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सिर्फ वादों पर झुग्गी में वोट

२३ अप्रैल २०१४

मुंबई की उसी चाल में 40 साल रहने के बाद विमल गायकवाड को पता है कि चुनाव के वक्त नेता किस तरह रंग बदलते हैं. उन्हें पता है कि किस तरह चुनावों के वक्त उनकी पूछ बढ़ जाती है.

तस्वीर: Getty Images

शहर के भीमनगर में रहने वाले 60 साल के गायकवाड कहते हैं, "उम्मीदवार वादा करते हैं कि मदद करेंगे, उसके बाद गायब हो जाते हैं." भारत की वित्तीय राजधानी मुंबई में चुनाव जीतने के लिए झुग्गियों के वोट अहम भूमिका निभाते हैं. लेकिन इसके बाद उनकी पूछ खत्म हो जाती है. महानगर की लगभग आधी आबादी झुग्गियों में रहती है.

गुरुवार को जब मुंबई की जनता वोट देने जा रही है, तो उसने इस बार गलती नहीं करने की ठानी है. महानगर की छह सीटें कांग्रेस के पास हैं, जो इन लोगों के उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी है. चुनाव शुरू होने से कुछ ही दिनों पहले महाराष्ट्र की कांग्रेस सरकार ने झुग्गी में रहने वालों को मुफ्त आवास देने की योजना बनाई है. कांग्रेस सांसद मिलिंद देवड़ा का कहना है, "हम मुंबई से झुग्गियां खत्म करना चाहते हैं. हम झुग्गी में रहने वालों को घर देना चाहते हैं और उस जगह को ढांचागत बदलाव के लिए इस्तेमाल करना चाहते हैं."

छोटा सा आशियानातस्वीर: AP

जो भी इस बात को साबित कर सकेगा कि वह 2000 से पहले मुंबई में बसा है, उसे इस प्रस्ताव के तहत घर मिलेगा. लेकिन कई लोगों का कहना है कि यह सब सिर्फ चुनावी शिगूफा है.

एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती धारावी में नवनाथ चौगुले और उनके पड़ोसियों को नई स्कीम के तहत घर मिलना चाहिए. चौगुले बताते हैं कि किस तरह उन्होंने 60 ट्रक मलबा डाल कर 1990 के दशक में इस जमीन को रहने योग्य बनाया, "अब सरकार की नजर इस जमीन पर है. जब भी आप चीनी देखेंगे, देखेंगे कि चींटियां उधर ही जा रही हैं." पास ही खड़े 20 साल के ड्राइवर फहीम अंसारी का कहना है, "अगर वे हमारे घर गिराना चाहते हैं, तो कोई बात नहीं. लेकिन हमें नया घर भी यहीं चाहिए."

चौगुले कहते हैं कि इस बार वे बदलाव चाहते हैं, "अगर यहां आग लग जाए, तो कोई भी पार्टी वाला नहीं आएगा. हम चाहते हैं कि इस बार कोई विकल्प आए, जो अब तक पूरे नहीं किए गए वादों को पूरा करे." साल 1995 में बीजेपी शिव सेना गठबंधन ने झुग्गीवालों को घर देने की योजना की शुरुआत की थी. इसके लिए 70 फीसदी बाशिंदों की सहमति जरूरी है. स्थानीय रिपोर्टों के मुताबिक करीब 1,524 प्रोजेक्ट थे, जिनमें से मुश्किल से 200 ही पूरे हो पाए हैं. राष्ट्रीय झुग्गी संघ के प्रमुख जोखिन अरपुतुम का कहना है, "लोग इस चीज को बारीकी से देख रहे हैं."

खेल का मैदान भी झुग्गियों के बीचतस्वीर: AP

राजनीतिक जानकार कुमार केतकर बताते हैं कि झुग्गी में रहने वालों को पता है कि उनका वोट एक प्रमुख हथियार है, "ये लोग बहुत मुश्किल में हैं और सिर्फ सही राजनीति ही उन्हें बचा सकती है." वह बताते हैं कि किस तरह शहर का धनाढ्य वर्ग पारिवारिक रिश्तों और रिश्वत के बल पर कुछ भी करा सकता है.

बांद्रा में गरीब नगर झुग्गी के लोगों का कहना है कि 2001 में वहां आग लग गई और जब उन्होंने दोबारा अपने घर बनाए, तो किसी नेता ने मदद नहीं की. यहां बेकरी चलाने वाले 58 साल के अशरफ शेख कहते हैं, "वोटर बेवकूफ नहीं हैं." अशरफ ने तय कर लिया है कि इस बार वे उसे वोट नहीं देंगे, जिसे बरसों से देते आए हैं.

उनका कहना है, "पहली चीज जो हमें चाहिए, वह है बदलाव, क्योंकि बदलाव से ही विकास हो सकता है. पिछले 10 साल में विकास नहीं सिर्फ हवाई वादे किए गए हैं."

एजेए/एएम (एएफपी)

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