मृतकों के परिजनों को क्यों नहीं मिल रही पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट
समीरात्मज मिश्र
१४ जनवरी २०२०
यूपी में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हुए प्रदर्शन और फिर उसके बाद हुई हिंसा में मारे गए दर्जनों लोगों के परिजनों को एक महीना बीत जाने के बाद भी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट नहीं मिली है.
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19 और 20 दिसंबर को नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हुए प्रदर्शन और फिर उसके बाद हुई हिंसा में उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जिलों में कम से कम बीस लोगों की मौत हुई थी. मृतकों के परिजनों का आरोप है कि ये मौतें गोली लगने से हुई हैं जबकि पुलिस अब तक गोली चलाने की बात से इनकार कर रही है. लेकिन घटना के करीब एक महीने बाद भी मृतकों के परिजन पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट का इंतजार कर रहे हैं.
फिरोजाबाद जिले में सरकारी सूचना के मुताबिक कुल छह लोगों की मौत हुई. इनमें से तीन का पोस्टमॉर्टम फिरोजाबाद में जबकि तीन लोगों का दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में हुआ. इन सभी के परिजनों को अभी तक ये नहीं मालूम कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में मौत की क्या वजह बताई गई है, पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट मिलना तो दूर की बात.
नागरिकता कानून के खिलाफ भारत में प्रदर्शन
नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ भारत के कई शहरों में विरोध हो रहा है. इस कानून के खिलाफ छात्र विशेष तौर पर अपनी आवाज उठा रहे हैं. कई यूनिवर्सिटी के छात्रों के साथ-साथ नागरिक समाज, अधिकार समूह के सदस्य सड़क पर उतर आए हैं.
तस्वीर: Surender Kumar/Student Union of Jamia Milia University
कानून का विरोध
जामिया मिल्लिया के छात्रों पर कार्रवाई करती दिल्ली पुलिस. सादी वर्दी में पुलिस के जवान को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं कि पुलिस कब से ड्यूटी के दौरान सादी वर्दी पहनने लगी. सोशल मीडिया पर पुलिस कार्रवाई की बहुत सारी तस्वीरें वायरल हो रही हैं.
तस्वीर: Surender Kumar/Student Union of Jamia Milia University
आगजनी
दिल्ली के जामिया नगर में हिंसक प्रदर्शन के दौरान डीटीसी की चार बसों में आग लगा दी गई. छात्रों का कहना है कि वह शांति के साथ अपना प्रदर्शन कर रहे थे. छात्रों के मुताबिक रविवार को हुई हिंसा उन्होंने नहीं शुरू की.
तस्वीर: Surender Kumar/Student Union of Jamia Milia University
यूनिवर्सिटी के बाहर जुटे छात्र
रविवार को भारी संख्या में जामिया यूनिवर्सिटी के छात्र विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए. उनका आरोप है कि नागरिकता कानून के जरिए देश में विभाजनकारी नीति लागू करने की साजिश है.
तस्वीर: Surender Kumar/Student Union of Jamia Milia University
पुलिस पर पथराव
दिल्ली पुलिस का कहना है कि रविवार को प्रदर्शन कर रही भीड़ को रोकने की कोशिश कर रही टीम पर पथराव किया गया. दिल्ली पुलिस के मुताबिक इस दौरान कुछ पुलिस के जवान भी घायल भी हुए हैं. उधर जामिया यूनिवर्सिटी का कहना है कि पुलिस कार्रवाई में करीब 200 छात्र घायल हुए हैं.
तस्वीर: Surender Kumar/Student Union of Jamia Milia University
पुलिस ज्यादती के खिलाफ एकजुट हुए लोग
दिल्ली पुलिस मुख्यालय के बाहर रविवार रात नागरिक समाज, छात्र, राजनीतिक दल के सदस्य एकत्रित होकर छात्रों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई का विरोध किया. लोगों ने महात्मा गांधी और बाबा साहेब आंबेडकर की तस्वीरों के साथ अपनी मांग रखते हुए दोषी पुलिसवालों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की.
