भावनाओं को चोट पहुंचने का मामला भारत में सेंसरशिप की वजह बनता जा रहा है. फिल्म केदारनाथ एक प्रेमकथा के कारण रोक का शिकार हुई है जिसके केंद्र में हिंदू लड़की और मुस्लिम लड़का है.
विज्ञापन
उत्तराखंड में "केदारनाथ” फिल्म पर रोक लगाए जाने पर लोग हैरान हैं. फिल्म की अंतरधार्मिक रिश्ते की कहानी पर हिंदुवादी गुटों ने आपत्ति जताई थी. उनका आरोप है कि इससे उस कथित प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलेगा जिसे वे "लव जेहाद” कहते हैं. कानून व्यवस्था का हवाला देते हुए सभी जिलाधिकारियों ने अपने अपने जिलों में फिल्म पर बैन लगा दिया.
फिल्म में जानेमाने अभिनेता सैफ अली खान और अपने दौर की मशहूर अभिनेत्री अमृता सिंह की बेटी सारा अली खान मुख्य भूमिका में हैं जो फिल्म में पुरोहित परिवार की बेटी के तौर पर दिखाई गई हैं. उनके साथ सुशांत सिंह राजपूत हैं जो एक मुस्लिम कुली का किरदार निभा रहे हैं. फिल्म में 2013 की केदारनाथ की विकराल बाढ़ और अतिवृष्टि से मची तबाही की पृष्ठभूमि में एक दुखभरी प्रेम कहानी दिखाई गई है. फिल्म का विरोध इसी कहानी को लेकर है. विरोध करने वालों की दलील है कि केदारनाथ हिंदू आस्थाओं का केंद्र है और फिल्म में इस आस्था पर इस लिहाज से चोट पहुंचती है क्योंकि इसमें मुस्लिम किरदार को हिंदू लड़की से प्रेम करते दिखाया गया है.
कुछ हिंदुवादी गुटों की आपत्ति पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज की अगुवाई में एक कमेटी बना दी थी. कमेटी ने रोक न लगाने का फैसला किया, हवाला यही दिया कि ये अभिव्यक्ति की आजादी का मामला है, लेकिन ऐसा कहते हुए भी कमेटी ने एक हैरानी भरी सिफारिश भी कर दी कि वैसे तो फिल्म दिखाने पर आपत्ति नहीं लेकिन अगर जिलाधिकारी चाहें तो अपने यहां कानून व्यवस्था के हालात का जायजा लेने के बाद दिखाने या न दिखाने का फैसला कर सकते हैं.
ये हैं बॉलीवुड की सबसे विवादित फिल्में
फिल्मों को समाज का आईना कहा जाता है. लेकिन कई मामलों में इस आईने को कभी विवाद तो कभी टकराव का सामना करना पड़ा. कुछ फिल्मों पर प्रतिबंध भी लगे तो कुछ ने लोगों का गुस्सा भी झेला. बॉलीवुड की सबसे विवादित कुछ फिल्में.
इंदिरा गांधी के राजनीतिक सफर पर बनी यह फिल्म कांग्रेस के शासन काल में बैन रही. जब सत्ता परिवर्तन हुआ तो इस फिल्म से बैन हटा लिया गया और इसे दूरदर्शन पर भी दिखाया गया.
तस्वीर: Mehboob Studio
इंसाफ का तराजू
बीआर चोपड़ा के निर्देशन और अभिनेता राज बब्बर के अभिनय वाली फिल्म इंजाफ का तराजू भी विवादों में रही. फिल्म में 13 साल की बच्ची के साथ रेप सीन दिखाया गया था जिसका जमकर विरोध किया गया.
बेंडिट क्वीन
फूलन देवी की जिंदगी पर शेखर कपूर की यह फिल्म बॉलीवुड की बेहद ही विवादित फिल्मों में से एक है. फिल्म में न्यूड और रेप सीन के साथ-साथ गालियों का भी इस्तेमाल किया गया था जिसे लेकर विवाद पैदा हुआ.
साल 1993 के मुंबई बम धमाकों की पृष्ठभूमि पर आधारित इस फिल्म के प्रदर्शन पर दो साल तक रोक लगी रही. ऐसा कहा गया कि फिल्म का प्रदर्शन न्यायिक जांच और निर्णय को प्रभावित कर सकता है.
