मध्यप्रदेश में बीजेपी की सत्ता में वापसी कराने में राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया की बड़ी भूमिका रही है लेकिन ग्वालियर-चंबल इलाके में सिंधिया की बढ़ती सक्रियता से सियासी घमासान के आसार बनने लगे हैं.
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ऐसे संकेत मिलने लगे हैं कि सिंधिया की केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से दूरी खाई में बदलने लगी है. ज्योतिरादित्य सिंधिया का अभी हाल में ही हुआ ग्वालियर-चंबल इलाके का दौरा नई सियासी कहानी की शुरूआत तो कर ही गया है. मुरैना केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का संसदीय क्षेत्र है और यहां के दो गांव में जहरीली शराब पीने से 25 लोगों की मौत हुई है, सिंधिया ने इन गांव में पहुंचकर पीड़ितों का न केवल दर्द बांटा बल्कि प्रभावितों के परिवारों को अपनी तरफ से 50-50 हजार की आर्थिक सहायता भी दी.
सिंधिया ने प्रभावितों के बीच पहुंचकर भरोसा दिलाया कि राज्य सरकार दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करेगी. साथ ही कहा कि वे लोगों के सुख में भले खड़े न हों लेकिन संकट के समय उनके साथ हैं.
सिंधिया के मुरैना और ग्वालियर प्रवास के दौरान भाजपा का कोई बड़ा नेता तो उनके साथ नजर नहीं आया लेकिन कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए तमाम बड़े नेता जैसे राज्य सरकार के मंत्री प्रद्युमन सिंह तोमर, सुरेश राठखेड़ा, ओपीएस भदौरिया आदि मौजूद रहे. संगठन से जुड़े लोग और मंत्री भारत सिंह कुशवाहा जो तोमर के करीबी माने जाते हैं उन्होंने सिंधिया के दौरे से दूरी बनाए रखी.
सिंधिया के दौरे के अगले दिन ही केंद्रीय मंत्री तोमर शराब कांड प्रभावित परिवारों के बीच पहुंचे और उनकी पीड़ा को सुना. तोमर के इस प्रवास के दौरान सिंधिया का समर्थक कोई भी मंत्री नजर नहीं आया. तोमर ने कहा, "घटना वाले दिन मैंने मुख्यमंत्री से चर्चा की और मैं लगातार टेलीफोन पर संपर्क में रहा. जो भी दोषी है, उन पर कठोर कार्रवाई की जरूरत है. इस दुख की घड़ी में हम सबको दुख बांटने की जरूरत है. इस घटना से लोग सबक लेंगे कि इस प्रकार की घटना दोबारा न हो."
भाजपा सूत्रों के अनुसार सिंधिया और तोमर के बीच दूरियां बढ़ने की शुरूआत तो उपचुनाव के दौरान ही हो चली थी और नतीजे आने के बाद यह दूरी साफ नजर आने लगी. मुरैना शराब कांड ने साफ कर दिया है कि दोनों नेताओं के रिश्ते वैसे नहीं रहे जैसे पहले हुआ करते थे.
भारत की कौन सी पार्टी कितनी अमीर है
भारत की सात राष्ट्रीय पार्टियों को 2016-2017 में कुल 1,559 करोड़ रुपये की आमदनी हुई है. 1,034.27 करोड़ रुपये की आमदनी के साथ बीजेपी इनमें सबसे ऊपर है. जानते हैं कि इस बारे में एडीआर की रिपोर्ट और क्या कहती है.
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भारतीय जनता पार्टी
दिल्ली स्थित एक थिंकटैंक एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय जनता पार्टी को एक साल के भीतर एक हजार करोड़ रूपये से ज्यादा की आमदनी हुई जबकि इस दौरान उसका खर्च 710 करोड़ रुपये बताया गया है. 2015-16 और 2016-17 के बीच बीजेपी की आदमनी में 81.1 फीसदी का उछाल आया है.
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कांग्रेस
राजनीतिक प्रभाव के साथ साथ आमदनी के मामले भी कांग्रेस बीजेपी से बहुत पीछे है. पार्टी को 2016-17 में 225 करोड़ रुपये की आमदनी हुई जबकि उसने खर्च किए 321 करोड़ रुपये. यानी खर्चा आमदनी से 96 करोड़ रुपये ज्यादा. एक साल पहले के मुकाबले पार्टी की आमदनी 14 फीसदी घटी है.
