सीरिया की जंग ने इस साल केवल सितंबर महीने में ही 3000 लोगों की जान ली है जिनमें 955 आम लोग भी शामिल हैं. सालों से चली आ रही जंग में इस साल का यह सबसे घातक महीना रहा है.
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सीरिया में मानवाधिकारों की स्थिति पर नजर रखने वाले एक संगठन ने रविवार को यह जानकारी दी. 2011 में सरकार के खिलाफ शुरू हुए प्रदर्शनों को क्रूरता से दबाने के साथ शुरू हुई जंग में अब तक लाखों लोगों की जान गयी है. दसियों लाख से ज्यादा लोग इस जंग में विस्थापित हुए हैं. इसके बाद यह जंग एक जटिल संकट बन गया है जिसमें दुनिया के ताकतवर देश भी शामिल हैं. रूस सीरिया की सरकार को समर्थन दे रहा है तो अमेरिका उस गुट को जो इस्लामिक स्टेट से अलग लड़ाई लड़ रहा है.
सितंबर महीने में जिन 955 आम लोगों की जान गयी है उनमें 207 बच्चे भी हैं. मानवाधिकारों पर नजर रखने वाली सीरियाई ऑब्जरवेटरी अलग अलग स्रोतों से जानकारी हासिल करती है. इस निगरानी संगठन के मुताबिक सितंबर महीने में मरने वालों में 790 लोग सीरिया के सरकारी सैनिक और असद के वफादार हैं जबकि 738 लोग इस्लामिक स्टेट और हयात तहरीर अल शाम (एचटीएस) के हैं. इसके साथ ही 550 विद्रोही और एसडीएफ के सदस्य भी हैं. एसडीएफ यानी सीरियन डेमोक्रैटिक फोर्सेज उन विद्रोही गुटों का संगठन है जो असद सरकार के साथ ही इस्लामिक स्टेट से भी लड़ रहा है. 2011 से सीरिया की जंग में 330,000 लोग मारे गये हैं.
इस निगरानी संगठन के प्रमुख रामी अब्देल रहमान का कहना है, "70 फीसदी से ज्यादा आम लोग सीरियाई सरकार और रूस के हवाई हमलों में या फिर अंतरराष्ट्रीय गठबंधन के हवाई हमलो में मारे गये हैं." रूस के हवाई हमलों के साये में सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद की वफादार सेना इस्लामिक स्टेट के कब्जे से पूर्वी प्रांत दीयर एजोर को छुड़ाने की कोशिश कर रही है. दीयर एजोर के एक गांव पर हुए हवाई हमले में रविवार को 12 आम लोगों की मौत हो गयी जिसमें 5 बच्चे भी शामिल हैं.
उधर अमेरिकी नेतृत्व वाला अंतरराष्ट्रीय गठबंधन कुर्द अरब सीरियाई लोकतांत्रिक बल को समर्थन दे रहा है. यह गुट भी दीयर एजोर के निकट ही जिहादियों का मजबूत गढ़ रहे रक्का शहर में जंग लड़ रहा है. सितंबर में मारे गये लोगों की तादाद इसलिए ज्यादा है क्योंकि यहां इस समय यह जंग तेज हो गयी है. सीरियाई निगरानी संगठन के प्रमुख अब्देल रहमान के मुताबिक, "अंतरराष्ट्रीय गठबंधन और रूस के जिहादियों के उत्तरी और पूर्वी इलाकों के गढ़ पर हवाई हमलों में तेजी के साथ ही विद्रोहियों के कब्जे वाले इलाके में रूस और सीरिया के हमले भी इसकी वजह हैं.
रूस और सीरिया की सरकारी सेना के लड़ाकू विमानों ने पिछले दो हफ्तों में पश्चिमोत्तर प्रांत इदलीब में हवाई हमले तेज कर दिये हैं. यह इलाका मुख्य रूप से एचटीएस के कब्जे में है जो पहले अल कायदा का सीरियाई सहयोगी गुट था. सीरियाई गृहयुद्ध में यह गुट भी शामिल है. एचटीएस रूस, तुर्की और ईरान के साथ इस प्रांत में सुरक्षित जोन वाले इलाकों के लिए हुए समझौते में शामिल नहीं है. शुक्रवार और शनिवार की दरमियानी रात में इदलीब के अरमानाज शहर पर हुए हमलों में 34 आम लोगों की मौत हुई है.
एनआर/एके (एएफपी)
सीरिया में कौन किससे लड़ रहा है?
2011 में जब मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका के एक बड़े हिस्से में बदलाव की हवा चली, तभी से सीरिया गृहयुद्ध से जूझ रहा है. सीरिया का संकट अब इतना उलझ गया है, कि भूलभुलैया जैसा नजर आता है. आइए इसे समझें.
असद के वफादार
2011 के बाद सीरिया की सेना ने बड़ी फूट का सामना किया है. उसी से टूटकर बागियों की फ्री सीरियन आर्मी बनी है. वहीं सीरिया की सेना को नेशनल डिफेंस फोर्स जैसे बहुत सारे असद समर्थक मिलिशिया गुटों का समर्थन प्राप्त है.