तस्वीर: Jhamu Sughand/Adlabs films
किस्सा कुर्सी का
भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी की राजनीतिक शैली पर तंज कसती इस फिल्म पर आपातकाल के दौरान प्रतिबंध लगा दिया गया था. फिल्म में शबाना आजमी, उत्पल दत्त जैसे मंझे हुए कलाकार थे.
तस्वीर: Badri Prasad Joshi
फिराक
नंदिता दास की यह फिल्म साल 2002 के गुजरात दंगों पर आधारित थी. फिल्म को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कई अवॉर्ड और सम्मान मिले. लेकिन इस फिल्म पर गुजरात में प्रतिबंध रहा और उसे वहां रिलीज नहीं किया गया.
तस्वीर: Percept Picture Company
फायर
शबाना आजमी और नंदिता दास के अभिनय वाली इस फिल्म में लेस्बियन थीम को दिखाया गया था. महाराष्ट्र में शिव सेना और बजरंग दल जैसे कई राजनीतिक गुटों ने इस फिल्म की थीम का विरोध किया. विवादों के बीच यह सवाल भी उठा कि क्या भारत नए सिनेमा के लिए तैयार नहीं है.
तस्वीर: Kaleidoscope Entertainment
वाटर
दीपा मेहता की फिल्म वाटर, आश्रम में रहने वाली विधवाओं की जिंदगी को दिखाती है. फिल्म को हिंदु समाज की मान्यताओं को ठेस पहुंचाने वाला बताया गया और इसके पोस्टरों को भी जलाया गया. लोगों ने फिल्म निर्माण में भी बाधा पहुंचाई.
आरक्षण
जातिगत आरक्षण जैसे संवेदनशील विषय को दिखाती इस फिल्म पर उत्तर प्रदेश, पंजाब और आंध्र प्रदेश में बैन लगा दिया. हालांकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इस बैन को हटाया गया. इस फिल्म में अमिताभ बच्चन, दीपिका पादुकोण मुख्य भूमिकाओं में थे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
ओह माई गॉड
भारत की धार्मिक मान्यताओं और इसकी स्थिति को अच्छे से प्रस्तुत करने के लिए फिल्म की तारीफ की गई. लेकिन विवाद भी इससे दूर नहीं रहे. हिंदुवादी संगठनों ने विरोध कर कहा कि यह हिंदुओं की भावनाओं को आहत करती है. इस फिल्म पर संयुक्त अरब अमीरात में भी प्रतिबंध लगाया गया.
तस्वीर: picture alliance/AP Photo/K.Jebreili
मद्रास कैफे
जान अब्राहम अभिनीत यह फिल्म पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या की पृष्ठभूमि पर आधारित थी. इसमें श्रीलंकाई गृह युद्ध में भारतीय दखल को दिखाया गया था. तमाम तमिल समूहों ने इस फिल्म पर प्रतिबंध की मांग की थी.
पीके
आमिर खान और अनुष्का शर्मा की इस फिल्म ने एक बड़ी बहस छेड़ी थी. फिल्म में दिखाया गया था कि कुछ मान्यताएं और रीति रिवाज अंधविश्वास से भरे हुए हैं. जिसके चलते विवाद खड़ा हुआ था.
तस्वीर: STRDEL/AFP/Getty Images
माय नेम इज खान
साल 2010 में फिल्म के रिलीज के आसपास अभिनेता शाहरुख खान ने कहा था कि वे चाहते हैं कि आईपीएल टूर्नामेंट में पाकिस्तानी खिलाड़ी भी हिस्सा लें. बस फिर क्या था, शिवसेना समेत तमाम हिंदूवादी संगठनों ने फिल्म की रिलीज पर मुश्किलें खड़ी कीं.
तस्वीर: Twentieth Century Fox
फना
फिल्म के रिलीज से पहले अभिनेता आमिर खान ने नर्मदा बांध की ऊंचाई बढ़ाने को लेकर एक बयान दिया था. जिसके बाद गुजरात की तत्कालीन भाजपा सरकार ने राज्य में न सिर्फ फिल्म के रिलीज पर प्रतिबंध लगा दिया था बल्कि आमिर द्वारा प्रचार किए जाने वाले सभी उत्पादों को भी बैन कर दिया था.
