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सालेह के साये से कितना दूर होगा यमन

२१ फ़रवरी २०१२

साल भर तक विरोध प्रदर्शनों, कूटनीतिक दांवपेचों और हत्या की कोशिशों में उलझे रहने के बाद यमन के लोगों ने अली अब्दुल सालेह के शासन की सीमा रेखा खींच दी. मंगलवार को सालेह के डेपुटी को देश का नया शासक चुनेगी जनता.

राष्ट्रपति हादीतस्वीर: picture-alliance/dpa

चुनाव के इकलौते उम्मीदवार उप राष्ट्रपति अब्द रब्बू मनसौर हादी की तस्वीरों वाले पोस्टरों से राजधानी सना की दीवारें रंग गई हैं. जगह जगह से फटे और गिरे पड़े मूंछो वाले चेहरे के पुराने पोस्टर अरब जगत के चौथे देश में नई आंधी के निशान छोड़ रहे हैं, ट्यूनीशिया, मिस्र, लीबिया और अब यमन. नवंबर में सालेह के सरकार से बाहर होने के बाद से ही हादी देश के कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में सत्ता की कमान संभाले हुए हैं. सत्ता से सालेह की विदाई के लिए खाड़ी के देशों के दबाव पर हुई जिसे अमेरिका ने भी समर्थन दिया.

पूर्व राष्ट्रपति सालेहतस्वीर: AP

अशांत है यमन

सालेह सत्ता से भले ही बाहर हो गए हों लेकिन देश में अभी भी अशांति का बोलबाला है. केंद्रीय नेतृत्व के कमजोर पड़ने के बाद अलग अलग हिस्सों में अल कायदा मजबूत हो रहा है इसके अलावा आर्थिक संकट ने देश को अकाल के दरवाजे पर ला खड़ा किया है. देश के उत्तरी हिस्से में विद्रोही और दक्षिण में अलगाववादियों ने रविवार को बैलेट बॉक्स ले जा रही गाड़ियों पर हमला किया

राजनैतिक विश्लेषक अब्दुल गनी अल इरयानी कहते हैं, "अगर नई सरकार दक्षिण के लोगों, उत्तर के विद्रोहियों और युवाओं तक पहुंचने के अपने दायित्व में चूकी तो फिर संघर्ष तय है."

यमन के दौरे पर आए अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के डेपुटी जॉन ब्रेन्नान ने अल कायदा के खिलाफ हादी की कोशिशों की तारीफ की है. उन्होंने यह भी उम्मीद जताई कि यमन मध्य पूर्व में शांतिपूर्ण राजनीतिक बदलाव का सफल उदाहरण बनेगा.ज्यादातर यमनवासी हादी को कार्यवाहक की बजाय एक अनुभवी नेता के रूप में देखते हैं. अगर वह जंग के हितों को सेना के हाथ से निकलने नहीं देते तो बहुत से लोगों को डर है कि तब यमन को सत्ता के खालीपन का दुरूपयोग करने वाले लोग कई हिस्सों में बांट देंगे.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

आशंका है कि अल कायदा यमन का इस्तेमाल जमीनी हमलों का बेस बनाने के लिए सकता है और तो और सउदी अरब को संदेह है कि ईरान के शियाओं की ताकत उत्तर में विद्रोहियों को समर्थन दे रही है. देश को एक रखना एक बड़ी चुनौती है, इसके अलावा नया संविधान तैयार करना और दो सालों में बहुदलीय चुनाव का रास्ता साफ करने के लिए जनमत संग्रह करवाना भी कुछ कम नहीं. खाड़ी देशों के साथ हुए समझौते में यह सब तय हुआ.

क्या हादी शासन कर सकेंगे?

सालेह अब अपने इलाज के लिए न्यूयॉर्क में हैं और उन्होंने वापस लौट कर जनरल पीपुल्स कांग्रेस का नेतृत्व करने की बात कही है ऐसे में सत्ता के खेल से वास्तव में उनके हटने के दावों पर संदेह के बादल घिर रहे हैं. अगर वो 1978 से चली आ रही अपनी सत्ता से बाहर भी रहते हैं तो उनके करीबी सहयोगी ही प्रमुख पदों पर काबिज रहेंगे. इसमें रिपब्लिकन गार्ड के मुखिया उनके बेटे अहमद अली, सेंट्रल सिक्योरिटी फोर्स का नेतृत्व कर रहे उनके भतीजे येहिया हैं. इन लोगों की कबायली नेता सादिक अल अहमर और बागी जनरल अली मोहसिन से ठनी हुई है.

हालांकि सालेह अपने ही देश में काफी अलोकप्रिय हो चुके हैं लेकिन फिर भी इससे कोई इनकार नहीं कर सकता कि पहली बार उन्होंने ही यमन को एक रखने में कामयाबी पाई ये एक ऐसा काम है जिसकी तुलना सांपों के सिर पर नाचने से की जाती है. दक्षिणी अब्यान प्रांत के हादी ने सालेह की 1994 के गृहयुद्द में सहायता की. सत्ताधारी पार्टी के ज्यादातर नेताओं की तरह हादी भी सेना के जरिए ही प्रमुख पद पर पहुंचे. हादी को 1966 में सैन्य तरकीबें सीखने के लिए ब्रिटेन भेजा गया था. बाद में उन्हें देश का रक्षा मंत्री भी नियुक्त किया गया. विपक्षी इस्लाह पार्टी के नेता उन्हें, "कुशल और अच्छे जुड़ाव वाला मगर राजनैतिक रूप से कमजोर" शख्स मानते हैं. 

दक्षिण की समस्या

अगर वोट देने के लिए कम लोग आते हैं तो चुनाव की वैधता पर सवाल उठेंगे. दक्षिण के अलगाववादियों समाजवादी देश चाहते है जिसे  1990 में सालेह ने अपने साथ जोड़ा था. उनका कहना है कि वो चुनाव में हिस्सा नहीं लेंगे. उधर उत्तर में हूदियों ने कमजोर केंद्रीय सरकार के बीच देश के भीतर ही अपना देश खड़ा कर लिया है. उन्होंने यह भी कहा है कि वो बस अपने हितों के बारे में सोच रहे हैं.

रिपोर्टः रॉयटर्स, एएफपी/एन रंजन

संपादनः आभा एम

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