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सहारा के तपते रेगिस्तान में गांधी की अहिंसा बनी हथियार

२६ सितम्बर २०१९

मौजूदा दौर में गांधी की प्रासंगिकता अकसर सवालों जूझती है. लेकिन पश्चिमी अफ्रीका के सहारा रेगिस्तान में एक महिला बीते 30 साल से गांधी के रास्ते पर चलकर अपने देश की आजादी की जंग लड़ रही है.

Preisträger des Alternativen Nobelpreises Right Livelihood Awards
तस्वीर: Right Livelihood Foundation

अमीनातु हैदर के इसी संघर्ष को वैकल्पिक नोबेल कहे जाने वाले राइट लाइवलीहुड पुरस्कार से नवाजा गया है. उनके अलावा जिन तीन अन्य लोगों को इस साल राइट लाइवलीहुड पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा उनमें स्वीडन की युवा पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थुनबर्ग, चीन की मानवाधिकार कार्यकर्ता गुओ जुआनमेई और ब्राजील के मानवाधिकार कार्यकर्ता दावी कोपेनावा योनोमामी शामिल हैं.

अमीनातु हैदर पश्चिमी अफ्रीका से पहली महिला हैं जिन्हें यह सम्मान मिला है. पिछले तीस साल से वह मोरक्को से पश्चिमी अफ्रीका की आजादी के लिए अहिंसक आंदोलन कर रही हैं. इसीलिए उन्हें "सहारावी लोगों की गांधी" भी कहा जाता है.

हैदर दशकों से जो संघर्ष कर रही हैं उसकी वजह से मोरक्को के सैनिकों और सहारावी लोगों के बीच अकसर झड़पें होती हैं. उनका कहना है कि उन्हें कई बार जेल में डाला गया और उनका उत्पीड़न भी किया गया. इसके बावजूद वह आजादी के लिए अपने संघर्ष से पीछे नहीं हटीं. हालांकि इसकी वजह से ना सिर्फ उन्हें बल्कि उनके बच्चों को भी कई खतरों का सामना करना पड़ता है.

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1975 में स्पैनिश औपनिवेशिक बल जब वेस्टर्न सहारा से हटे तो मोरक्को ने वहां अपने सैनिक तैनात कर दिए और इस इलाके पर दावा जताया. इस कदम से वहां बगावत शुरू हो गई. सहारा के इन बागियों को पोलिसारियो फ्रंट के नाम से जाना जाता है. इस समूह ने 1976 में सहारावी डेमोक्रेटिक रिपब्लिक की घोषणा की.

मोरक्को ने ताकत के बल पर संसाधनों से मालामाल वेस्टर्न सहारा के पश्चिमी हिस्से को अपना हिस्सा बना लिया और व्यवस्थित तरीके से वहां होने वाले विरोध को कुचला. वहीं पूर्वी हिस्से पर पोलिसारियो समूह का नियंत्रण हो गया. मोरक्को ने 2700 किलोमीटर लंबी बालू की एक दीवार बनाई जो इन दोनों हिस्सों को एक दूसरे से अलग करती है.

संयुक्त राष्ट्र ने 1991 में मांग की कि वेस्टर्न सहारा के अंतरराष्ट्रीय कानूनी दर्जे को लेकर एक जनमत संग्रह कराया जाना चाहिए. लेकिन संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता से हुआ युद्ध विराम समझौता लागू होने से कुछ समय पहले ही मोरक्को ने पश्चिमी इलाके पर नियंत्रण कर लिया. इसके बाद से मोरक्को और वेस्टर्न सहारा के लोगों के बीच समझौता कराने की कोशिशों में संयुक्त राष्ट्र को बार बार नाकामी ही हाथ लगी है. आज तक सहारावी लोग इस जनमत संग्रह  का इंतजार कर रहे हैं.

अमीनातु हैदर ने कहा कि वह अपनी मातृभूमि को आजादी मिलने तक संघर्ष जारी रखेंगी. उनका कहा है कि वेस्टर्न सहारा में लोगों को अपनी तकदीर का फैसला करने का अधिकार दिया जाए. दक्षिणी मोरक्को में पैदा होने वाली हैदर को स्पेन ने अपनी नागरिकता देने की पेशकश भी की, लेकिन उन्होंने इससे इनकार कर दिया.

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हैदर शांतिपूर्ण प्रदर्शनों का आयोजन करती हैं. उन्होंने उत्पीड़न के मामलों को दर्ज कर उन्हें दस्तावेजों का रूप दिया है. उन्होंने कई बार भूख हड़ताल भी है ताकि वेस्टर्न सहारा के लोगों की तकलीफों की तरफ दुनिया भर का ध्यान आकर्षित कर सकें. लेकिन मोरक्को के अधिकारियों को ऐसी गतिविधियां बिल्कुल मंजूर नहीं. इसीलिए हैदर को कई बार बिना किसी आरोप के जेल में डाला गया है. उन्होंने चार साल तो एक गोपनीय जेल में बिताए हैं जहां बाकी दुनिया से उनका कोई संपर्क नहीं था.

हैदर का कहना है कि राइट लाइवलीहुड पुरस्कार से उनके अहिंसक संर्घष को मान्यता मिलती है और इससे वेस्टर्न सहारा की आजादी के लिए संघर्ष कर रहे लोगों को हिम्मत मिलेगी. वह अंतरराष्ट्रीय समुदाय से जनमत संग्रह कराने की अपील करती हैं ताकि वेस्टर्न सहारा को स्वनिर्धारण का हक मिले.

एके/एनआर (डीपीए, एपी)

इस साल के राइट लाइवलीहुड पुरस्कार विजेता

 

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