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
पुलिस की सख्ती के खिलाफ विरोध
जामिया मिल्लिया के छात्रों के साथ पुलिस की कार्रवाई के विरोध में कई कॉलेजों में रविवार रात और सोमवार सुबह प्रदर्शन हुए. हैदराबाद, अलीगढ़, जादवपुर यूनिवर्सिटी के छात्रों ने पुलिस के बल प्रयोग के खिलाफ प्रदर्शन किया.
तस्वीर: Surender Kumar
कई शहरों में विरोध की आवाज
नागरिकता कानून के खिलाफ पिछले कुछ दिनों से राजनीतिक दल के साथ-साथ अधिकार समूह विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. असम, बंगाल, त्रिपुरा और मेघालय में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. कुछ जगहों पर विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा भी हुई. जिनमें गुवाहाटी, डिब्रुगढ़, तिनसुकिया, मालदा, उत्तर 24 परगना, हावड़ा और मुर्शिदाबाद शामिल हैं.
तस्वीर: Surender Kumar
जानलेवा प्रदर्शन
असम में नागरिकता कानून के खिलाफ हुई हिंसा में अब तक 4 लोगों की मौत हो चुकी है. हालांकि असम के गुवाहाटी और डिब्रुगढ़ में अब हालात धीरे-धीरे सामान्य हो रहे हैं. हालात को देखते हुए इन इलाकों में कर्फ्यू में भी ढील दी जा रही है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/B. Boro
अफवाह से फैलती है हिंसा
सोशल मीडिया के जरिए भ्रामक और अफवाह को फैलने से रोकने के लिए कई राज्यों की पुलिस सोशल मीडिया पर कड़ी निगरानी कर रही है. ऐसे में राज्यों की पुलिस समय-समय पर समीक्षा कर इंटरनेट पर रोक लगा देती है जिससे अफवाह ना फैल सकें.
तस्वीर: AFP
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फिरोजाबाद के रसूलपुर इलाके के रहने वाले हारुन को भी बीस दिसंबर को गोली लगी थी. हारुन भैंस का कारोबार करते थे और भैंस बेचकर वापस आ रहे थे. उनके परिजनों के मुताबिक, उन्हें पेट में गोली लगी थी और जब गोली लगी, उस वक्त वो एक ऑटो रिक्शा में बैठे थे. पुलिस ने इस मामले में जो एफआईआर दर्ज की उसमें गोली लगने की बात नहीं लिखी गई थी. 26 दिसंबर को हारुन की दिल्ली के एम्स अस्पताल में मौत हो गई.
उससे पहले उन्हें आगरा के एसएन मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया था लेकिन परिजनों को किसी तरह के मेडिकल कागजात नहीं दिए गए थे. एम्स अस्पताल से उन्हें पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट भी अब तक नहीं मिली है. हारुन के एक रिश्तेदार बताते हैं कि हारुन के गर्दन में गोली लगी थी और गोली बेहद नजदीक से मारी गई थी.
यह आरोप न सिर्फ हारुन का बल्कि फिरोजाबाद में मारे गए लगभग सभी लोगों के परिजनों का है. इन लोगों का का कहना है कि गोली लगने के भी कई घंटे बाद अस्पताल पहुंचाया गया और जिनकी हालत ज्यादा गंभीर थी उन्हें दिल्ली रेफर किया गया जबकि कुछ लोगों की मौत आगरा में ही हो गई थी. फिरोजाबाद में पुलिस अब तक ये कहती आई है कि उसने प्रदर्शनकारियों पर एक भी गोली नहीं चलाई लेकिन सवाल उठता है कि फिर किसकी गोली से ये मौतें हुई हैं.
