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सिगरेट और प्रदूषण से नहीं होता अस्थमा

१ मई २०१३

अस्थमा के रोगियों को अपनी बीमारी के साथ दूसरों की गलतियों का भी खामियाजा उठाना पड़ता है क्योंकि उन पर वातावरण बहुत ज्यादा असर डालता है. वर्ल्ड अस्थमा डे पर डॉ केके अग्रवाल बता रहे हैं इससे बचें कैसे.

डीडब्ल्यूः एक रिसर्च से पता चला है कि अमेरिका में पैदा होने वाले या वहां 10 साल से ज्यादा समय बिताने वाले बच्चों में अस्थमा होने की आशंका दूसरे देशों की तुलना में बहुत ज्यादा है. भारत की क्या स्थिति है?

डॉ केके अग्रवालः अस्थमा दुनिया भर में बढ़ रहा है. तीस साल पहले जब हम कॉलेज में पढ़ रहे थे तब महज एक फीसदी लोग इसके चंगुल में थे. अब करीब 10 फीसदी लोग इससे प्रभावित हैं. भारत में भी अस्थमा और एलर्जी के मरीजों की तादाद इसी तरह से बढ़ी है.

अस्थमा होने के आनुवांशिक कारण होते हैं लेकिन साथ ही जीवनशैली का भी इस पर असर है? जीवनशैली या पर्यावरण इन दोनों में अस्थमा पर किसका असर ज्यादा है?

अस्थमा जीवनशैली से जुड़ा है या पर्यावरण से यह बताना मुश्किल है. क्या इसके पीछे सिगरेट या प्रदूषण है तो इसका जवाब न है क्योंकि ये दोनों इसे बढ़ा सकते हैं लेकिन पैदा नहीं कर सकते. अगर ये बीमारी आनुवांशिक है तो फिर पहले इतनी ज्यादा क्यों नहीं थी. ऐसे सवालों के जवाब दे पाना इस वक्त मुश्किल है. आज की जीवनशैली और पर्यावरण ये सब मिल कर अस्थमा की प्रवृत्ति को बढ़ा रहे हैं यह सच्चाई है. बच्चों में भी और बड़ों का अस्थमा जिसे क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस या सीओपीडी बोलते हैं दोनों भारत में बढ़ रहा है.

अस्थमा का नया इलाजतस्वीर: Abbas Al-Khashali

अस्थमा के इलाज और बचाव का सबसे अच्छा तरीका क्या है?

जहां तक इलाज का सवाल है हमारे भारतीय चिकित्सा पद्धति में नाक की धुलाई पर बड़ा जोर दिया गया है. आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा में भी. आयुर्वेद वाले इसे नस्या कहते हैं जबकि प्राकृतिक चिकित्सा वाले जलनेती, सूत्रनेती, धागानेती या पानीनेती का नाम इसे देते हैं. भारतीय परंपरा में यह कहा गया है कि अपनी नाक को रोज नहलाओ. सुबह उठ कर हल्के गर्म पानी में नमक और मीठा सोडा डाल कर नाक को अच्छे से नहलाओ. इसके बाद भस्त्रिका योग के जरिए नाक को पूरी तरह से साफ कर दो. पहले यह घर घर में होता था और शायद यही वजह रही होगी कि पूर्वजों के समय में लोग अस्थमा या एलर्जी से कम प्रभावित होते थे. हो सकता है कि उन्हें एलर्जी हो लेकिन यह जलनेती उसे साइनस में नहीं बदलने देती थी और उसे ठीक कर देती थी.

जैसे जैसे प्रदूषण बढ़ेगा, पेड़ कटेंगे, पार्क खत्म होंगे, मैदान खत्म होंगे, लोग पौधों को अपने घर में ले आएंगे, धूल आएगा, खटमल आएगा और अस्थमा बढ़ेगा. क्योंकि यह सब अस्थमा के ट्रिगर हैं. अगर इससे बचना है तो जलनेती करना होगा, प्राणायाम करना होगा, पेट से सांस लेने की आदत डालने होगी और उन चीजों की पहचान करनी होगी जिनसे अस्थमा ट्रिगर होता है ताकि उससे दूर रहा जा सके.