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बहुजन समाज पार्टी
मायावती की बहुजन समाज पार्टी को एक साल के भीतर 173.58 करोड़ रुपये की आमदनी हुई जबकि उसका खर्चा 51.83 करोड़ रुपये हुआ. 2016-17 के दौरान बीएसपी की आमदनी में 173.58 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. पार्टी को हाल के सालों में काफी सियासी नुकसान उठाना पड़ा है, लेकिन उसकी आमदनी बढ़ रही है.
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नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी
शरद पवार की एनसीपी पार्टी की आमदनी 2016-17 के दौरान 88.63 प्रतिशत बढ़ी. पार्टी को 2015-16 में जहां 9.13 करोड़ की आमदनी हुई, वहीं 2016-17 में यह बढ़ कर 17.23 करोड़ हो गई. एनसीपी मुख्यतः महाराष्ट्र की पार्टी है, लेकिन कई अन्य राज्यों में मौजूदगी के साथ वह राष्ट्रीय पार्टी है.
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तृणमूल कांग्रेस
आंकड़े बताते हैं कि 2015-16 और 2016-17 के बीच ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस की आमदनी में 81.52 प्रतिशत की गिरावट हुई है. पार्टी की आमदनी 6.39 करोड़ और खर्च 24.26 करोड़ रहा. राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा रखने वाली तृणमूल 2011 से पश्चिम बंगाल में सत्ता में है और लोकसभा में उसके 34 सदस्य हैं.
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सीपीएम
सीताराम युचुरी के नेतृत्व वाली सीपीएम की आमदनी में 2015-16 और 2016-17 के बीच 6.72 प्रतिशत की कमी आई. पार्टी को 2016-17 के दौरान 100 करोड़ रुपये की आमदनी हुई जबकि उसने 94 करोड़ रुपये खर्च किए. सीपीएम का राजनीतिक आधार हाल के सालों में काफी सिमटा है.
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सीपीआई
राष्ट्रीय पार्टियों में सबसे कम आमदनी सीपीआई की रही. पार्टी को 2016-17 में 2.079 करोड़ की आमदनी हुई जबकि उसका खर्च 1.4 करोड़ रुपये रहा. लोकसभा और राज्यसभा में पार्टी का एक एक सांसद है जबकि केरल में उसके 19 विधायक और पश्चिम बंगाल में एक विधायक है.
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समाजवादी पार्टी
2016-17 में 82.76 करोड़ की आमदनी के साथ अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी सबसे अमीर क्षेत्रीय पार्टी है. इस अवधि के दौरान पार्टी के खर्च की बात करें तो वह 147.1 करोड़ के आसपास बैठता है. यानी पार्टी ने अपनी आमदनी से ज्यादा खर्च किया है.
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तेलुगु देशम पार्टी
आंध्र प्रदेश की सत्ताधारी तेलुगुदेशम पार्टी को 2016-17 के दौरान 72.92 करोड़ रुपये की आमदनी हुई जबकि 24.34 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े. पार्टी की कमान चंद्रबाबू के हाथ में है जो आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री भी हैं.
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एआईएडीएमके और डीएमके
तमिलनाडु में सत्ताधारी एआईएडीएमके को 2016-17 में 48.88 करोड़ रुपये की आमदनी हुई जबकि उसका खर्च 86.77 करोड़ रुपये रहा. वहीं एआईएडीएमके की प्रतिद्वंद्वी डीएमके ने 2016-17 के बीच सिर्फ 3.78 करोड़ रुपये की आमदनी दिखाई है जबकि खर्च 85.66 करोड़ रुपया बताया है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
एआईएमआईएम
बचत के हिसाब से देखें तो असदउद्दीन औवेसी की पार्टी एआईएमआईएम सबसे आगे नजर आती है. पार्टी को 2016-17 में 7.42 करोड़ रुपये की आमदनी हुई जबकि उसके खर्च किए सिर्फ 50 लाख. यानी पार्टी ने 93 प्रतिशत आमदनी को हाथ ही नहीं लगाया. (स्रोत: एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म)
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एक तरफ जहां सिंधिया और तोमर के बीच दूरी बढ़ रही है तो दूसरी ओर भोपाल में प्रदेश कार्यसमिति के पदाधिकारियों के आयोजित पदभार ग्रहण समारोह में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने सिंधिया की खुलकर सराहना की, साथ ही उन्होंने राज्य में भाजपा की सरकार बनने का श्रेय भी सिंधिया को दिया.
