ग्रीस के प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र देने के बाद अलेक्सिस सिप्रास विरोधियों का मुंह बंद करने के लिए बड़ा जनादेश चाहते हैं. कर्ज की पहली खेप मिलने के तुरंत बाद ही वामपंथी नेता ने मध्यावधि चुनाव की स्थिति पैदा कर दी है.
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बेलआउट डील को पहले ग्रीक और फिर जर्मन संसद में मंजूरी मिलने के तुरंत बाद सिप्रास ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफे की घोषणा कर दी. यूरोजोन के नेताओं के साथ ग्रीस के लिए तय हुए बेलआउट कार्यक्रम पर सिप्रास की सीरिजा पार्टी के ही कुछ नेता कड़ा विरोध जताते रहे हैं. मध्यावधि चुनावों के लिए अभी किसी तारीख की घोषणा नहीं हुई है लेकिन चुनाव 20 सितंबर को कराए जाने की संभावना है.
करीब आठ महीनों से सरकार चला रहे 41 वर्षीय सिप्रास ने टेलिविजन पर आकर देश को दिए संदेश में कहा कि उन्होंने अपने देश को सर्वोत्तम बेलआउट पैकेज दिलाने के लिए कड़ी मेहनत की है. सिप्रास ने ग्रीक जनता से एक साफ जनादेश देने की अपील की ताकि वे संसद में बहुमत में चुन कर आएं. सिप्रास ने राष्ट्रपति प्रोकोपिस पाव्लोपूलोस को आधिकारिक रूप से अपना इस्तीफा सौंपने से पहले अपने संदेश में कहा, "अब यह मुश्किल प्रक्रिया अपने अंत की ओर आ चुकी है. मैं इसे अपना नैतिक और राजनीतिक कर्तव्य समझता हूं कि हमारे किए पर निर्णय लेने का काम आप लोगों पर छोड़ दूं."
नए चुनाव होने तक ग्रीस में एक अंतरिम सरकार होगी. सिप्रास की पद छोड़ने की घोषणा उसी दिन आई जब कर्ज तले दबे ग्रीस को बेलाउट पैकेज की पहली खेप के रूप में 13 अरब यूरो की रकम मिली. जुलाई में ग्रीस को अगले तीन सालों तक 86 अरब यूरो का राहत पैकेज दिए जाने पर सहमति बनी थी.
अब आगे की प्रक्रिया के लिए ग्रीक राष्ट्रपति पहले विपक्षी दल के नेताओं से नई सरकार बनाने को कहेंगे, लेकिन विपक्षी दलों के एकजुट होकर सरकार बनाने की संभावना बहुत कम है. अगर ऐसा नहीं हो पाता है तो संसद को भंग करना पड़ेगा और नए चुनाव कराने होंगे. इस तरह आर्थिक संकट के बीच बीते छह सालों में ग्रीस में पांचवे आम चुनावों की संभावना बनती दिख रही है. कई विशेषज्ञ नए चुनावों में सिप्रास के भारी बहुमत से जीतने की संभावना जता रहे हैं. सिप्रास के लौटने पर यूरो का विरोध और पुरानी ग्रीक मुद्रा ड्राख्मा पर लौटने का समर्थन करने वाले सीरिजा पार्टी के कई नेताओं के पार्टी छोड़ने की संभावना है.
ग्रीक बैंकों में जून से शुरु हुआ कड़ा मुद्रा नियंत्रण अभी भी जरी है. ग्रीक लोग हर महीने अधिकतम 500 यूरो की रकम ही देश के बाहर भेज सकते हैं. हर हफ्ते भी वे एक सीमा में ही धन निकाल सकते हैं. ग्रीक कंपनियों को विदेशों में अपने सप्लायरों को भुगतान करने में एक लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ रहा है.
कई यूरोपीय कर्जदाता सिप्रास के इस कदम से आश्चर्यचकित नहीं हैं. लेकिन क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज ने एक वक्तव्य जारी कर चेतावनी दी है कि मध्यावधि चुनाव "संभवत: भविष्य के भुगतान (राहत कर्ज) को खतरे में डाल सकते हैं." सिप्रास ने तुर्की के वामपंथी विचारधारा वाले कवि नाजिम हिकमेत का एक उद्धरण देते हुए बोले, "सबसे अच्छे दिन जिए जाना अभी बाकी है."