बूम
कैटरीना कैफ अपनी इस पहली फिल्म को अब शायद याद भी न रखना चाहें. फिल्म में गुलशन ग्रोवर और कैटरीना कैफ का एक किसिंग सीन था जिसे बाद में हटाया गया था. लेकिन फिल्म को सॉफ्ट पोर्न कहा गया था, जिसके चलते विवाद हुआ.
तस्वीर: Kaizad Gustad
हैदर
कश्मीर की पृष्ठभूमि पर बनी इस फिल्म में भारतीय सेना की भूमिका पर भी सवाल उठाए गए. एक बड़ा गुट इसका विरोध करता रहा साथ ही फिल्म के बॉयकॉट का आह्वान भी किया गया. फिल्म में शाहिद कपूर, तब्बू, श्रद्धा कपूर मुख्य भूमिकाओं में थे.
तस्वीर: Reuters/J. Penny
लम्हा
अभिनेत्री बिपाशा बसु अभिनीत इस फिल्म में कश्मीर मुद्दे को दिखाया गया. लेकिन अपने संवेदनशील विषय के चलते फिल्म सऊदी अरब, पाकिस्तान, बहरीन, कुवैत, कतर, ओमान, संयुक्त अरब अमीरात में बैन है. संयुक्त अरब अमीरात के सेंशरशिप बोर्ड ने फिल्म को बेहद ही विवादित और आपत्तिजनक कहा.
तस्वीर: AP
द डर्टी पिक्चर
सिल्क स्मिता के जीवन पर बनी यह फिल्म एक तो इसके पोस्टर के चलते विवादों में रही. वहीं दूसरा कारण था इसके अदालती पचड़े. सिल्क स्मिता के भाई ने फिल्म निर्देशकों को अदालती नोटिस भेजा.
तस्वीर: ALT Entertainment/Balaji Motion Pictures
परजानिया
गुजरात दंगों पर आधारित इस फिल्म को गुजरात में नहीं दिखाया जा रहा था. लेकिन एक सामाजिक संस्था की मुहिम के बाद इस संवेदनशील फिल्म को गुजरात के कुछ हिस्सों में दिखाया गया.
तस्वीर: AP
एक छोटी सी लव स्टोरी
इस फिल्म की अभिनेत्री मनीषा कोईराला ने ही फिल्म के रिलीज पर बैन की मांग की थी और अदालत का दरवाजा खटखटाया था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
रंग दे बंसती़
आमिर खान अभिनीत इस फिल्म में मामला भावनाओं से जु़ड़ा नहीं था बल्कि यहां पशु संरक्षण और पशु अधिकारों की बात की गई. भाजपा नेता मेनका गांधी ने फिल्म में घोड़े के इस्तेमाल पर सवाल उठाया था.
तस्वीर: picture alliance/dpa
लिपिस्टिक अंडर माय बुर्का
फिल्म निर्माता प्रकाश झा की फिल्म लिपिस्टक अंडर माय बुर्का को सेंसर बोर्ड ने प्रमाणित करने से मना कर दिया था. बोर्ड ने कहा था कि यह एक महिला प्रधान फिल्म है जो असल जिदंगी के परे है. बोर्ड ने कहा कि इसमें विवादास्पद यौन दृश्य, अपमानजनक शब्द और ऑडियो पोर्नोग्राफी शामिल है जो समाज के एक खास तबके के प्रति अधिक संवेदनशील है.
शाहिद कपूर अभिनीत फिल्म उड़ता पंजाब को लेकर बोर्ड और फिल्म निर्माताओं के बीच बड़ा विवाद हुआ था. पंजाब में नशे की समस्या पर बनी इस फिल्म में बोर्ड ने 89 कट सुझाये थे. मामला हाई कोर्ट पहुंचा और अदालत ने एक कट के साथ इसे रिलीज करने की अनुमति दी.
