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सीखने के सीक्रेट

५ दिसम्बर २०१४

अगर आप किसी भी चीज को बेहतर ढंग से करना चाहते हैं तो उस वक्त ध्यान दूसरी जगह न लगाएं. एक बार में कई काम करने से सीखने की प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है.

तस्वीर: Adimas/Fotolia.com

कभी कभी हमें किसी का नाम याद ही नहीं आता, कभी कोई टाइमटेबल ध्यान से उतर जाता है. ऐसा होने पर हम भले ही खुद को कोसते हों, लेकिन दिमाग के लिए ऐसा करना जरूरी है. हमारे दिमाग में हर मिनट चार लाख सेंसर कौंधते हैं जो फिल्टर का काम करते हैं. दिमाग को जानकारी याद रखने के लिए अलग अलग इलाकों की भी जरूरत पड़ती है. कहीं शॉर्ट टर्म मेमोरी होती है तो कहीं लॉन्ग टर्म. जर्मनी की ब्राउनश्वाइग टेक्निकल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक दिमाग की कोशिकाओं से याददाश्त और सीखने की प्रक्रिया को समझाने का दावा कर रहे हैं.

कहां है दिक्कत

प्रोफेसर मार्टिन कोर्टे मतिष्क वैज्ञानिक हैं. कोर्टे और उनकी टीम ने पता लगाया है कि कुछ नया सीखना और उसे लंबे समय तक याद रखना मुश्किल क्यों है. असल में दिमाग की तंत्रिका कोशिकाएं प्रोटीन मॉलिक्यूल्स को पाने की होड़ में रहती हैं. लंबे समय तक कुछ याद रखने का राज इन्हीं प्रोटीन मॉलिक्यूल्स में छुपा है. ब्राउनश्वाइग टेक्निकल यूनिवर्सिटी के न्यूरोसाइंटिस्ट प्रोफेसर कोर्टे कहते हैं, "वजह यह है कि यहां मॉलिक्यूल संबंधी रुकावटें हैं, जो शॉर्ट टर्म मेमोरी को लॉन्ग टर्म मेमोरी बनने में रुकावट पैदा करती हैं."

वैज्ञानिक चूहे के दिमाग का अध्ययन कर रहे हैं. उनकी दिलचस्पी मस्तिष्क के हिप्पोकैम्पस इलाके में है. किसी भी चीज को याद रखने के लिए यह हिस्सा अहम है. प्रयोग के लिए चूहे को मार कर इसके मस्तिष्क की कोशिकाओं को जिंदा रखना गया है. इसके लिए एक खास तरह का सोल्यूशन इस्तेमाल होता है जो दिमाग के माहौल की नकल करता है.

दिमाग की हर तंत्रिका कोशिका दूसरी तंत्रिका कोशिकाओं से जुड़ी है. ये जोड़ 10 हजार तक हो सकते हैं. तंत्रिका कोशिकाओं के बीच इस जोड़ को साइनैप्स कहा जाता है. इन्हीं जोड़ों में सीखने का काम होता है. इस प्रक्रिया को समझाते हुए कोर्ट कहते हैं, "यहां हम तंत्रिकाओं के बीच एक जोड़ देखते हैं, यानी साइनैप्स. साइनैप्स की मजबूती बढ़ने के साथ इसमें ज्यादा जानकारी जमा होती है. साइनैप्स की मजबूती तब बढ़ती है जब आगे और पीछे वाली कोशिकाएं एक साथ सक्रिय होती हैं."

तंत्रिका कोशिकाओं में सूचनाओं के सिग्नलतस्वीर: ag visuell/Fotolia.com

लॉन्ग टर्म मेमोरी

दोनों साइनैप्स के हरकत में आते ही कोशिका में सोडियम और कैल्शियम का बहाव होता है. कैल्शियम की मदद से साइनैप्स में नया प्रोटीन मालिक्यूल बनता है. लेकिन यह याददाश्त तभी बनी रहती है जब इसी साइनैप्स में एक ही तरह की हरकत बार बार हो. फिर साइनैप्स की यह हरकत लंबे वक्त यानी लॉन्ग टर्म मेमोरी बन जाती है.

चूहे के दिमाग की मदद से वैज्ञानिकों ने यही कर दिखाया है. इलेक्ट्रिक शॉक देकर कोशिकाओं को उत्तेजित किया जाता है. एक ही साइनैप्स को बार बार उत्तेजित करने से याददाश्त तगड़ी होने लगती गै. लेकिन अगर एक ही कोशिका के अलग अलग साइनैप्स को उत्तेजित किया जाए तो एक घटना से संबंधित यादें मिट भी सकती हैं.

प्रोफेसर के मुताबिक, "हम यहां एक खास साइनैप्स देख रहे हैं जो ललक की वजह से सक्रिय हुआ है. और इस इंपल्स की वजह से नए प्रोटीन मॉलिक्यूल्स बन रहे हैं. लेकिन अगर इसी वक्त किसी दूसरे विषय को लेकर दिलचस्पी जगती है या ध्यान भटक जाता है तो हो सकता है कि प्रोटीन मॉलिक्यूल इस साइनैप्स में न रहें और कहीं और चले जाएं, जहां दिलचस्पी कम है और ये दिलचस्पी प्रोटीन मॉलिक्यूल को चुरा लेती है. ये मॉलिक्यूल फिर दूसरे साइनैप्स में चले जाते हैं. इससे ये होता है कि जो पहले सीखा था, उसे हम भूल जाते हैं और दूसरी बात ज्यादा ढंग से याद रहती है."

तंत्रिका कोशिकाओं के बीच साइनैप्सतस्वीर: Sebastian Kaulitzki/Fotolia.com

करत करत अभ्यास के...

सीखने की प्रक्रिया पर इसका जबरदस्त असर पड़ता है. जानकारियां जो एक ही साइनैप्स पर पहुंच कर आपस में एक दूसरे को मजबूत बनाती हैं, वह लॉन्ग टर्म मेमोरी का हिस्सा बन सकती हैं, "हमारे प्रयोगों से पता चला है कि एक साथ कई चीजें करने से बचना चाहिए क्योंकि ऐसे में कई साइनैप्स सक्रिय हो जाते हैं जिनकी आपको जरूरत है ही नहीं. और दूसरी बात यह है कि आपको एक वक्त में थोड़ा थोड़ा करके सीखना चाहिए ताकि जो आपने पहले सीखा वो बाद वाली जानकारी की वजह से आप भूल न जाएं."

हमारी तंत्रिका कोशिकाओं पर किए गए प्रयोग बता रहे हैं कि एक बार में एक काम करने से और धीमे धीमे आगे बढ़ने से याददाश्त अच्छी होती है.

रिपोर्ट: मार्टिन रीबे/ओएसजे

संपादन: मानसी गोपालकृष्णन

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