वियतनाम में सांप का मीट बड़े शौक से खाया जाता है. इससे कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं, जबकि सांप के खून को चावल से बनने वाली वाइन में मिला कर पिया जाता है. लेकिन सांप का मीट खाने के फायदे क्या हैं?
विज्ञापन
उत्तरी वियतनाम में लोग समझते हैं कि सांप का मीट खाने से इंसान का शरीर अंदर से ठंडा रहता है, सिर दर्द में राहत मिलती है और यह आसानी से हजम हो जाता है. ये बाई प्रांत में एक रेस्त्रां में काम करने वाले शेफ डिन टिएन डुंग कहते हैं कि रेस्तरां वाले सांप के मीट को या तो भाप में पकाते हैं या फिर लेमनग्रास और मिर्ची के साथ फ्राई करके चावल से बनी वाइन के साथ परोसते हैं, जिसमें सांप का खून मिला होता है.
अपने एक हाथ में सांप के मुंह को पकड़े हुए डिन टिएन डुंग एक चाकू से उसके सिर को बाकी हिस्से से अलग कर देते हैं और उसका खून निकाल लेते हैं. फिर वे इसे राइस वाइन से भरे एक कप में डुबोते हैं. 32 साल के डिन टिएन डुंग कहते हैं, "हम सांप के सिर और केंचुली को छोड़ कर उसके हर हिस्से को इस्तेमाल करते हैं."
फैशन के लिए सांपों की बलि
बैग, जैकेट और जूते के लिए सांपों की बलि
सांप दुनिया के सबसे खतरनाक जीवों में से एक है. लेकिन इंडोनेशिया की ये तस्वीरें आपको अहसास कराएंगी कि इंसान उससे कहीं ज्यादा खतरनाक है. यहां सांपों का चमड़ा तैयार होता है. (तस्वीरें विचलित कर सकती हैं)
तस्वीर: AP
फैक्ट्रियां
इंडोनेशिया में कई ऐसी फैक्ट्रियां हैं जहां सांपों का चमड़ा तैयार होता है जबकि कई लोग अपने घरों में भी यह काम करते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
ग्लैमरस
पश्चिमी देशों में इस चमड़े से बने बैग, जैकेट और जूते लोग बड़े शौक से पहनते हैं और इन्हें काफी ग्लैमरस माना जाता है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Rochman
ऐसे होता है काम
जिन फैक्ट्रियों में यह चमड़ा तैयार होता है, वहां का नजारा बिल्कुल ग्लैमरस नहीं कहा जा सकता है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Rochman
सबसे बड़ा निर्यातक
इंडोनेशिया सांप के चमड़े का दुनिया में सबसे बड़ा निर्यातक है. उसका कहना है कि सांपों को मानवीय तरीके से ब्रीड किया जा रहा है, लेकिन हकीकत कुछ और है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/NurPhoto/D. Roszandi
भारी मांग
सांप के चमड़े की मांग को देखते हुए इंडोनेशिया में बड़े पैमाने पर उनका शिकार होता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/NurPhoto/D. Roszandi
सांपों की बलि
यहां हर हफ्ते हजारों की संख्या में सांप मारे जाते है ताकि उनसे चमड़ा तैयार किया जा सके.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/NurPhoto/D. Roszandi
तरीका
सांपों पहले मार कर पानी मे भिगोया जाता है और फिर उनका चमड़ा निकाल कर धूप में सुखाया जाता है. कई बार उन्हें बड़े ओवन में भी रख कर सुखाया जाता है
तस्वीर: picture-alliance/dpa/NurPhoto/D. Roszandi
बेबस सांप
सांपों को मार कर उनका चमड़ा उतारा जाता है जिसमें फिर एक लोहे की एक रोड डाली जाती है, ताकि उनकी त्वचा को ठीक से फैलाया जा सके.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/NurPhoto/D. Roszandi
मांग
इस तरह सांपों का चमड़ा तैयार किए जाने से पता चलता है कि इसकी कितनी मांग है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/NurPhoto/D. Roszandi
महंगा दाम
इस चमड़े से बनी चीजें पश्चिमी देशों में ऊंचे दामों पर बिकती हैं. लेकिन इसे बनाने वालों की हालत ज्यादा अच्छी नहीं कही जा सकती.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/NurPhoto/D. Roszandi
सांपों का कारोबार
इस चमड़े से बनी चीजें पश्चिम देशों में चार हजार डॉलर तक की कीमत में बिकती हैं. लेकिन इसे जिस तरह तैयार किया जा रहा है, वो जरूर सोचने को मजबूर करता है.
तस्वीर: AP
11 तस्वीरें1 | 11
स्थानीय लोगों का मानना है कि सांप वाली वाइन सिर्फ 50 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को पीनी चाहिए. रेस्तरां के मालिक डुओंग डुक डोक कहते हैं कि अगर नौजवान लोग इसे पीते हैं तो उनमें "कमर दर्द और नपुसंकता" की समस्या हो सकती है.
35 वर्षीय डांग कुओक खान बचपन से ही जंगलों में सांप पकड़ रहे हैं. वह सांप का मीट खाने के कई फायदे बताते हैं. उनका कहना है, "सांप का मीट बहुत अच्छा खाना है. यह लजीज होता है, सेहत के लिए अच्छा होता है, हड्डियों के लिए अच्छा होता है."
