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साइप्रस का क्या है महत्व

२९ मार्च २०१३

सिर्फ 10 लाख की आबादी वाले साइप्रस ने इन दिनों पूरे आर्थिक जगत की नाक में दम कर रखा है. एक छोटा सा द्वीपीय देश अचानक इतना अहम क्यों हो गया है और पूरी दुनिया की नजरें इस पर क्यों लगी हैं.

तस्वीर: Reuters

भौगोलिक स्थितिः प्राचीन समय में साइप्रस अपनी भौगोलिक स्थिति की वजह से व्यापारिक रास्ते के लिए बेहद अहम था. 333 ईसा पूर्व में ग्रीस के शासक सिकंदर ने इस पर कब्जा कर लिया था, जो फारस के खिलाफ युद्ध में उसके लिए बेहद मददगार साबित हुआ. सिकंदर की मौत के बाद इसने कुछ दिनों तक आजादी भी देखी लेकिन इस पर ग्रीक सभ्यता की गहरी छाप लग चुकी थी. इस जगह को एफ्रोडाइड की जन्मस्थली के लिए भी जाना जाता है, जो प्रेम की देवी मानी जाती हैं.

बाद में रोमनों ने इस पर कब्जा कर लिया.

हमले पर हमलाः सातवीं सदी के बाद से इस छोटे से देश को अरब देशों के हमले झेलने पड़े. 11वीं सदी आते आते यह धर्म के लिए युद्ध का केंद्र बन गया. ईसाई देशों ने इसे अरब देशों पर हमले का अड्डा बना लिया, ताकि उनकी जमीन वापस मिल सके. जब साइप्रस के शासकों ने ब्रिटेन के राजा की बहन को गिरफ्तार करने की गलती की, तो किंग रिचर्ड प्रथम ने साइप्रस पर कब्जा कर लिया. बाद में उन्होंने इसे येरुशलम के राजा को बेच दिया. फिर लगभग तीन सदी तक यहां स्थिरता रही और यह समृद्ध भी हुआ.

2004 में यूरोपीय संघ में दाखिलातस्वीर: picture-alliance/AP

शक्ति का केंद्रः उस्मानिया सल्तनत के उभरते खतरे से निबटने के लिए 1489 में इसे फिर से केंद्र बनाया गया. तब तक उस्मानिया साम्राज्य ने कुस्तुंतुनिया और ग्रीस के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया था. उस्मानिया साम्राज्य ने 1571 में साइप्रस को हथिया लिया.

सुल्तानों का युगः इस द्वीप पर तुर्क प्रभाव आज भी देखा जा सकता है. तुर्क सम्राटों ने पारंपरिक सामंती व्यवस्था को दरकिनार कर ईसाइयों से दोस्ती शुरू कर दी. लेकिन यह ज्यादा दिनों तक नहीं चली और इस बीच ग्रीस की आजादी की जंग भी शुरू हो गई.

खूबसूरती पर मंदी का ग्रहणतस्वीर: Fotolia/zest_marina

ब्रिटिश राजः जिस वक्त साइप्रस के लोग तुर्कों के खिलाफ संघर्ष कर रहे थे, उपनिवेशवादी ताकत ब्रिटेन ने मौका देखा और 1878 में इस जगह पर कब्जा कर लिया. प्रथम विश्व युद्ध में उस्मानिया शासन ने ब्रिटेन के खिलाफ जर्मनी का साथ देने का फैसला किया. ऐसे में साइप्रस पर ब्रिटेन का कब्जा मित्र देशों के लिए बड़ा फायदेमंद साबित हुआ.

साइप्रस की आजादीः इस बीच साइप्रस के लोगों ने ग्रीस के साथ मिल जाने की कोशिशें शुरू कर दीं. गुरिल्ला युद्ध भी शुरू हुआ लेकिन आखिरकार साइप्रस को 1960 में आजादी दे दी गई. उसे ग्रीस में नहीं मिलाया गया.

बैंकों के सामने तैनात सुरक्षाकर्मीतस्वीर: REUTERS

ग्रीस और तुर्कीः आजादी से भी साइप्रस को राहत नहीं मिली और 1963 में साइप्रस में रहने वाले ग्रीक और तुर्कों के बीच झगड़ा शुरू हो गया. इसके बाद संयुक्त राष्ट्र की सेना वहां तैनात कर दी गई, जिसका काम वहां शांति स्थापित करना था.

पचास साल बाद भी यह सेना वहां तैनात है और गश्त करती रहती है. 1974 में तुर्की के हमले के बाद साइप्रस दो हिस्सों में बंट गया. दक्षिण का हिस्सा ग्रीक बोलने वाले लोगों का और उत्तर का तुर्की बोलने वालों का.

मिलन की कोशिशः साइप्रस ने कई बार एकीकृत होने की कोशिश की और 2004 में इसके लिए जनमत संग्रह भी हुआ. लेकिन यह कामयाब नहीं हो पाया.

ताजा मुश्किलः साइप्रस को 2004 में यूरोपीय संघ में शामिल कर लिया गया. इसने यूरो मुद्रा को अपना लिया और धीरे धीरे समृद्ध होने लगा. लेकिन साथ ही यह रूसी धन पर निर्भर होता गया, जिसकी वजह से उसे आज ये दिन देखने पड़ रहे हैं. आर्थिक संकट से निपटने के लिए उसे बेलआउट पैकेज की जरूरत पड़ गई और यूरोपीय संघ ने इस मामले में अच्छी खासी सख्ती बरती है. इसका असर आने वाले कई दशकों तक दिख सकता है.

एजेए/एमजे (एपी)

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