तस्वीर: Phantom Production/Balaji Motion Pictures
मैंसेजर ऑफ गॉड
इस फिल्म को सेंसर बोर्ड ने रिलीज सर्टिफिकेट देने से इनकार कर दिया था और मामले को समीक्षा समिति के पास भेजा था. बोर्ड ने फिल्म निर्माता-निर्देशक, लेखक अभिनेता गुरमीत राम रहीम सिंह के स्वयं को देवता के रूप में पेश किये जाने पर विरोध जताया था. लेकिन फिल्म को प्रमाणन अपीलीय ट्रिब्यूनल ने स्क्रीनिंग की मंजूरी दी. इसके बाद तत्कालीन बोर्ड अध्यक्ष लीला सैमसन ने इस्तीफा दे दिया.
तस्वीर: picture alliance/Pacific Press/A. Khan
जॉली एलएलबी 2
भारतीय न्यायिक व्यवस्था पर व्यंग्य करती अभिनेता अक्षय कुमार की फिल्म जॉली एलएलबी-2 पर सेंसर बोर्ड ने नहीं, बल्कि बंबई हाई कोर्ट ने कट लगाने का आदेश दिया था. कोर्ट ने कहा था कि फिल्म से उन दृश्यों को हटाया जाए जो वकीलों की गलत छवि पेश करते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Sharma
25 तस्वीरें1 | 25
अब ‘लॉ ऐंड ऑर्डर' का तर्क अप्रत्यक्ष रूप से विरोध करने वालों के पक्ष में चला गया. पहले नैनीताल और उधमसिंहनगर और फिर एक एक कर सभी 13 जिलों के जिलाधिकारियों ने फिल्म पर रोक लगा दी. अधिकारियों का कहना है कि अगर फिल्म दिखाने की अनुमति दे देते तो, उपद्रवी शांति भंग कर सकते थे. इस तरह पूरे उत्तराखंड में फिल्म प्रदर्शित ही नहीं हुई. ये बात अलग है कि देश में तमाम जगहों पर और पड़ोसी राज्यों में खबरों के मुताबिक फिल्म को देखा और सराहा जा रहा है.
गौर करने वाली बात ये भी है कि उत्तराखंड और गुजरात के हाई कोर्टों में भी फिल्म को बैन करने की याचिकाएं डाली गई थीं जिन्हें खारिज कर दिया गया था. मजेदार बात है कि विरोध करने वालों ने फिल्म का टीजर देखकर ही इस पर बैन लगाने की मांग कर डाली. कुछ लोगों को फिल्म के नाम पर भी एतराज था. प्रतिबंध लगाने के फैसले के बाद सारा अली खान का भी बयान मीडिया में आया. उन्होंने कहा कि वो इस बैन से आहत हैं जबकि फिल्म का मकसद बांटना नहीं बल्कि लोगों का जोड़ना है.
ये एक अलग बहस है कि केदारनाथ फिल्म, त्रासदी का कितना जीवंत चित्रण कर पाई, कितना न्याय वो स्थानीय पीड़ितों की वेदना को दिखाने में कर पाई या पर्यावरणीय दुर्दशा या अतिवृष्टि जैसी आपदाओं के पीछे तीव्र व्यवसायीकरण जैसी समस्याओं पर कितना ध्यान केंद्रित कर पाई. वह मुख्यधारा के कमर्शियल सिनेमा की एक प्रतिनिधि फिल्म ही तो है.
जब सेंसर की कैंची पर पैदा हुये विवाद
भारत का केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड अकसर विवादों में रहता है. फिल्मों को लेकर उसके फैसले अकसर सुर्खियों में रहे हैं. डालते हैं एक नजर सेंसर बोर्ड और फिल्मों के विवादों पर.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/D. Solanki
लिपिस्टिक अंडर माय बुर्का
फिल्म निर्माता प्रकाश झा और सेंसर बोर्ड के बीच विवाद नया नहीं है. जय गंगाजल के बाद झा की फिल्म लिपिस्टक अंडर माय बुर्का को सेंसर बोर्ड ने प्रमाणित करने से मना कर दिया है. बोर्ड के मुताबिक यह एक महिला प्रधान फिल्म है जो असली जिदंगी के परे है. बोर्ड ने कहा कि इसमें विवादास्पद यौन दृश्य, अपमानजनक शब्द और ऑडियो पोर्नोग्राफी शामिल है जो समाज के एक खास तबके के प्रति अधिक संवेदनशील है.
