साहित्य अकादमी ने लेखकों के पक्ष में एकजुटता प्रदर्शित करते हुए उन पर होने वाले हमले की कड़ी निंदा की है.
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उम्मीद की जा रही है कि अकादमी के इस कदम से 2015 का वाकया दोहराने की नौबत नहीं आएगी जब कई साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेताओं ने अपना अवार्ड लौटा दिया था. दरअसल 26 प्रमुख लेखकों ने पत्र लिखकर अकादमी से गोवा के अवार्ड विजेता लेखक दामोदर मौजो और मलयालम उपन्यासकार एस हरीश को बार-बार मिल रही धमकियों की निंदा करने का आग्रह किया था.
साहित्य अकादमी के अध्यक्ष चंद्रशेखर कंबार ने बेंगलुरु से आईएएनएस से टेलीफोन पर बातचीत में कहा, "मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि अकादमी लेखकों के खिलाफ सभी हमलों की निंदा करती है. मैं मौजो व हरीश से जुड़ी खबरों से दुखी हूं. मैं कड़े शब्दों में इन धमकियों की निंदा करता हूं."
81 वर्षीय कंबर ने कहा कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर हरीश जैसे लेखकों को मिल रही धमकियों की ओर उनका ध्यान आकृष्ट करेंगे, "मैं संबंधित मंत्री (संस्कृति मंत्री महेश शर्मा) से बात करने की कोशिश कर रहा हूं लेकिन वह उपलब्ध नहीं हैं." उन्होंने दृढ़ता के साथ कहा, "अकादमी स्वतंत्र आवाज का समर्थन करती है और मुझे इसमें कोई संकोच नहीं होगा."
अकादमी इस बार भले ही फौरन हरकत में आ गई है लेकिन लेखक एमएम कल्बुर्गी, गोविंद पनसरे और नरेंद्र दाभोल्कर की हत्या की निंदा करने में उसे 54 दिन लग गए थे. इस पर कंबार ने कहा, "बीती बातों को भूल जाइए. हम सब कुछ अपनी क्षमता से कर रहे हैं और हमने पहले ही इस पर अपना रुख जाहिर कर दिया है कि हम एस हरीश और दामोदर मौजो पर हमले की निंदा करते हैं."
अकादमी ने एक आधिकारिक विज्ञप्ति के माध्यम से गुरुवार की दोपहर अपनी बात दोहराते हुए कहा, "वह न सिर्फ भारत में बल्कि पूरी दुनिया में लेखकों, विचारकों और कवियों पर होने वाले सभी हमलों की निंदा करती है." कंबार द्वारा हस्ताक्षरित साहित्य अकादमी की विज्ञप्ति में कहा गया, "साहित्य अकादमी इन हमलों की कड़ी निंदा करती है और लेखकों के साथ खड़ी है."
भारतीय लेखक मंच के बैनर तले जिन कद्दावर व अवार्ड विजेता लेखकों ने अकादमी को पत्र लिखकर इन हमलों की निंदा करने का आग्रह किया उनमें नयनतारा सहगल, केकी दारुवाला, के सच्चिदानंद, रीतू मेनन, जेरी पिंटो और मीना अलेक्जेंडर शामिल हैं. लेखक मंच ने बताया कि 2015 में अकादमी साहसिक व सार्वजनिक रुख अपनाने में विफल रही थी.
अकादमी के बयान पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कवि केकी दारुवाला ले कहा, "यह प्रशंसनीय खबर है." दारुवाला उन लोगों में शामिल हैं जिन्होंने 2015 में अपना साहित्य अकादमी अवार्ड लौटा दिया था. उन्होंने आईएएनएस से बातचीत में कहा, "मैं खुश हूं कि 2015 जैसी स्थिति नहीं दोहराई गई. हमने अपना काम कर दिया है. मैं अकादमी के मुखर होने की प्रशंसा करता हूं, खासतौर से श्री कंबार के कदम की सराहना करता हूं जिन्होंने 2015 की तरह चुप रहने जी जगह मसले पर तत्काल संज्ञान लिया."
इस बीच सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि किताबों पर प्रतिबंध लगाने की संस्कृति से विचारों के स्वतंत्र प्रवाह पर असर होगा और इसका सहारा तब तक नहीं लेना चाहिए जब तक वह भारतीय दंड संहिता की धारा 292 के तहत न आता हो जिसमें अश्लीलता पर रोक है. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने हरीश द्वारा 'मीशा' से कुछ अंश को हटाने की मांग करते हुए दायर याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.
आईएएनएस/आईबी
यो हैं प्रकाशकों को आईना दिखाने वाली किताबें
प्रकाशकों को आईना दिखाने वाली किताबें
दुनिया में ऐसे तमाम लेखक आए जिनके उपन्यासों को बेहद पसंद किया गया. लेकिन इनमें से कुछ ऐेसे भी थे जिनकी कहानियों को पहले प्रकाशकों ने छापने से ही इनकार कर दिया. लेकिन जब ये कहानियां छपी तो इन्होंने इतिहास बना दिया.