आगरा मेडिकल कॉलेज के एक डॉक्टर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "गोली लगने की बात छिपाई नहीं जा सकती और गोली लगी भी है तो उसके कुछ भाग अंदर रहे ही होंगे. जितने मरीज आगरा लाए गए थे, उन सबके शरीर से गोलियां निकाल ली गईं और फिर उन्हें आगे रेफर किया गया. इसीलिए सफदरजंग अस्पताल में एक व्यक्ति की मौत की गोली लगने से तो पुष्टि हुई है लेकिन शरीर से गोली मिली नहीं है. ऐसे में ये साबित करना मुश्किल हो जाएगा कि ये गोली पुलिस ने चलाई है या फिर किसी और ने?”
मेरठ में 20 दिसंबर को हुए विरोध प्रदर्शन के दिन खत्ता रोड के आसपास तीन लोगों की मौत हुई थी. मोहसिन भी इन्हीं लोगों में शामिल थे. मोहसिन के परिजनों का कहना था कि वह कुछ सामान लेने के लिए बाजार की ओर गया था. उसी वक्त प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच संघर्ष शुरू हो गया. मोहसिन बीच में फंस गया और उसे गोली लग गई. बिजनौर में भी दो लोगों की मौत गोली लगने से हुई थी. पुलिस ने पहले तो इनकार किया लेकिन बाद में गोली चलाने की बात स्वीकार की.
यह स्थिति कानपुर, संभल और दूसरी जगहों की भी है जहां लोगों की प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा से मौत हुई थी. लेकिन इन घटनाओं को लेकर पुलिस पर सबसे ज्यादा सवाल इस वजह से उठ रहे हैं क्योंकि न तो मारे गए किसी परिजन को पोस्टमार्टम रिपोर्ट दी गई है और न ही एफआईआर दर्ज हुई है. पुलिस ने अपनी ओर से एफआईआर दर्ज कराई है लेकिन अपनी तरह से यानी उसमें गोली लगने से मौत नहीं दिखाई गई है.
2019 : विरोध प्रदर्शनों का साल
दुनिया के अलग अलग हिस्सों में 2019 के दौरान करोड़ों लोग सड़कों पर उतरे. कहीं उन्होंने लोकतंत्र के लिए नारे बुलंद किए तो कहीं धार्मिक आधार पर भेदभाव का विरोध किया. कोई अपनी सरकार से नाखुश था तो किसी को भविष्य की चिंता थी.
तस्वीर: Reuters/T. Siu
हांगकांग की स्थिरता को झटका
हांगकांग के प्रदर्शनों ने इस साल चीन की नाक में खूब दम किया. इनकी शुरुआत उस बिल से हुई जिसके जरिए हांगकांग से भगोड़े लोगों को चीन की मुख्य भूमि पर प्रत्यर्पित किया जा सकेगा. बिल तो वापस ले लिया गया है लेकिन लोकतंत्र के समर्थन में वहां प्रदर्शनों का सिलसिला जारी है. प्रदर्शनों में बल प्रयोग को लेकर दुनिया भर में चीन की आलोचना भी हुई.
तस्वीर: Reuters/T. Peter
पर्यावरण के लिए
स्वीडन की संसद के सामने एक लड़की के प्रदर्शन ने 2019 में एक बड़े आंदोलन को जन्म दिया. ग्रेटा थुनबर्ग से प्रेरणा लेकर दुनिया भर के स्कूली बच्चों ने पर्यावरण की रक्षा के लिए 'फ्राइडे फॉर फ्यूचर' मार्च निकाले. जर्मनी समेत लगभग 150 देशों में साढ़े चार हजार से ज्यादा प्रदर्शन हुए. ग्रेटा की मुहिम को देखते हुए कई सरकारों ने जलवायु संकट की घोषणा भी की.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Kappeler
धार्मिक भेदभाव के खिलाफ प्रदर्शन
भारत में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ कई हिस्सों में बड़े विरोध प्रदर्शन हुए. यह कानून पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले गैर मुस्लिम लोगों को भारत में आने पर नागरिकता देने की वकालत करता है. आलोचकों का कहना है कि यह कानून धर्म के आधार भेदभाव करता है जिसकी संविधान में इजाजत नहीं है. प्रदर्शनों के दौरान कई लोग मारे गए.
