भारतीय राजनीति में बाउंसरों का सामना कर रहे नवजोत सिंह सिद्धू के बचाव में अब खुद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान आए हैं. इमरान ने नवजोत पर तंज कसने वालों पर निशाना साधा.
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पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने क्रिकेटर से राजनेता बने नवजोत सिंह सिद्धू को उनके शपथ ग्रहण समारोह में उपस्थित होने के लिए धन्यवाद दिया और भारत में उन्हें निशाना बनाने वालों को आड़े हाथों लिया. इमरान ने एक ट्वीट में कहा, "मैं सिद्धू को धन्यवाद देता हूं कि वह मेरे शपथ ग्रहण समारोह के लिए पाकिस्तान आए. वह शांति दूत थे और उन्हें यहां पाकिस्तान के लोगों द्वारा प्यार और सम्मान दिया गया. जो लोग भारत में उन्हें निशाना बना रहे हैं, वे उपमहाद्वीप में शांति को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं. बिना शांति के हमारे लोग प्रगति नहीं कर सकते."
पंजाब सरकार में मंत्री सिद्धू पिछले सप्ताह खान के शपथ ग्रहण के दौरान पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा से गले मिले. इसके बाद भारत में उनकी आलोचना शुरू हो गई. खुद उन्हीं की पार्टी कांग्रेस के नेताओं ने सिद्धू पर तंज कसे. पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपने कैबिनेट मंत्री सिद्धू की आलोचना करते हुए कहा, "जिस तरह का लगाव उन्होंने पाकिस्तान के सेना प्रमुख के प्रति दिखाया, मुझे लगता है कि वह गलत था, मैं इसके पक्ष में नहीं हूं. तथ्य तो यह है कि उन्हें (सिद्धू को) समझना चाहिए कि हमारे जवान रोज मारे जा रहे हैं. मेरी अपनी रेजिमेंट ने कुछ महीने पहले एक मेजर और दो जवानों को खोया है."
बीजेपी के प्रवक्ता संबित पात्रा ने सिद्धू के बहाने कांग्रेस पर निशाना साधा, "सिद्धू की यात्रा पाकिस्तान को यह एहसास कराती है कि भारत पाकिस्तान के बीच में जो कुछ हो रहा है, उसके लिए भारत ही जिम्मेदार है. शांति के खिलाफ कोई नहीं है. भारत हमेशा शांति के लिए खड़ा रहा है. लेकिन अगर कोई भारत की पीठ पर छुरा भोंकने की कोशिश करेगा तो यह स्वीकार नहीं किया जाएगा."
भारत लौटने पर सिद्धू ने अपने बचाव में कहा कि अगर कोई आपसे कहे कि "हम एक ही संस्कृति से नाता रखते हैं. उन्होंने ऐतिहासिक गुरुद्वारा करतारपुर साहिब का रास्ता खोलने की बात भी की, ऐसे में मैं क्या करता." इसके बाद भी जब विवाद ठंडा नहीं हुआ तो सिद्धू ने कहा, "शांति की कोशिशें अतीत में भी हो चुकी हैं. स्वर्गीय वाजपेयी जी 'दोस्ती बस' लेकर लाहौर गए और उन्होंने मुशर्रफ को भी आमंत्रित किया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी नवाज शरीफ को अपने शपथ ग्रहण में बुलाया, वह औचक लाहौर भी गए."
1992 में पाकिस्तान को क्रिकेट का वर्ल्ड चैंपियन बनाने वाले इमरान खान ने 19 अगस्त 2018 को पाकिस्तान के 22वें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली है. इमरान खान भारत में भी काफी लोकप्रिय हैं. प्रधानमंत्री बनने से पहले वह वादा करते रहे हैं कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आई तो वह आतंकवादियों को सीमा पार करने से रोकेंगे.
(दोस्ती की बांह पर आतंकियों के हमले)
दोस्ती की बांह पर आतंकियों के हमले
भारत और पाकिस्तान के बीच जब भी शांति वार्ता की कोशिशें होती हैं, तभी कुछ ऐसा होता है कि माहौल बिगड़ जाता है. एक नजर उन घटनाओं पर जिन्होंने दोनों देशों को बार बार बातचीत की मेज से युद्ध के उन्माद तक पहुंचाया.
