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सहूलियत और चिंता से भरा भविष्य

११ अप्रैल २०१३

सुबह फुटबॉल खेलने का मन हो तो बेडरूम में खेलिए. घर पर मशीनें बता देंगी कि आपको मौसम के हिसाब से कैसे पानी से नहाना चाहिए. नैनोफाइबर से बने खास कपड़े ठंड या गर्मी से बचाएंगे. तकनीक भविष्य को कुछ ऐसा ही रंगना चाह रही है.

तस्वीर: DW/M. Gopalakrishnan

इतना करने के बाद आप तैयार होकर आप अपनी खास ई कार में पर्यावरण का ख्याल रखते हुए दफ्तर पहुंचेंगे. अगर बॉस बहुत प्रगतिशील हैं, तो शायद आपको दफ्तर जाने की भी जरूरत न पड़े. घर पर इंटरनेट के जरिए आप काम कर सकेंगे. जब कभी मूर्ति बनाने का मन करे तो आप 3डी प्रिंटर की मदद से उनकी मूर्तियां प्रिंट कर सकेंगे.

अगर हनोवर मेले में जमा हुए वैज्ञानिकों और कारोबारियों की बात सुनी जाए तो शायद भविष्य ऐसा ही होगा. नए अविष्कारों और शहरी प्रबंधन के नए तरीकों से यह सब धीरे धीरे संभव हो रहा है.

मिसाल के तौर पर स्मार्ट सिटीज प्रॉजेक्ट चला रही कंपनी इनवेंसिस. इनवेंसिस में बिजनेस डेवेलपमेंट का काम कर रहे गेरो कूरा कहते हैं, "स्मार्ट सिटीज प्रॉजेक्ट के तहत शहरों को और इंटेलिजेंट बनाने की कोशिश की जा रही है.“

इनवेंसिस के गेरो कूरातस्वीर: DW/M.Gopalakrishnan

इंटेलिजेंट यानी बुद्धिमान, मतलब ऐसे शहरों से है जहां ऊर्जा की खपत कम हो. कूरा कहते हैं कि दुनिया भर में 70 प्रतिशत ऊर्जा इमारतों में खर्च होती है. इसका बड़ा हिस्सा सप्लाई के दौरान खो जाता है. इनवेंसिस कुछ ऐसे सॉफ्टवेयर बनाती है जिससे इमारतों में खर्च की जाने वाली ऊर्जा यानी बिजली, पानी और हीटिंग को मापा जा सके. इससे पता चलेगा किस जगह कितनी ऊर्जा खर्च हुई है. कूरा कहते हैं कि केवल इतना करके आप अपने घर में ऊर्जा की खपत को 10 फीसदी कम कर सकते हैं. कूरा ब्रेमन शहर की मिसाल देते हैं जहां ऊर्जा मापने की सॉफ्टवेयर के वजह से सालाना 10 प्रतिशत ऊर्जा बचाई जा रही है.

नेटवर्क में शहर

मेले में भविष्य के शहरों के लिए साझा मैनेजमेंट की बात की जा रही है. यानी हर इमारत दूसरी इमारतों से एक नेटवर्क के जरिए जुड़ी होगी. ऊर्जा और पानी सप्लाई के नेटवर्क मिलकर काम करेंगे. यही नहीं, शहर का यातायात भी इस तरह से नेटवर्क में शामिल होगा ताकि यात्री कम से कम वक्त में अपनी मंजिल पहुंच सकें. शहर कार्बन डाय ऑक्साइड उत्सर्जन भी काबू में रख सकेंगे. रूसी कंपनी ऑरवेल आर इसी काम के लिए खास रडार सिस्टम बनाती है जो सड़कों पर नजर रखती है और यातायात को सुरक्षित बनाता है.

ट्रेन और मेट्रो के अलावा ऐसी कारें और बाइकें भी बन रही हैं जिनमें ऊर्जा की खपत कम से कम हो. मिसाल के तौर पर जर्मन कंपनी जोज की इलैक्ट्रो रोलर, गाड़ी हाइड्रोजन से चलती है. जर्मनी में इस कंपनी ने सैंकड़ो मॉडेल बेचे हैं. कार कंपनी सिट्रोएन भी बिजली से चलने वाली अपनी गाड़ी जीरो जी पेश कर रही है. हनोवर मेले में इन कारों का इस्तेमाल किया गया और मेले में एक जगह से दूसरे जगह तक जाने में मेहमानों को मदद मिली.

घर से सब कुछ

लेकिन हो सकता है कि भविष्य में एक जगह से दूसरी जगह जाने की जरूरत ही नहीं पड़े. जर्मन सॉफ्टवेयर कंपनी एसएपी ने भविष्य की दुकान की एक तस्वीर प्रदर्शनी में पेश की. ये मोबाइल ऐप होंगे जिनके जरिए ग्राहक सामान मंगवा भी सकेगा और असली दुकान की तरह अपने पसंदीदा चीजें चुन सकेगा. उसे इन चीजों के बारकोड भी ऐप में मिल जाएंगे. फिर वह या तो दुकान जाकर अपने फोन से पैसे देकर सामान ला सकेगा या फिर इन्हें उसके घर तक पहुंचा दिया जाएगा. हो सकता है कि 3डी प्रिंटर की मदद से आप अपना सामान सीधे इंटरनेट पर डाउनलोड भी कर सकें.

नई तकनीक के जरिए स्कैनमोशन जैसी कंपनियां लोगों की मूर्तियां तक बनाने में सफल हो गई हैं. अगर कोई ऐसा व्यक्ति दिखे जिसे पहचान न सकें, तो ऐसैफस सोल्यूशंस अपने सॉफ्टवेयर से यह समस्या भी सुलझा सकता है. यह सॉफ्टवेयर हर चेहरे को पहचान सकता है, बशर्ते वह व्यक्ति इंटरनेट पर हो.

यही नहीं, दिल के दौरे के बाद दिल के लिए नई मांस पेशियों के लिए खास पुर्जे बनाए जा रहे हैं. त्वचा की बीमारी में पराबैंगनी किरणों से होने वाले इलाज को सीमित किया जा रहा है ताकि मरीज को स्किन कैंसर न हो, आंखों और कान के लिए कृत्रिम पुर्जे तो अभी से मिलने लगे हैं.

ऐसी दिखेंगी भविष्य की दुकानेंतस्वीर: DW/M.Gopalakrishnan

विकास की कीमत

अगर भविष्य वाकई इतना व्यवस्थित और बिना परेशानी का हो, तो क्या बात है. लेकिन कई चिंताएं भी हैं. तकनीकी रास्ता अगर हमारी जिंदगी को सहूलियत से भर तो रहा रहा है, साथ ही इंसान को आलसी और मानसिक रूप से निर्भर भी बना रहा रहा है.

अगर इंटरनेट में हर व्यक्ति की पहचान हो, तो उसका निजी जीवन सार्वजनिक हो जाएगा. अगर शहरी यातायात और प्रशासन एक नेटवर्क में शामिल हो, तो उसकी सुरक्षा पर सवाल उठेंगे. अगर ऊर्जा की खपत को सच में कम करना है, तो दाम कम करने होंगे और नवीनीकृत ऊर्जा के स्रोतों को टिकाऊ बनाना होगा.

रिपोर्ट: मानसी गोपालकृष्णन, हेनोवर

संपादन: ओंकार सिंह जनौटी

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