तस्वीर: Reuters/D. Sissiqui
सद्दाम का दौर ही बेहतर था
अक्टूबर के महीने में इराक में लोग बड़ी संख्या में सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरे. इस दौरान हिंसा में 460 लोग मारे गए जबकि 25 हजार से ज्यादा घायल हुए. भ्रष्टाचार, बरोजगारी और देश की सरकार पर ईरान के प्रभाव से नाराज लोगों के रोष को देखते हुए प्रधानमंत्री अदिल अब्दुल माहिल ने इस्तीफा दे दिया. कई लोग आज इराकी तानाशाह सद्दाम के दौर को बेहतर बता रहे हैं.
तस्वीर: Reuters/A. Jadallah
बेरुत में भी बवाल
लेबनान में सरकार के खिलाफ अक्टूबर में बड़े प्रदर्शन हुए. लोग गैसोलीन, तंबाकू और यहां तक कि व्हाट्सऐप फोन कॉल पर भी टैक्स बढ़ाने जाने से नाराज थे. बाद में प्रदर्शनों ने सरकारी भ्रष्टाचार और घटते जीवनस्तर के खिलाफ रोष का रूप ले दिया. प्रधानमंत्री साद हरीरी के इस्तीफे के बावजूद प्रदर्शनकारियों ने अंतरिम प्रधानमंत्री से मिलने से इनकार कर दिया. वे बड़े स्तर पर बदलावों की मांग कर रहे हैं.
तस्वीर: Reuters/A. M. Casares
ईरान रहा हफ्तों तक ठप
ईरान में नवंबर के महीने में जब गैसोलीन के दामों में जब 50 प्रतिशत की वृद्धि कर दी गई तो कई शहरों में लोगों ने जमकर विरोध किया. कई शहरों में लगभग दो लाख लोग सड़कों पर उतरे. सरकार ने बलपूर्वक विरोध को दबाने की कोशिश की. अमेरिका का कहना है कि इस दौरान एक हजार से ज्यादा लोग मारे गए और यह 1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद से देश में सबसे बड़ी हिंसा है.
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सूडान में क्रांति किस काम की
अफ्रीकी देश सूडान में महीनों तक चले विरोध प्रदर्शनों के बाद दशकों से सत्ता में जमे ओमर अल बशीर को अप्रैल में सत्ता छोड़नी पड़ी. इसके बाद देश में सत्ता संघर्ष शुरू हो गया. सेना और लोकतंत्र समर्थक पार्टियां, दोनों सत्ता पर कब्जा करने में जुटी हैं. इस दौरान देश में फैली अशांति में दर्जनों लोग मारे गए हैं. अगस्त में दोनों पक्षों ने अंतरिम सरकार बनाने के लिए एक संवैधानिक घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/AP
लातिन अमेरिका में असंतोष
चिली में लगभग दो महीने पहले प्रदर्शन हुए. देश के राजनीतिक और आर्थिक सिस्टम से मायूस लोगों ने सड़कों पर उतरने का फैसला किया. प्रदर्शनकारी स्वास्थ्य, पेंशन और शिक्षा के क्षेत्र में बड़े बदलावों की मांग कर रहे हैं. 2019 में बोलिविया, होंडुरास और वेनेजुएला जैसे कई लातिन अमेरिकी देशों में भी प्रदर्शन हुए. मई में वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो को हटाने की कोशिश भी हुई.
तस्वीर: Reuters/I. Alvarado
फ्रांस में सब कुछ ठप
फ्रांस में येलो वेस्ट प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों के लिए खूब सिरदर्द बने. 2018 की आखिरी दिनों में प्रस्तावित टैक्स वृद्धि के विरोध में इन प्रदर्शनों की शुरुआत हुई. बाद में सरकार की नीतियों से नाराज अन्य लोग भी इनका हिस्सा बन गए. लेकिन दिसंबर आते आते फ्रांस के लोग फिर सड़कों पर दिखे, इस बार माक्रों के पेंशन सुधारों के खिलाफ.