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कारगिल युद्ध
अटल बिहारी वाजपेयी और नवाज शरीफ की अगुवाई में भारत और पाकिस्तान के बीच दोस्ती नए मुकाम पर थी. बसें चल रही थीं, आम लोग आसानी से इधर उधर आ रहे थे. तभी मई 1999 में भारत प्रशासित कश्मीर की चोटियों पर पाकिस्तानी सैनिकों का कब्जा हुआ. इसके बाद नवाज शरीफ का तख्तापलट हुआ और कारगिल के मास्टरमाइंड जनरल परवेज मुशर्रफ सत्ता में आए.
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आगरा सम्मेलन
जून 2001 में अटल बिहारी वाजपेयी और तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ की आगरा में शिखर बैठक हुई. माना जाता है कि दोनों नेता कश्मीर विवाद को हल करने के काफी करीब पहुंच चुके थे. लेकिन तभी कुछ ऐसा हुआ कि एक झटके में सारी वार्ता विफल हो गई. इसे ऐतिहासिक चूक कहा जा सकता है.
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संसद पर हमला
13 दिसंबर 2001 को भारतीय संसद पर आतंकवादी हमला हुआ. हमले में छह पुलिसकर्मी, दो सुरक्षाकर्मी, एक बागवान और पांच आतंकवादी मारे गए. इस हमले के बाद भारतीय सेनाएं पाकिस्तान सीमा पर तैनात कर दी गई. पहली बार गणतंत्र दिवस की परेड रोक दी गई. अमेरिका के दखल से युद्ध टला.
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समझौता एक्सप्रेस
भारत और पाकिस्तान के बीच दोस्ती की प्रतीक बनी रेल सेवा भी आतंकवादी हमले का शिकार बनी. फरवरी 2007 में दिल्ली से लाहौर जा रही समझौता एक्सप्रेस ट्रेन की दो बोगियों में धमाके हुए. 68 लोगों की मौत हुई. पाकिस्तान का आरोप है कि धमाके हिन्दू कट्टरपंथी संगठनों ने किए.
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हमलों की बाढ़
2008 में भारत के कई शहरों में आतंकवादी हमलों की बाढ़ सी आई. रामपुर, जयपुर, अहमदाबाद, बेंगलुरू, दिल्ली और पूर्वोत्तर भारत में कई हमले हुए. तत्कालीन यूपीए सरकार लाचार सी दिखने लगी. भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव उपजने लगा.
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मुंबई हमले
और 26 नवंबर 2008 को मुंबई पर हुए आतंकवादी हमले ने नई दिल्ली के सब्र का बांध तोड़ दिया. विदेशी एजेंसियों की मदद से बहुत जल्दी यह साफ हो गया कि आतंकी हमले के दौरान कराची से निर्देश ले रहे हैं. तब से अब तक नई दिल्ली और इस्लामाबाद के बीच शांति वार्ता पुराने रूप में बहाल नहीं हो सकी है.
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पास आकर दूर हुए
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद दोनों देशों के बीच एक बार शांति वार्ता की कोशिशें शुरू हुई. शुरुआत सकारात्मक हुई लेकिन कश्मीरी अलगाववादियों से पाकिस्तानी उच्चायुक्त की मुलाकात के बाद वार्ता की कोशिशें फीकी पड़ने लगी. जम्मू कश्मीर में सरहद पर दोनों देशों के बीच समय समय पर गोली बारी होने लगी.
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गुरदासपुर और ऊधमपुर हमला
जुलाई 2015 में पंजाब के गुरुदासपुर में हुए आतंकवादी हमले और उसके हफ्ते भर बाद जम्मू के ऊधमपुर में भारतीय सुरक्षाबलों पर हमले हुए. हमलों में आतंकवादियों से ज्यादा सुरक्षाबल के जवान मारे गए. इन हमलों का असर भारत और पाकिस्तान के बीच भविष्य में होने वाली बातचीत पर पड़ना तय है.
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बारूद का ढेर
भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल इस्लामाबाद जाकर पाकिस्तानी अधिकारियों से मिलने वाले हैं. भारत का मानना है कि पाकिस्तान भारत पर हमलों के लिए आतंकवादियों का इस्तेमाल कर रहा है. भारतीय मीडिया के मुताबिक पाकिस्तान भारत के सब्र का इम्तिहान ले रहा है.