सीमेंट बनाने में काफी ऊर्जा लगती है. साथ ही पर्यावरण के लिए नुकसानदायक ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन भी खूब होता है. लेकिन अब सीमेंट में कुछ ऐसा मिलाने का उपाय मिला है, जिससे ऊर्जा भी बचेगी और पर्यावरण भी.
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विश्व में कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन का करीब पांच फीसदी हिस्सा केवल सीमेंट के उत्पादन से पैदा होता है. आम सीमेंट के निर्माण में भारी मात्रा में कई ग्रीन हाउस गैसें निकलती हैं लेकिन लंबे समय से सीमेंट का कोई विकल्प भी नहीं था. अब माइक्रोबायोलॉजी के रिसर्चरों की लैब से एक ऐसे सीमेंट का आइडिया निकला है, जो सीमेंट से कहीं ज्यादा ईको फ्रेंडली होगा. आइडिया है कि भविष्य की इमारतों में लगने वाले गारे में बैक्टीरिया को मिलाया जाए.
परीक्षणों में पाया गया है कि तरह तरह के बैक्टीरिया के मिश्रण को कई तरह के कचरे के साथ उगाकर उनसे ऐसा उत्पाद बनाया जा सकता है, जो गारे की जगह ले सके. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इसमें कुछ और सही बदलाव लाए जा सकें तो यह उत्पाद एक दिन मजबूत कंक्रीट की जगह भी ले सकेगा.
परीक्षण की शुरुआत मिट्टी में मिलने वाले एक साधारण बैक्टीरिया से हुई, जिसे यूरिया और पोषक तत्वों के एक मिश्रण में मिलाया गया. इस दौरान तापमान को तीस डिग्री के आसपास ही रखा गया. इस रासायनिक प्रक्रिया के बारे में इटली के जीवविज्ञानी, पिएरो तिआनोबताते हैं, "मिश्रण के अंदर बैक्टीरिया बढ़ने लगता है. सीमेंट बनाने के लिए बैक्टीरिया को एक विशेष संख्या तक पहुंचना होता है. करीब तीन घंटे के फर्मेंटेशन के बाद मिश्रण इस्तेमाल के लिए तैयार हो जाता है."
फिर वैज्ञानिक इस बैक्टीरिया वाले मिश्रण को बालू, सीमेंट के कचरे और चावल के भूसे की राख में मिलाते हैं. चूंकि इनमें से ज्यादातर कच्चा माल किसी ना किसी तरह का कचरा है, इसे बनाने में खर्च बहुत कम आता है. साधारण सीमेंट के इस्तेमाल में 1400-1500 डिग्री सेल्सियस तक के ऊंचे तापमान की जरूरत पड़ती है, जिस पर लाइमस्टोन सीमेंट में बदलता है. जबकि बैक्टीरिया केवल 30 डिग्री तापमान पर अपना काम कर देता है. यानि ऊर्जा की बहुत बचत होती है.
बैक्टीरिया इस प्रक्रिया में कैल्शियम कार्बोनेट बनाता है, जो सीमेंट के कणों को आपस में जोड़ने का काम करता है. रसायनशास्त्री, लिंडा विटिग कहती हैं, "मिश्रण में बैक्टीरिया के आदर्श घनत्व का पता होना बहुत जरूरी है. जैसे, हम अब ये जानते हैं कि ज्यादा बैक्टीरिया के होने का मतलब ये नहीं होता कि सीमेंट की गुणवत्ता बेहतर होगी. इसके उलट, कई बार बैक्टीरिया की संख्या अधिक होने के कारण प्रोडक्ट की मजबूती कम हो जाती है." शुरुआती नतीजे सकारात्मक हैं. रिसर्चरों की अब कोशिश है कि बैक्टीरिया को और लाभकारी बनाया जाए. इसके लिए जीवविज्ञानी और रसायनशास्त्री मिल कर काम कर रहे हैं.
ग्रीस की नियापोलिस यूनिवर्सिटी के सिविल इंजीनियर, निकोस बकास बताते हैं, "हमने इस मैटीरियल को गारे के रूप में इस्तेमाल करने का फैसला किया. यह परंपरागत कंक्रीट जितना मजबूत तो नहीं लेकिन इसे आकार देना और लगाना काफी आसान है. इसलिए ये गारे के रूप में अच्छा है." इस्तेमाल करने का तरीका चाहे कुछ भी हो लेकिन रिसर्चरों को यकीन है कि एक दशक से भी कम समय में सीमेंट की ये नई किस्म यूरोपीय निर्माण क्षेत्र का हिस्सा बन चुकी होंगी.
