रिसर्चरों का कहना है कि किसी और के साथ बेड साझा करना नवजात शिशुओं के लिए सबसे बड़ा खतरा है. साइंस पत्रिका पीडिएट्रिक्स में छपी रिपोर्ट के अनुसार शोध में पता चला कि सोते में अचानक जान गंवाने वाले 69 फीसदी बच्चे बिस्तर में किसी न किसी के साथ थे.
इस शोध को अंजाम देने के लिए 24 राज्यों में 2004 से 2012 के बीच हुई 8,207 शिशुओं की मौत से संबंधित सरकारी आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया. रिसर्चरों ने पाया कि तीन महीने तक के शिशु के लिए खतरा और तीन से 12 महीने तक वाले आयु वर्ग के शिशुओं को खतरा अलग तरह का है. बहुत छोटे बच्चों की जान को साथ सोने से ज्यादा खतरा होता है. उनके बीच अंतर 73.8 के मुकाबले 58.9 फीसदी का निकला.
तस्वीर: Fotolia/st-fotograf जन्म के समय जिन बच्चों का वजन चार किलोग्राम या उससे ज्यादा होता है, वह बड़े हो कर मोटापे का शिकार हो सकते हैं. इसीलिए इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए कि गर्भवती महिलाएं अत्यधिक खानपान से दूर रहें, कसरत करती रहें और उन्हें डायबिटीज न हो.
बच्चे मां का स्पर्श, उसकी खुशबू को पहचानते हैं. अक्सर कहा जाता हैं कि मां बच्चे की रुलाई पिता से बेहतर पहचानती है. लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं, मां और बाप दोनों अपने बच्चे की रोने की आवाज यकीन के साथ और समान रूप से पहचान सकते हैं.
तस्वीर: Fotolia/Marcitoहर बच्चे की नींद का पैटर्न अलग होता है, लेकिन कुल मिला कर नवजात शिशुओं को करीब 16 घंटे की नींद की जरूरत होती है. जैसे जैसे उम्र बढ़ती है यह कम होती जाती है.
तस्वीर: Gabees/Fotoliaसंयुक्त राष्ट्र के अनुसार जन्म के बाद छह महीने तक तो बच्चे को केवल मां का दूध ही पिलाना चाहिए. थाईलैंड में सिर्फ पांच फीसदी महिलाएं बच्चों को अपना दूध पिलाती हैं. भारत अभी भी इससे बचा है. यूनिसेफ ने कहा कि इस मामले में दुनिया को भारत से सीख लेनी चाहिए.
तस्वीर: AFP/Getty Imagesइन दिनों बहुत कम उम्र के बच्चों के लिए भी कंप्यूटर और स्मार्टफोन पर ऐप उपलब्ध हैं, जो बच्चों के विकास में मददगार हैं. पहले दो सालों में दिमाग का आकार तीन गुना बढ़ जाता है, जो कि चीजों को छूने, फेंकने, पकड़ने, काटने, सूंघने, देखने और सुनने जैसी गतिविधियों से मुमकिन होता है.
तस्वीर: Fotolia/bellaगर्भावस्था के समय कई बातों का सीधा असर पैदा होने वाले बच्चे और उसके आगे के जीवन पर पड़ता है. यदि गर्भवती महिला तनाव में है तो बच्चे तक पोषक तत्व नहीं पहुंचते. इसी तरह जन्म के बाद भी मां का अपनी सेहत पर ध्यान देना जरूरी है.
तस्वीर: picture-alliance/dpaछोटे बच्चों को अक्सर दवाओं से दूर रखने की कोशिश की जाती है. खास तौर से एंटीबायोटिक का इस्तेमाल बच्चों के लिए हानिकारक होता है. इनसे शरीर के फायदेमंद जीवाणु मर जाते हैं. मोटापा, दमा और पेट की बीमारियां बढ़ती हैं.
तस्वीर: Fotowerk - Fotolia.comबच्चों के लिए दुनिया बेहतर बन रही है. पिछले एक दशक में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर में 50 फीसदी तक की गिरावट आई है.
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शिशु जब किसी के साथ बिस्तर साझा करता है तो या तो वह बराबर में सो रहा होता है या फिर वयस्क के ऊपर. कई बार हाथ के वजन से भी उनकी सांस रुक जाने का खतरा होता है. विशेषज्ञों की सलाह है कि कभी भी बच्चे को गोद में दबोच कर, या फिर ऐसी किसी मुद्रा में नहीं सोना चाहिए जिसमें बच्चे के दब जाने की संभावना हो.
शिशु की सांस बहुत नाजुक होती है जो थोड़े वजन से भी रुक सकती है. या फिर उसके किसी ऐसे अंग पर जोर पड़ सकता है जिससे कि उसका दम घुट जाए या शरीर पर कोई और विपरीत असर पड़े. तीन महीने से बड़े बच्चों की मौत के मामले में ज्यादातर को पेट के बल सोता हुआ पाया गया. उनके सोने वाले हिस्से में ही कंबल या नर्म खिलौने पाए गए. इन चीजों के पेट के नीचे आ जाने से भी शिशु की सांस रुक सकती है.
अमेरिकन एकेडेमी ऑफ पीडिएट्रिक्स सलाह देती है कि शिशु को कड़ी सतह वाले बिस्तर पर सुलाएं. शिशु माता पिता के पास हो लेकिन एक ही बिस्तर पर नहीं. शिशु को पीठ के बल सुलाना चाहिए. तकिया, कंबल, बिछौना या खिलौने जैसी चीजें उनके बिस्तर से हटा दी जानी चाहिए.
एसएफ/एएम (एएफपी)