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सिद्धार्थ वरदराजन के खिलाफ एफआईआर हाईकोर्ट ने क्यों रद्द की

समीरात्मज मिश्र
२६ मई २०२२

वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ वरदराजन और इस्मत आरा के खिलाफ दर्ज एक एफआईआर को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रद्द करने का आदेश दिया है. भारत में पिछले सालों में ऐसे कई एफआईआर और मुकदमे दर्ज हुए हैं, इस केस का दूसरे मामलों पर असर होगा?

26 जनवरी के मौके पर दिल्ली में किसानों का विरोध प्रदर्शन
26 जनवरी के मौके पर दिल्ली में किसानों का विरोध प्रदर्शनतस्वीर: Dinesh Joshi/AP/picture alliance

किसानों के विरोध प्रदर्शन के दौरान एक खबर छापने के लिए वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ वरदराजन और इस्मत आरा के खिलाफ दर्ज एफआईआर को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रद्द कर दी है. इन दोनों के खिलाफ यह एफआईआर पिछले साल 31 जनवरी को दर्ज की गई थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि खबर प्रकाशित करके इन्होंने किसानों को भड़काने का काम किया है.

एफआईआर रद्द करते हुए कोर्ट ने कहा है कि प्रकाशित खबर में ऐसे कोई संकेत नहीं मिलते हैं जिन्होंने लोगों को उकसाने या भड़काने का काम किया हो और उस वजह से सार्वजनिक अव्यवस्था फैली हो या फिर कोई दंगा हुआ हो. इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्र और न्यायमूर्ति रजनीश कुमार की खंडपीठ ने यह आदेश जारी किया है.

कैसे दर्ज हुई एफआईआर?

न्यूज वेबसाइट ‘द वायर' के संपादक सिद्धार्थ वरदराजन और रिपोर्टर इस्मत के खिलाफ रामपुर के सिविल लाइंस थाने में पिछले साल 31 जनवरी को एफआईआर दर्ज कराई गई थी. रामपुर के ही रहने वाले संजू तुरइहा नाम के व्यक्ति ने एफआईआर दर्ज कराते हुए आरोप लगाया था कि द वायर की एक रिपोर्ट में लोगों को गुमराह करने के लिए डॉक्टर का हवाला दिया और इस रिपोर्ट से रामपुर में आम लोगों में रोष और तनाव पैदा हो गया.

कृषि कानूनों के विरोध में किसानों ने बहुत लंबे समय तक विरोध किया और आखिरकार सरकार ने वो कानून वापस लिये.तस्वीर: Dinesh Joshi/AP/picture alliance

पिछले साल जनवरी महीने में द वायर की रिपोर्टर इस्मत आरा ने किसान आंदोलन के दौरान गणतंत्र दिवस के मौके पर हुई किसान रैली में एक आंदोलनकारी किसान की कथित तौर पर गोली लगने से हुई मौत पर रिपोर्ट की थी. इस खबर को सिद्धार्थ वरदराजन ने ट्वीट कर शेयर किया था. इसके बाद ही इन दोनों के खिलाफ केस दर्ज किया गया. एफआईआर किसी अन्य व्यक्ति ने दर्ज कराई थी लेकिन रामपुर के तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट ने भी सिद्धार्थ वरदराजन के ट्वीट का जवाब देते हुए कुछ इसी तरह के आरोप लगाए थे.

जिला मजिस्ट्रेट ने सिद्धार्थ वरदराजन के इस ट्वीट के जवाब में लिखा था, "उम्मीद है कि आप समझेंगे कि आपकी स्टोरी से यहां कानून एवं व्यवस्था की स्थिति बिगड़ सकती थी. यहां पहले ही तनावपूर्ण स्थिति है.”

सिद्धार्थ वरदारजन ने अपने ट्वीट में मृतक नवरीत के दादा हरदीप सिंह डिबडिबा का एक बयान साझा किया था जिसमें उन्होंने कहा था कि नवरीत की मौत गोली लगने से हुई है और इसकी जानकारी उन्हें पोस्टमॉर्टम करने वाले डॉक्टरों के पैनल में शामिल एक डॉक्टर से मिली है. 

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अदालत ने क्या कहा?

एफआईआर रद्द करते हुए अदालत ने कहा, "चूंकि प्राथमिकी में लगाए गए आरोप, भारतीय दंड संहिता की धारा 153-बी और 505 (2) के तहत अपराध होने का खुलासा नहीं करते, इसलिए कानून की नजर में यह टिकता नहीं है और रद्द किये जाने योग्य है. इसलिए प्राथमिकी रद्द की जाती है.”