आरआर/एमजे (एपी)
दिवालिया होकर फिर खड़े हुए जो देश
ग्रीस की अर्थव्यवस्था पर छाए आर्थिक संकट को लेकर दिवालिएपन तक की आशंकाएं जताई जा रही थीं. दुनिया के कुछ देश तो 11 बार तक खुद को दिवालिया घोषित कर चुके हैं लेकिन ग्रीस पहला विकसित देश है जो दिवालिएपन के कगार पर पहुंचा है.
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वेनेजुएला: 11 बार
वेनेजुएला और इक्वाडोर ऐसे देश हैं जो सबसे अधिक बार दिवालिएपन को झेल चुके हैं. पहली बार 1826 के युद्ध के बाद वेनेजुएला दिवालिया घोषित हुआ था. तेल के समृद्ध भंडार वाला यह देश इसके बाद भी दस बार दिवालिया हुआ है. अंतिम बार 2004 में तेल की कीमतें गिरने और देश में राजनीतिक संकट के कारण वेनेजुएला ने दिवालियापन घोषित किया था.
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इक्वाडोर: 10 बार
वेनेजुएला के पड़ोसी देश इक्वाडोर की हालत भी काफी मिलती जुलती है. 1926 में अपनी पहली आजादी की लड़ाई के बाद इक्वाडोर दिवालिया हुआ. वह अपने तेल और कृषि उत्पादों के निर्यात पर ही प्रमुखता से निर्भर रहा है. इक्वाडोर में अंतिम बार 2008 में दिवालिएपन की स्थिति बनी थी, जब उसकी अर्थव्यवस्था पर वैश्विक आर्थिक मंदी का भारी असर पड़ा.
ब्राजील ने कुल नौ बार अपनी अर्थव्यवस्था को ढहते देखा है. 1930 में क्रांति और राजनीतिक उथल पुथल के कारण देश को दो बार दिवालिया होना पड़ा. 60 के दशक में भी अर्थव्यवस्था दो बार संकट में आई जब सैनिक तख्ता पलट के बाद तमाम राष्ट्रवादी आर्थिक नीतियां उलटी पड़ गईं. विश्व आर्थिक मंदी के चपेटे में आकर ब्राजील में अंतिम बार 1983 में दिवालिएपन की स्थिति पैदा हुई थी.
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चिली: 9 बार
ब्राजील की ही तरह चिली भी नौ बार इस संकट से गुजरा है. पिछली सदी में बार बार यहां ऐसे मौके आए जब बढ़ते औद्योगीकरण के कारण अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाले कृषि क्षेत्र को भारी चोट पहुंची. 1960 के दशक से चिली छह बार दिवालिया हुआ. सैनिक शासन के नव उदारवादी आर्थिक सुधारों के कारण 1983 में आखिरी बार चिली ने दिवालियापन झेला.
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कोस्टा रिका: 9 बार
कैरिबियन सागर के तट पर स्थित छोटा से देश कोस्टा रिका भी नौ बार दिवालिया हुआ है. केवल 1980 के ही दशक में कोस्टा रिका को तीन बार दिवालिया घोषित करना पड़ा. अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की मदद के बाद निरंतर सुधार लाते हुए कोस्टा रिका आज सबसे ऊंची प्रति व्यक्ति आय वाला अमेरिकी देश बन चुका है.
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स्पेन: 8 बार
19वीं सदी में स्पेन की अर्थव्यवस्था आठ बार डूबी है. औपनिवेशिक काल का अंत आते आते स्पेन को संसाधनों की कमी और ऊंचे सार्वजनिक व्यय की समस्या का सामना करना पड़ा. यूरोजोन संकट में भी स्पेन दिवालिएपन की कगार पर पहुंच चुका था. स्पेन की सरकार ने बजट कटौती का कार्यक्रम चलाया जिससे स्थिति संभल गई.
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जर्मनी
जर्मनी के अलावा कोई और देश युद्ध के कारण इतनी बार दिवालिया नहीं हुआ. आठ बार युद्ध के कारण आर्थिक संकट का सामना करने वाले जर्मनी में केवल 1932 में अपवादस्वरूप ऐसा हुआ कि पूरे यूरोप को चपेट में ले रही महामंदी के बाद जर्मनी ने खुद को दिवालिया घोषित किया.