तस्वीर: Youtube/Prakash Jha Productions
फोर्स 2
जॉन अब्राहम अभिनीत फिल्म फोर्स-2 को बोर्ड ने यू/ए सर्टिफिकेट दिया था. बोर्ड ने निर्देशक अभिनव देव को तीन कट लगाने को भी कहा था क्योंकि ये दृश्य सीमा पार आतंकवाद और भारत-पाक के संबंधों पर आधारित थे. इस पर अभिनेता जॉन अब्राहम ने कहा था कि फोर्स -2, पिछली फिल्म फोर्स का सीक्वेल है और यह सीमा-पार संबंधों पर एक राजनीतिक संदेश देती है. उन्होंने कहा था कि फिल्म को उरी हमलों को पहले फिल्माया गया था.
तस्वीर: UNI
उड़ता पंजाब
शाहिद कपूर अभिनीत फिल्म उड़ता पंजाब को लेकर बोर्ड और फिल्म निर्माताओं के बीच बड़ा विवाद हुआ. पंजाब में नशे की समस्या पर बनी इस फिल्म में बोर्ड ने 89 कट सुझाये थे. मामला हाई कोर्ट पहुंचा और अदालत ने एक कट के साथ इसे रिलीज करने की अनुमति दी. इस मसले पर फिल्म निर्माता अनुराग कश्यप ने सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ से भी संपर्क किया था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/D. Solanki
मैंसेजर ऑफ गॉड
इस फिल्म को सेंसर बोर्ड ने रिलीज सर्टिफिकेट देने से इनकार कर दिया था और मामले को समीक्षा समिति के पास भेजा था. बोर्ड ने फिल्म निर्माता-निर्देशक, लेखक अभिनेता गुरमीत राम रहीम सिंह के स्वयं को देवता के रूप में पेश किये जाने पर विरोध जताया था. लेकिन फिल्म को प्रमाणन अपीलीय ट्रिब्यूनल से स्क्रीनिंग की मंजूरी दी. इसके बाद तत्कालीन बोर्ड अध्यक्ष लीला सैमसन ने इस्तीफा दे दिया.
तस्वीर: AFP/Getty Images/C. Khanna
जॉली एलएलबी 2
भारतीय न्यायिक व्यवस्था पर व्यंग्य करती अभिनेता अक्षय कुमार की फिल्म जॉली एलएलबी-2 पर सेंसर बोर्ड ने नहीं, बल्कि बंबई हाई कोर्ट ने कट लगाने का आदेश दिया था. कोर्ट ने कहा था कि फिल्म से उन दृश्यों को हटाया जाए जो वकीलों की गलत छवि पेश करते हैं. वकील अजय कुमार वाघमारे ने अपनी याचिका में कहा था कि फिल्म के कुछ दृश्यों में वकीलों का मजाक बनाया गया है और देश की न्याय व्यवस्था का अपमान भी किया गया है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Sharma
हॉलीवुड भी नहीं बचा
हॉलीवुड भी सेंसर बोर्ड के कट से अछूता नहीं रहा. जेम्स बॉन्ड सीरीज की 24वीं फिल्म स्पेक्टर को भारत में रिलीज किये जाने को लेकर खबरें आई कि तभी सेंसर बोर्ड ने फिल्म अभिनेता डैनियल क्रेग और अभिनेत्री मोनिका बेलुची के बीच लंबे चुंबन को भारतीय दर्शकों के लिये छोटे करने के आदेश दिये. हालांकि इम्तियाज अली की फिल्म तमाशा में भी सेंसर बोर्ड ने चुंबन दृश्यों पर सवाल उठाये थे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/C. Onorati
अलीगढ़
मनोज वाजपेयी और राज कुमार राव अभिनीत फिल्म अलीगढ़ को बोर्ड ने "ए" सर्टिफिकेट दिया था जिस पर फिल्म निर्देशक हंसल मेहता ने विरोध जताया था. फिल्म के ट्रेलर में समलैंगिकता जैसे शब्दों को देखते हुये यह फैसला लिया गया. बोर्ड प्रमुख पहलाज निहलानी ने अलीगढ़ पर मेहता के विरोध के जवाब में कहा था कि समलैंगिकता जैसा विषय बच्चों और किशोरों के देखने के लिये नहीं है.