कोर्ट का यह भी कहना था, "द वायर की रिपोर्ट में रिपोर्टर इस्मत आरा और एडिटर सिद्धार्थ वरदराजन ने अपना कोई भी निजी विचार नहीं डाला है. रिपोर्ट मृतक के परिवार और डॉक्टरों से की गई बात के बाद तैयार की गई थी. रामपुर पुलिस जो रिपोर्ट कोर्ट में दिखा रही है वह बाद में बदली गई मेडिकल रिपोर्ट है. इस आधार पर यह रिपोर्ट किसी तरह दो समुदायों के बीच उत्तेजना को बढ़ावा देने वाली नहीं है.”

जमीनी स्तर से लेकर इंटरनेट तक प्रेस खुद भी खतरे में

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किस खबर की शिकायत?

केन्द्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन के दौरान 26 जनवरी 2021 को दिल्ली में किसानों का विरोध प्रदर्शन हुआ था और आईटीओ के पास एक दुर्घटना में रामपुर के नवरीत सिंह डिबडिबा को गंभीर चोटें आईं थीं जिससे उनकी मौत हो गई. पुलिस का कहना था कि यह दुर्घटना उस ट्रैक्टर के पलटने से हुई जिसे नवरीत चला रहा था जबकि कुछ चश्मदीदों का दावा था कि नवरीत की मौत गोली लगने से हुई थी.

‘द वायर' ने 30 जनवरी को एक खबर छापी थी जिसमें पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर के हवाले से लिखा गया था कि उन्होंने गोली से लगी चोट देखी थी, लेकिन वह कुछ नहीं कर सकते थे क्योंकि उनके हाथ बंधे हुए हैं. रिपोर्टर इस्मत आरा की यह रिपोर्ट 30 जनवरी को द वायर में प्रकाशित हुई थी जिसे सिद्धार्थ वरदराजन ने ट्वीट किया था. इसी ट्वीट को आधार बना कर अगले दिन यानी 31 जनवरी, 2021 को संजू तुरइहा नाम के व्यक्ति शिकायत की जिसके बाद पुलिस ने एफआईआर दर्ज की.

प्राथमिकी में आरोप थे कि वरदराजन ने ट्वीट के जरिए लोगों को भड़काने, दंगा फैलाने, चिकित्सा अधिकारियों की छवि खराब करने और कानून व्यवस्था को बिगाड़ने की कोशिश की.

इस मामले में सिद्धार्थ वरदराजन और इस्मत आरा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें हाईकोर्ट के समक्ष अर्जी दाखिल करने का आदेश दिया था. उसके बाद दोनों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में एफआईआर रद्द करने संबंधी याचिका दायर की.

एफआईआर रद्द होने का क्या असर होगा?

इलाहाबाद हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता एक्यू जैदी कहते हैं, "एफआईआर जल्दी रद्द होती नहीं हैं. लेकिन यदि हाईकोर्ट ने यह आदेश दिया है तो इसके गंभीर निहितार्थ हैं. कोर्ट ने साफतौर पर कहा है कि जो आरोप लगे हैं वो सही नहीं हैं. कोर्ट का कहना है कि रिपोर्टर ने जो खबर लिखी है उसमें किसी तरह से कोई भड़काने वाली बात नहीं थी. अदालत ने कहा कि इस रिपोर्ट में केवल पीड़ित परिवार के बयान शामिल थे और ऐसी कोई सामग्री नहीं थी जिससे उकसावा मिलता हो."

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जैदी का यह भी कहना है कि पत्रकारों के खिलाफ इस तरह के अभी कुछ और मामले हाईकोर्ट में लंबित हैं और उम्मीद है कि कोर्ट उन्हें भी खारिज कर देगा क्योंकि उन मामलों में भी एफआईआर का कोई आधार नहीं है.

किसान आंदोलन के दौरान नवरीत सिंह की मौत पर रिपोर्ट लिखने और ट्वीट करने के कारण कई पत्रकारों के अलावा कांग्रेस नेता शशि थरूर के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज हुई थी. इस मामले में सिद्धार्थ वरदराजन और इस्मत आरा के अलावा पत्रकार राजदीप सरदेसाई, मृणाल पांडेय, जफर आगा, परेश नाथ जैसे कई लोगों के खिलाफ मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और कर्नाटक में एफआईआर दर्ज की गई थीं और राजद्रोह जैसे गंभीर आरोप लगाए गए थे.

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