल्लेबाज़ी का ऐसा तांडव रचा डेढ़ दिनों में. कहना चाहिए अकेले एक दिन में टेस्ट मैच की सहूलियत को संवारने वाले लोग और एजेंसियां हतप्रभ रह गई थीं.

वे सब वही लिख रहे थे, अनायास जादुई ढंग से जो वीरू वहां लिख रहे थे उस कुख्यात पिच पर, ब्रेबोर्न स्टेडियम मुंबई का.

यह क्रिकेट से जादू जगाने की करामात भर नहीं है. और अभिभूत होने के लिए वीरेंद्र का वो खेल ही नहीं है, बल्कि अविश्वसनीय और अकल्पनीय वो दुस्साहस है जो वीरेंद्र सहवाग के रूप में भारतीय क्रिकेट के पास है. वह जिस निर्दयता और दमन से गेंदबाज़ों के साथ सलूक करते हैं वह दर्शक को सिर्फ़ इसलिए रोमांचित नहीं करता कि ओह कितना अद्भुत आततायी बल्लेबाज़ है बल्कि इसलिए भी कि वह क्रिकेट की पेचीदगियों के बीच से एक ऐसे रास्ते की सफ़ाई कर रहा होता है जो झाड़ झंखाड़ से भरा है और जिसे एक उद्दाम रोमान चाहिए.

वीरेंद्र सहवाग अपनी बैटिंग से वो दुर्लभ और अवर्णनीय रोमान का अहसास दर्शकों को प्रशंसकों को कराते हैं, वे गेंदबाज़ी को तोड़ देते हैं, फील्डिंग को तहसनहस कर देते हैं और ऐसा लगता है जैसे आप 21वीं सदीं के किसी क्रिकेट मैच की रिकॉर्डिंग नहीं बल्कि एक तुरतफुरत दौड़ती हुई कोई पुरानी फ़िल्म रील देख रहे हैं, जिसमें एक शख़्स लगातार बल्ला उठाए हुए है और कई बदहवासी में इधर उधर भागते दिख रहे हैं और यह एक सफ़ेद वर्दी का मैच है. और अंत में सिर्फ़ बल्ले का हाहाकार है.

तस्वीर: UNI

वीरेंद्र सहवाग समकालीन क्रिकेट इतिहास में इसीलिए महान हैं क्योंकि वो अविश्वसनीय हैं. अन्प्रेडेक्टिबल. आप नहीं बता सकते कि आज के टेस्ट मैच का सलामी ओपनर बल्लेबाज़ क्या करने वाला है, वो पहली गेंद पर भी आउट हो सकता है. लेकिन सहवाग समय समय पर ऐसी जादुई छटा के साथ आते हैं कि गेंदबाज़ हायतौबा करने लगते हैं. सहवाग कोई पहली गेंद के महारथी नहीं है. दुनिया का कोई चोटी का टेस्ट बल्लेबाज़ ये दावा कभी नहीं करता लेकिन जब से सहवाग का पदार्पण टेस्ट क्रिकेट में हुआ है, पहली गेंद औपचारिक रूप से उनके आगे फेंकी जाती है और अनौपचारिक रूप से भी कि भाई इसे आगे भी बख़्श देना.

लेकिन वीरेंद्र सहवाग एक शांत धीरज भरी लंबी पारी के नायक हैं वे जब अपने नज़फ़गढ़ी रक्त की उछाड़ पछाड़ के साथ खेलने आते हैं तो टेस्ट मैच में हर गेंद को सीमा पार पहुंचाकर दम लेते हैं, ऐसा नहीं है. सहवाग का अध्ययन किया जाना बाकी है कि वह कैसे अपनी इनिंग्स को संवारने की कला करते हैं. और इस कला में कैसा उत्पात वो बाज़दफ़ा कर देते हैं, जैसे बीसवीं सदी के यूरोप में पेंटिंग की दुनिया मे अभिव्यंजनावाद और अतियथार्थवाद ने किया था.

वीरेंद्र सहवाग जैसे गिने चुने खिलाड़ी हैं और शायद उनमें वीरू सबसे ऊपर हैं जो एक घटाटोप से आते हैं और अपनी चिंगारी से टेस्ट मैच के अंधकार को अपने बल्ले की अदम्य ऊर्जा से प्रकाशित कर देते हैं. तीसरे तिहरे शतक के विश्व रिकॉर्ड से सात रन दूर आउट हुए वीरेंद्र सहवाग नाम के इस व्यक्ति को पवैलियन से लौटता हुआ देखना एक कष्ट भरा, निर्मम मौका है, उतना ही दुर्दांत जितनी सहवाग की पारी. लेकिन सब कह ही रहे हैं कि भाई सहवाग कि ये आख़िरी पारी तो है नहीं. क्रिकेट की अविश्वसनीयता का, क्रिकेट का बाज़ार कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा. इंतज़ार करना चाहिए.

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