तस्वीर: Eros International/Karma Pictures
पहलाज निहलानी
सेंसर बोर्ड के प्रमुख पहलाज निहलानी पद संभालने के बाद से ही फिल्म निर्माताओं की आलोचना का शिकार होते रहे हैं. निहलानी पहले ही स्वयं को सत्ताधारी भाजपा से जुड़ा हुआ बता चुके हैं. टि्वटर पर इन्हें संस्कारी कहकर भी खूब खिंचाई की गई. फिल्म क्या कूल है हम और मस्तीजादे के ट्रेलरों को पास करने को लेकर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने निहलानी से स्पष्टीकरण भी मांगा था.
तस्वीर: Getty Images/AFP/STR
8 तस्वीरें1 | 8
संभव है फिल्म में आपदा को लेकर बुनियादी शोध का अभाव भी हो सकता है- ये सारी बातें इस विवाद से अलग हैं. दूसरी ओर कहानी, किरदार और अभिनय के लिहाज से फिल्म अच्छी या खराब हो सकती है, ये निजी पसंद के दायरे में आता है. लेकिन एक कट्टरवादी, धार्मिक जुनून और नफरत के चश्मे से एक साधारण फिल्म पर रोक लगाने की मांग करना- अभिव्यक्ति की आजादी को कुचलना ही कहा जाएगा. ये नागरिक चेतना और मानवीय नैतिकता के विरुद्ध भी है. ऐसी मांगों के आगे सरकारों को भी झुकना नहीं चाहिए.
सरकार को लॉ ऐंड ऑर्डर जैसा पेंच फंसाने की जरूरत नहीं थी. कमेटी के आधेअधूरे ग्रीन सिग्नल के बावजूद जिलाधिकारियों और पुलिस अधिकारियों को साहसपूर्वक स्टैंड लेना चाहिए था कि वे फिल्म को दिखाएंगे और कड़ी सुरक्षा दी जाएगी. उपद्रव करने वाले संभावितों को पहले ही सख्त कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी जाती या उन्हें हिरासत में ले लिया जाता. राजनीतिक दलों खासकर सत्ताधारी दल और मुख्यमंत्री और उनके मंत्रियों को शांति और सौहार्द की अपील करनी चाहिए थी और लव-जेहाद जैसी विभाजनकारी धारणाओं के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए था.
उत्तराखंड के नैनीताल में ही पिछले दिनों एक सिख पुलिस अधिकारी ने हिंदू-मुस्लिम प्रेमी जोड़े को मारपीट पर उतारू हिंदूवादी कट्टरपंथियों की भीड़ से बचाया था. इसी तरह राज्य के अन्य हिस्सों में हाल के दिनों में पुलिस सूझबूझ और नागरिक जागरूकता की वजह से उपद्रव की साजिशें और हरकतें विफल हुई हैं. तो इस लिहाज से उत्तराखंड पुलिस का रिकॉर्ड अच्छा ही था लेकिन इस मामले में जिलाधिकारी और पुलिस प्रशासन की हिचकिचाहट- चौंकाने वाली बात है, चिंताजनक तो है ही.
मशहूर उपन्यासों पर बनी हैं ये बॉलीवुड फिल्में
उपन्यास या नाटक जब बतौर फिल्में हमारे सामने आते हैं तो दिमाग पर ज्यादा असर करते हैं. शायद यही वजह रही है कि बॉलीवुड में भी ऐसी रचनाओं पर फिल्में बनती रही हैं. एक नजर मशहूर उपन्यासों पर बनी ऐसी ही फिल्मों पर.
तस्वीर: picture-alliance/Everett Collection
साहब बीबी और गुलाम
1962 में बनी यह फिल्म बंगाली लेखक बिमल मित्र के उपन्यास पर आधारित थी. उपन्यास का नाम भी था साहब बीबी और गुलाम. फिल्म में अभिनेत्री मीना कुमारी, वहीदा रहमान और अभिनेता गुरुदत्त अहम भूमिकाओं में थे.