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हैरी पॉटर (Harry Potter)
ब्रिटिश लेखिका जेके रॉलिंग की किताब हैरी पॉटर के अब कई भाग बाजार में आ चुके हैं. लेकिन एक दौर वह भी था जब कोई प्रकाशक इसकी मैनुस्क्रिप्ट तक देखने को तैयार नहीं था. रॉलिंग को कई प्रकाशकों ने सिरे से नकार दिया. लेकिन रॉलिंग अपनी पहली किताब ब्रिटेन के एक छोटे से प्रकाशक से छपवाने में सफल रहीं. तब से लेकर अब तक हैरी पॉटर के तमाम भाग आ चुके हैं.
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मॉबी डिक (Moby Dick)
कई प्रकाशकों ने कप्तान अहाब और सफेद व्हेलों के साथ उनके एनकांउटर की इस कहानी को छापने से मना कर दिया था. लेखक हरमन मेलविल से कहा गया कि कहानी बेहद ही लंबी है और क्या इसमें व्हेल की जगह आकर्षक मादाओं को शामिल नहीं किया जा सकता. हालांकि किताब साल 1851 में जैसे-तैसे छप गई. मेलविल के जीवन काल में इसे कभी व्यावसायिक सफलता नहीं मिली, लेकिन आज इसे अमेरिकी साहित्य की एक महान रचना माना जाता है.
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द स्पाई हू केम इन फॉर्म द कोल्ड (The Spy Who Came in from the Cold)
शीत युद्ध से जुड़े इस उपन्यास को दुनिया ने पसंद किया. उपन्यास इंटरनेशनल बेस्टसेलर की कैटेगिरी में शामिल हुआ. लेकिन एक वक्त था जब लेखक जॉन ले कैरे की इस रचना को रिव्यूअर ने यह सोचकर खारिज कर दिया कि इस लेखक का कोई भविष्य ही नहीं है. लेकिन साल 1963 में यह उपन्यास छपा और इसी साल कहानी को बेस्ट क्राइम नोवेल का गोल्ड डैगर अवार्ड मिला. दो साल बाद इस उपन्यास पर फिल्म बनी.
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कैरी (Carrie)
कैरी, एक ऐसी लड़की की कहानी है जिसके पास टेलीकाइनैटिक शक्तियां होती है. टेलीकाइनैटिक शक्ति मतलब मस्तिष्क की ऐसी शक्तियां जिससे वह किसी वस्तु को बिना छुए स्थानातंरित कर सके. छपने से पहले यह उपन्यास तकरीबन 30 बार खारिज हुआ. लेकिन साल 1974 में जैसे-तैसे छप गया. यह एक हाई स्कूल टीचर स्टीफन किंग का लिखा पहला उपन्यास था. बाद में इस पर फिल्म भी बनी. लेखक किंग बेस्ट सेलर ऑथर की श्रेणी में शामिल हुए.
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द टेल ऑफ पीटर रैबिट (The Tale of Peter Rabbit)
तमाम प्रकाशकों ने ब्रिटिश लेखक बीट्रिक्स पोटर की बच्चों के लिए तैयार की गई इस किताब की मैन्युस्क्रिप्ट को सिरे से नकार दिया. यह कहानी एक शरारती खरगोश की है. तमाम जगह से ना सुनने के बाद लेखक ने इसे स्वयं छापने का निर्णय लिया. किताब की 4.5 करोड़ प्रतियां बिकी और कई भाषाओं में इसका अनुवाद हुआ. इसे आज भी एक नर्सरी क्लासिक माना जाता है.
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लॉर्ड ऑफ द फ्लाइज (Lord of the Flies)
विलियम गोल्डिंग की इस रचना को करीब 20 बार खारिज किया गया. एक लेखक ने इसे बेहद ही बकवास और बेतुकी कल्पना कहा था. लेकिन साल 1954 में यह छपी. यह कहानी स्कूल में पढ़ने वाले लड़कों के एक समूह की है जो एक निर्जीव से द्वीप में जिंदगी के लिए संघर्ष करते हैं. इस उपन्यास को दुनिया के कई देशों में बच्चों के हाई स्कूल पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है. साथ ही इसे कई बार रुपहले पर्दे पर भी उतारा जा चुका है.
तस्वीर: picture alliance/Everett Collection
लोलिता (Lolita)
एक बुजुर्ग प्रोफेसर और एक युवा लड़की की यह कहानी साल 1955 में फ्रांस में छपी और इसके तीन साल बाद अमेरिका में. इस पर कई नाटक खेले गए और फिल्मों में भी इस कहानी को दिखाया गया. लेकिन रूसी-अमेरिकन लेखक वाल्दमिर नावोकोव को इसे छपवाने के लिए कई प्रकाशकों के चक्कर लगाने पड़े. एक प्रकाशक ने उन्हें यह तक सलाह दे डाली कि इस रचना को जला देना चाहिए. लेकिन जब यह छपी तो दुनिया ने इसे खूब पसंद किया.
तस्वीर: Penguin
गोन विद द विंड (Gone with the Wind)
गृह युद्ध की कहानी बयां करते इस उपन्यास की लेखिका मार्ग्रेट मिचेल को इसके छपने के एक साल बाद 1937 में पुलित्जर पुरस्कार मिला. लेकिन 1000 पन्नों के इस नोवेल को करीब 38 बार प्रकाशकों से ना सुनना पड़ा. लेकिन दो साल बाद इस पर फिल्म बनी जिसने करीब आठ ऑस्कर अवॉर्ड जीते. साथ ही फिल्म हॉलीवुड की बेशुमार कमाई करने वाली फिल्मों में शामिल हुई. (डागमर ब्रेटनबाख/एए)