आरपी/आईबी
कितने जरूरी हैं बैक्टीरिया और फंगस?
सूक्ष्मजीवों का हमारे जीवन में बड़ा महत्व है. कभी ये जानलेवा बीमारी के लिए जिम्मेदार होते हैं, तो कभी खाने पीने की जरूरत भी बन जाते हैं.
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फंगस से बचें
खाना पुराना होने पर अक्सर उस पर फंगस लग जाती है. यह हानिकारक हो सकती है. जिन लोगों का इम्यून सिस्टम बेहद कमजोर होता है, उनकी फंगस के संपर्क में बने रहने से मौत भी हो सकती है. कई लोग फंगस दिखने पर ब्रेड का टुकड़ा फेंक देते हैं और बाकी की ब्रेड का इस्तेमाल करने लगते हैं, ऐसा करने से बचें.
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कुछ फायदे भी
सारे बैक्टीरिया, फंगस या वायरस नुकसानदायक नहीं होते, कई फायदेमंद भी होते हैं. जैसे केक में डालने वाला खमीर, दही का बैक्टीरिया या चीज में इस्तेमाल होने वाला फंगस. प्रोसेस्ड फूड बनाने में भी फंगस का इस्तेमाल किया जाता है. ये वसा को जलाने का भी काम करते हैं.
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पहचानना मुश्किल
सलामी बनाने की प्रक्रिया काफी लंबी होती है. इसके लिए मांस को कई कई हफ्तों तक मसाले मिला कर सुखाया जाता है. इस दौरान साफ सफाई और सही तापमान का ध्यान रखना बहुत जरूरी हैं, क्योंकि गर्मी और नमी से फंगस पैदा हो सकता है. चिंता के बात यह है कि सलामी की बनावट ऐसी होती है कि इसे देख कर पता भी नहीं चलता कि यह सलामी का ही रंग है या फिर फंगस का.
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बिना ऑक्सीजन के भी
क्लॉसट्रीडियम बोटुलीनम - यह नाम है एक ऐसे बैक्टीरिया का जो बिना ऑक्सीजन के भी जिंदा रह सकता है. यह बोटॉक्स बनाता है जिसका इस्तेमाल प्लास्टिक सर्जन त्वचा को कोमल बनाने के लिए करते हैं. लेकिन यही बैक्टीरिया अगर खाने में डल जाए तो जान ले सकता है. इससे ना केवल हाथों पैरों की, बल्कि सांस और धड़कन के लिए जिम्मेदार मांसपेशियों को में भी लकवा मार सकता है.
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सलाद से खतरा
यूरोप में लोग सलाद बहुत चाव से खाते हैं. 2011 तक जर्मनी में अंकुरित दाल भी काफी लोकप्रिय थी. उस साल देश में ई. कोलाई बैक्टीरिया के कारण 53 लोगों की जान गयी. पहले माना गया कि यह बैक्टीरिया खीरे और टमाटर से आया. इसलिए कई टन खीरे टमाटर फेंक दिए गए. फिर पता चला कि यह अंकुरित दाल से फैला. हालांकि खाने को पकाने पर यह बैक्टीरिया मर जाता है.
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दूध से दोस्ती
20 डिग्री के तापमान वाला दूध बैक्टीरिया के लिए जन्नत जैसा है. इस तापमान पर वे बहुत ही तेजी से बढ़ते हैं. इंसान को यह बात सदियों पहले ही पता चल गयी थी. इसी का इस्तेमाल करते हुए किसी संस्कृति में दही का तो किसी में चीज का चलन शुरू हुआ. चीज के रूप में दूध को कई महीनों तक संभाल कर रखा जा सकता है.
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लाखों जानें
कैम्पाइलोबैक्टर और सालमोनेला जैसे बैक्टीरिया मांसाहारी आहार से फैलते हैं. कई देशों में मांस को बहुत ज्यादा पकाने का चलन नहीं है. ऐसे में इनके फैलने का खतरा और बढ़ जाता है. इनसे होने वाली बीमारी टाइफस के कारण हर साल दुनिया भर में तीन करोड़ से ज्यादा मौतें दर्ज की जाती हैं.
साफ पानी जरूरी
नोरोवायरस का संक्रमण बहुत आसानी से एक से दूसरे व्यक्ति को फेलता है. यह वायरस पेट में गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार है. बहुत ज्यादा उल्टी दस्त होने से जान पर भी बन सकती है. बचाव के लिए जरूरी है कि हमेशा साफ पानी पिएं.