गाइड
1965 में बनी यह फिल्म मशहूर लेखक आरके नारायण के मशहूर उपन्यास "द गाइड" पर आधारित थी. फिल्म में देव आनंद और वहीदा रहमान अहम भूमिकाओं में थे. रिलीज के 42 साल बाद इसे 2007 में कान फिल्म फेस्टिवल के दौरान दिखाया गया था.
सरस्वतीचंद्र
1968 में बनी यह ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म एक गुजराती उपन्यास सरस्वतीचंद्र पर ही आधारित थी. इस उपन्यास को लिखा था गोवर्धनराम माधवराम त्रिपाठी ने. इसी उपन्यास पर 2013 में निर्देशक संजय लीला भंसाली ने एक टेलीविजन सीरियल भी बनाया.
शतरंज के खिलाड़ी
1977 में सत्यजीत रे के निर्देशन में बनी फिल्म शतरंज के खिलाड़ी, मुंशी प्रेमचंद्र की एक कहानी पर आधारित थी. फिल्म में संजीव कुमार, अमजद खान, शबाना आजमी मुख्य भूमिकाओं में थे.
तस्वीर: picture-alliance/Everett Collection
जुनून
1978 में श्याम बेनेगल के निर्देशन में बनी यह फिल्म लेखक रस्किन बॉन्ड के उपन्यास "ए फ्लाइट ऑफ पिजंस" पर आधारित थी. फिल्म में अभिनेता शशि कपूर, कुलभूषण खरबंदा, शबाना आजमी, दीप्ति नवल मुख्य किरदारों में थे.
उमराव जान
1981 में बनी यह फिल्म एक उर्दू उपन्यास "उमराव जान अदा" पर आधारित थी. इस उपन्यास के रचनाकार थे मिर्जा हादी रुसवा. फिल्म में अहम भूमिकाएं निभाईं थीं रेखा और फारुख शेख ने. 2006 में निर्देशक जेपी दत्ता ने अभिषेक बच्चन और ऐश्वर्या के साथ मिलकर उमराव जान का रीमेक बनाया था.
तस्वीर: IANS
मासूम
1983 में बनी यह फिल्म एरिक सेगल के उपन्यास "मैन, वूमेन एंड चाइल्ड" पर आधारित थी. फिल्म का निर्देशन किया था शेखर कपूर ने और फिल्म में अहम भूमिकाएं निभाईं थीं नसीरुद्दीन शाह और शबाना आजमी ने.
1947 अर्थ
1999 में बनी यह फिल्म अमेरिका में रहने वाली एक पाकिस्तानी लेखिका बाप्सी सिधवा के उपन्यास "क्रेकिंग इंडिया" पर आधारित था. फिल्म का निर्देशन किया था दीपा मेहता ने और फिल्म में अहम भूमिका में थे आमिर खान और नंदिता दास.
देवदास
1917 में लिखे गए शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास देवदास पर बॉलीवुड में कई बार फिल्में बन चुकी हैं. 2002 में संजय लीला भंसाली के निर्देशन में शाहरुख खान, ऐश्वर्या राय, और माधुरी दीक्षित अभिनीत देवदास बॉक्स ऑफिस की बड़ी हिट साबित हुई थी.
मकबूल
2003 में आई फिल्म मकबूल, शेक्सपियर के मशहूर नाटक मैकबेथ पर आधारित थी. फिल्म में पंकज कपूर, इरफान खान और तब्बू अहम भूमिकाओं में थे. फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बहुत हिट तो नहीं हुई लेकिन फिल्म के निर्देशक विशाल भारद्वाज को खूब सराहा गया.
पिंजर
2003 में बनी फिल्म पिंजर, अमृता प्रीतम के पंजाबी उपन्यास पिंजर पर आधारित थी. इस फिल्म में भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौर को दिखाया गया है. मुख्य भूमिका निभाई है उर्मिला मातोंडकर और मनोज वाजपेयी ने और चंद्रप्रकाश दि्वेदी ने इसका निर्देशन किया है.
परिणीता
1914 में छपे शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास परिणीता पर भी बॉलीवुड में कई फिल्में बनी हैं. 2005 में प्रदीप सरकार के निर्देशन में एक बार और इस उपन्यास पर फिल्म बनी. विद्या बालन, सैफ अली खान और संजय दत्त की फिल्म में अहम भूमिकाएं थीं.