तस्वीर: Reuters/P. Wojazer
आजादी की आस
स्पेन की सुप्रीम कोर्ट ने जब नौ कैटेलान नेताओं को कैद की सजा सुनाई तो प्रांतीय राजधानी बार्सिलोना में नए सिरे से प्रदर्शन शुरू हो गए. एक समय इनमें हिस्सा लेने वाले लोगों की तादाद पांच लाख तक पहुंच गई. इस दौरान लगातार छह रातों तक हिंसा की घटनाएं देखने को मिलीं. इस दौरान आम हड़ताल भी हुई, जिससे यातायात, कार उत्पादन और फुटबॉल मैच तक को रोकना पड़ा.
तस्वीर: REUTERS/J. Nazca
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फिरोजाबाद में मारे गए मुकीम कुरैशी के पिता मुबीन बताते हैं, "हमने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई लेकिन एफआईआर नहीं लिखी गई. हम लोग पहले तो बच्चे के इलाज में उलझे रहे. उसकी मौत के बाद मोहल्ले के लोगों के साथ हम लोग रिपोर्ट लिखाने गए थे. अस्पताल में भी हमें बच्चे के पास नहीं जाने दिया गया और एंबुलेंस से सिर्फ एक व्यक्ति को साथ लेकर दिल्ली भेज दिए.”
मेरठ और कानपुर में भी लोगों ने ये शिकायत की है कि परिजनों की तमाम कोशिशों के बावजूद उनकी रिपोर्ट नहीं लिखी गईं और न ही अब तक किसी को पोस्टमॉर्टम की रिपोर्ट दी गई है. फिरोजाबाद के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर आरके पांडेय ने एक अखबार को बताया कि दो लोगों के शरीर में गोली लगी थी लेकिन शरीर के भीतर कोई गोली नहीं मिली. उनके मुताबिक, गोली लगने के बाद उसी समय बाहर निकल गई. फिरोजाबाद के जिन अस्पतालों में मृत लोगों को सबसे पहले लाया गया था, उन अस्पतालों का इन मरीजों के बारे में यही कहना था.
लखनऊ में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं, "ज्यादातर जगहों पर पुलिस ने सिर्फ रबर की गोलियां चलाई हैं जबकि प्रदर्शनकारी भी कई जगह गोलियां चलाते दिखे हैं. हम इस बात से इनकार नहीं कर सकते हैं कि पुलिस ने आत्मरक्षा में गोलियां नहीं चलाई हैं. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में काफी कुछ साफ हो जाएगा. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आने में थोड़ा समय लग ही जाता है.”
हालांकि कई मृतकों के परिजन सीधे तौर पर आरोप लगाते हैं कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट इसलिए उन्हें नहीं दी जा रही है ताकि उसे पुलिस अपने मनमाफिक बनवा सके. आगरा, मेरठ, फिरोजाबाद जैसी जगहों पर कुछ अस्पतालों के डॉक्टरों ने 'ऑफ दि रिकॉर्ड' बताया है कि उन्हें किसी भी घायल प्रदर्शनकारी को भर्ती करने की सख्त मनाही थी. जानकारों के मुताबिक, पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में समय जरूर लगता है लेकिन इतना भी नहीं.
मेरठ में भी पुलिस की गोली से पांच लोगों की मौत हुई थी. यहां के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी कहते हैं, ‘‘पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट अस्पताल से पुलिस अधीक्षक के यहां जाएगी. उसके बाद मामले की जांच कर रहे अधिकारियों और परिजनों को दी जाएगी. यहां तक कि जांच अधिकारियों को भी बिना उनकी अनुमति के रिपोर्ट नहीं दी जाएगी.''