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उदार बागी
फ्री सीरियन आर्मी असद के खिलाफ शुरू हुए प्रदर्शनों से जन्मी. अन्य जिहादी गुटों के साथ मिल कर वह राष्ट्रपति असद को सीरिया की सत्ता से बाहर करना चाहती है. इसे तुर्की और अमेरिका का भी कुछ समर्थन मिला, लेकिन बार बार पराजय से इसका मनोबल टूटा है. इसके बहुत से सदस्य आतकंवादी गुटों में चले गए.
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आतंक का नया चेहरा
क्षेत्र में जारी अफरातफरी का फायदा उठा कर आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट ने 2014 में सीरिया और इराक के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया. बर्बरता के लिए बदनाम यह संगठन अपनी खुद की "खिलाफत" कायम करना चाहता है. काले झंडे के तले वह खूब कत्लेआम और लोगों को प्रताड़ित करता है.
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दूसरे खिलाड़ी
आईएस के अलावा और कई जिहादी गुट भी सीरिया में लड़ रहे हैं. इनमें अल कायदा से जुड़े अल नुसरा फ्रंट का नाम प्रमुखता से लिया जाता है. अल नुसरा आईएस के साथ साथ असद और उदारवादी बागियों से भी लड़ रहा है. जनवरी 2017 में उसने कई जिहादी गुटों को मिलाकर तहरीर अल शाम के नाम से गुट बनाया.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Nusra Front on Twitter
रूस का साथ
रूस सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद का करीबी मित्र बन कर उभरा है. रूस आधिकारिक तौर पर सितंबर 2015 में सीरिया की लड़ाई में शामिल हुआ. इससे पहले वह सीरिया को हथियार सप्लाई कर रहा था. रूस को कई बार अंतरराष्ट्रीय समुदाय की आलोचना झेलनी पड़ी है क्योंकि उसके हवाई हमलों में आम लोग भी मारे गए हैं.
राष्ट्रपति असद का विरोध और रणनीतिक रूप से उदारवादी बागियों का समर्थन करने के बावजूद अमेरिका और नाटो देशों ने सीरिया के संघर्ष में अपने सैनिक जमीन पर नहीं उतारे. हालांकि 2014 के आखिर में अमेरिका के नेतृत्व में जर्मनी समेत 60 देशों के गठबंधन ने आईएस और अन्य आतकंवादी गुटों के ठिकानों पर हवाई हमले शुरू किए.
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देर आए, पर क्या दुरुस्त आए?
अप्रैल 2017 में सीरिया के शहर खान शेखहुन में संदिग्ध रासायनिक हमले में 50 से ज्यादा लोगों की मौत के बाद अमेरिका ने सीरिया के हवाई ठिकाने पर मिसाइलें दागीं. अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप सीरियाई सरकार के खिलाफ सीधे कार्रवाई करने के विरोधी रहे हैं. लेकिन रासायनिक हमले के बाद उनका रुख पलट गया.
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सीमा पर सुरक्षा
सीरिया के पड़ोसी देश भी इस संकट में कूद गए क्योंकि वे अपनी सीमाओं पर सुरक्षा चाहते हैं. अमेरिकी गठबंधन में शामिल तुर्की असद का विरोधी है और उदार विद्रोहियों को समर्थन देता रहा है. हालांकि कुर्द लड़ाकों को अमेरिका का समर्थन तुर्की को फूटी आंख नहीं भाता है. कुछ कुर्द तो तुर्की में अपने लिए अलग इलाका मांगते हैं.
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लड़ाई के भीतर लड़ाई
सीरिया के उत्तर में सीरियाई कुर्दों और इस्लामी कट्टरपंथियों के बीच लड़ाई एक अलग ही संघर्ष बन गया है. तुर्की, सीरिया और इराक में रहने वाले कुर्द लोग अपने लिए अलग देश या फिर इन देशों में स्वायत्त इलाका चाहते हैं. तुर्की कुर्द लड़ाकों को आतंकवादी कहता है. कुर्द पेशमर्गा लड़ाके अमेरिकी गठबंधन की मदद कर रहे हैं.
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परोक्ष युद्ध
सीरिया के संकट में ईरान के शामिल हो जाने से पता चलता है कि यह दो धड़ों के लिए ताकत का अखाड़ा बन गया है. इसमें एक तरफ ईरान और रूस हैं तो दूसरी तरफ सऊदी अरब, तुर्की और अमेरिका. ईरान सीरिया के जरिए क्षेत्र में ताकत का संतुलन बनाना चाहता है. ईरान सीरिया के राष्ट्रपति असद को हर तरह की मदद दे रहा है.
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हल बहुत दूर
सीरिया में जारी लड़ाई को छह साल पूरे हो गए हैं लेकिन हल नजर नहीं आता. अलग अलग समूहों और गुटों का देश पर नियंत्रण है. सीरिया के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता में कई बार वार्ता हो चुकी है, लेकिन अभी तक कुछ हासिल नहीं हुआ है. आए दिन सीरिया के मोर्चों से तबाही और त्रासदियों के मंजर सामने आते हैं.