ओमकारा
2006 में आई यह फिल्म शेक्सपियर की मशहूर रचना ओथेलो पर आधारित थी. फिल्म का निर्देशन किया विशाल भारद्वाज ने और मुख्य भूमिकाओं में थे अजय देवगन, सैफ अली खान और करीना कपूर.
हैलो
बैंकर से लेखक बने चेतन भगत के अमूमन हर एक उपन्यास पर अब तक फिल्में बनी हैं. 2008 में आई फिल्म हैलो, भगत के पहले उपन्यास "वन नाइट एट कॉल सेंटर" पर आधारित थी. सोहेल खान, शरमन जोशी, अमृता अरोड़ा और गुल पनाग समेत कई कलाकार इस फिल्म में थे.
थ्री इडियट्स
2009 में राजकुमार हिरानी के निर्देशन में बनी फिल्म थ्री इडियट्स भी चेतन भगत के ही उन्यास "फाइव प्वाइंट समवन" पर आधारित थी. फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बड़ी हिट साबित हुई. आमिर खान, करीना कपूर, बमन इरानी, आर माधवन और शरमन जोशी की फिल्म में मुख्य भूमिकाएं थीं.
तस्वीर: Getty Images
आयशा
2010 में रिलीज रोमांटिक कॉमेडी फिल्म आयशा में सोनम कपूर और अभय देओल ने मुख्य भूमिकाएं निभाई थीं. माना जाता है कि फिल्म 1815 में लिखे गए उपन्यास "एमा" पर बनाई गई थी. इसी तर्ज पर हॉलीवुड में भी कई फिल्में बन चुकी हैं
सात खून माफ
2011 में आई फिल्म सात खून माफ बनाने वाले निर्देशक थे विशाल भारद्वाज. इस साइकोथ्रिलर ड्रामा में अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा मुख्य भूमिका में थी. यह फिल्म रस्किन बॉन्ड की एक कहानी "सुजैन्स सेवन हसबेंड" पर आधारित थी.
लुटेरा
2013 में आई फिल्म लुटेरा के लिए माना जाता है कि यह लेखक ओ हेनरी की 1907 में आई एक शॉर्ट स्टोरी "द लास्ट लीफ" से प्रेरित थी. फिल्म में मुख्य भूमिकाएं निभाईं थीं सोनाक्षी सिन्हा और रणवीर सिंह ने और इसका निर्देशन किया था विक्रमादित्य मोटवानी ने.
काइ पो चे
अभिषेक कपूर के निर्देशन में बनी यह फिल्म चेतन भगत के उपन्यास "थ्री मिस्टेक्स ऑफ माइ लाइफ" पर बनी थी. फिल्म में तीन दोस्तों की कहानी थी. फिल्म में अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत, राजकुमार राव और अमित साध अहम भूमिकाओं में थे.
तस्वीर: DW/A. Mondhe
हैदर
2014 में आई फिल्म हैदर भी शेक्सपियर की रचना "हैमलेट" पर आधारित थी. फिल्म में शाहिद कपूर, श्रद्धा कपूर, तब्बू और केके मेनन अहम भूमिकाओं में थे. फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छी कमाई की थी. इस फिल्म के निर्देशक थे विशाल भारद्वाज.
टू स्टेट्स
अर्जुन कपूर और आलिया भट्ट अभिनीत यह फिल्म चेतन भगत के उपन्यास "टू स्टेट्स" पर आधारित है. फिल्म की कहानी उत्तर और दक्षिणी भारत के परिवारों के इर्द-गिर्द घूमती हैं. फिल्म के प्रोड्यूसर थे करन जौहर, सिद्धार्थ रॉय कपूर और साजिद नाडियावाला.
तस्वीर: STRDEL/AFP/Getty Images
बॉम्बे वैलवेट
2015 में आई यह फिल्म इतिहासकार ज्ञान प्रकाश की किताब "मुंबई फेबल्स" पर आधारित थी. फिल्म के निर्देशक थे अनुराग कश्यप. बड़े सितारों की मौजूदगी के बाद भी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कुछ खास नहीं कर पाई. फिल्म में अहम भूमिकाएं निभाईं थीं रणवीर कपूर, अनुष्का शर्मा, करन जौहर और केके मेनन ने.