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साझा प्रयास से बदलती गांवों की तस्वीर

१७ नवम्बर २०१०

भारत के सबसे पिछड़े राज्यों में शुमार उड़ीसा की 80 फीसदी ग्रामीण आबादी को आज भी पीने का साफ पानी और शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं. लेकिन कुछ गांवों के लोगों ने अपने हालात को बदल डाला है.

तस्वीर: Prabhakar Mani Tewar

उड़ीसा में कुछ गांव ऐसे भी हैं जहां हर घर में शौचालय और पीने का साफ पानी है. कटक जिले का कोचिला नोगांव हाल ही में ऐसे गांवों की सूची में शामिल हुआ है.

तस्वीर: Prabhakar Mani Tewar

इस गांव के तीन सौ में से ढाई सौ परिवार गरीबी रेखा के नीचे रहते हैं. उनकी मासिक आय सात डॉलर यानी तीन सौ रुपए से भी कम है. लेकिन इन सबके पास वह चीज है जो देश के ज्यादातर गांवों के लोगों के लिए अब भी एक सपना है. इन सबके पास पीने का साफ पानी और अपना स्नानघर और शौचालय है. इतनी कम आय वाले लोगों के पास आखिर यह सुविधाएं आईं कैसे? उड़ीसा सरकार की एक योजना और उसमें गांववालों खासकर महिलाओं की सक्रिय भागीदारी ने इस असंभव नजर आने वाले काम को संभव कर दिखाया है.

शौचालय नहीं होने की वजह से गांव के लोगों को नित्यक्रिया से निवृत्त होने के लिए के लिए खेतों में जाना पड़ता था. उनको अब तक खुले में नहाना पड़ता था. खासकर युवतियों और महिलाओं के लिए यह काफी असुविधाजनक था. इसके अलावा पीने का साफ पानी नहीं होने की वजह से ज्यादातर लोग पेट की बीमारियों से पीड़ित थे. इस गांव की मंजू नायक कहती हैं, "पहले शौचालय जाने में काफी दिक्कत होती थी. पूरे इलाके में गंदगी पसरी रहती थी. रास्ता चलना भी मुहाल था. हमें खुले में ही नहाना पड़ता था. पहले हम कुंए का गंदा पानी पीते थे. उसमें कीड़े होते थे. इसके चलते गांव के ज्यादातर लोग पेट की बीमारियों से पीड़ित थे. अब सब ठीक है. हमें पीने का पानी तो मिल ही रहा है, स्नानघर और शौचालय की सुविधा भी मिल गई है."

उड़ीसा सरकार ने केंद्र के सहयोग से हर गांव के हर घर के लिए शौचालय और पीने का साफ पानी मुहैया कराने की जो योजना शुरू की है, यह बदलाव उसी का नतीजा है. उस योजना के तहत केंद्र, राज्य सरकार और स्थानीय विधायक ने तो पैसे दिए ही, ग्रामीणों ने भी एक-एक हजार रुपए का योगदान दिया.

लगभग 10 साल पहले शुरू हुई इस योजना के नतीजे अब सामने आने लगे हैं. राज्य में अब तक कोई 30 लाख लोग इसका फायदा उठा चुके हैं. कोचिला में बीते महीने ही यह काम पूरा हुआ है. ग्राम परिषद की सदस्य शांतिलता बिसवाल बताती हैं, "इस परियोजना के लिए केंद्रीय योजना आयोग और ग्रामीण विकास मंत्रालय ने 75-75 हजार रुपए दिए हैं. एक लाख रुपए स्थानीय विधायक ने दिए हैं. राज्य सरकार ने जिला प्रशासन के जरिए लगभग चार लाख रुपए दिए हैं. इसके अलावा गांव वालों ने भी एक-एक हजार रुपए का योगदान दिया है. इस साझा प्रयास की वजह से ही यह योजना पूरी तरह सफल रही है और कोचिला नोगांव एक आदर्श गांव बन गया है."

तस्वीर: Prabhakar Mani Tewar

भारत इंटीग्रेटेड सोशल वेलफेयर सोसायटी नामक एक स्थानीय गैर-सरकारी संगठन की ओर से किए गए ताजा सर्वेक्षण में यह तथ्य सामने आया है कि उड़ीसा की कुल ग्रामीण आबादी में महज 20 फीसदी लोगों को ही पीने के साफ पानी और शौचालय की सुविधा उपलब्ध है. यानी सरकार के सामने अब भी बाकी 80 फीसदी लोगों तक इन सुविधाओं को पहुंचाने का चुनौती भरा लक्ष्य है. लेकिन शुरुआत तो हो ही चुकी है. इस योजना को लागू करने में गांव की महिलाओं ने भी अहम भूमिका निभाई.

आखिर शौचालय नहीं होने से सबसे ज्यादा दिक्कत तो उनको ही झेलनी पड़ती थी. गांव में आंगनबाड़ी शिक्षिका ऊषा रानी बेहरा कहती हैं, "अब गांव के हर घर में स्नानघर, शौचालय और पीने की पानी की सुविधा है. इससे सबको फायदा हो रहा है. अब स्वास्थ्य संबंधी जटिलताएं भी पहले के मुकाबले कम हो गई हैं. मुझे खुशी है कि महिलाओं के स्वसहायता समूह ने भी इस योजना को लागू करने में सक्रिय योगदान दिया है. हम गांव वाले बेहद खुश हैं. हर गांव में लोगों को ऐसी सुविधाएं मिलनी चाहिए."

रिपोर्टः कोलकाता से प्रभाकर मणि तिवारी

संपादनः वी कुमार

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