राजनीतिक विश्लेषक देव श्रीमाली का मानना है कि सिंधिया की अपनी कार्यशैली है, तो वहीं भाजपा में एक व्यवस्था के तहत काम चलता है, उनका एक अपना संगठन का ढांचा है और उसके लिए नियम प्रक्रिया निर्धारित है. सिंधिया के लिए भाजपा में पूरी तरह घुल मिल पाना आसान नहीं लगता. यही कारण है कि उनके प्रवास के दौरान भाजपा के पुराने नेता और कार्यकर्ता नजर नहीं आते, सिर्फ वही लोग नजर आते हैं जो कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए हैं.
भारत में तथाकथित 'बैचलर मुख्यमंत्री' क्लब में उत्तर प्रदेश के योगी आदित्यनाथ के रूप में एक और नया सदस्य जुड़ गया है. आज तक मुख्यमंत्री बने ज्यादातर अविवाहित नेता बीजेपी के रहे हैं.
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योगी आदित्यनाथ (उत्तर प्रदेश)
महंत से बीजेपी नेता बने 44 साल के योगी आदित्यनाथ लगातार पांच बार संसद के सदस्य रहे हैं. अब उन्हें उत्तर प्रदेश में बीजेपी की भारी जीत के बाद प्रांत का मुख्यमंत्री बनाया गया है. भारत में पहले से ही कई राज्यों में अविवाहित मुख्यमंत्रियों की लंबी सूची है.
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त्रिवेंद्र सिंह रावत (उत्तराखंड)
लंबे समय तक आरएसएस से जुड़े रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मार्च 2017 में उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पद संभाला. मुख्यमंत्री बनने से पहले वह बीजेपी में कई अहम जिम्मेदारियां संभाल चुके हैं.
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एमएल खट्टर (हरियाणा)
62 साल के खट्टर हरियाणा के मुख्यमंत्री हैं और उत्तराखंड के नये सरकार प्रमुख की तरह वे भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रचारक रहे हैं. बीजेपी आरएसएस का ही राजनीतिक फ्रंट है और आरएसएस के वर्तमान प्रमुख मोहन भागवत ने भी कभी विवाह नहीं किया.
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सर्बानंद सोनोवाल (असम)
पूर्वोत्तर राज्य असम के 54 साल के मुख्यमंत्री सोनोवाल भी अविवाहित हैं. सोनोवाल 2011 में बीजेपी के सदस्य बने और 2016 में सीएम बनाये जाने से पहले वे केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार में खेल और युवा मामलों के मंत्री भी रहे. बहुत बाद में बीजेपी से जुड़े सोनोवाल ने भी कई पुराने बीजेपी नेताओं की तरह कभी शादी नहीं की.
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नवीन पटनायक (ओडीशा)
बीजू जनता दल के प्रमुख और सन 2000 से राज्य के मुख्यमंत्री रहे 70 साल के नवीन पटनायक हमेशा से अपने वोटरों को कहते आए हैं कि चूंकि उन्होंने शादी नहीं की और उनके बच्चे नहीं हैं, वे अपने राज्य में कांग्रेस की तरह कभी परिवारवाद नहीं चलाएंगे. उनके पिता बीजू पटनायक दो बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे थे.
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ममता बनर्जी (पश्चिम बंगाल)
पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी भी अविवाहित गैर बीजेपी मुख्यमंत्रियों में शामिल हैं. 2011 में 33 सालों से जारी वामपंथी शासन को समाप्त कर सत्ता में 62 साल की बनर्जी का कहना है कि वे केवल अपने राज्य के बारे में सोचती हैं, इसीलिए उन्हें अपने बारे में सोचने का समय नहीं मिला.
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मायावती (उत्तर प्रदेश)
61 साल की मायावती प्रभु दास चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं. पूर्व मुख्यमंत्री मायावती प्रशिक्षित वकील हैं और बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख भी. कभी शादी ना करने वाली मायावती अपनी चुनावी रैलियों में कहती आई हैं, "मैं नीची जाति की हूं, अविवाहित हूं, और आपकी हूं."
तस्वीर: Suhail Waheed
जे जयललिता (तमिलनाडु)
देश की जानी मानी राजनेता रहीं स्वर्गीय जे जयललिता पांच बार दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहीं. कभी विवाह ना करने वाली जयललिता का देहांत दिसंबर 2016 में 68 साल की उम्र में हुआ. अभिनेत्री से नेता बनी जयललिता 1982 में अपने सह अभिनेता से नेता बने एमजी रामचंद्रन की पार्टी में शामिल हुई थीं.