अस्थमा के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाइयां कितनी कारगर हैं?

अस्थमा की दवाइयों के लिए एक सूत्र है फॉर्मूला ऑफ टू. इसके मुताबिक अगर आपको एक महीने में दो बार रात को अस्थमा का अटैक आता है या एक हफ्ते में दिन में दो बार अस्थमा का अटैक आता है या साल में दो इनहेलर पूरे खत्म हो जाते हैं तो आपको नियमित रूप से दवा लेने की जरूरत है. अगर आपके साथ ऐसा नहीं होता तो आप एसओएस दवा लेकर अपने को ठीक कर सकते हैं. नियमित कसरत, जलनेती, अपने सामने सिगरेट न पीने दे कर आप नियमित दवाइयों से मुक्ति पा सकते हैं.

डॉ के के अग्रवालतस्वीर: Aggarwal

नियमित दवाइयों से क्या कोई नुकसान भी है और क्या एक बार शुरू होने के बाद इनसे छुटकारा पाने में दिक्कत आती है?

नियमित दवाइयों की जरूरत है और नहीं लेंगे तो दिक्कत होगी क्योंकि शरीर में ऑक्सीजन की कमी होगी. ऑक्सीजन की कमी से ज्यादा नुकसान होगा और दवा लेने से कम तो यह तो जरूरत के ऊपर है. अगर डॉक्टर कहते हैं कि नियमित दवा लेने की जरूरत है तो लीजिए. हां अगर जरूरत नहीं है और तब दवा लेंगे तो नुकसान होगा. दवा न लेने के ज्यादा नुकसान हैं, लेने के कम. अगर जरूरत है तो बिना घबराए दवा लीजिए. हां उसकी मात्रा घटाते जाइए. अगर पेट से सांस लेने की आदत डालें और खूब व्यायाम करें तो दवा छूट सकती है.

भारत में इसे सामान्य जिंदगी की राह में बाधा समझा जाता रहा है और पहले तो लड़कियों की शादी में भी मुश्किल आती थी क्या ऐसी कोई वजह है?

उस जमाने में इलाज नहीं था. जब से इनहेलर आए हैं आप करीब करीब बिल्कुल सामान्य सी जिंदगी जी सकते हैं. जब इयान बॉथम अस्थमा का मरीज होकर भी इतना बढ़िया तेज गेंदबाज बन सकता है, अपने देश का प्रतिनिधित्व कर सकता है. अमिताभ बच्चन इतने बड़े सितारे बन सकते हैं तो फिर लड़की की शादी क्या कहिए वो तो कुछ भी कर सकती है, देश की प्रधानमंत्री भी बन सकती है. अस्थमा कोई छूआछूत की बीमारी नहीं है. अस्थमा है तो है, क्या हुआ बहुत तरह की एलर्जी होती है. ये किसी को भी हो सकती है. इसका इलाज है, बस उसे अपनाइए.

वर्ल्ड अस्थमा डे पर क्या संदेश देना चाहेंगे?

मेरा संदेश है कि अगर अस्थमा है तो उसे छुपाइए मत, उसका पूरा इलाज कराइए और उसे काबू में कर के आप एक सामान्य जिंदगी जी सकते हैं.

पद्मश्री से सम्मानित डॉ केके अग्रवाल तीन दशक से भारत में लोगों का इलाज कर रहे हैं. वर्तमान में दिल्ली के प्रतिष्ठित अस्पताल मूलचंद मेडसिटी में सीनियर कंसल्टेंट, कार्डियोलॉजी विभाग के प्रमुख और मेडिकल एजुकेशन बोर्ड के डीन हैं.

इंटरव्यूः निखिल रंजन

संपादनः मानसी गोपालकृष्णन

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