दूसरी तरफ, जानवरों के लिए काम करने वाली संस्था फोर पॉज इंटरनेशनल के लिए काम करने वाली वन्यजीव विशेषज्ञ इओना डंगलर का कहना है कि सांपों को मारने और जंगल के इको सिस्टम को बिगाड़ने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि दुनिया में होने वाला मीट का उत्पादन पर्याप्त है.
वह कहती हैं, "इन जीवों को खाने की प्लेट में परोसना या फिर उनसे पीने की कोई भी चीज बनाने की जो प्रक्रिया है, वह बहुत ही दर्दनाक है.. और यह सब ऐसे मकसद के लिए किया जा रहा है जिसकी कोई जरूरत ही नहीं है."
एके/आईबी (एएफपी)
आधुनिकता के जहर से खत्म होते सपेरे
भारत में सदियों से सपेरे नाग व सांप को पकड़ते आये हैं. सपेरे शायद, दुनिया के सबसे अनुभवी सांप विशेषज्ञ हैं. लेकिन इनके हुनर की कोई कद्र नहीं.
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
कौन हैं सपेरे
भारत के कुछ खास कबीले सैकड़ों साल तक सांप पकड़कर अपना पेट पालते रहे. इन्हीं को सपेरा भी कहा जाता है. उनका ज्ञान पीढ़ी दर पीढ़ी अनुभव के साथ आगे बढ़ा है. आम तौर पर सपेरों के बच्चे दो साल की उम्र में ही सांपों से खेलना शुरू कर देते हैं.
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
सदियों पुरानी दोस्ती
भारत में मिलने वाले सांपों की दर्जनों प्रजातियां विषैली होती हैं. लेकिन जोगी, वादी और इरुला कबीले के बच्चे इनसे भी नहीं डरते. वह सांपों का मनोविज्ञान समझने का दावा करते हैं.
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
पौराणिक विद्या
वादी कबीले के मुखिया बाबानाथ मिथुननाथ के मुताबिक, "रात में हम सब एक साथ बैठते हैं और फिर नागाओं के समय से चली आ रही विद्या को साझा करते हैं. 12 साल की उम्र तक बच्चे सांपों के बारे में सब कुछ सीख जाते हैं."
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
एक दूसरे के दोस्त
मिथुननाथ कहते हैं, "हम बच्चों को बताते हैं कि एक सांप को उसके प्राकृतिक आवास से सात महीने के लिए ही बाहर रखा जा सकता है. सात महीने से ज्यादा बाहर रखना ठीक नहीं. साथ में काम करते समय सांप और हम एक दूसरे पर भरोसा करते हैं."
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
जहर नहीं निकालते
बाबानाथ मिथुननाथ सांपों के जहरीले दांत तोड़ने से इनकार करते हैं, "हम उन्हें नुकसान नहीं पहुंचाते, क्योंकि वे तो हमारे बच्चों की तरह हैं. मैंने बचपन से आज तक सिर्फ एक ही बार सुना है कि एक आदमी को सांप ने काटा, क्योंकि उसने सांप को सात महीने से ज्यादा समय तक बाहर रखा."
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
गजब का ज्ञान
बिना किसी मशीनी ताम झाम के ये लोग एक पल में सांप की उम्र, उसका लिंग और उसका इलाका बता देते हैं. वे जानते हैं कि कौन सा सांप यहीं रहता है और कौन सा भटककर आया है.
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
एक मात्र उम्मीद
भारत के हजारों गांवों में आज भी सांप के काटने पर लोग इलाज के लिए सपेरों के पास जाते हैं. संपेरे पानी और जड़ी बूटियों से इलाज करते हैं. अक्सर उनके तौर तरीकों को चमत्कार भी बताया जाता है.
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
कानून की मार
भारत में 1991 में सांपों को नचाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया. अब सांपों को रखना भी कानूनन अपराध है. वादी कबीले के मुताबिक इस कानून की उन पर तगड़ी मार पड़ी. अब सपेरों के लिए रोजी रोटी जुटाना मुश्किल हो रहा है.
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
कहां जाएं, क्या करें
राजस्थान के वादी कबीले के मुताबिक, सांप का खेल बंद होने के बाद से उनका गांवों में आना जाना भी कम हो गया है. अब गांव वाले अक्सर उन्हें भगा देते हैं.
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
जब जरूरत पड़ी, याद किया
सांप के डंक की दवा सांप के ही जहर से बनाई जाती है. भारत में हर साल हजारों लोग सर्पदंश से मारे जाते हैं. दवा बनाने के लिए जब जहर की जरूरत पड़ती है तो वादी या इरुला कबीले के लोगों को याद किया जाता है.
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
मान्यता बनाम कानून
हिंदू मान्यता के मुताबिक भगवान शिव की उपासना करने वाले सपेरे अब वाकई मुश्किल में हैं. उनके सदियों पुराने ज्ञान का फायदा उठाया जा सकता था. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. बाबानाथ मदारी कहते हैं, "भारत के अमीरों के पास गरीबों के लिए जरा भी समय नहीं है."