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सालेह के लिए मुश्किल हुआ सत्ता में बने रहना

Priya Esselborn९ अक्टूबर २०११

यमन के राष्ट्रपति अली अब्दुल्लाह सालेह के बयान ने पूरे देश को और उस पर निगाह लगाए बैठी बाकी दुनिया को उलझन में डाल दिया है. उन्होंने कहा है कि वह कुछ दिन में पद छोड़ देंगे. लेकिन ऐसा वादा तीन बार पहले तोड़ा जा चुका है.

तस्वीर: picture alliance/dpa

शनिवार को सालेह ने कहा कि वह कुछ दिनों के भीतर ही पद छोड़ देंगे. लेकिन विश्लेषक मानते हैं कि यह चीजों को कुछ और वक्त तक थामने का तरीका है. एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि अपने इस बयान के जरिए सालेह सिर्फ यह संकेत देना चाहते हैं कि वह अपने विरोधियों के साथ किसी समझौते पर पहुंचने को तैयार हैं.

सालेह 1978 से सत्ता पर काबिज हैं. उनकी सत्ता से आजिज आ चुके लोग अब सड़कों पर उतरकर उन्हें गद्दी से उतरने को कह रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय ताकतें भी उन पर लोगों की इच्छा की सम्मान करने का दबाव बना रही हैं. फिर हथियारबंद विद्रोही और राजनीतिक विपक्ष भी जोर लगा रहे हैं.

तस्वीर: dapd

किसी को यकीन नहीं

देश में बीती जनवरी से विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. लेकिन अब तक कोई हल नहीं निकल पाया है. शनिवार को सरकारी टेलीविजन पर सालेह ने कहा, "मैं सत्ता को खारिज करता हूं और मैं ऐसा करता रहूंगा. आने वाले दिनों में मैं सत्ता छोड़ दूंगा." लेकिन ऐसा वह तीन बार कर चुके हैं. और तीनों बार उन्होंने अपने कदम वापस सत्ता की ओर खींच लिए. अरब देश उन्हें किसी समझौते के लिए मनाने की कोशिश करते रहे हैं लेकिन वे कामयाब नहीं हो पाए हैं.

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जून में उन पर जानलेवा हमला हुआ जिसके बाद वह इलाज कराने के लिए रियाद गए. तब अधिकारी कहते रहे कि सालेह लौट आएंगे. और सितंबर के आखिर में वह देश लौट आए. उप सूचना मंत्री अब्दू अल-जनादी कहते हैं, "वह अपनी योजना के लिए प्रतिबद्धता दिखाने के लिए ही ऐसा कह रहे हैं. लेकिन किसी समझौते पर दस्तखत हो जाने से पहले इस्तीफा देने या फिर सत्ता के हस्तांतरण की कोई योजना नहीं है. वह तो देश को और ज्यादा अव्यवस्था या फिर युद्ध में भी धकेल सकता है."

अल-जनादी कहते हैं कि राष्ट्रपति कुछ दिनों में सत्ता छोड़ने को तैयार हैं लेकिन ऐसा दिनों में होता है या महीनों में, समझौते पर निर्भर करेगा.

सालेह की सत्ता के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों ने देश को थाम दिया है. देश के कई हिस्सों में सरकार का नियंत्रण कमजोर हुआ है. इसकी वजह से देश में काम कर रही अल कायदा की क्षेत्रीय शाखा के मजबूत होने का डर भी मजबूत हुआ है.

तस्वीर: dapd

यूएन का डर

अगले हफ्ते संयुक्त राष्ट्र में यमन पर चर्चा होनी है. ऐसे में विश्लेषकों को लगता है कि सालेह इस बयान के जरिए आने वाली किसी अंतरराष्ट्रीय मुसीबत से बचने की कोशिश कर रहे हैं. विरोधियों के संगठन के प्रवक्ता मोहम्मदअल-साबरी ने कहा, "यह सुरक्षा परिषद में यमन पर चर्चा से पहले उनका नया हथकंडा है. चार महीने पहले उन्होंने कहा था कि उन्हें गल्फ प्लान मंजूर है. तो फिर वह किसका इंतजार कर रहे हैं? इसे लागू करने के लिए तो उन्हें कुछ दिन भी नहीं चाहिए."

राजनयिक कह चुके हैं कि वे सुरक्षा परिषद में प्रस्ताव पारित कराने के काफी करीब हैं. इस प्रस्ताव में यमन को अमेरिका के समर्थन से बनाए गए गल्फ प्लान को लागू करने के लिए कहा जा सकता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि यूएन की कोशिशें नाकाम हो रही हैं. यूएन के दूत जमाल बोएमर दो हफ्ते तक सालेह और विरोधियों के बीच किसी तरह का समझौता कराने की नाकाम कोशिश के बाद यमन से जा चुके हैं.

अपने भाषण में सालेह ने वही शर्त दोहराई कि वह लंबे समय से उनकी विरोधी रहे विपक्षी दलों को सत्ता नहीं देंगे. सालेह का राष्ट्रपति काल 2013 तक है और वह कह चुके हैं कि वह अगला चुनाव नहीं लड़ेंगे. लेकिन जानकारों को लगता नहीं कि अब वह विवाद को इतना लंबा खींचने की स्थिति में हैं. उनकी सेहत के बारे में भी सही जानकारी नहीं है. जून में उन पर हुए हमले में वह काफी जल गए थे.

शुक्रवार को देश की कार्यकर्ता तवाकुल करमन को मिला शांति का नोबेल भी सालेह के लिए दबाव का नया हथियार बन गया है. इस पुरस्कार को अंतरराष्ट्रीय समुदाय में यमन के विरोधियों के लिए समर्थन के तौर पर देखा जा रहा है.

रिपोर्टः रॉयटर्स/वी कुमार

संपादनः एन रंजन

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